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मेरी आवाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो
नारी होती घर की शोभा,
प्यार करो तुम नारी को।
खुद अनपढ़ रह जाओ भले तुम,
खूब पढ़ाओ नारी को॥
अक्ल के अंधे मत बनना तुम,
बोझ बताकर नारी को।
लड़के को छाती के लगा,
मत दूर भगाना नारी को॥
कभी ब्रह्मा कभी विष्णु बन नारी,
राह दिखाती है जग को,
नई सृष्टि का सर्जन हैं करती,
और मिटाती हैं स्वयं को॥
सुख-दु: ख की ये सांझी होती,
गले लगाना नारी को।
नई चुनौती बन कर उभरी,
न आँख दिखाना नारी को॥
समाज के ठेकेदारों अब तुम,
नया नहीं कोई जाल बुनो,
नारी बन गई है नारायणी,
अब मेरी आवाज़ सुनो॥
बेटी बचाएँ या पढ़ायें
जख्म पर ज़ख़्म वह तो,
सहती चली गई।
मर कर भी
पैगाम-ए-मोहब्बत,
देती चली गई।
उसके दिल में थी जो बातें,
उन्हें तुम्हें बतलाना था।
देखो, सो गई-
जल्दी ही वह,
जिसे कुछ करके,
दिखलाना था।
खुद पढ़ती, औरों को पढ़ाती,
कुछ क़दम तो आगे बढ़ाना था,
स्वयं बचकर-
औरों को बचाती,
थोड़ा दम उसने,
दिखलाना था।
देखे थे, हां
उसने भी सपने,
हकीकत जिन्हें बनाना था,
उसके भीतर-
था कुछ यकीनन,
जिसे दुनिया को बतलाना था।
ओह! मेरे देश की बेटी-
चली गई क्यों,
इतनी दूर तू,
क्या तुझे वापस न,
आना था।
हो गई तू तो-
आंखों से ओझल,
उन दरिंदों को सबक,
सिखलाना था॥
दीप जलाओ
दीप जलाओ अंतर्मन के,
अंतर्मन में सबके।
बिन पहने ही गहना तुम तो,
जलना जगमग करके॥
सोने-चांदी से तो देखो,
फीकी ज्योति खिलती।
दीप जलाकर आत्मज्ञान का,
खुशियाँ कितनी मिलती॥
तम से न घबराकर साथी,
दूर अँधेरा करना।
चक्कर काट तुम परवाने ज्यूं,
जग में ज्योति भरना॥
गुनगुन करते रहना रात-दिन,
हाथ कभी न मलना।
तन-मन को तू मेट के बंदे,
दीपशिखा सम जलना॥
जीवन अमिट हो जाए मिट-मिट,
हँस-हंँस पीड़ा सहना।
श्रम के तेल से ‘मधु’ जले हैं,
बात न तुम फिर कहना॥
हांँ-मांँ
तू है, तो जीवन में खुशियाँ हैं
देखते ही तुझे,
दूर हो जाती है उदासी चेहरे की,
दिल की बातें अब,
दिल में नहीं रहती।
जन्म दात्री है तू,
तभी तो भटकने नहीं देती,
हांँ-मांँ, तू है
तुझसे से ही तो मेरी शान है,
और पहचान भी तुझी से तो है
देख ना-पतवार भी तू ही तो है।
नहीं तो जीवन की नैया कब की डूब जाती।
तेरे दुलार ने पर
भटकने नहीं दिया कभी,
पालनहार भी तो तू ही है।
एक बात कहूं-शुक्रगुजार हूँ मैं।
यह भी सच है
तेरे बिना,
गुलज़ार ना होता,
‘मधुल’ का जीवन॥
मधु गोयल
चंडीगढ़ ऑप्टिकल
गोल मार्किट
कैथल, हरियाणा
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