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यूँ ही ख़ुद को मिटा दिया
यूँ ही ख़ुद को मिटा दिया
यूॅं ही सब कुछ समेटते-समेटते,
खुद को जाने कब कहाॅं मिटा दिया,
किसी ने पूछा अगर अपना हाल,
यूॅं ही बस आहिस्ता से मुस्कुरा दिया,
बचा ही क्या था जलती लकड़ियों में-२,
हृदय तिनका मात्र था वह भी जला दिया,
यूॅं ही सुलगते-सुलगते एक अग्निकण ने,
देखते ही देखते मन श्मशान बना दिया,
मिल भी जाएँ अगर
सितारे अब मुट्ठी भर,
चमकेंगे किस तरह जब
आसमाॅं ही भिगो दिया,
वक़्त रहते सम्भल जाना
ही सबसे भला है,
लकीर पीटने से क्या होगा,
जब सब कुछ लुटा दिया,
क्या कर लोगे ग़र भर भी
लिया चाॅंद मुट्ठी में,
चाॅंदनी तो तब बिखेरेगा जब,
उसको आजाद करा दिया!
कल्पना चौधरी
बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश
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