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यात्रा वृतांत और डायरी लेखन पर कार्यशाला संपन्न
अतर्रा (बांदा): शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश द्वारा गत दिवस आयोजित यात्रा वृतांत एवं डायरी लेखन की आनलाइन कार्यशाला में संदर्भदाता प्रमोद दीक्षित मलय ने सहभागी शिक्षक-शिक्षिकाओं को हिन्दी साहित्य की विधाओं से परिचित कराते हुए यात्रा वृत्तांत एवं डायरी विधाओं के इतिहास एवं लेखन परम्परा से जोड़ा। कार्यशाला में उत्तर प्रदेश अतिरिक्त छत्तीसगढ़ एवं उत्तराखंड से भी शिक्षक जुड़कर लाभान्वित हुए।
उल्लेखनीय है कि प्रमोद दीक्षित मलय के संपादन में यात्रा वृत्तांत एवं डायरी विधा केंद्रित साझा संकलन के प्रकाशन की प्रक्रिया गतिमान है। जानकारी देते हुए शिक्षक रचनाकार दुर्गेश्वर राय ने बताया कि शैक्षिक संवाद मंच द्वारा बेसिक शिक्षा में कार्यरत शिक्षक-शिक्षिकाओं की रचनाओं के विधा केंद्रित संकलन प्रकाशन पर काम किया जा रहा है। उसी क्रम में इस बार यात्रा वृत्तांत तथा डायरी विधाओं पर साझा संकलन प्रकाशित किये जाने हैं।
सर्वप्रथम रचनाकारों का चयन किया गया और पहली कार्यशाला रविवार की शाम सम्पन्न हुई जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार संपादक प्रमोद दीक्षित मलय द्वारा उक्त दोनों विधाओं की सम्यक जानकारी देते हुए उनकी प्रकृति, उद्देश्य, लाभ, लेखन के तौर-तरीके एवं ध्यान देने योग्य बातों से सहभागियों का मार्गदर्शन किया गया एवं अंत में सवालों के जवाब भी देकर संतुष्ट किया।
उन्होंने पहले डायरी विधा की बारीकियों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालते हुए कहा कि डायरी केवल तथ्यों और सूचनाओं का संकलन भर नहीं है बल्कि डायरी आपके दैनिक जीवन में हो रही घटनाओं का विशद विश्लेषण है। यह लेखक का आत्म साक्षात्कार कराती है। जीवन में आ रही दैनिक समस्याओं के समाधान और बेहतर प्रबंधन के लिए आपके महत्त्वपूर्ण सुझाव का दस्तावेज है डायरी। डायरी लेखन लेखक के अनुभवों एवं घटनाओं का व्यवस्थित अंकन है।
डायरी लेखन प्रतिदिन आवश्यक है किंतु समयाभाव में सप्ताह में दो-तीन दिन भी किया जा सकता है। प्रत्येक पृष्ठ पर ऊपर दिनांक, समय और स्थान लिखें तथा अंत में अपने हस्ताक्षर अवश्य करें। डायरी के व्यक्तिगत एवं साहित्यिक दृष्टि से दो प्रकार होते हैं। डायरी पर चर्चा पश्चात यात्रा वृत्तांत विधा के उदाहरणों के साथ प्रमोद दीक्षित मलय ने यात्रा वृतांत लेखन से जुड़े पहलुओं पर विस्तारपूर्वक संवाद करते हुए कहा कि यात्रा किसी यात्री की घर से गंतव्य और फिर घर तक वापस आने की सूचना मात्र नहीं है बल्कि इसमें लेखक यात्रा के दौरान की अनुभूति को दर्ज करता है।
इसमें सम्बंधित क्षेत्र के भूगोल, इतिहास, लोक जीवन, भाषा-बोली, संस्कृति, खानपान, रहन-सहन, प्राकृतिक एवं अर्थ व्यवस्था, राजनीतिक एवं सामाजिक चेतना, शैक्षिक स्तर के साथ-साथ लोगों के साथ संवाद को रुचि पूर्ण शैली में प्रस्तुत करता है। लेखन में दृश्यांकन बहुत आवश्यक है ताकि पाठक को जुड़ाव महसूस हो। दोनों विधाओं में लेखन की भाषा सरल एवं सहज संप्रेषणीय हो। कठिन शब्द प्रयोग से बचते हुए आम बोलचाल की भाषा एवं स्थानीय बोलियों के शब्दों के प्रयोग से लेख प्रभावपूर्ण बन जाते हैं।
७० से अधिक शिक्षक-शिक्षिकाओं ने की सहभागिता
कार्यशाला में उत्तराखंड एवं छत्तीसगढ़ सहित उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों से ७० से भी अधिक प्रतिभागियों ने सहभागिता की और अपने सवाल पूछे। कार्यशाला में कहा गया कि सभी प्रतिभागी यह निर्धारित कर लें कि उन्हें किस विधा पर लेखन करना है। यात्रा वृतांत, डायरी लेखन या दोनों विधाओं पर।
कार्यशाला में प्रिंस कुमार, आभा त्रिपाठी, शिवाली जायसवाल, दीपक गुप्ता, डॉ. श्रवण गुप्त, कमलेश पांडेय, स्मृति दीक्षित, कुमुद, डॉ. अरविंद द्विवेदी, कुहू बनर्जी, रीनू पाला, आसिया फारूकी, शंकर रावत, रश्मि तिवारी, जेबा अफरोज, अनीता मिश्रा, फरहत माबूद, अशोक प्रियदर्शी, वंदना यादव, पूजा दुबे, रुखसाना बानो, सुधारानी, समरेंद्र बहादुर, डॉ. सुमन गुप्ता, डॉ. रचना सिंह, बिधु सिंह, अभिलाषा गुप्ता, सीमा मिश्रा, विवेक पाठक, प्रतिमा यादव, अवनीश यादव, मनमोहन, सुषमा मलिक, अर्चना पांडेय, आदि शिक्षक-शिक्षिकाएँ उपस्थित रहे।
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