
शारदीय नवरात्रि 2025
शारदीय नवरात्रि 2025 (22 सितंबर–1 अक्टूबर): कलश स्थापना विधि, नौ देवी कथाएँ, पूजा-विधि, भारत की परंपराएँ और FAQs — सम्पूर्ण गाइड।
Table of Contents
शारदीय नवरात्रि 2025 क्या है?
शारदीय नवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है जो शरद ऋतु में मनाया जाता है। वर्ष 2025 में शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर 2025 (सोमवार) से आरंभ होकर 1 अक्टूबर 2025 (बुधवार) तक चलेगा और 2 अक्टूबर 2025 को विजया दशमी/दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। यह पर्व देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना और उत्सव का प्रतीक है — शक्ति, धर्म, बुद्धि और विजय का पर्व। (तिथियों के स्रोत व स्थानीय मुहूर्त देखें — विभिन्न स्थानों में कलाश्ठापना/घटस्थापना का शुभ मुहूर्त अलग-अलग हो सकता है।)
शारदीय नवरात्रि का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व
नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ होता है ‘नौ रातें’। पुराणों व देवी-कथाओं में नवरात्रि को देवी शक्ति की उपासना का समय बताया गया है — जब माँ दुर्गा ने राक्षसों का संहार कर धर्म की स्थापना की। शारदीय नवरात्र (Sharad Navratri) में विशेष रूप से देवी के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है — प्रत्येक रूप का अपना अर्थ, शक्ति और आशीर्वाद होता है। यह समय आत्म-अध्ययन, संयम, व्रत और भक्ति का होता है। लोकजीवन में नवरात्रि के दौरान तीर्थयात्रा, मेले, कलाप्रदर्शन, लोकनृत्य (गरबा, डांडिया), और सामुदायिक पूजाएँ आयोजित होती हैं।
शारदीय नवरात्रि 2025 — तिथियाँ एवं दिवसवार देवी (सारणी)
(नोट: नीचे दी गई तिथियाँ सामान्य कैलेंडर-अनुसार हैं; स्थानीय पञ्चाङ्ग/पंडित से मुहूर्त की पुष्टि करें।)
- 22 सितंबर 2025 (सोमवार) — दिन 1: माँ शैलपुत्री
- 23 सितंबर 2025 (मंगलवार) — दिन 2: माँ ब्रह्मचारिणी
- 24 सितंबर 2025 (बुधवार) — दिन 3: माँ चंद्रघंटा
- 25 सितंबर 2025 (गुरुवार) — दिन 4: माँ कूष्माँडा
- 26 सितंबर 2025 (शुक्रवार) — दिन 5: माँ स्कन्दमाता
- 27 सितंबर 2025 (शनिवार) — दिन 6: माँ कात्यायनी
- 28 सितंबर 2025 (रविवार) — दिन 7: माँ कालरात्रि
- 29 सितंबर 2025 (सोमवार) — दिन 8: माँ महागौरी / सिद्धिदात्री (कहानी अनुसार दिन-क्रम में भिन्नता हो सकती है)
- 30 सितंबर 2025 (मंगलवार) — दिन 9: माँ सिद्धिदात्री / महागौरी (स्थानीय रीति पर निर्भर)
- 1 अक्टूबर 2025 (बुधवार) — नवमी/समापन; 2 अक्टूबर 2025 (बृहस्पतिवार) — विजया दशमी / दशहरा
(ऊपर की सूची को विभिन्न पंडितों व स्थानों पर मामूली परिवर्तन के साथ देखा जा सकता है — कुछ क्षेत्रों में नवरात्रि दस दिन मानकर कलश-स्थापना की प्रथा भी प्रचलित रहती है।)
चरणबद्ध कलश-स्थापना एवं रोज़ाना पूजा-विधि
आवश्यक सामग्री
- मिट्टी/तांबे/पीतल का कलश
- स्वच्छ जल (गंगाजल हो तो उत्तम)
- आम/आशोक/पीपल/आम्र पत्र (5 पत्ते)
- नारियल (लाल कपड़े में लिपटा हुआ)
- सुपारी, सिक्का, अक्षत (चावल), दूर्वा/माता की पत्ती
- सिंदूर/कुमकुम, हल्दी, रोली, लाल कपड़ा
- जौ या गेहूँ (बीज बोने हेतु)
- दीपक, अगरबत्ती, पुष्प, फल व मिठाई
- देवी की प्रतिमा/चित्र
कलश-स्थापना विधि (पहले दिन)
- स्थान चयन: घर के उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) या पूजा कक्ष को स्वच्छ कर लाल/पीला कपड़ा बिछाएँ।
- बीज बोना: मिट्टी के पात्र में जौ या गेहूँ डालकर पानी छिड़कें (नवरात्रि के अंत तक ये अंकुरित होंगे, शुभ माने जाते हैं)।
- कलश भरना: कलश में गंगाजल, सुपारी, सिक्का, अक्षत व दूर्वा डालें। ऊपर पाँच पत्ते रखें।
- नारियल रखना: नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर रखें।
- आमंत्रण: दीपक जलाकर देवी को आह्वान करें —
“ॐ देवी दुर्गायै नमः, कलशस्थापनं करोमि।” - मूल मंत्र जप: दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा या सरल मंत्र (
ॐ दुर्गायै नमः
) का जाप करें।
रोज़ाना पूजा-विधि (नवरात्रि के 9 दिन)
- सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- देवी के समक्ष दीपक जलाएँ।
- ताजे फूल, रोली, चावल, पुष्प अर्पित करें।
- दिन विशेष की देवी का ध्यान करें (जैसे 1st दिन शैलपुत्री, 2nd दिन ब्रह्मचारिणी आदि)।
- प्रतिदिन भोग अर्पण करें (फल, मिठाई, खिचड़ी, नारियल, दूध या स्थानीय परंपरा अनुसार)।
- संध्या समय दुर्गा चालीसा या आरती करें।
- नवमी/अष्टमी पर कन्या पूजन (कन्याओं को आमंत्रित कर पूजन व भोजन कराना) करें।
- दशमी को कलश विसर्जन व देवी का विदाई अनुष्ठान करें।
नौ रूपों की विस्तृत कथा-प्रसंग (देवी की कहानियाँ)
(प्रत्येक रूप का ऐतिहासिक-पौराणिक और आध्यात्मिक अर्थ सरल, मानवभाषी शैली में)
1. माँ शैलपुत्री — शक्ति का स्थिर रूप
शैलपुत्री का अर्थ है ‘पर्वत की पुत्री’ — वह देवी जो हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में भी जानी जाती हैं। शैलपुत्री को हिन्दू परम्परा में ब्रह्मांड की प्रारम्भिक शक्ति माना जाता है। कथा अनुसार, शैलपुत्री पर शिला-समर्थ (आधार) का भाव है — जीवन के ठोस आधार, स्थिरता, और सरलीकृत भक्ति के प्रतीक। शैलपुत्री के हाथ में कमल और त्रिशूल होता है और वे सत्य, संयम व दृढ़ निश्चय की शिक्षा देती हैं। पहले दिन उनके समक्ष कलश स्थापना कर व्रत आरम्भ किया जाता है — यह बताता है कि आध्यात्मिक यात्रा की नींव मजबूत होना आवश्यक है।
आध्यात्मिक उपदेश: धैर्य, संयम, और आत्म-नियमन से जीवन के अनिच्छित उतार-चढ़ाव सहने की शक्ति मिलती है।
2. माँ ब्रह्मचारिणी — तपस्या और ज्ञान की देवी
ब्रह्मचारिणी रूप तप और आध्यात्मिक अभ्यास का प्रतीक है। इतिहास में उन्हें देवी पार्वती के ब्रह्मचर्य के समय का स्वरूप बताया गया है — जिसने शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की। ब्रह्मचारिणी की कथा में त्याग, संयम, और अध्ययन की महिमा है। उनके पास जपमाला और वरदा-कमल होते हैं — कार्यों के परिणाम के रूप में बोध का अनुभव मिलता है।
आध्यात्मिक उपदेश: ज्ञान और अनुशासन (डिसिप्लिन) से आत्मसाक्षात्कार सम्भव है; मानसिक शान्ति का मार्ग तप और साधना से आता है।
3. माँ चंद्रघंटा — साहस और सुंदरता का संगम
चंद्रघंटा का नाम उनकी तीसरी कथा से आता है — जिनके मस्तक पर चंद्रमा की घंटा-सी सुन्दर आकृति थी। वे युद्धभूमि में भी मुस्कुराहट रखती देवी हैं — जिनका स्वरूप भक्तों में साहस, उत्साह और भयरहितता जगाता है। चंद्रघंटा का रूप युद्ध-अवस्थाओं में शक्ति का सौम्य, पर निर्णायक स्वरूप दिखाता है।
आध्यात्मिक उपदेश: भय पर विजय और सौम्य पराक्रम — दोनों साथ चल सकते हैं। सुंदरता केवल बाहरी नहीं; वीरता में भी सुंदरता होती है।
4. माँ कूष्मांडा — सृष्टि-रचना की देवी
कूष्मांडा का अर्थ ‘छोटी कुसुम/अंडाकार’ से जुड़ा होता है — इन्हें ब्रह्माण्ड की रचना की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। पुराणों में कहा है कि कूष्मांडा ने ब्रह्मी ऊर्जा से संसार की रचना की, और इन्हें सृष्टि की मां भी कहा जाता है। इनका तेज और उज्जवल स्वरूप जीवन में ऊर्जा, स्फूर्ति और रचनात्मकता को जन्म देता है।
आध्यात्मिक उपदेश: हर रचनात्मक कृत्य में दिव्य ऊर्जा का अंश होता है; सृजन का उद्देश्य जीवन को समृद्ध करना है।
5. माँ स्कंदमाता — माँ का मातृत्व स्वरूप
स्कंदमाता को स्कन्द (कार्तिकेय) की माता के रूप में जाना जाता है। वे मातृत्व, कोमलता और दृढ़ता का मेल हैं — अपने पुत्र के प्रति करुणा और समर्पण के प्रतीक। स्कन्दमाता का रूप बताता है कि मातृत्व की शक्ति सिर्फ नर-नारी के बायोलॉजिकल अर्थ से ऊपर है; यह सुरक्षा, प्रेरणा और मार्गदर्शन भी है।
आध्यात्मिक उपदेश: प्रेम और समर्पण जीवन को अर्थ प्रदान करते हैं; माता-सदृश प्रवृत्ति से समाज का कल्याण संभव है।
6. माँ कात्यायनी — पराक्रमी और दानवसंहार की देवी
कात्यायनी देवी का जन्म कात्यायन ऋषि के पुत्र के यहाँ हुआ था; कथा के अनुसार उन्होंने राक्षसों का संहार कर तीनों लोकों को शांति दी। वे तेजस्वी, कठोर और न्यायप्रिय देवी हैं। कात्यायनी का स्वरूप बताता है कि जब धर्म संकट में हो, तब कठिन तथा निर्णायक कदम आवश्यक होते हैं।
आध्यात्मिक उपदेश: हिंसा-विरहित तरीके से भी न्याय, पराक्रम और दृढ़ता आवश्यक है; बुराई के विरुद्ध साहस से खड़ा होना धर्म की रक्षा करता है।
7. माँ कालरात्रि — अन्धकार निस्तारण की देवी
कालरात्रि का रूप प्रेतों और अंधकार का नाश करने वाला है। वे भय को दूर कर भक्तों को आत्म-शक्ति प्रदान करतीं हैं। कथा में उनका रूप अत्यन्त उग्र है परन्तु भक्तों के लिये वह अत्यन्त कोमल है। कालरात्रि का संदेश है— भीतरी अँधेरे (अज्ञान, मोह, अहंकार) को समाप्त कर सच्चे आत्म-ज्ञान तक पहुँचना।
आध्यात्मिक उपदेश: भय को देखकर भागने के बजाय उसका सामना करें; अज्ञान को ज्ञान से हराएँ।
8. माँ महागौरी — निर्मलता और क्षमाशीलता का रूप
महागौरी का अर्थ है ‘महान श्वेतता’ — पवित्रता, निर्मलता और करुणा की देवी। कथा में उनके श्वेत आभा से संसार शुद्ध हो जाता है। महागौरी भक्तों को शान्ति, पवित्रता और दोषमुक्ति का आशीर्वाद देती हैं। वे दर्शाती हैं कि मानसिक और आचारिक शुद्धता से जीवन में सुधर होता है।
आध्यात्मिक उपदेश: पवित्रता केवल बाह्य नहीं; विचारों और कर्मों की शुद्धि जीवन की उन्नति है।
9. माँ सिद्धिदात्री — सिद्धियों की दात्री
सिद्धिदात्री वह देवी हैं जो सिद्धियाँ (अध्यात्मिक उपलब्धियाँ) प्रदान करतीं हैं। धार्मिक कथाओं में कहा गया है कि उन्होंने सभी देवताओं को अनूठी शक्तियाँ दीं। उनका स्वरूप प्रायः शांत, दीन और सर्वज्ञ होता है। नवमी में उनकी पूजा से जीवन में समर्पण, साधना और मनोकामना-सिद्धि की कामना की जाती है।
आध्यात्मिक उपदेश: सिद्धियाँ साधना, भक्ति और सच्चे जीवन मूल्य से मिलती हैं; अहंकार से नहीं।
नवरात्रि पूजा-विधि (सरल चरणबद्ध मार्गदर्शिका)
- कलश/घटस्थापना: पहले दिन सुबह शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना करें — कलश में जल, सुपारी, अक्षत, पत्ते और नारियल रखें। कलश के नीचे जौ या गेहूँ बोने की प्रथा भी प्रचलित है।
- आवश्यक सामग्री: दीप, धूप, फल-फूल, नैवेद्य (भोग), लाल चन्दन, सिंदूर/कुमकुम, माला, देवी की तस्वीर/मूर्ति।
- दिवस विशेष पूजा: प्रतिदिन उस दिन की देवी के अनुसार आराधना, मन्त्रों का जाप, पाठ (जैसे दुर्गासप्तशती/चण्डी पाठ), और भजन-कीर्तन करें।
- व्रत और भोजन: अनेक स्थानों पर व्रत रखते हैं; खाने में बिना अनाज/ग्लूटेन (स्थानीय परंपरा पर निर्भर) के फल, खिचड़ी, सुप्वर (उपवास के अनुसार) खाते हैं।
- आरती और समर्पण: शाम को आरती करें, परिवार व पड़ोस के लोगों को आमंत्रित कर सामुदायिक भोग और प्रसाद बाँटें।
- समापन: नवमी/दशमी पर विशेष पूजन और दशहरा-विजया दिवस पर रावण/बुराई के प्रतीक का दहन/विनाश कर भगवती-विजय का उत्सव मनाएँ।
शारदीय नवरात्रि के रोज़ के रंग और प्रतीक (सहज सूची)
(कई समुदायों में हर दिन का एक रंग निश्चित किया जाता है; यह परंपरा क्षेत्रीय रूप से अलग होती है — नीचे एक सामान्य रूप दिया जा रहा है)
- दिन 1: लाल / गुलाबी — शक्ति व दृढ़ता
- दिन 2: केसरिया/गोरा — तप और साधना
- दिन 3: पीला/केसर — सौंदर्य व साहस
- दिन 4: हरा — नवचेतना, रचनात्मकता
- दिन 5: नारंगी — मातृत्व व शुद्धता
- दिन 6: नीला/इंडिगो — पराक्रम
- दिन 7: काला/गहरा — भय का नाश
- दिन 8: सफेद/क्रिमसन — पवित्रता
- दिन 9: बैंगनी/गुलाबी — सिद्धि व समापन
(स्थानीय रीति-रिवाज के अनुसार रंग सूची अलग हो सकती है; अपनी पारंपरिक या सामुदायिक सूची का पालन करें।)
भारत के प्रत्येक राज्य/क्षेत्र में नवरात्रि की परंपराएँ (विस्तृत वर्णन)
(नीचे प्रमुख राज्यों व उनके विशिष्ट रीति-रिवाजों का सांकेतिक और सुसंगत विवरण दिया गया है — यह प्रत्येक राज्य की समृद्ध विविधता को संक्षेप में बताने का प्रयास है)
महत्वपूर्ण: भारत में परंपराएँ स्थानीय भाषा, संप्रदाय, जातीय समूह और नगर-ग्राम के अनुसार भिन्न होती हैं — निम्नलिखित सामान्यीकृत अवलोकन हैं जो व्यापक रूप से देखे जाते हैं।
पश्चिम बंगाल (West Bengal)
- मुख्य उत्सव: दुर्गापूजा — बंगाल का दुर्गापूजा विश्वप्रसिद्ध है। बड़े-बड़े पंडालों में कलात्मक मूर्तियाँ, थीम-आधारित पंडाल्स, और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
- विशेष बातें: दुर्गा-मूर्ति की प्रतिमा विसर्जन (बोत) पर भव्य जलरोह होती है; बांग्ला सांस्कृतिक गायन और नाट्य कार्यक्रम; स्थानीय स्वादिष्ट भोग (पुड़ी, खिचड़ी) व प्रसाद।
- स्थानीय पहलू: ‘महापंडाल’ संस्कृति, पंडाल-हॉपिंग, और सामुदायिक पूजा (समाज आधारित) प्रमुख है।
गुजरात (Gujarat)
- मुख्य उत्सव: गरबा और डांडिया रात भर — नवरात्रि के दौरान गरबा नृत्य और डांडिया (लकड़ी की छड़ों से नृत्य) का आयोजन होता है।
- विशेष बातें: स्टाइलिश परिधान (चोली-घाघरा, कुर्ता-पायजामा), लोक-संगीत और प्रतिस्पर्धात्मक गरबा-नाइट्स।
- स्थानीय पहलू: रातभर के सामुदायिक आयोजन, प्रतियोगिताएँ, और आधुनिक मंचों पर फैशन-प्रदर्शन भी होते हैं।
महाराष्ट्र (Maharashtra)
- मुख्य उत्सव: घरों व गलियों में गरबा-रजाई के साथ साथ मंडल/पंडालों में पूजा।
- विशेष बातें: गोंड द्वारा लोकनृत्य, नौ रात्रियों में स्थानिक भजन और आरती। पुणे-औरंगाबाद जैसे स्थानों पर विशेष कार्यक्रम।
- स्थानीय पहलू: घरों में कटवार (व्रत) और ‘खिचडी’ या उपवास के पकवानों का प्रसाद।
कर्नाटक (Karnataka) — विशेषकर मैसूर (Mysore)
- मुख्य उत्सव: मैसूर दशहरा विश्वप्रसिद्ध है — शारदीय नवरात्रि की शुरुआत से ही राजसी तैयारियाँ चलीं जाती हैं और विजया दशमी पर शानदार जुलूस निकाला जाता है।
- विशेष बातें: शाही हाथियों पर सजावट, शाही सभाएँ, सांस्कृतिक प्रदर्शन और विशेष प्रकाश-प्रदर्शनी।
- स्थानीय पहलू: दशहरा के दिन राजसी जुलूस, लोकनृत्य और संगीत कार्यक्रम होते हैं।
तमिल नाडु (Tamil Nadu)
- मुख्य उत्सव: ‘कोलु’ या ‘गोलु’ (Bommai Kolu) — घरों में मंच पर देवी, राम-सीता, लोक-दर्शन की प्रतिमाओं का प्रदर्शन।
- विशेष बातें: हर शाम कॉलु-भोज/नाश्ता, पड़ोसियों के बीच आदान-प्रदान और सांस्कृतिक गोष्ठियाँ।
- स्थानीय पहलू: संगीत व नाटक, मंदिरों में विशेष पूजन तथा विद्यारम्भ (विद्या-आरम्भ) की परम्परा कुछ जगहों पर नवरात्रि के पास जुड़ी देखी जाती है।
केरल (Kerala)
- मुख्य उत्सव: केरल में शारदीय नवरात्रि पर सास्कृतिक और शैक्षिक पहल होती है — खासकर सरस्वती पूजा और विद्यारम्भ।
- विशेष बातें: बच्चों का विद्यारम्भ, पुस्तक-दान, और सांस्कृतिक कार्यक्रम। कुछ जगहों पर कुट्टम (नाटक) और मंदिरीनृत्य होते हैं।
- स्थानीय पहलू: आमतौर पर शांत, विद्या-सम्पन्न परंपराएँ और घर-घर में धार्मिक कार्यक्रम।
ओडिशा (Odisha)
- मुख्य उत्सव: दुर्गापूजा और स्थानीय देवी-मन्दिरों में उत्सव; कटक (Cuttack) में पारंपरिक रूप से मिलने वाले आयोजन प्रसिद्ध हैं।
- विशेष बातें: शिल्पकला, मूर्तिकार-परंपरा, और सामुदायिक आयोजन।
- स्थानीय पहलू: स्थानीय लोकनृत्य, गीत, और प्रसाद वितरण।
असम (Assam) और पूर्वोत्तर
- मुख्य उत्सव: स्थानीय समाज एवं समुदाय मिलकर दुर्गापूजा करते हैं; असमिया समुदायों में पारंपरिक संगीत और नृत्य जुड़े होते हैं।
- विशेष बातें: स्थानीय पारंपरिक वेशभूषा, लोक-वाद्य और क्षेत्रीय खान-पान।
- स्थानीय पहलू: सामुदायिक सहयोग और मेलों का आयोजन।
पंजाब और हरियाणा
- मुख्य उत्सव: यहाँ नवरात्रि का शिविर-रूप अलग है — कुछ जगहों पर विशेष पूजा और भजन-कीर्तन होता है, जबकि कुछ हिस्सों में गरबा/नृत्य भी होता है।
- विशेष बातें: बाड़ा-किरणियों में भजन, संवेदनशील सामुदायिक आयोजन।
- स्थानीय पहलू: पारिवारिक ढंग से पूजा और सामाजिक भोजन साझा करना।
राजस्थान
- मुख्य उत्सव: लोकनृत्य (घूमर), पारंपरिक वेशभूषा और मेलों के साथ नवरात्रि को जीवंत रूप में मनाया जाता है।
- विशेष बातें: डमरू-ताल, पारंपरिक गीत और शहरी व ग्रामीण दोनों स्तरों पर उत्सव।
- स्थानीय पहलू: झूमर, गुम्फा, लोककथाएँ और सामुदायिक बनावट।
बिहार, झारखंड और उड़ीसा के कुछ हिस्से
- मुख्य उत्सव: सामुदायिक दुर्गापूजा, ग्रामीण मेलों और भजन-कीर्तन।
- विशेष बातें: सरल और श्रद्धापूर्ण तरीके से व्रत एवं पूजा।
- स्थानीय पहलू: पारिवारिक जुटान और धार्मिक मेलों की परंपरा।
गोवा
- मुख्य उत्सव: गोवा में कुछ क्षेत्रों में देवी-पूजन और स्थानीय मठ-मंदिरों के कार्यक्रम होते हैं; सांस्कृतिक मिलन का हिस्सा।
- विशेष बातें: समु्द्र-तट के निकट मंदिरों में विशेष पूजा और नाट्य-कार्यक्रम।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना
- मुख्य उत्सव: कुछ हिस्सों में कलश स्थापना, स्तोत्र-पाठ और सामुदायिक भजन। तेलंगाना में स्वतंत्र परंपराएँ (जैसे बाथुकम्मा के पर्व का समीपवर्ती समय) भी दिखते हैं — पर वे नवरात्रि से जुड़कर क्षेत्रीय पहचान बनाते हैं।
- विशेष बातें: घरों में पूजा, क्षेत्रीय व्यंजन, और सांस्कृतिक कार्यक्रम।
मध्य-प्रदेश और छत्तीसगढ़
- मुख्य उत्सव: ग्रामीण-केंद्रित पूजा, मंदिरों में हवन और सामुदायिक भोज। छत्तीसगढ़ में लोककला व लोकनृत्य प्रमुख।
- विशेष बातें: ग्राम्य लोकमण्डल और पारंपरिक भजन।
दिल्ली-एनसीआर
- मुख्य उत्सव: शहर में बड़े-बड़े पंडाल, गरबा-नाइट्स, और सामुदायिक दुर्गापूजा। कई प्रवासी समुदाय यहाँ अपनी-अपनी परंपराएँ साथ लाते हैं — इसलिए विविधता बहुत अधिक होती है।
- विशेष बातें: शहरी आयोजन, सामुदायिक मेलजोल और सांस्कृतिक मंचन।
नवरात्रि के दौरान खान-पान (उपवास / व्रत खाद्य विचार) — सरल और स्वादिष्ट
नवरात्रि में कई लोग व्रत रखते हैं; यहाँ कुछ लोकप्रिय और आसान व्यंजन हैं (व्रत-अनुकूल):
- कुट्टू की रोटी / आटे की रोटी (यदि आप सामान्य आटे से व्रत रखते हैं तो चावल/सेम-फ्लोर विकल्प)
- फलाहार: पपीता, केला, सेब, खजूर, नट्स
- साबुदाना खिचड़ी: पारंपरिक व्रत व्यंजन
- मकई/सफेद चावल से बनी खीर (कम चीनी)
- सम्भल (फलाहार सैंडविच)
- लौकी/भिंडी/कद्दू की सब्ज़ी (व्रत अनुसार)
(ध्यान दें: अलग-अलग परंपराओं में ‘अनाज-मुक्त’ व्रत का अर्थ अलग होता है — अपने धार्मिक मार्गदर्शक/पंडित अनुसार पालन करें।)
नवरात्रि के समय सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम
- गरबा/डांडिया नाईट्स — खासकर गुजरात व शहरी समुदायों में रातभर।
- पंडाल-हॉपिंग (Durga Puja Pandal Hopping) — बंगाल, दिल्ली, मुंबई आदि में।
- सांस्कृतिक प्रतियोगिताएँ — नृत्य, गायन, नाटक।
- बालों हेतु विद्यारम्भ और पाठ — कुछ समुदायों में शिक्षा-आरम्भ (विद्यारम्भ) का आयोजन।
- सामुदायिक भंडारे — भोजन व प्रसाद साझा करना।
नवरात्रि में पर्यावरण और सुरक्षा के प्रति सुझाव
- विसर्जन-प्रथा: मूर्ति विसर्जन करते समय पर्यावरण-अनुकूल सामग्री (प्राकृतिक/कागज़/बायोडिग्रेडेबल) के मूर्तियों का प्रयोग करें।
- आवागमन: भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर सुरक्षा का ध्यान रखें, बच्चों का विशेष ध्यान रखें।
- आग सुरक्षा: दीपक/अगरबत्ती लगाते समय सूखा-कपड़ा/ज्वलनशील सामग्री से दूर रखें।
- ध्वनि प्रदूषण: जुलूस/बजाने के समय स्तरों को नियंत्रित करें और स्थानीय नियमों का पालन करें।
- स्वच्छता: पंडाल व पूजा स्थलों पर प्रसाद-कचरा व्यवस्थित ढंग से निकालें।
उपयोगी मंत्र और आरतियाँ (संक्षेप)
(नीचे सामान्य रूप में उपयोग होने वाले कुछ छोटे मंत्र/आरती — अनुवाद और संक्षेप में)
- ॐ दुर्गायै नमः — साधारण प्रणाम मंत्र।
- ॐ देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थितायै नमः — माँ की सर्वव्यापकता के लिए।
- दुर्गा आरती (लघु) — ‘जय दुर्गा माता…’ (स्थानीय आरती पुस्तक/ऑडियो देखें)।
(ध्यान दें: मंत्रों का जाप उचित निर्देश व संस्कार के अनुसार होना चाहिए; यदि आप पाठ/चण्डी पाठ करना चाहते हैं तो पण्डित/आचार्य की सलाह लें।)
सामाजिक और आधुनिक प्रभाव — नवरात्रि 2025 की कुछ विशिष्ट प्रवृत्तियाँ
- डिजिटल पंडाल-लिस्टिंग: शहरों में पंडाल-हॉपिंग के लिए मोबाइल-ऐप व सोशल मीडिया इवेंट्स।
- इको-फ्रेंडली मूर्तियाँ: पर्यावरण-जागरूकता के चलते बायो-डिग्रेडेबल मूर्तियाँ अधिक प्रचलित।
- फैशन-टेक: गरबा कपड़ों और नवरात्रि फैशन की ऑनलाइन बिक्री में वृद्धि।
- वर्चुअल पूजा/स्ट्रीमिंग: कोविड के बाद से कुछ समुदायों ने पूजा-कार्यक्रमों का लाइव-स्ट्रीमिंग भी अपनाया है।
समापन — नवरात्रि का सार
शारदीय नवरात्रि केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है — यह समाजिक मेल, संस्कृति की धरोहर, कला-सृजन और आत्म-नवीनीकरण का पर्व है। 2025 में यह पर्व न केवल पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जा रहा है बल्कि आधुनिकता और परम्परा का सुंदर मिश्रण भी प्रस्तुत कर रहा है — जहाँ गरबा-नृत्य और डिजिटल समर्पण दोनों साथ चलते हुए दिखाई देते हैं। इस नवरात्रि का उद्देश्य है आत्म-शुद्धि, समाजिक एकता और बुराई पर विजय का उत्सव मनाना।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
शारदीय नवरात्रि 2025 कब से कब तक है?
वर्ष 2025 में शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर 2025 से 1 अक्टूबर 2025 तक मानी जा रही है; विजया दशमी 2 अक्टूबर 2025 को है। (स्थानीय मुहूर्त के लिये अपने क्षेत्र के पंचांग/पंडित से पुष्टि करें।)
क्या नवरात्रि में व्रत जरूर रखना चाहिए?
व्रत व्यक्तिगत श्रद्धा पर निर्भर है। परंपरागत रूप में कई लोग नौ दिन व्रत रखते हैं, पर कार्य के आधार पर अज्ञान या स्वास्थ्य कारणों से उपवास सख्ती से अनिवार्य नहीं है। गर्भवती/बुज़ुर्ग/बीमार लोग डॉक्टर या धार्मिक मार्गदर्शक से सलाह लें।
रोज़ का कौन-सा रंग पहनना चाहिए?
कई समुदायों में प्रत्येक दिन का रंग निर्धारित होता है; पर यह अनिवार्य नहीं है — यदि आप सामुदायिक आयोजन में भाग ले रहे हैं तो उस समूह का रंग पालन कर सकते हैं।
कलश स्थापना (घटस्थापना) कैसे करें?
कलश में जल भरकर सुपारी, अक्षत, कुमकुम, दूर्वा, नारियल रखें और कलश को जौ के पात्र पर रखें; कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त पंचांग में देखें।
क्या नवरात्रि में मंदिर सब खुलते हैं?
अधिकांश मंदिर खुले रहते हैं और विशेष पूजन-कार्यक्रम होते हैं; किन्तु कुछ स्थानीय नियम/समारोह के कारण भीड़ नियंत्रण के लिये घंटों में परिवर्तन हो सकता है। मंदिर प्रशासन की सूचना देखें।
दुर्गा-सप्तशती पढ़ना जरूरी है क्या?
यह श्रद्धा का विषय है। दुर्गा-सप्तशती का पाठ करने से आध्यात्मिक लाभ की मान्यता है पर सभी लोग पाठ नहीं कर पाते — भजन, कीर्तन व साधारण पूजा भी पुण्यदायी है।
बच्चों के लिये क्या-क्या गतिविधियाँ अपनाई जा सकती हैं?
बच्चों को देवी-कथाएँ सुनाएँ, चित्रकारी प्रतियोगिता कराएँ, छोटा-सा कलश-मॉडल बनवाएँ, और संस्कृति से जोड़ने वाले नाटकों में शामिल करें।
क्या घर पर पंडाल बनाना आवश्यक है?
नहीं; कई लोग घर की छोटी पूजा-स्थल पर ही विधि का पालन करते हैं। सामुदायिक जुड़ाव के लिये पंडाल अच्छा विकल्प है।
क्या नवरात्रि के दौरान कोई खास दिन खाना-पीना बंद किया जाता है?
परंपरागत उपवास में कुछ लोग अनाज-मुक्त (अर्थात गेहूँ, चावल नहीं) रहते हैं; पर यह व्यक्तिगत परंपरा पर निर्भर है। अपने स्वास्थ्य और धार्मिक मार्गदर्शक के अनुसार निर्णय लें।
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