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विश्व गैंडा दिवस : गैंडा के अस्तित्व पर मंडराता संकट
विश्व गैंडा दिवस: बचपन में हाथी के बाद यदि किसी पशु ने मुझे सर्वाधिक आकर्षित किया था तो वह गैंडा ही था। पहले किताबों के पृष्ठों पर घास चरते हुए या फिर दौड़ते हुए गैंडे के चित्र ने मन तो मोहा ही साथ ही सवाल भी पैदा किया कि क्यों गैंडा के नाक के ऊपर सींग उगा है, सींग तो सिर पर होते हैं? इतना भारी यह पशु कैसे दौड़ता होगा? इसकी खाल इतनी मोटी क्यों होती है? पर इन प्रश्नों के जो उत्तर मिले, वे संतुष्ट न कर सके थे और जब छात्र जीवन में चिड़ियाघर में एक गैंडा को उसके बच्चे के साथ मैदान पर घास चरते देखा तो ढगा-सा देखता रह गया। मैं विस्फारित नेत्रों से अपलक उसके सौंदर्य को देखता रह गया। शिशु गैंड़ा और उसकी माँ (या पिता भी हों) घास चरते-चरते कभी खेलने लगते तो कभी भी दौड़ पड़ते। मैं कंटीली बाड़ से सटा खड़ा उन दोनों को देखता रहा, वे कभी इतना निकट आ जाते कि मानों हाथ से छू लूं पर यह सम्भव न था।
लेकिन मैं अपनी निगाहों से न केवल उनकी गतिविधियाँ देख रहा था बल्कि उनकी देह का स्पर्श भी कर रहा था। मेरी नयन ही मानो मेरे हाथ बन गये हों। हम यही कुछ पांच सहपाठी थे जो गैंडा के जीवन पर परस्पर बातें कर रहे थे, हालांकि उन सभी में मेरी जानकारी लगभग न के बराबर थी और उस बातचीत में मुझे कुछ ख़ास रस नहीं मिल रहा था। मैं तो बस गैंडा को निहार रहा था और मेरी नज़र उसकी नाक के ऊपर उठे नुकीले सींग पर ठहर गयी थी। सहसा मेरे मानस पटल पर अतीत का एक दृश्य उभर उठा। गर्मियों में हमारे गांवों में कुछ घुमंतू जातियों के परिवार आते थे तो जड़ी-बूटी बेचते थे। उनकी झोली में तमाम औषधियों के साथ बारहसिंगा हिरण और गैंडा के सींग हुआ करते थे तथा हिरण की नाभि से उपजी कस्तूरी और हाथी दांत के टुकड़े भी। महिलाओं को अक्सर बारहसिंगा के सींग का छोटा टुकड़ा खरीदते देखा था मैंने, नवजात शिशुओं की पसली चलने पर सींग घिस कर लेप लगाते थे। पुरुष गैंडे के सींग, केसर और शिलाजीत खरीदते थे। तब मुझ जैसे तमाम बच्चों को किसी औषधि की कोई समझ नहीं थी, हम तो बस तमाशगीर थे जो उनके पीछे-पीछे चलते रहते थे। मैं अतीत के इस चलचित्र में खोया हुआ था कि सहसा एक बूढ़े की आवाज़ से ध्यान भंग हुआ। वह बूढ़ा शायद चिड़ियाघर के गैंडा वाले हिस्से की देखरेख हेतु नियुक्त कर्मचारी था। वह हमारे साथियों को बता रहे थे, “गैंडे का सींग केराटिन नामक प्रोटीन से ऊतकों द्वारा बनता है, जो जीवन भर बढ़ता रहता है।
गैंडा एक शाकाहारी पशु है जो घास, पत्तियाँ, फल और जलीय पौधे खाते हैं। यह लगभग शांत होते पर आक्रामक होने पर दूसरे की जान भी ले सकते हैं। गैड़ा ४०-५० किमी प्रति घंटा की गति से दौड़ लेते हैं। इनकी त्वचा ५-६ सेमी मोटी और कठोर होती है। प्रजनन के दौरान अक्सर मादा गैंडा चोटिल हो जाती हैं। गैंडा हाथी के बाद दूसरा भारी जानवर हैं जो सामान्यतः २५०० किलो तक होते हैं। ४०-५० वर्ष जीने वाले इस स्थलीय स्तनधारी पशु गैंडा की विश्व में पांच प्रजातियाँ हैं जिनमें काला और सफेद नामक दो प्रजाति अफ्रीका में तथा शेष तीन इंडोनेशियाई जावन, सुमात्रन और बड़ा एक सींग वाला गैड़ा दक्षिण एशिया के देशों में निवास करते हैं, जिनमें भारत, नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि प्रमुख हैं। भारत और जावा में एक सींग वाला गैंडा पाया जाता जिसकी ८० प्रतिशत संख्या असम के काजीरंगा और ओरंग राष्ट्रीय उद्यान में है। करोड वर्षों से धरती पर लाखों की संख्या में विचरण करने वाला राजसी पशु गैंड़ा वर्तमान समय में विश्व भर में केवल २७००० ही बचे हैं, भारत में ४००० से अधिक हैं। मादा गैंड़ा का प्रजनन काल १५-१६ महीने होता है और एक बच्चे को जन्म देती है। ३ से ५ वर्ष में एक बार बच्चा जनती है। चिंतनीय है कि तमाम कानूनों के बावजूद सींग और खाल के लिए गैंडों का अवैध शिकार किया जा रहा है।” उस बूढ़े कर्माचारी की बातें सुनने के लिए उसे चारों ओर से घेरकर अन्य पर्यटक भी खड़े हो गये थे और उनमें से किसी ने पूछा था कि गैंडा का शिकार क्यों किया जाता है? उसने नीले आसमान की तरफ़ देखा और एक लम्बी ठंडी सांस ले बोलने लगा, “मानव का अविवेक और अधिकाधिक बढ़ता लोभ-लालच। चीन और वियतनाम में सींग से दवा बनती है। मान्यता है कि ये दवा यौन कामोद्दीपक हैं। साथ ही सींग को ड्राइंग रूम में प्रदर्शित करना सामाजिक प्रतिष्ठा की वृद्धि का परिचायक बन गया है। खाल से ढाल और अन्य वस्तुएँ बनाई जाती हैं। मनुष्य भूल गया है कि पशु-पक्षियों को भी इस दुनिया में रहने का अधिकार है। अरे, उन्हीं से तो यह दुनिया सुंदर है।” बूढ़ा चुप हो एक पेड़ के तने का सहारा ले बैठ गया, उसकी आंखों में आंसू छलछला आए थे। पूरे वातावरण में मौन पसर गया था। सभी लोग दूसरे बाड़ों की ओर बढ़ गये थे।

पिछले दिनों जब मैं यह लेख लिख रहा था तो मुझे लगा कि पाठकों की सुविधा के लिए विश्व गैंडा दिवस के इतिहास के पृष्ठों को पलटूं। विश्व में गैंडा के अवैध शिकार, घटते पर्यावास, अंधविश्वास और जागरूकता के अभाव के कारण गैंडा के अस्तित्व पर मंडराते संकट को दृष्टिगत कर विश्व वन्यजीव कोष-दक्षिण अफ्रीका द्वारा वर्ष २०१० में गैंडों के संरक्षण हेतु एवं अवैध शिकार के विरुद्ध जन जागरूकता के प्रचार-प्रसार और घटते प्राकृतिक आवास के बचाव हेतु प्रत्येक वर्ष २२ सितम्बर को विश्व गैंडा दिवस मनाने की घोषणा की थी और वर्ष २०११ से वैश्विक स्तर पर सरकारों, गैर सरकारी संगठनों, चिड़ियाघरों और विद्यालयों द्वारा यह दिवस मनाया जाने लगा है। सरकारों द्वारा समुचित कानून बनाने, गैंडा अभयारण्य विकसित करने और आम जन की जागरूकता से गैड़ा संरक्षण का पिछले दशक में कार्य उल्लेखनीय है। प्राकृतिक पर्यावास में विस्तार हुआ है, नूतन शोध एवं अनुसंधान तथा देख-रेख की दिशा में क़दम बढ़े हैं। प्रकृति संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ द्वारा जारी रेड डेटा बुक में गैंडा को संवेदनशील खतरे वाले वर्ग में रख गैंडा बचाने हेतु ठोस प्रयास करने का आह्वान किया है। इसीलिए वर्ष २०१९ में भारत सहित इंडोनेशिया, भूटान, नेपाल और मलेशिया ने एशियाई गैंड़ों पर नई दिल्ली घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर कर गैंडा संरक्षण लिए आवश्यक उपाय करने एवं संसाधन जुटाने हेतु प्रयत्न आरम्भ किए हैं।
निश्चित रूप से गैंड़ा जंगल का एक खूबसूरत प्राणी है। पारिस्थितिकी संतुलन, प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक जीवन में गैंडा की अहम भूमिका है। भारत सरकार ने गैंडा पर १ अक्टूबर, १९६२ को १५ नये पैसा का एक डाक टिकट जारी किया है। धीरे-धीरे ही सही, पर गैंडों की बढ़ रही संख्या उम्मीद जगाती हैं कि हमारे जंगलों का रहवासी यह सुंदर बलशाली गैंड़ा आनंदपूर्वक विचरण करता रहेगा।
प्रमोद दीक्षित मलय
लेखक शैक्षिक संवाद मंच उ.प्र. के संस्थापक हैं। बांदा, उ.प्र.
मोबा- ९४५२०८५२३४
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