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रास्ते प्यार के
रास्ते प्यार के
कब कैसे व क्यों हो जाए प्यार
यह किसी के भी नहीं अख़्तियार
अज़ब किस्मत का लेखा
क्यों अब तक़ किसी ने नहीं देखा
रेल की पटरी सा लम्बा रास्ता
नहीं किसी से कोई भी वास्ता
फ़ोन करें तो बात नहीं
मिलें तो ज़ज़्बात नहीं
क्या अद्भुत कला और अज़ब सी माया
बस हाथ मलते रहे पल्ले कुछ न आया
सुहागन पर्व पर हुआ क़माल
बिना शोर के हुआ धमाल
न उसने याद किया न हमें याद आई
सुबह की लगी आग़ शाम तक़ ही बुझ पाई
चाँद ने ही याद इशारे से समझाया
आज़ तो चौथ आगे फ़िर अमावस का साया
लौट जा घर बिना किसी देरी में
कोई नहीं होगा इस दौर-ए-अंधेरी में
सब को ही जगमग रोशनी व चाँदनी ही भाती
अरे मूर्ख ख़ाली हाथ कौन किसे चाहती
जो अपने हैं उन्हीं पर आस कर
ग़ैरों पर कभी न विश्वास कर
अपने आख़िर तक़ काम आयेंगें
ग़ैर सदा ही पराये ही कहलायेंगें
बस सलामत रहे प्यार
मन गया हर त्योहार
कुछ पल नटखट शरारतों का दौर
फ़िर वही मिलन की भोर
सब कुछ ही होगा बिन ब्यार के
यही तो हैं रास्ते प्यार के
रास्ते प्यार के…
लाख़ चाहते हुए
लाख़ चाहते हुए भी कभी न मेरे हुए
लाख़ चाहते हुए……
एक बार तो कहो कोई दिल ले गया
ढूँढ लेंगें उसे याद करो नाम लेते हुए
लाख़ चाहते हुए…..
प्यार की साज़िशें भी खूब रची थी उसने
उसी साज़िश का ही वो शिकार भी हुए
लाख़ चाहते हुए……
धमकियाँ भी मिली और प्यार भी कर लिया
बारात भी पहुँच गई मग़र न फेरे हुए
लाख़ चाहते हुए…..
वो मिलती रही हमें हर एक मोड़ पर
कह भी न पाए कुछ साथ रहते हुए
लाख़ चाहते हुए…..
क्या कहें अब किसे हम झूटे आवरण में
लुट ही गए पूरी तरह बस ढ़कते हुए
लाख़ चाहते हुए…….
चल सन्यासी
चल सन्यासी….चल सन्यासी….
पहले उन्यासी अस्सी फ़िर इक्क्यासी
चल सन्यासी…. चल सन्यासी
अब न तो वह पहले वाली बात
न ही वह बाने या कोई जज़्बात
न कुछ मौसम के अनुसार
हर तरफ़ विशेष गुणी बेशुमार
कैसा जीवन लाख चौरासी
चल सन्यासी…..चल सन्यासी…..
न तो सर्दी में सर्दी
गर्मी में बे-लगाम गर्मी
बरसात समय न कोई बारिश
हर खोपड़ी में हो रही ख़ारिश
हर मौसम ले रहा सब की तलाशी
चल सन्यासी….चल सन्यासी….
लेकिन अब जीभ के स्वाद
हर फ़सल में पता नहीं कैसी खाद
हर ज़गह बस दवाई ही दवाई
हर कोई चाहे फ़रेब की कमाई
न रोटी रही ताज़ी न बची बास्सी
चल सन्यासी….चल सन्यासी…..
ख़्वाहिश में भी नोटों के अम्बार
नक़ली हमदर्द फ़रेबी प्यार
बस दिखावे ख़ातिर दौड़े जा रहे
बिन मक़्सद सिर फोड़े जा रहे
सब जोड़ तोड़ की राशि
चल सन्यासी….चल सन्यासी……
देखो कैसी झूठी शान
घर हुए ग़ायब पर ऊँचे मकान
जी रहा हर कोई बिना स्वाभिमान
लूट रहे न कोई दीन ईमान
छाई बदरी काली घटा सी
चल सन्यासी…..चल सन्यासी……
अज़ीब से ऊँचे ख़्यालात
बिन कारण ही घुस्से लात
धर्म में भी चोर बाज़ारी
ठगी लोभ हर ज़गह ज़ारी
हर कोई तो सत्यानाशी
चल सन्यासी….चल सन्यासी…..
हर तरफ़ कंक्रीट का जंगल
लोभी मन से माना मंगल
हर कोने में गंदी राजनीति
अपना राज बिना किसी नीति
कैसा काबा कैसी काशी
चल सन्यासी….चल सन्यासी……
झूठ का बोल बाला
सच का ही मुँह काला
सब ही गोरे न कोई काला
सब चलायें तीर नक़ाशी
चल सन्यासी…..चल सन्यासी…..
किसका अब कैसा उद्धार
सब कुछ ही तो बन गया व्यापार
सब ही का लूट खसोट का चक्कर
सब मार रहे एक दूसरे को टक्कर
हर तरफ़ तो शांति की अठ्ठहासी
चल सन्यासी….चल सन्यासी…..
हर अमीर को मुफ़्त का राशन
ग़रीब को सब पेल रहे भाषण
सच पर झूठ भारी
लूट रहे सब बारी बारी
तीन दो का पाँच फ़िर चाहे झक्कास अट्ठासी
चल सन्यासी…..चल सन्यासी…..
चल सन्यासी मन्दिर में
ओढ़कर सब कुछ अन्दर में
तेरा चिमटा मेरी ढोलक दोनों साथ बजायेंगें
भोली जनता को बेवाक़ूफ़ बनायेंगें
मोह माया का जाल बिछा कर अय्याशी
चल सन्यासी….चल सन्यासी….
चल सन्यासी….चल सन्यासी…..
बड़े दानवीर कहलवायेंगें
है न क़माल
धोती फाड़ी बना दिया रुमाल
आज ख़ुद हाथ जोड़
बना कर अपना गठजोड़
अपना बता
कर के ख़ता
अंजान से जानकार बनने वाले
वाकपटुता सहारे भीख मांगने वाले
ऐसा कुछ बड़ा कर पल जायेंगें
हमें ही धोख़ा दे तरीक़े से छल जायेंगें
कल तक सबसे बड़े दानवीर बन
हर में खानें वाली वस्तु के लगा कर घुन
हमें ही तो ठगेंगें
फ़िर बिना रंग रंगेंगें
जो मूलभूत सुविधाएं हमारे लिए
फ़िर बस केवल इनके लिए
उन्हीं को डकार जायेंगें
फ़िर जेब भर फ़रार जायेंगें
हमें एक थैली में राशन भर
ख़ुद अनेकों अनेक बोरियां भर
हमें कहीं नज़र ही नहीं आयेंगें
हमारे लिए अच्छे दिन बताएंगें
है न कितना क़माल
हर पल होता धमाल
आज हमसे ही मांगनें वाले
सरबत का भला चाहने वाले
अपने आप को ही योग्य बतलायेंगें
कल हमसे ही दानवीर कहलवायेंगें
बड़े दानवीर कहलवायेंगें
बड़े दानवीर कहलवायेंगें……
बस हुए तेरे
बहुत दिन से इच्छा रही कोई हमारा हो
तू तू मैं मैं से भी पक्का छुटकारा हो
पर कुछ समझ नहीं आ रहा था
बिना किसी वज़ह के पछता रहा था
ना ही कोई मौलवी की हाज़िरी न निकाह
फ़िर न समाज की चिंता या कोई परवाह
और न किसी पंडप में अग्नि के फेरे
न ही पंडित जी का चक्कर या वक़्त के थपेड़े
न ही ग्रंथ साहिब की मौज़ूदगी में अरदास
न किसी की धमकी न कोई चेहरा उदास
बिना चर्च की रौनक़ के
बिना खर्च की टॉनिक से
भीड़ में भी दो ज़िस्म एक जान
हर ओर ख़ुशी न कोई घमासान
दिल ने कहा कुछ अंदर से फरमाया
बिन देरी के फ़ट से समझ में आया
मिल कर दोनों परिवार भ्रांत हुए
कई ज्वार भाटा भी अंगड़ाई ले शांत हुए
कुछ ही पल में गृहस्ती बस गई
तमाम रीति रिवाजों से तकलीफ़ें हंस गई
फ़िर क्या ख़ुशी या कोई ग़म
बड़ी ही ख़ुशी से तेरे हुए हम
मन से तो बहुत पहले ही बस तेरे
सामाजिक तौर से भी अब हुए तेरे
मिली ख़ुशियाँ पहले झंझट रहे बहुतेरे
बस हुए हम तेरे…..
बस हुए हम तेरे…..
शिक्षक मैं कहलाता हूँ
शिक्षक मैं कहलाता हूँ
अध्यापक मैं कहलाता हूँ
कक्षा में विषय विशेष केवल पढ़ाता हूँ
खूब मेहनत कर मैने एक पास किया
निज हेल्थ का भी कुछ सत्यानाश किया
कोशिश जारी वार सकूँ
असली दौलत रुपी ज्ञान-पुंज
भटके युवाओं को भी रास्ता मैं दिखलाता हूँ
शिक्षक मैं कहलाता हूँ………
पढ़ने से पहले हमें भी पढ़ना पडता हैं
जानकारी हांसिल करने ख़ातिर बहुत बांचना पड़ता हैं
कहीं अधूरी जानकारी मैं किसी को न दे बैठूँ
और जानने की बलवती इच्छा ज़ारी रख पाता हूँ
शिक्षक मैं कहलाता हूँ…………
नई तकनीक का उपयोग भी अभी ज़ारी हैं
कम वक़्त में प्राप्त कर नई जानकरी हैं
विषय विशेष अपनी सही पकड़ रख सकूँ
नेट से भी तुम्हारे ख़ातिर जानकारी निकाल लाता हूँ
शिक्षक मैं कहलाता हूँ……………
युवाओं से भी सीधा सम्पर्क अभी ज़ारी हैं
उन्हें सही रास्ता दिखाना भी ज़िम्मेवारी हमारी हैं
रास्ता न भटक जायें अनजाने में कोई नया साथी
सही जानकारी देने की हर कोशिश कर जाता हूँ
शिक्षक मैं कहलाता हूँ…………
बेटियां वो परिंदे
बेटियां वो परिंदे है जिनके पर नहीं होते
कहने को ठिकाने दो मगर घर नहीं होते
बेटे माने नींव सदा और बेटियां कमज़ोर कड़ी
बेटे बांटे ज़मीन सदा बेटियां दर्द में पास खड़ी
सिक्का एक पहलु दो कभी जाना मेरे दोस्त
दीवारे कितनी बिन इनके पूरे घर नहीं होते
बेटियां वो……
कलाई का बंधन यह अटूट है जिनका विश्वास
रहती सदा अंगसँग लिये खुशियां अपने साथ
चाहे कितनी रहे दूर कभी समझ इन्हें प्यारे
यह ऐसे पवित्र रिश्ते जिसमें डर नहीं होते
बेटियां वो……
प्यार से जीते जग सारा यह लक्ष्मी रूप
ममतामयी मूरत हमें लगने न दे कभी धूप
सँवारेंजीवन को सदा सोचा क्या कभी तुमनें
कितनी कठिन रहे परिस्तिथियाँ हौंसले कम नहीं होते
बेटियां वो परिंदे…..
कभी जाना वह कौन होता है
ज़िंदगी में जीवन भर
नफ़ा नुक्सान सह कर
जो सब कुछ कमा कर भी
बस ख़ाली हाथ धो कर भी
चाहते हुए भी कभी न रोता होता है
कभी जाना वह कौन होता है……
जो मोम की तरह पिघल कर
कई बार चलते चलते फिसल कर
बस अपना कर्तव्य निभाता है
बिना किसी शोर जनरेटर भाँति काम चलाता है
घर से बाहर रह कर भी वंस मोर होता है
कभी जाना वह कौन होता है……
जो केवल औरों ख़ातिर जीता है
वही तो होता एक पिता है
परिवार में यही एक रिश्ता
आम इंसान हो कर भी फरिश्ता
बरसों तक़ अनमोल होता है
कभी जाना वह कौन होता है……
एक पिता ही तो है जो
सब की हर ज़रूरत पर जो
पूरी करने पर भी मौन होता है
माँ बाप से बड़ा कौन होता है
कभी जाना वह कौन होता है……
माना माँ ममतामयी मूरत है
पर पिता भी कहाँ कम कीरत है
पर पिताश्री हर पल हर सांस तो गौण होता है
कभी जाना वह कौन होता है……
गठबंधन सी धरोहर चाहे परेशां
पर परिवार का भला चाहें हमेंशां
यही तो सबकी चलती साँसों की डोर
बंद मुठ्ठी सा ख़ज़ाना पर रेशम सी डोर
पर हर कोई समझे व जाने तो गुरु द्रोण होता है
कभी जाना वह कौन होता है
कभी जाना वह कौन होता है….
लिखा तेरा नाम
आज तो ग़ज़ब ही हो गया
जो सोचा रहा वही हो गया
तबीयत कुछ नासाज़ होने पर
तकलीफ़ कारण सेहत खोने पर
अस्पताल में डॉक्टर के यहां
पहुंचा जल्दी इलाज़ करवाने वहां
तबीयत नासाज़ होने पर पर्ची बनवाई
पर्ची बनवा तुरंत हुई कार्यवाही
लिखने वाले ने भी लिखा बस तेरा ही नाम
सुबह गया रहा पर हो गई शाम
डॉक्टर ने पहले उपर से नीचे तक बांचा
फ़िर पूरी तरह से कई टेस्ट करवा जाँचा
तबीयत ठीक करने हेतु
रिपोर्ट के आधार पर बांध दिया सेतु
तेरे नाम वाली पर्ची पर
परहेज़ के नाम की खर्ची पर
कुछ लम्बा विराम लगा दिया
एक दवा लिख कर बतला दिया
लेनी सुबह दोपहर और शाम
बन गया काम लिखा तेरा नाम
लिखा तेरा नाम……
आपका अपना
वीरेन्द्र कौशल
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मान्यवर……
संपादक मंडल द्वारा…..मेरी कुछ चुनिंदा रचनाएं जनभाषा में…..उचित स्थान प्रदान कर प्रकाशन के लिए…..कोटि कोटि धन्यवाद…..
मेरे दिल से निकले भावों को…..आगे भी यूं ही स्थान प्रदान किया जाता रहेगा….प्रतिष्ठित मंच पर ऐसी उम्मीद करता हूं…..
संपादक मंडल के सभी माननीय सदस्यों को धन्यवाद……पत्रिका आपके सहयोग से और उन्नति करे और गरिमामय उपस्थिति बनी रहे…..
सभी रचनाकारों को…..बधाई देते हुए….अपार खुशी का सुखद अनुभव हो रहा…..
आपका अपना
वीरेन्द्र कौशल
कौशल निवास
33(ईस्ट) फ्रेंड्स कॉलोनी
हिसार 125001
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