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मैं प्रकृति हूँ
मैं प्रकृति हूँ
मैं बाग़ बगीचे हरियाली
मैं पुष्प सुशोभित हूँ डाली
मैं कूकूं कोयल बन बगिया
कल कल करती मैं नदिया
मैं हिम का पर्वत बर्फीला
मैं लहराता सरसों पीला
मैं खेतों का रंग धानी हूँ
आषाढ़ का झरता पानी हूँ॥
मरुस्थल बन अंकुर फूटूं
मैं पाषाणों पर उग आती हूँ
हरे भरे वन कानन सुंदर
सब मिल प्रकृति कहलाती हूँ
…मैं प्रकृति हूँ…
हर प्राणी उर स्पंदन है
सब जीवों का अभिनंदन है
जो भी धरिणी धारण करती
सबको मेरा वंदन है॥
अलि बन सुमनों पर इठलाती
रस प्रसून मधु बन जाती।
खग का मीठा कलरव हूँ
देवों का बिखरा वैभव हूँ॥
कोमल हूँ सुकुमारी हूँ
मैं प्रकृति सदा तुम्हारी हूँ
गरल महा हूँ मधुर सुधा
व्योम भी हूँ मैं हूँ वसुधा॥
…मैं प्रकृति हूँ…
मैं वन में लगती दावानल
फैलती ज्वाला का मुख हूँ
मैं धरती का कंपन हूँ
मैं विनाश भीषण दुःख हूँ।
मेरा भीषण है प्रहार
मैं करता धरिणी क्षार-क्षार
मैं पृथ्वी को पिघलाता हूँ
जब रौद्र रूप धर जाता हूँ॥
जब जीवों से अनबन करता
तब भू भीतर कंपन करता
सब कुछ धूल मिलाता हूँ
मैं महाप्रलय बन जाता हूँ…
…मैं प्रकृति हूँ…
दोस्ती का एहसास
जिंदगी के इस सफ़र में
हमें आपका साथ चाहिए
दूरी चाहे जितनी भी हो
आपका एहसास चाहिए।
मिलना बिछड़ना यही तो
अब ज़िन्दगी की सच्चाई है
दूर होकर भी जो पास हो
उसी ने दोस्ती निभाई है।
मिलेंगे आपको हजारों
इस जीवन की राह में
कोई खुशियाँ लाएगा तो
कोई ग़म भी देके जाएगा।
पर दोस्त ही ऐसा होता है
जो साथ रहता मुश्किलों में
खो मत देना ऐसे दोस्तों को
तुम खुशियों के उत्सव में।
वह आपके पास रहे या दूर
हमेशा आपका साथ देते हैं
अपनी दोस्ती को निभाने वो
हर मुश्किलों से लड़ जाते हैं।
कहने को वह कुछ भी कह दे
पर दोस्ती वह ही निभाता है
हर कोई आज यहाँ दोस्त नहीं
जो दोस्ती का प्रीत निभाता है।
जब भी कोई उलझन हो तुम्हें
उनको पास तुम हमेशा पाएगा
भुलना ना तुम ऐसे दोस्तों को
ऐसे दोस्त फिर कहाँ से लाएगा।
सावन की बारिश
सावन की रिमझिम बारिश भी
एक तेरा ही एहसास कराती है
यह बहती ठंडी-ठंडी हवाएँ
तेरी बार-बार याद दिलाती है
हल्की-हल्की बारिश की बूंदे
तुझे अपनी बाहों में लेने का
मेरे अंदर एक आह! जगाती हैं
यह बारिश मुझे तड़पाती है
इस बारिश में एक बार फिर से
तुम मेरे साथ भीगने आओ ना
कुछ और नहीं चाहे फिर मुझे
बस एक बार मिल जाओ ना
लोग बारिश में करते बहुत प्यार
तुम भी उसकी लाज बचाओ ना
अगर तुम नहीं करती हो प्यार
तो दुश्मनी निभाने आ जाओ ना
अगर तुम आओ इस सावन में
मेरे संग-संग बूंदों से खेलने तो
तुझे दुल्हन की तरह सजा दूंगा
जीवन भर के लिए अपना लूंगा
इस मिलन की घड़ी में एक बार
तुम मेरे संग-संग भीग जाओ ना
होगी मोहब्बत की बारिश अब
बस एक बार तुम आ जाओ ना
राधा दौड़ी आई रे
जब जब कन्हैया ने ऐसी बांसुरी बजाई रे
गोपियों के संग-संग राधा दौड़ी आई रे
राधा दूर से ही आवाज़ जान जाती रे
आज मेरे कन्हैया ने ऐसी बांसुरी बजाई रे
कब दूर होगी कन्हैया मेरी तन्हाई रे
तुम्हारी बांसुरी की इस मधुर धुन में
राधा तो हो गई है अब तुम्हारे बस में
आज मेरे कन्हैया ने ऐसी बांसुरी बजाई रे
मैं रंग गई हूँ तुम्हारे प्रेम की परछाई में
कन्हैया यह राधा तेरी बाहों में समाई थे
मैं दोड़ी चली आई आज तुम्हारी राहों में
आज मेरे कन्हैया ने ऐसी बांसुरी बजाई रे
मुझे अब कोई फ़िक्र नहीं है इस ज़माने में
कन्हैया मैं तुझे बसा चुकी हूँ अपने दिल में
अब तुम्हारे नाम की कब बजेगी शहनाई रे
आज मेरे कन्हैया ने ऐसी बांसुरी बजाई रे
बारिश की बूंदें
बारिश की ठंडी बूंदों से
फूलों ने खिलना शुरू किया
कल तक बादल लिए थे
आज पानी बन बरसाया।
पेड़ों की पत्तियों पर भी
मोतियों की सजी कतारें
यह सुंदर मनमोहक दृश्य
को देख प्रकृति भी निहारें
धरती की रंगत बदली ऐसे
दुल्हन बनी हो आज वैसे
प्रकृति झूमने लगी है कैसे
रिमझिम बारिश हुई है जैसे
चांद सूरज की बाल पहने
तारों की बिंदिया लगाई है
आसमां की डोली में बैठ
प्रकृति नववधू-सी शरमाई है
प्यार की वर्णमाला
जब से देखा है तुमको तुझसे ही प्यार किया है
वर्ण वर्ण में घोलकर तुझे दिल में बिठा लिया है
क से कमर तेरी लचीली, ख से खग-सी तेरी बोली
ग से गगन के सितारे तोड़, घ से घर-घर तुम डोली
च से चंचल मन तेरा, छ से छनकती तेरी पायल है
जब से देखा है तुमको, तुझसे ही प्यार किया है।
ज से जग की पीड़ा मुझे, झ से झंकार तुझे सुनाई
ट से टक्कर अपनी सबसे, ठ से ठसक सबने दिखाई
ड से डरना नहीं किसी से, यही तेरा मेरा प्यार है
जब से देखा है तुमको, तुझसे ही प्यार किया है
ढ से ढलकर तुम मुझमें, त से तपकर चली आना
थ से थर थरा कर तुम, द से दरवाजे से ही जाना
ध से धमकी दे पापा तो, न से नतमस्तक हो जाना
जब से देखा है तुमको, तुझसे ही प्यार किया है॥
प से प्रकाश कि तुम रानी, फ से फरिस्ता बन आई
ब से बगिया तुझे पुकारे, भ से भंवरा तुम बन जाई
म से महकी तेरी डोली, य से यही तेरा मेरा साथ है
जब से देखा है तुमको, तुझसे ही प्यार किया है।
र से रब ने बनाई जोड़ी, ल से लगन मेरी भर दो
व से वर तेरा बनाकर, श से श्याम तेरा बना दो
ष से षड़यंत्र रचकर हमने, स से सफल बनाया है
जब से देखा है तुमको, तुझसे ही प्यार किया है।
ह से हमेशा तेरा साथ दूं, क्ष से क्षत्रिय-सा वचन है
त्र से त्रस्त कर सबको, ज्ञ से ज्ञानी तुझे बनाना है
जीवन अब तेरे संग, प्रियतम तुझसे मुझे प्यार है
जब से देखा है तुमको, तुझसे ही प्यार किया है॥
स्कूल का प्यार
आज भी याद है स्कूल के वह दिन
तुम मेरे लिए टिफिन लाया करती थी
तुम मेरे साथ स्कूल जाया करती थी
साथ तुम स्कूल से आया करती थी।
बात तुम अपने दिल की बताती थी
मेरे साथ ही तुम हंसती खेलती थी
मुझे देखने के लिए कक्षा में आती थी
थोड़ा मुस्कुरा कर तुम चली जाती थी।
किताब के बहाने तेरा रोज़ मेरे घर आना
मेरी मम्मी को मम्मी कह कर तेरा बुलाना
फिर जाते हुए तेरा दरवाजे पर रुक जाना
खांसकर इशारे से मुझे अपने पास बुलाना।
वह तेरा मेरे से बार-बार टकराना
तिरछी निगाहों से अपनी मुझे देखना
अपना ग्रहकार्य रोज़ मुझसे ही कराना
सहेलियों के साथ देख मुझे तेरा शर्माना।
तब मुंह फुला कर तुम रूठा करती थी
कई दिनों तक तुम नाराज रहती थी
मुझे तुमसे इश्क़ नहीं कहा करती थी
पर दिल में सिर्फ़ मुझे ही रखती थी॥
मेरे प्यारे पिता जी
जिसकी बाहों में बचपन मेंझूला झूले
आओ आज उस पिता के चरण छूले
मेरे पिताजी का तो था मैं लाडला
उनकी पलकों पर ही तो था मैं पला
जिंदगी भर आपने सिलाई से करके कमाई
मुझे कंधे पर बिठाकर यह दुनिया दिखाई
सही ग़लत की आपने मुझे पहचान कराई
आगे बढ़ने के लिए आपने ही मंज़िल दिखाई
आपने तो हर पल निभाई पिता की जिम्मेदारी
उन्हें पूरी करने में लगा दी अपनी क्षमता सारी
जब जब आप उदास होते हैं तो दिखाते नहीं
पिताजी आप अपना दर्द कभी बताते नहीं
जिस प्रकार मछली को पानी की ज़रूरत है
उसी तरह पिताजी मुझे आपकी ज़रूरत है
जिसकी बाहों में बचपन में झूला झूले
आओ आज उस पिता के चरण छू ले
कर्म ही पूजा है
कर्म करोगे तो फल मिलेगा
आज न तो कल मिलेगा
यदि करोगे तुम इच्छा फल की
तो काम तेरा अधुरा रह जाएगा
करोगे कर्म समय पर तुम
तो इज़्ज़त मिलेगी नाम होगा
वरना कामचोर आलसी बन
धरती पर जानवर बन रहेगा
कर्म कर तुम ख़ुद को तरासो
शायद कोई गुण निकल जाए
तुम्हारे इस पृथ्वी पर आने का
कुछ तो उद्देश्य पूरा हो जाए
एक बार जो कामचोर बन गया
वो ख़ानदान का नाम मिटा दिया
कभी ना मिलता है सम्मान उसे
बस रह जाता है गंदगी में नाम
काम से जी चुराना भी चोरी है
ऐसे पाप करने से क्या फायदा
करना है तो कोई पुण्य करो
जिससे कुछ तो भला हो तेरा।
काश मेरी भी शादी हो जाती
काश मेरी भी शादी हो जाती
ससुराल में एक साली होती,
जो आधी घरवाली कहलाती
मैं जाता हर दूसरे रोज़ अपने,
ससुराल किसी बहाने से…!
सास-ससुर संग साली से
मेरी भी खातिरदारी होती,
घरवाली से जब होता झगड़ा
चार पल मैं साली से बतलाता
काश मेरी भी शादी हो जाती…
मैं अपनी साली की बड़ाई करता
घरवाली की कमियाँ सब निकालता
हंसी-मज़ाक संग मस्ती करता
कुछ तो मेरी भी खुशहाली होती,
काश मेरी भी शादी हो जाती…!
दो बहनों में बड़ी मेरी घरवाली होती
जीजू कहने वाली एक साली होती
मेरी घरवाली के रुठ जाने पर
प्यार करने वाली एक साली होती
काश मेरी भी शादी हो जाती…!
कभी कभी हंसी मज़ाक में
कह देता मैं अपनी साली से,
काश तुम ही मेरी घरवाली होती,
वो भी मज़ाक में कह देती क्यों नहीं
काश मेरी भी शादी हो जाती……
जीजू ख़्वाहिश भी पूरी कर लीजिये,
पूरी न सही तो आधी घरवाली हूँ
समझकर बाहों में भर लीजिए,
मेरी भी कोई ऐसी साली होती,
काश मेरी भी शादी हो जाती…!
कभी कभी अपनी क़िस्मत पर,
मेरे नसीब में गुलाब जामुन न हो
काश मेरे सास ससुर के पास भी,
एक रस मलाई की प्याली हो
काश मेरी भी एक साली होती…!
ना जल्दी है मुझे दूल्हा बनने की,
ना मुझको इतना उतावलापन है
अगर हो एक फ़ैसला सही वक़्त में,
तो शायद मेरी भी नयी कहानी हो
काश मेरी भी शादी हो जाती…!
बेटी
एक बेटी जो एक जन्म में
दो जन्मों को जी जाती हैं।
मुश्किलों में भी ठीक हूँ बोल
अपने आंसूओं को पी जाती है॥
एक बेटी जो पापा की लाडली
तो माँ की दुलारी बन जाती है।
भाई को खुशियाँ सारी देकर
फूल-सी बहन बन जाती है॥
एक बेटी जो एक दिन रस्में
सब निभा दूर चली जाती हैं।
दूर होकर वह अपनों से
सबको रुला कर जाती है॥
एक बेटी जो हर परिस्थिति
में ख़ुद को ढाल लेती है।
पीड़ा सहकर ख़ुद टूटकर भी
हर रिश्ता संभाल लेती है॥
एक बेटी जो अपनी हर दुआ में
दो परिवारों की खुशियाँ चाहती है।
बेटी को ईश्वर का दिया वरदान है
जो हर घर को स्वर्ग बना जाती है॥
एक बेटी जो अपनों से दूर होकर भी
कभी दूर का आभास नहीं कराती है।
गुलाब की पंखुड़ियों की तरह
हमेशा घर को वह महकाती है॥
एक बेटी जो ख़ुद के लिए नहीं
सबके लिए ज़िन्दगी जी जाती है।
अपने परिवार की ख़ुशी के लिए
गम के आंसू भी पी जाती है॥
एक बेटी जो आज बेटों से ज्यादा
सुख-दुःख में साथ निभा जाती है।
पर आज भी दुःख की बात है कि
बेटी गर्भ में ही मार दी जाती है॥
गांव की यादें
बीच भंवर में चलते सफ़र में
अपनी मंज़िल को मैं छोड़ आया
गांव की गलियाँ खिलती कलियाँ
मां की लोरियाँ मैं छोड़ आया॥
आम की बगिया दूध की नदियाँ
फूलों की क्यारियाँ मैं छोड़ आया
बहती बयार चहकती सोन चिड़िया
तपती दोपहरी को मैं छोड़ आया॥
मां की ममता भाई की समता
पिता का साया मैं छोड़ आया
खुशियों के मेले अपनों के रेले में
रिश्तो को सारे मैं छोड़ आया॥
यारों की यारी मेरी राधिका प्यारी
गोपियाँ सारी मैं वहीं छोड़ आया
सुनहरी धरती गाँव की मस्ती
अपनों की टोली मैं छोड़ आया॥
उसे दुल्हन बना लूं
बना कर तुझे दुल्हन मेरी
आज मांग सजा दूं तेरी
हाथों में तेरे चूड़ियाँ खनके
कानो में तेरे बालियाँ लटके
नौलखा हार तुम्हें पहनना दूं
दुल्हन तुझे अपनी बना लूं॥
तुम मेरी ज़िन्दगी में आकर
अपनी निगाहों से वार कर
तुम मेरे दिल में उतर जाना
मैं तेरे रग-रग में बस गया
यादों को तेरी दिल में बसा लूं
दुल्हन तुझे अपनी बना लूं॥
तुम बैठ सुहागरात की सेज पर
मेरे आने का करोगी तुम इंतजार
थोड़ी कसक थोड़ी-सी हया होगी
हम दोनों के बीच होगा बहुत प्यार
उस प्यार की नदी में तुझे नहला दूं
आज दुल्हन तुझे अपनी बना लूं॥
आज की रात थोड़ी हसीन होगी
डालकर बाहों में बाहें बातें होगी
ना रह पाऊंगा मैं अब तेरे बिना
देखना अलग हमारी कहानी होगी
खुशियाँ सारी तुम पर मैं लुटा दूं
आज दुल्हन तुझे अपनी बना लूं॥
दुल्हन बनकर वह मेरी
आज दुल्हन बनकर मेरी, तुम ख़ुद से इतरा रही हो
किया आज तुमने सोलह श्रृंगार, पर ख़ुद से शर्मा रही हो
देखोगे जी भर कर मुझे, तुम करोगे थोड़ी छेड़ खानी
शायद यही सोचकर मन में, तुम ख़ुद से घबरा रही हो।
इंतजार था तुम्हें बरसों से, मेरी दुल्हन बनकर आने का
आज वह दिन भी आ गया, फिर भी तुम इठला रही हो
पास मेरे आकर भी तुम, आज बोलने से कतरा रही हो
आज दुल्हन बन कर मेरी, तुम ख़ुद से इतरा रही हो॥
जो वचन लिए मैंने सात फेरों में, उनको मैं निभाऊंगा
इस पवित्र रिश्ते को, जन्मों-जन्म तक ले जाऊंगा
तेरी मेरी प्रेम कहानी को, इस दुनिया को मैं बताऊंगा
आज दुल्हन बनकर मेरी, तुम ख़ुद से इतरा रही हो।
मैं रोज़ तुम्हें दुल्हन की तरह सजाऊंगा, करके नखरे हजार
सातों जन्म में साथ रहकर, बनाऊंगा दुल्हन तुम्हें हर बार
देखें सपने जो मिलकर हमने, आज वह पूरे हो गए मगर
आज दुल्हन बनकर मेरी, तुम ख़ुद से इतरा रही हो॥
राखी आई
राखी आई खुशियाँ लाई
मन में नई उमंग जगाई
भाई ने बहन से राखी बंधाई
जिससे सजी भाई की कलाई
घर में बनी आज ख़ूब मिठाई
बहन ने भाई को सब खिलाई
घर घर में सबकी बहने आई
भाईयों के लिए राखियाँ लाई
राखी बाँध कर रिश्ता निभाई
यह रीत आज सबने चलाई
कभी नहीं करुं बहन से लड़ाई
यह क़सम सब भाईयों ने खाई
इसे मत समझो रेशम की डोरी
इससे सजती है भाई की कलाई
जिसमें छिपी अपनों की सच्चाई
यह बात आज इस डोरी ने बताई
आज दुआ मांगता है आपका भाई
मिले आपको ख़ूब नाम और बड़ाई
इज़हार करना बाक़ी है
हो गया प्यार एक हसीना से, अभी मुलाकात बाक़ी है
इकरार हुआ दिल में अभी उसे इज़हार करना बाक़ी है
देखो क़िस्मत भी क्या अजीब खेलती दीवाने के साथ
मिलते हैं रोज़ उससे पर दिल की बात बताना बाक़ी है
अच्छा तो हमें भी नहीं लगता उसको यूं तड़पाया जाना
वह लड़की तुम हो उसकी ये पहचान करवाना बाक़ी है
क्या हुस्न पाया है उसने ऐसा दुनिया में कहीं ना होगा
मोहब्बत का रंग लगाकर उसे और निखारना बाक़ी है
रोज़ सपनों में देखते हैं तुमसे हमारी सगाई हो रही है
उसकी नाज़ुक अंगुली में सुंदर अंगूठी डालना बाक़ी है
इश्क़ जितना धीरे पनपता है उतना गहरा होता जाता
वो हमारी ज़िन्दगी बन चुकी एहसास दिलाना बाक़ी है।
प्रकाश कुमार खोवाल
(अध्यापक शिक्षा विभाग राजस्थान) ज़िला सीकर
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