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युगल हृदय मिलने लगे
युगल हृदय मिलने लगे
भरी सभा बातें करें, दो जोड़ी शुभ नैन।
वाणी मौन प्रधान अब, सुरभित सायक सैन॥
तरुणाई में उर जगे, प्रणय मिलन के राग।
मलय पवन है फूँकता, प्राणों में नित आग॥
युगल हृदय मिलने लगे, मेट्रो कॉफी शॉप॥
सूने पनघट ताल तट, नव विकास अभिशाप॥
श्वेत श्याम जो चित्र हैं, रंग भरे मधुमास।
शुष्क धरा खिलने लगी, यौवन का आभास। ।
कोंपल फूटी ठूँठ में, फागुन करे कमाल।
कलियाँ मुसकाने लगीं, निर्मल निर्झर ताल॥
वसुधा पोथी है बनी
फागुन हर घर द्वार पर, सुरभित सुमन बिखेर।
डलिया भरकर दे रहा, कैथा महुआ बेर॥
वन उपवन खिलने लगे, भाँति-भाँति के फूल,
देह गेह प्रमुदित हुए, समय समझ अनुकूल॥
वसुधा पोथी है बनी, अंकित चारु चरित्र।
काल पुरुष ने रच दिये, कानन घाटी चित्र॥
मानव मन को मोहती, कोयल मीठी कूक।
ताप बढ़ाती देह का, हृदय करे दो टूक॥
गेहूँ बाली नाचती, मधुर मटर के साथ।
अलसी ने भी कस गहे, सबल चना के हाथ॥
मलय पवन सुख बाँटता
हृदय विमल रसधार में, घुलते रंग अनेक।
जिनके उर कालिख जमी, चढ़े रंग नहि एक।
जो जन परहित में लगे, तन-मन रहे पवित्र।
फैले जग में यश सदा, ज्यों गुलाब का इत्र॥
वृक्ष खिलायें फूल फल, नदी पिलाती नीर।
मलय पवन सुख बाँटता, हरता सबकी पीर॥
छाँव सदा सुखकर लगे, मिले छाँव में चैन।
छाँव बिना तड़पत रहे, तप्त हृदय बेचैन॥
पौधे परम दयालु हैं, सदा करें उपकार।
बिठा छाँव सुख शांति में, करते नित सत्कार॥
पुस्तक सच्ची मीत
पुस्तक मन को प्रिय सदा, पुस्तक लगती गीत।
शुष्क हृदय रस घोलती, पुस्तक मृदु नवनीत।
पुस्तक जिनके पास हो, होते नहीं निराश।
मन में धरती है भरी, मुट्ठी में आकाश॥
पुस्तक गठरी ज्ञान की, पुस्तक सच्ची मीत।
पथ के कंटक बीनती, सदा दिलाती जीत॥
मुक्ता माणिक रत्न हैं, पुस्तक प्रिय पुखराज।
शिखर चढ़े हैं वीर वे, साथ निभाते आज॥
पुस्तक पृष्ठों में दबी, मानव मन की पीर।
शब्द पिघल कर बह रहे, जैसे निर्मल नीर॥
पुस्तक जिनकी हैं सखा
हरे अँधेरा राह का, भरे उजाला रेख।
सुगम बनाती पथ सदा, देख सको तो देख॥
पुस्तक आँचल मातु का, पुस्तक सिर पर छाँव।
पुस्तक दुख में है दवा, भरे हृदय के घाव॥
पुस्तक सत्पथ पर बढ़ा, हर पल देती सीख।
पुस्तक जिनकी हैं सखा, कभी न माँगे भीख॥
विविध विधा के लेख अरु, नवरस सुख-दु: ख भाव।
पुस्तक पृष्ठों में दिखे, धूप चाँदनी छाँव॥
पुस्तक महकाती सदा, मानव जीवन बाग।
साबुन पानी के बिना, धुलती मन के दाग॥
पुस्तक जिनके उर बसे
पुस्तक उर पैदा करे, नीर क्षीर सत्बुद्धि।
नाम, काम धन जग मिले, सहज सुखद उपलब्धि॥
पुस्तक पढ़ पंडित बनें, खल कामी शठ चोर।
जीवन उपवन-सा खिले, सुखद सुनहरी भोर॥
पुस्तक सुयश पराग है, सुरभित सकल समाज॥
वे नर शोभित सभा में, ज्यों सोहे मृगराज।
पुस्तक जिनके उर बसे, खिलते कमल नवीन।
ताल छंद नव ज्ञान दे, करती गुणी प्रवीन॥
पुस्तक सम्बल है बने, उर उपजे विश्वास।
घने अँधेरे पंथ पे, परिमल मृदुल प्रकाश॥
सुखद मनोहर धूप
जो जन तपता धूप में, छोड़ छाँव की आस।
चढ़े सफलता सीढ़ियाँ, मन में दृढ़ विश्वास॥
धूप परीक्षा ले सदा, करती कठिन सवाल।
खरे कसौटी जो नहीं, करते वही बवाल॥
तन-मन गरमाहट भरे, सुखद मनोहर धूप।
बिना धूप के कब मिले, भोजन भेषज रूप॥
करें मिताई धूप से, सुख-दुख अपने भूल।
जोर उसी का छाँव पर, मिलें राह में फूल॥
किरणें सूरज की भरें, सकल सृष्टि में प्राण।
वायु मृदा नभ धरा जल, सबका शुभ कल्याण॥
बच्चे कल हैं विश्व का
परिजन से नित सीखते, भाषा का व्यवहार।
बच्चे रचने हैं लगे, शब्दों का संसार॥
कच्ची मिट्टी हैं नहीं, खाली घड़ा न जान।
कोरे काग़ज़ भी नहीं, बच्चे बहुत महान॥
कला गणित अरु नीति का, रखें सहज शुभ ज्ञान।
महत्त्व कभी न दें बड़े, कोरा मानस मान॥
नदी ताल खग कूप तरु, फ़सल खेत खलिहान।
घर पड़ोस सामान की, बच्चों को पहचान॥
बच्चे कल हैं विश्व का, सुंदर धरती रूप।
मान प्यार सह दीजिए, पोषण छाया धूप॥
प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
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