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शिक्षा के पथ पर बढ़ते हुए खुशियों के पड़ाव
शिक्षा के पथ पर बढ़ते हुए खुशियों के पड़ाव : प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक अपने शिक्षकीय जीवन में दो स्थितियों से साथ-साथ गुजरता है-सीखना और सिखाना। पर यह उस शिक्षक के लिए ही संभव हो पाता है जो आत्मीयता, मधुरता एवं संवेदना के धरातल पर अवस्थित हो बच्चों के लिए विद्यालय एवं बाहरी दुनिया में उनकी अभिव्यक्ति एवं ज्ञान निर्माण के नित नवीन अवसर एवं जगह तलाशता है। दरअसल अवसरों की यह तलाश उसे विद्यार्थी बनाए रखती है और वह लगातार सीखने की प्रक्रिया से जुड़ा रहता हैं। यह जुड़ाव न केवल शिक्षक के रूप में उसको बेहतर करता है बल्कि बच्चों के साथ आत्मीय और मधुर मैत्रीपूर्ण व्यवहार की ठोस उर्वर ज़मीन भी तैयार करता है जिस पर बच्चों की नया सीख पाने की ख़ुशी की फसलें लहलहाती हैं, फलती-फूलती हैं।
एक अच्छा शिक्षक अपने विद्यार्थियों में न केवल विषय के प्रति ललक व समझ पैदा करता है बल्कि सोचने के नवल रास्ते भी खोलता है। वह बच्चों में अनुमान, अनुसंधान, अवलोकन की सम्यक् दृष्टि विकसित करता है साथ ही उन्हें वैज्ञानिक चेतनायुक्त, पर्यावरणीय संवेदनशीलता, तार्किकता से भी लैस करता है। वह पुरातनपंथी, परंपरागत पथ पर चलने का हामी नहीं होता बल्कि सुविचारित वैज्ञानिक संचेतनायुक्त संवेदनशील रचनात्मक पगडंडियों पर बढ़ने को प्रेरित करता है।
शिक्षा के पथ पर बढ़ते हुए एक शिक्षक के रूप में मेरी यात्रा न केवल समृद्ध सीख भरी रही है बल्कि स्वयं को एक शिक्षक के रूप में आत्मावलोकन कर शैक्षिक बेहतरी की राह पर अग्रसर करने वाली भी रही है। इस शिक्षकीय यात्रा में तमाम खुशियों भरे पड़ाव मिले जहाँ ठहर कर मैंने स्वयं की आलोचना कर आगे की सुरभित यात्रा हेतु नये रास्ते खोजे हैं।
इस शैक्षिक यात्रा में मैं अपने अर्जित ज्ञान को लेखों के रूप में व्यक्त करता रहा हूँ जो एक शिक्षक के रूप में मेरे जमीनी अनुभवों की अभिव्यक्ति हैं जिन्हें शिक्षकों, बच्चों एवं समुदाय के साथ काम करते हुए हासिल किया है। ये मनोभाव केवल शिक्षा एवं समाज क्षेत्र का विश्लेषण ही नहीं करते बल्कि मूल्यांकन करते हुए सोचने का फलक उपलब्ध कराते हैं। हालांकि जिन मुद्दों या घटनाओं पर लेख लिखे गए हैं, यह बिल्कुल आवश्यक नहीं कि आज भी वही स्थितियाँ होंगी क्योंकि समय के प्रवाह में पुल के नीचे से बहुत पानी बह चुका है। हालांकि परिदृश्य में कोई बड़ा परिवर्तन दिखाई नहीं देता है। मुझे मई २०११ से अगस्त २०१९ तक ब्लॉक संसाधन केंद्र नरैनी, बाँदा में सह-समन्वयक हिन्दी भाषा के पद पर काम करने का अवसर मिला। उस कालावधि में विभिन्न विद्यालयों में नियमित जाना और शिक्षकों, बच्चों एवं अभिभावकों से संवाद की स्थितियाँ बनीं। कभी शिक्षा के मुद्दों पर तो कभी वृहद सामाजिक कार्य व्यवहार पर।
इस प्रक्रिया से गुजर कर मैं एक शिक्षक के रूप में लगातार समृद्ध होता रहा हूँ, अर्जित अनुभवों को डायरी में नोट करता रहा जो समय मिलने पर लेख के रूप में विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। १८ नवंबर, २०१२ को कुछ रचनाधर्मी शिक्षक एवं शिक्षिकाओं के साथ मिलकर पूर्व माध्यमिक विद्यालय बरेहंडा में स्वप्रेरित मैत्री समूह ‘शैक्षिक संवाद मंच’ की स्थापना की। मंच का उद्देश्य विद्यालयों को आनंदघर के रूप में बदलाव करना है। विद्यालयों के इस बदलाव में शिक्षकों, बच्चों एवं समुदाय सभी की सहभागिता आवश्यक थी। अलग-अलग संवाद कार्यशाला, गोष्ठियाँ आरंभ की गईं। ‘विद्यालय बनें आनंदघर’ के ध्येय के साथ शैक्षिक संवाद मंच के साथ नियमित मासिक बैठकें, वार्षिक शैक्षिक चिंतन शिविर, विज्ञान यात्राएँ, विज्ञान, भाषा एवं सामाजिक विषय पर कार्यशालाएँ करते हुए शिक्षक-शिक्षिकाओं की क्षमता वृद्धि कर एक दूसरे से सीखना-सिखाना बना रहा। ऐसे ही बच्चों के साथ विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर मीना मंच एवं बाल संसद का गठन कर बात की जाती रही।
विद्यालय समाज का साहित्यिक, शैक्षिक एवं साँस्कृतिक केंद्र है, यह समाज की संपत्ति है, विद्यालय के प्रति अपनेपन का भाव बने इस दृष्टि से समुदाय के साथ बैठकें कर विद्यालय विकास एवं ग्राम संस्कार के मुद्दों से जोड़ सहयोग लिया गया। मुझे स्मरण है १८ नवम्बर, २०१२ को शैक्षिक संवाद मंच की स्थापना के बाद समुदाय को विद्यालय से जोड़ने के लिए पूर्व माध्यमिक विद्यालय बरेहंडा में २४ नवम्बर, २०१२ देवोत्थानी एकादशी के अवसर पर विद्यालय को लगभग एक हज़ार दीपों से सजाया गया। पूरा प्रबंध अभिभावकों एवं समुदाय ने किया। ज्ञान बिखेरने वाला विद्यालय का परिसर प्रकाश से नहा गया। लगा कि जैसे हजारों नन्हे सूरज विद्यालय की भूमि पर उतर आये हों। विद्यालय को दीपों से सजाने का यह सिलसिला चल पड़ा और शैक्षिक संवाद मंच के नेतृत्व में दीपावली से देवोत्थानी एकादशी तक अगले वर्ष १५ विद्यालयों को समुदाय के सहयोग से प्रकाशित किया गया। सरकारी विद्यालयों के प्रति समुदाय की धारणा बदली और विद्यालय के प्रति अपनापन पैदा हुआ। इस राह में रामकिशोर पांडेय, मीरा वर्मा, इंसाफ अली, चंद्रशेखर सेन, विनोद गुप्ता, बलरामदत्त गुप्त (बांदा) , दुर्गेश्वर राय (गोरखपुर) , आलोक कुमार श्रीवास्तव (चित्रकूट) , प्रीति भारती (उन्नाव) , ऋतु श्रीवास्तव (हापुड़) विनीत मिश्रा (कानपुर देहात) जैसे शिक्षक हमराही बने। इसका परिणाम था कि विद्यालय आनंदघर बनने की दिशा में बढ़ने लगे। विद्यालय बच्चों के लिए ज्ञान निर्माण की अपनी जगह के रूप में उभरे। बच्चों को विद्यालय आना खुशियों से मिलने जैसा लगने लगा। बच्चों में अपने परिवेश की समझ विकसित हो और चीजों के अवलोकन की क्षमता वृद्धि के साथ विविध दृष्टिकोण से समस्याओं का समाधान कर सकें, मन के भावों को व्यक्त कर सकें, साथ ही सामूहिकता के भाव के साथ कार्य संपादन सीखें, इसके लिए दीवार पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया।
दीवार पत्रिका के नामकरण से लेकर विषय-वस्तु के चयन, संपादन एवं प्रकाशन का पूर्ण उत्तरदायित्व बच्चों का ही रहा। इससे बच्चों में बड़े सकारात्मक परिवर्तन देखे गये। बच्चों की रचनाएँ एकलव्य, भोपाल की पत्रिका चकमक में छपने लगीं। दीवार पत्रिका पर कार्य करते हुए शिक्षक के रूप में नयी समझ बनी। राजेश उत्साही, भोपाल तथा महेश चंद्र पुनेठा, पिथौरागढ़ जैसे साथियों का सान्निध्य मिला। मुझे याद आता है कि दीवार पत्रिका का एक अंक लोकगीत विशेषांक के रूप में निकाला। उन लोकगीतों को जिन्हें पिछड़ेपन की निशानी समझ बच्चे हेय दृष्टि से देखते थे, उस अंक पर काम करते हुए लोक-संस्कृति के महत्त्व से परिचित हुए और दर्जनों लोकगीत कंठस्थ किए। नागपंचमी, मकरसंक्रांति होली, दीवाली आदि सामाजिक त्यौहार स्कूल में मनाया जाना आरम्भ हुआ। दीवार पत्रिका के अंक गाँव के प्रमुख स्थानों-चौपालों पर लगायें जाने लगे ताकि समुदाय अपने बच्चों की प्रतिभा से परिचित हो सके, साथ ही बच्चों की अपेक्षाओं से भी।
शिक्षा के पथ पर बढ़ते हुए विद्यालयों में बच्चों के चेहरों पर खुशियों की लहरें देख प्रसन्नता होती कि जिस रास्ते पर क़दम बढ़ा रहा हूँ वह उचित है। आज भी रुका नहीं हूँ, शिक्षा के पथ पर अविराम अनथक बढ़ रहा हूँ ताकि बच्चों की हथेलियों पर दमकते जुगनू उतार सकूं, उनके हृदय में परस्पर प्रेम, करुणा, मधुरता, न्याय, विश्वास, मानव मूल्य और सामूहिकता के भाव उत्पन्न कर सकूं। रुका नहीं हूँ, चला जा रहा हूँ जैसे बहती है कोई नदी, बहता है मलय समीर और बहता है आसमान में हजारों आकृतियाँ बनाता बादल जिसके पीछे से उग आता है खुशियों का इंद्रधनुष।
प्रमोद दीक्षित मलय
लेखक शैक्षिक संवाद मंच के संस्थापक हैं। बांदा, उ।प्र।
मोबा-८२९९४४७२७४
पांच सौ शिक्षकों की रचनाओं का सात खंडों में होगा प्रकाशन
शैक्षिक संवाद मंच द्वारा दिया जायेगा विधा-लेखन प्रशिक्षण
अतर्रा (बांदा) । शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश अपनी पुस्तक प्रकाशन योजना के अंतर्गत ५०० से अधिक शिक्षकों की रचनाओं का संग्रह सात खंडों में प्रकाशित करेगा। इस संग्रह में साहित्य की विभिन्न विधाओं यथा कविता, बाल कविता, कहानी, बाल कहानी, लघुकथा, एकांकी, संस्मरण, पत्र लेखन, लेख, जीवनी, आत्मकथा, लोककथा, मुक्त विषय, साक्षात्कार, यात्रा वृत्तांत पर आधारित रचनाएँ सात खण्डों में प्रकाशित होंगी। लेखन के पहले विधावार प्रशिक्षण दिया जायेगा।
उक्त जानकारी देते हुए दुर्गेश्वर राय ने बताया कि गत दिवस शैक्षिक संवाद मंच द्वारा आयोजित आनलाइन बैठक में मंच के संस्थापक शिक्षक व साहित्यकार प्रमोद दीक्षित मलय ने छत्तीसगढ़ और राजस्थान प्रभारी धर्मानंद गोजे एवं विजय प्रकाश जैन सहित ६० से अधिक रचनाकारों के साथ विचार विमर्श किया। शुरुआत उपस्थित साथियों के परिचय के साथ हुई। मंच के ध्येय वाक्य ‘विद्यालय बनें आनंदघर’ और आदर्श पुरुष गिजुभाई बधेका के शैक्षिक दर्शन की चर्चा करते हुए प्रमोद दीक्षित ने कहा कि शिक्षण एक संवेदनशील प्रक्रिया है। इसे भयपूर्ण वातावरण में सम्पादित नहीं किया जा सकता। आज व्यक्ति, परिवार, समुदाय और देशों के मध्य संघर्ष का जो वातावरण बना हुआ है इससे उबरने का एक ही रास्ता है-आनंदमय शिक्षा। आनंदमय होने की यह यात्रा शिक्षक से आरम्भ होकर बच्चे, विद्यालय, समुदाय के रास्ते देश और दुनिया तक जाती है।
ऐसे में शिक्षक को सजग और अद्यतन रहने की आवश्यकता है। शिक्षा के क्षेत्र में हुए महत्त्वपूर्ण कार्यों, शोध एवं अनुसंधान के प्रकाशित दस्तावेजों का अध्ययन आवश्यक है। विद्यालय में रोज़ एक नया चमत्कार होता है इसके लिए हमें अपनी अवलोकन क्षमता को बढ़ाना होगा तथा इन चमत्कारों को लिखकर अभिलेख का रूप भी देना होगा ताकि आने वाली पीढ़ी इससे लाभान्वित हो सके। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मंच द्वारा पूर्व में पहला दिन, हाशिए पर धूप, कोरोना काल में कविता, प्रकृति के आंगन में, राष्ट्र साधना के पथिक, स्मृतियों की धूप छाँव आदिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आगामी १६, १७ और १८ फरवरी को चित्रकूट में आयोजित मंच के वार्षिक समारोह में क्रांति पथ के राही, यात्री हुए हम, विद्यालय में एक दिन, शिक्षा के पथ पर, मंदाकिनी के तट पर, धरा सुने शुभ गीत, शब्द कसौटी पर सहित १० पुस्तकों का विमोचन किया जाना है। बच्चों की लेखन क्षमता के विकास हेतु मंच द्वारा दीवार पत्रिका अभियान चलाया जा रहा है। कार्यक्रम का संचालन शिक्षक आलोक श्रीवास्तव द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में डॉ. आलोक त्रिपाठी, डॉ. अनिल वर्मा, अर्चना वर्मा, अरविंद पांडेय, आलोक श्रीवास्तव, धर्मिष्ठा पंड्या, डॉ. चैताली यादव, दीप्ति राय, फरहत माबूद, दुर्गेश्वर राय, कमलेश कुमार पांडेय, कनकलता, कविता सिंह, मधु सिंह, महेश कुमार कर्णधार, मनीषा प्रसाद, नीतू सिंह, पवन तिवारी, पूनम शर्मा, रामकुंवर यादव, संगीता जैन, संजीव शर्मा, सीमा मिश्रा, शीतल बैस, शोभा बेंजामिन, सुनीता वर्मा, वत्सला मिश्रा, वर्षा श्रीवास्तव, विजय शंकर यादव, विनीत मिश्रा, संजय कुमार यादव, आरती तिवारी, धर्मानंद गोजे, विजय प्रकाश जैन, मीरा रविकुल, कुलदीप त्रिपाठी, ऋतु श्रीवास्तव, डॉ. रचना सिंह, नीलू चोपड़ा, स्वाति अग्रवाल, निकहत रशीद, अशोक प्रियदर्शी, अमरदीप सिंह, अनुराधा दोहरे, अर्चना अग्रवाल, कुमुद, मीनाक्षी शर्मा, प्रीति भारती, प्रीति श्रीवास्तव, रश्मि पांडेय, रुखसाना बानो, सुषमा त्रिपाठी, उदयभान त्रिपाठी, ज्योति विश्वकर्मा, मनीषा श्रीवास्तव, अर्चना रानी अग्रवाल, अनामिका ठाकुर आदि शिक्षक शिक्षिकाओं ने कार्यशाला में शामिल होकर अपने विचार प्रस्तुत किये।
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