आत्महत्या करने वालों की सोच को चुनौती देता ‘रेगिस्तान का रांझणा’
उपन्यास समीक्षा- रेगिस्तान का रांझणा
लेखक- डॉ.जीत परमार
प्रकाशन- नॉवेल नगेट्स पब्लिशर्स नागपुर, महाराष्ट्र
समीक्षक- अरविन्द कालमा
समझ नहीं आता कहाँ से शुरू करूँ, आत्महत्या करने वालों से शुरू करूँ या कहानी के मुख्य पात्रों से या फिर कथाकार के परिचय से। हालांकि कथाकार किसी परिचय के मोहताज नहीं, थार नगरी बाड़मेर के यूथ आइकॉन के नाम से पहचाने जाने वाले डॉ.जितेंद्र परमार जी ना सिर्फ़ कम उम्र के लेखक हैं बल्कि उनका नाम OMG बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में राजस्थान के सबसे युवा सरपंच का राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी शामिल है।
२०२० के पंचायती राज चुनाव में बाड़मेर जिले की सियाई ग्राम पंचायत से महज़ २१ वर्ष की उम्र में सरपंच बने युवाओं के प्रेरणास्रोत परमार सर एक बेहतरीन साहित्यकार हैं इसमें सन्देह नहीं। उनके द्वारा रचित पन्द्रह भागों वाला उपन्यास ‘रेगिस्तान का रांझणा’ जो इन दिनों काफ़ी चर्चा में है। रेगिस्तान की मिट्टी में दफ़न कईं प्रेम कहानियाँ जो प्रेमियों को अपनी ओर लुभाती रही हैं, जिसमें महेंद्र-मूमल की प्रेम कहानी शीर्ष पर है। एक प्रेम कहानी परमार सर की क़लम से, क्या वाकई ये सिर्फ़ प्रेम कहानी है या कुछ ओर! ये तो कहानी पढ़ने के बाद ही ज्ञात होगा।
कहानी दो मुख्य पात्रों कबीर और मानसी के इर्दगिर्द घूमती है, जो पड़ोसी हैं, दोनों कक्षा बारहवीं में पढ़ते हैं, परन्तु दोनों के स्कूल अलग-अलग हैं। लड़कपन में कबीर को मानसी से एकतरफा प्यार हो जाता है, सोते-जागते, उठते-बैठते, स्कूल में, घर में हर जगह मानसी ही छाई रहती है। वह उससे इतना प्यार करता है कि उसे पाने की लालसा में किसी भी हद तक जा सकता है। कई महीनों इसी में गुजर जाते हैं कि आख़िर कब तक उससे बात कर पाएगा। उससे मुलाक़ात करने के लिए दोस्तों और भाइयों की मदद लेता है पर सफलता नहीं मिलती। कहानी में कई मोड़ आते हैं। क्या मानसी से उसकी मुलाक़ात होगी, क्या मानसी उसके प्यार को स्वीकार करेगी! इन्हीं सवालों के इर्दगिर्द घूमती कहानी हमें उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है जहाँ पर हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। आगे क्या होता है क्या नहीं इसके लिए आपको कहानी पढ़नी चाहिए।
लेखक ने बेहद बारीकी से हर मोड़ को सृजित किया है। कहानी के भावों की बात करें तो उम्दा तो नहीं कहा जा सकता परन्तु काफ़ी हद तक लेखक ने सफलता प्राप्त की है, शुरूआत के भागों में थोड़ी-सी बोरियत ज़रूर महसूस होती है लेकिन ज्यूँ-ज्यूँ आगे बढ़ते हैं कहानी पाठक को बाँधे रखने में सफल हो जाती है, लेखक को इससे ज़्यादा और क्या चाहिए। रोचकता, रोमांचक एवं मार्मिकता के भाव लिए हुए कहानी का प्रवाह भी अच्छा है। लड़कपन के प्रेम के साथ-साथ लेखक ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देते हुए जातिवाद के पैरों तले कुचले जा रहे प्रेम को उजागर किया है।
मुख्य तौर पर आत्महत्या करने की सोचने वालों को चुनौती देता उपन्यास है, ज़िन्दगी के उस मोड़ पर जब आत्महत्या करने का मन करे तब उसके मन में विचार उपजने बन्द हो जाते हैं, सिर्फ़ एक ही ख़्याल बस मर जाऊँ! उस मोड़ पर अगर थोड़ा-सा भी विचार किया जाए तो आत्महत्या से बचा जा सकता है, यही सन्देश है इस कहानी का। कुछ दृश्य फ़िल्मी ज़रूर लगे हैं जैसे-अचानक हवा का झोंका आना और मानसी का सामने वाले मकान की छत पर आना, चार बदमाशों का अचानक पार्टी हॉल में आकर हॉकी से पिटाई करना आदि। संवाद की बात करें तो संवादों को ओर भी सुधारा जा सकता था। विभिन्न दृश्यों को जीवन्त रूप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है।
उपन्यास का सम्पूर्ण सार बताएँ तो लेखक ने थार क्षेत्र का कथानक लेकर जमीनी हक़ीक़त को उजागर किया है, इस कथानक से जमीनी जुड़ाव महसूस होता है। लेखक ने ज़्यादा कठिन शब्दों का प्रयोग ना करते हुए आमजन समझ सके ऐसी भाषा शैली का प्रयोग किया है, प्रेम के साथ-साथ पारिवारिक रिश्तों की अहमियत, हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल, तेज गति व लापरवाही से वाहन चलाने वालों को समझाने का, अपने लक्ष्य से भटकते युवाओं को सही राह दिखाने एवं युवाओं में बढ़ती नशा प्रवृत्ति को रोकने का भरकस प्रयास किया है जो वाकई काबिले तारीफ़ है और मुख्य केंद्र बिंदु बढ़ती आत्महत्या को लेकर है।
आत्महत्या रोकने का एक बेहतरीन सन्देश दिया है, बस एक ही सवाल-“आखिर यह आत्महत्या क्यों? जबकि अंत में पछतावे के अलावा कुछ नहीं रहता, फिर यह नादानी क्यों?” साधारण शब्दों में कहूँ तो कहानी हर उस पाठक को पढ़नी चाहिए जो नशे में लिप्त है, जातिवादी मानसिकता से ग्रसित है एवं सुसाइड करने का भ्रम पाले हुए हैं। बतौर पाठक इतना ही कहूंगा कि डॉ.जीत परमार जी द्वारा सृजित उपन्यास पाठक को निराश नहीं करेगा कुछ न कुछ तो अवश्य सीख कर जाएगा। उत्कृष्ट कहानी देने के लिए लेखक बधाई के पात्र हैं एवं भविष्य में साहित्य जगत को इनसे काफ़ी उम्मीदें हैं। मंगलकामनाएँ।
अरविन्द कालमा
भादरूणा, सांचोर (राजस्थान)
सम्पर्क सूत्र- ८००३२८९६७१
ईमेल पता-arvindkalma1997@gmail.com
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