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मैं जिंदगी हूँ
मैं जिंदगी हूँ।
मैं मौत नहीं ज़िन्दगी हूँ।
सपनों से जागो मैं हर बूंद में हूँ।
घास के हरे भरे तिनकों में हूँ।
गज से लेकर चिटी और हर जीव में हूँ
मैं जिंदगी हूँ।
मैं हवा बनकर लहराती हूँ।
तितली बनकर फुलों में मंडराती हूँ।
सुबह सूरज बनकर जग में रोशनी फैलाती हूँ।
मैं जिंदगी हूँ।
होती नहीं मुझसे अंधेरे की दिदार,
मैं तो आनन्द और प्रकाश हूँ।
दुःख की काली रात्रि को मिटाती,
मैं जिंदगी हूँ।
छोड़ो सब आओ मेरे बाहों में,
प्रेम भरी है मेरी निगाहों में,
मैं नफ़रत मिटाती हूँ। फैलाती हूँ
सभी इंसा में भाईचारा,
मैं जिंदगी हूँ।
मैं हार को जीत में बदल देती हूँ।
हर ग़म को भुलाकर खुशियाँ लातीं हूँ,
मुझे अब तक मिटा न सका कोई सदियाँ बीत गई, फिर, फिर नये नये
रुपों में आ जाती हूँ।
मैं जिंदगी हूँ।
जिंदगी तू बेवफा है
जिंदगी तू बेवफा है।
जीना तेरे भरोसे इससे मेरा दिल बड़ा ख़फ़ा हैं।
जिंदगी तू बेवफा है,।
मौत आते ही तू साथ छोड़ देती है।
नखरे जीवन में तेरे बड़े थे,
बड़ा घर चाहिए सुंदर वधु, वर चाहिए
रिश्ते नाते भी बहुत चाहिए।
लेकिन ये क्या तू हर जन्म में मुझसे हो जाती हों खफा।
जिंदगी तू है वेवफा,।
जिंदगी जब तक थी तन में मन में।
सारा जहाँ था जीवन में।
सम्मान था, घमंड था जीने में।
जब से तेरा साथ छुटा है ज़िन्दगी नहीं
बस कालीमा है। दिखती कहाँ वह सूरज की लालिमा है, न हो ज़िन्दगी तो बस नफा ही नफा है।
जिंदगी तू बेवफा है,।
जिंदगी ने जो दिया था
जिसे अपना सोच लिया था।
सब बेगाना निकला, मैं ज़िन्दगी के बीना कुछ नहीं, पल दो पल का अफसाना निकला। ज़िन्दगी से प्रेम करना भी सजाए दफा है।
जिंदगी तू बेवफा है,।
महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि पर शिवालयों में पूजन है महाशिवरात्रि में भक्ति में सारा हिंदुस्तान है। मंदिरों में शंखनाद, घंटा बजने लगे हैं। सुन्दर शिव भक्ति के बाज़ार सजने लगे हैं।
बस्तर के गुप्तेश्वर गुफा से कैलाश और जग्गी वासुदेव के दरबार तक,
सभी जगह शिव के कपाट खुलने लगे हैं।
मिले वरदान जीवन में खुशियों का यही आशा लेकर माता, बहनें आज व्रत रखते हैं। शिव की कठीन उपासना बीन अन जल के करते हैं।
शिव खुश होते हैं उससे जो रात्रि जागरण कर शिव को दुध चढ़ाते हैं।
रात्रि काल तक होती शिव आराधना।
सबके दुःख कष्ट दूर हो जातें हैं।
हो जगत में शिव पार्वती का शुभ विवाह। हृदय से कहो ऊँ नमः शिवाय।
जीवन की पाठशाला
कभी हंसना कभी रोना।
कभी जीवन में विष तो कभी है मधुशाला।
हर पल नये, नये सवालों सेघीरी मेरी जीवन की पाठशाला
बचपन बीती, हंसी खेल में, किशोरावस्था बीती मस्ती में
और जब आई जवानी बीती ज़िन्दगी कमाने और ज़माने में।
अब बुढ़ापा देख रोग, सोख से रोता हूँ।
जिंदगी बीतने को है फिर भी समझ न सका
कैसी है मेरी जीवन की पाठशाला।
सोचा था पढ़ लिखकर नौकरी, व्यापार कर लूंगा,
घर में सुंदर दुल्हन ले आऊंगा तो, जीवन हो जायेगा मेरा निराला।
पर कभी आर्थिक तंगी, कभी शरीर की बीमारी कभी अपनों की चोट खाते चला।
समझ न सका कैसी है मेरी जीवन की पाठशाला।
जाते देखा अपनों को संसार छोड़, जो किये थे जीवन को सफल बनाने को मेहनत जी तोड़
जीवन बीत जाती सुख की तलाश में, पर मीलता नहीं राहत का प्याला।
कैसी है मेरी जीवन की पाठशाला।
केश हो जाते हैं सफेद तो हम डाई कर लेते हैं।
दांत टूट जाये तो नई फैंसी दांत लगवा लेते हैं।
आंख अगर धुंधला देखें तो चश्मा ले लेते हैं।
फिर भी समझ नहीं पाते
जीवन में, खोजते हैं नई मधुशाला।
कोई न समझ पाया क्या है
जीवन की पाठशाला।
विधाता और भविष्य
अतित से सोच बनती हमारी हम कहाँ
भविष्य को जानते है, विधाता के हाथ में है क़िस्मत हमारी नियति को कहाँ हम मानते हैं।
कल क्या होगा, अगला पल क्या होगा हमें ज्ञात नहीं
पर हम अज्ञानी सोचते हैं, हम जो करते है सब होगा सही सही।
यह विधाता के बस में सारा खेल है हम पंतग है उसके वह जैसे उड़ाते हैं हम उड़ते हैं।
पल दो पल के ज़िन्दगी पा कर हम अंहकार में विधाता बन जाते हैं।
मैं कवि बेगाना बस इतना कहना चाहता हूँ।
जी लेना है हर पल को भविष्य को मैं न जानता हूँ।
जीवन की राह
जीवन की राह बड़ी निराली है
सब संसाधन होते हुए भी
मनुष्यता न जाने क्यों खाली है।
अनंत ब्रह्माण्ड में मनुष्य ही सबसे महान् कृति ईश्वर ने रचा है।
जो पुर्ण रूप से सुख दुःख का अहसास कर पाता है।
पर मनुष्य कितना नादान है जीवन कट जाता है।
पर अपने शक्ति को पहचान नहीं पाता है।
चांद तारे पेड़ पौधे अन्य सभी पशु है पर मनुष्य जैसा पुरी ब्रह्माण्ड में कोई नहीं है।
जीवन की राह पर कांटे बहुत है पर कांटों के पार सुंदर फूल भी खिले हैं।
धन्यवाद परमात्मा को जो हमें मनुष्य बनाया।
हंसने, रोने की सुंदर खेल में फंसाया।
आज जीवन में दुःख है तो कल सुख भी होगा।
कहीं नहीं होते स्वर्ग, नरक जीना यह तो मरना भी यही होगा।
नाचों क्यो की ईश्वर ने हमें नाच दिया।
हंसो इसलिए क्यो की ईश्वर ने हमें हंसी दिया।
ग़ौर से देखो दुनिया को पेड़ पौधे, पशु पक्षी हंस नहीं पाते
पर ये कैसा समय आ गया लगता है मनुष्य हंसना भुल गया।
हंसने की चहरे बनाकर दिल में हज़ार दुःख लेकर चलता है।
आज का मनुष्य जीवन की राह में सच्चे दिल से नहीं हंसता है
दिल का हाल
कैसे बताऊँ दिल का हाल कुछ कहाँ भी नहीं जाता चुप रहा भी नहीं जाता है।
ये कैसी मोहब्बत है उसकी वे वफाई से तंग आकर यह दिल उसे छोड़ना चाहता है।
कोई तो बताओ फिर उसे यह दिल क्यो छोड़ नहीं पाता है
वो तो मुझे रूला कर किसी और के यादों के सहारे चैन से सोती है
मेरे दिल की दर्द उसे दिखाई नहीं देती हर पल मुझे तड़पाती है।
पर मैं कैसा आशिक हूँ दिवाने का उसकी हर वे वफाई को सह सकता हूँ।
पर उसे खोना नहीं चाहता
आंखों में आंसू हैं मगर रोना नहीं चाहता।
बस एक उम्मीद है वे वफ़ा यार तुम्हे मेरी सच्ची मोहब्बत की कद्र नहीं।
पर कोई बात नहीं।
मैं जीस दिन मर जाऊँ उस दिन।
सच्चे मोहब्बत की खातिर मेंरे कब्र पर ज़रूर जाना।
दिल में प्यार नहीं मेरे लिए कोई बात नहीं पर
उन सभी सच्चे चाहने वालों के खातिर एक फूल ज़रूर चढ़ा आना।
जागरण
सदियाँ बीत गई जागरण अब तक हुआ नहीं है।
जो दिख रहे जागें हुए सब है भविष्य के सपने में खोए हुए है।
एक बार जो जाग जाता हैं।
फिर वह सपना देख नहीं पाता है।
सपनों की दुनिया बड़ी निराली होती है।
दिखती है सब है मगर असल में सब खाली होती है।
जीवन भर नभ के छीतिज
को छूने को दौड़ता इंसान
कुछ नहीं पाता है।
सपनों को पकड़ने की भुल में होता नहीं जागरण
यह जीवन भी गंवा जाता है।
जय गणेश
जय गणेश जय गणेश।
फिर गूंजा है।
मूसा पर सवार होकर।
सारे दुःख हरने को गणपति बप्पा आया है।
पर इस साल बीमारी ने डराया है
मंदिर भी बंद पड़े हैं।
भगवान कहाँ हो तुम
आ गये गणपति देवा।
अब हर दुःख दूर हो जायेगा।
भारत है पुण्य भूमि।
मुसिबत कब तक रूलायेगा।
जय गणेश जय फिर गूंजा है।
आप दूष्टो को दंड देने वाले
दीन दुखियों के दुःख हरने वाले।
सबके मन में गणेशोत्सव में खुशियाँ छाया है।
जय गणेश जय गणेश फिर गूंजा है।
समय के आगे
समय के आगे कुछ नहीं होता है।
जिंदगी यू ही खोता है।
सब करके भी इंसान खाली हाथ ही रहता है
कभी हंसता कभी रोता है
पल का कोई भरोसा नहीं।
जिंदगी डूब जाती है यही कहीं।
रात की तरह है ज़िन्दगी।
किस्मत का फसाना है।
रुलाती है जिंदगी
फिर ग़म भुलाती है ज़िन्दगी।
यूं ही पहली बनाती है ज़िन्दगी।
समझ आती नहीं ज़िन्दगी।
माया में बीत जाती है ज़िन्दगी।
गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा का चांद आकाश में फैला है।
गुरु की ज्ञान मीटा देती है अज्ञान की अंधकार
धूल गया गुरु का ज्ञान पाकर
जीवन में था जो मैला है।
सच्चा गुरु अगर मील जाता है जीवन में खुशहाली का फूल खिल जाता है।
जगत में हर पल हर क्षण पग-पग में मुसिबत मुंह फैलाए बैठा रहता है।
गुरु हो जीवन में तो हर मुसिबत टल जाता है।
बंद पड़ा क़िस्मत का ताला भी खुल जाता है।
माता गुरु पिता गुरु-गुरु तुम्हारा विवेक है जो इंसान अनुभव से सिखे वह जगत में सबसे नेक है।
शिक्षा गुरु स्कुल में पढ़ना हमको सिखाते हैं माता पिता भाई बंधु जीवन में चलना हमें सिखाते हैं।
सबसे उत्तम गुरु वह होता है जो भवसागर से पार हमें ले जाते हैं।
भौतिक जगत के गुरु हमें तो
बस पदार्थ का ज्ञान देकर नौकरी काम धंधा दुनिया दारी सिखाते हैं।
आत्मा की जगत है अज्ञात
जो जाने आत्मा को येसा गुरु मुश्किल से ही मील पाते हैं।
जीवन सफल उसी का हो जाता है जीसे आत्म ज्ञान गुरु मील जाता है।
येसा ज्ञानी गुरु हमें जीते जी मारकर नया जीवन की परिभाषा बताता है।
जगत है सपना कोई होता नहीं अपना।
सबको अकेला ही जाना है।
जो दिख रहा है जीवन
ये मौत का क़ैद खाना है।
पर गुरु द्वारा हमें जब आत्म ज्ञान मील जाता है मौत झूठ है।
जीवन ही परम सत्य है
यह समझ आता है।
गुरु की महिमा का बखान क्या करूं।
गुरु के दर्शन से ही झूम उठते हैं जगत के सारे जीव और तरु।
गरीब ही मरता है
आये जब मुसीबत गरीब मज़दूर ही मरता है।
आम आदमी का, काम तमाम है।
अंगुर का बोलबाला हो जाता है।
अमीर और अमीर, गरीब और गरीब हो जाता है।
बनती है, जनकल्याण की योजना जीनके नाम पर
उसका कहाँ कल्याण होता है।
गरीबी है बड़ा वायरस
गरीब मज़दूर ही हर पल रोता है।
भगवान भी न जाने कैसा कहर ढाता है।
आराम कर रहे, मजदूरों का गला
रेल काट जाता है।
दुनिया बनाने वालें तेरी तू ही जाने, मरे हुए को ही सब मारते है।
यह बात जगत के हर कोई माने।
सच इस दुनिया से मन भर गया है, मतलब से, आत्मा भी डर
गया है।
अब मन एक प्रेम की दुनिया खोजता है।
न हो जहाँ अमीरी, गरीबी, मज़दूर मालिक एदिल एक, ऐसा जहाँ खोजता है।
जीत जायेंगे हम
हौसला अगर सिने में है।
डर डर के मज़ा नहीं जीने में है।
आज महामारी करोना और हमारे बीच जंग है, जीत जायेंगे, हम पक्का
क्यो की सवा सौ करोड़, देश वासियों का संग है।
हाँ हम आज मजबूर हैं।
भुखा, गरीब मज़दूर हैं।
पर यह संकट की कालिमा।
हटेगी, ख़त्म होगा जल्द यह वायरस।
विजय होगा भारत मेरा।
जीत जायेंगे हम।
किस्मत बनाता है।
इन्सान, फिर किस बात का है ग़म।
हर अंधकार को चीर कर भोर आता है
जिंदगी तो उस मालिक की देन है।
मौत से कौन घबराता है।
अब हम हार नहीं मानेंगे।
लड़ेंगे करोना महामारी से।
भारत को स्वस्थ बनायेंगे।
स्वपन बोस
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