रक्षाबंधन
“रक्षाबंधन”
मत आंको इसे तोहफ़े से
अनमोल ये प्यार है।
एक कोख से लिया जन्म,
बचपन बीता साथ है।
भाई बहिन का रिश्ता पावन,
बाँधे एक धागे की डोर है।
बहिन होती माँ समान,
भाई पर ममत्व लुटाती है।
बदले में कुछ न चाहे,
माँगे स्नेह के बोल है।
साथ में खेले पले बढ़े,
हाथ थाम कर साथ चले
समय बीता अपने-अपने घर द्वार चले।
जीवन की आपा धापी ने न जाने कितने जाले बुने,
अल्हड़ प्रीत ने चेहरा बदला,
संजीदगी का चोला ओढ़ा।
रक्षाबंधन का पर्व ये याद फिर से
वो नोक झोंक दिलाता है,
याद मुझे वह प्यार भाई का आता है।
आँखों में आँसू,
होठों पर मुस्कान लाता है।
भूल कर सारे गिले शिकवे
गीत प्रीत का गाते है,
सम्बंध ये निः स्वार्थ प्रेम का
चलो दीप नेह का जलाते है।
आओ पुरानी तस्वीरों से हम धूल हटाते है।
नेहा जैन अजीज़
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