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विश्व पशु दिवस
विश्व पशु दिवस: वह १९९१ के मार्च महीने के अंतिम सप्ताह का कोई दिन था। वातावरण में फागुन की मादकता घुली हुई थी। सूरज रात्रि विश्राम के लिए अपनी किरणें समेटने लगा था। मैं अपने कस्बे में संचालित एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में कक्षा १० के विद्यार्थियों का हिन्दी का पीरियड पूरा घर के लिए निकल पड़ा था, तब मैं ऊंची कक्षा में विद्यार्थी था। कोचिंग की गली के मुहाने पर सड़क की बड़ी नाली के ऊपर रखे बेतरतीब लम्बे पत्थरों की दरार में एक गधा का पिछला बायाँ पैर बुरी तरह फंसा हुआ था। वह पैर निकालने की जितनी भी कोशिश करता, पैर उतना ही फंसता जा रहा था। गधा दर्द से कराह रहा था, लोग आ-जा रहे थे पर किसी को उस पर दया नहीं आ रही थी। मैं उसके बगल से निकल आगे दस क़दम ही बढ़ा था कि मुझे अपनी अम्मा की सीख सहसा याद आई कि पशु-पक्षियों से प्रेम एवं करुणा का व्यवहार करना चाहिए। कभी उनको पीटना या चोट पहुँचाना उचित नहीं। संकट में उनकी मदद करनी चाहिए कि तभी गधा दर्द के कारण ज़ोर से रेंका। मेरे क़दम स्वत: रुक गये और मैं यंत्रवत् मुड़ कर उसके निकट चला आया। देखा कि गधे का पैर दो पत्थरों की संकरी दरार में फंसा है, खुर वाला चौड़ा हिस्सा नीचे होने से पैर ऊपर नहीं आ रहा। मैं उसका पैर निकालने का निश्चय कर बैठ गया और हाथों से पैर पकड़ पीछे की ओर खींचने लगा। गधा तो जानवर ही था, उसे क्या पता कि मैं उसकी मदद कर रहा हूँ, उसे दर्द के बंधन से मुक्त करने वाला हूँ। इसलिए उसने पूरी ताकत से पैर को आगे की ओर खींचा और कुछ अजीब-सी आवाज़ निकाल मेरे मुंह पर अपनी पूंछ मारी। ऐसा भी हो सकता है, इसकी मुझे कल्पना भी नहीं थी। मैं दूर हट गया, गधा दर्द से तड़प रहा था, पैर से खून रिसने लगा था। अब तक कुछ तमाशबीन जुट गये थे। मैंने मदद करने के लिए बुलाया पर कोई आगे नहीं बढ़ा। मैं फिर जुट गया, इस बार गधे ने पलट कर अपने मुंह से मुझे काटने की कोशिश की और बचाव में मैं गिर पड़ा। मेरे चारों ओर हंसी के गोले फूट पड़े। एक बार तो मुझे बहुत शर्म भी आई कि कहाँ फंस गया पर अम्मा की सीख ने हिम्मत दी और अबकी बार ईश्वर का स्मरण कर दोनों हाथों से फुर्ती से गधे का पैर पकड़ कर पीछे की ओर बल लगाकर झटके से खींचा। जैसे चमत्कार हुआ, पैर पत्थरों से बाहर आ गया। गधा एकदम से भागा और फिर रुक कर पीछे मुड़ा और चारों पैर पटकते हुए ज़ोर से कुछ-कुछ घोड़े जैसा हिनहिनाया, जैसे मेरा आभार व्यक्त कर रहा हो और फिर भाग गया। बहुत सालों बाद समझ में आया कि वह गधा नहीं खच्चर था। खच्चर गधा से बड़ा होता है तथा घोड़ी और गधे के संसर्ग से जन्म लेता है। खच्चर प्राकृतिक रूप से ही संतानोत्पत्ति में असमर्थ होते हैं।

उपर्युक्त प्रसंग मैंने आत्मश्लाघा में नहीं लिखा अपितु पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों के प्रति अपनेपन का भावबीज माता-पिता एवं परिवार द्वारा कैसे रोपित किया जा सकता है, उसका एक उदाहरण मात्र दिया है। यह भाव परिवार में आज तक बना हुआ है। जब गतवर्ष इस लेखक के बच्चों ने गली के एक खुजली वाले मरगिल्ले पिल्ले को अपना कर घर-परिवार का प्यारा सदस्य ‘मुन्नू’ बना लिया और इस ८ अप्रैल को मुन्नू का बर्थडे मनाकर उसे प्रेम, करुणा एवं आत्मीयता के सुधाजल से सिंचित किया। मेरी तो यह बहुत छोटी-सी भूमिका है किंतु आज हजारों पशुप्रेमी घायल पशुओं को आश्रय दे चिकित्सा करते हुए समुचित देखभाल कर रहे हैं। प्रत्येक दिन सैकड़ों की संख्या में गाय, बैल, कुत्ते, बिल्ली, सियार, लोमड़ी, हिरन, नीलगाय, घोड़े, नेवले जैसे पालतू और जंगली जानवर सड़कों में वाहनों की टक्कर से हताहत होते हैं, जानकारी होते ही पशुप्रेमी जिन्हें यथासंभव तुरंत इलाज़ कर बचाने का प्रयास करते हैं। कुछ लोग संगठित होकर बेसहारा जानवरों के लिए चारा-भूसा, दाना-पानी और आश्रय की व्यवस्था कर रहे हैं। ये लोग मानव होकर भी देवदूत हैं। वे अपने कार्यों के द्वारा दुनिया को मौन संदेश दे रहे होते हैं कि पशु-पक्षियों के बिना हम मनुष्य अपूर्ण हैं।
पिछले दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से मिले पशुओं पर मानव की क्रूरता और शोषण के कुछ वीडियो देखकर मन व्यथित हुआ, चीत्कार कर उठा। मनुष्य के रूप में हम कितना निकृष्ट काम कर रहे हैं। मैंने देखा कि एक व्यक्ति अपनी कार से जंगल में उतर कर अपने दो पालतू कुत्तों को पेड़ से बाँधकर घर भाग जाता है और कुत्ते किकिहाते उछलते रहते हैं। एक अन्य व्यक्ति चलती कार से खिड़की को खोल पालतू कुत्ते को सड़क पर छोड़ तेज रफ़्तार से बढ़ जाता है और वह कुत्ता बहुत दूर तक कार के पीछे-पीछे दौड़ता है, गिरता है, फिर उठकर दौड़ता है। इन दोनों लोगों ने बड़े प्यार से कुत्ते के पिल्ले पाले होंगे पर अब वे उनके दिनचर्या में बाधक बन रहे होंगे तो बेजुबान जानवरों के प्रति ऐसा अमानवीय क्रूर व्यवहार कहाँ न्यायोचित है। यह मनुष्य का पतन है, जीवों के प्रति हिंसा है। कोई भी व्यक्ति किसी प्राणी को पीड़ा, दुख, पिटाई, कष्ट देकर कभी सुखी-संतुष्ट नहीं हो सकता। एक अन्य वीडियो में एक व्यक्ति एक भैंसे वाली गाड़ी पर उसकी वहन क्षमता से बहुत अधिक भार लादे हुए हैं और भैंसा को आगे बढ़ने के लिए लगातार उसके पुट्ठे पर कीलयुक्त नुकीली छड़ी चुभाते चमड़े की बेल्ट से पींठ पर मार रहा है। आप अवलोकन करें तो हमारे आसपास ऐसे तमाम दृश्य दिखाई पड़ जाएंगे जिन्हें देखकर देह सिहर उठेगी, हृदय कांप जाएगा। वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व में भोजन, वस्त्र, औषधि, सौंदर्य उत्पाद, सजावटी वस्तुओं के निर्माण हेतु पशुओं का शिकार किया जा रहा है। पालतू पशुओं को पिंजड़ों-जंजीरों में रखना और प्रशिक्षण के समय भूखा रखने, पिटाई करने और अंग भंग करने जैसे व्यवहार न केवल हिंसा हैं बल्कि पीड़ा, दर्द और कराह से भरे हैं। पशुओं की रक्षा करें, प्यार दें, सम्मान दें। पशुओं में भी भावनाएँ हैं वे प्यार महसूस करते हैं और प्यार जताते भी हैं।
पशुओं के प्रति हिंसा, शोषण एवं क्रूरता के विरुद्ध आत्मीयता, करुणा एवं प्रेमपूर्ण व्यवहार करने, पशु अधिकारों के संरक्षण एवं कल्याण करने हेतु जागरूकता के प्रसार हेतु प्रत्येक वर्ष ४ अक्टूबर को विश्व पशु दिवस मनाया जाता है। सर्वप्रथम २४ मार्च, १९२५ को बर्लिन (जर्मनी) में यह आयोजन किया गया। इटली के प्रकृति एवं पशु प्रेमी संत फ्रांसिस की स्मृति में ४ अक्टूबर, १९२९ को इटली में आयोजित पशुप्रेमी सम्मेलन में हेनरिक जिमरमैन के प्रस्ताव पर प्रत्येक वर्ष ४ अक्टूबर को विश्व पशु दिवस मनाया जाने लगा। २००३ से नेचरवॉच फाउंडेशन द्वारा आयोजन किया जाता है, २०१८ से एक थीम पर कार्यक्रम होते हैं। वर्ष २०२४ की थीम थी-दुनिया उनका भी घर है तथा वर्ष २०२५ में-जानवरों को बचाओ, ग्रह को बचाओ, थीम निर्धारित है। निश्चित रूप से, इस धरती पर पशुओं का समान अधिकार है। उनके प्राकृतिक आवास, भोजन एवं पारिस्थितिकी को बचाये रखते हुए हमें पशुओं के प्रति सहज प्यार, करुणा और अपनेपन का भाव रखना होगा, तभी विश्व पशु दिवस मनाने की सार्थकता सिद्ध होगी।
प्रमोद दीक्षित मलय
लेखक शैक्षिक संवाद मंच के संस्थापक हैं। बांदा, उ.प्र.
मोबा- ९४५२०८५२३४
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