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मेरा अकेलापन
मेरा अकेलापन
मेरे गमो को मेरे हंशी के पीछे छुपा रहा है
मेरे ख़ुद से प्यार को वह एहसान बता रहा है
मेरे शब्द रोक, वो अपनी कहानी सुना रहा
मेरा अकेला पन॥
मै क्षितिज की अंतिम किरण हूँ
मुझे नया सबेरा बता रहा है।
मै मोम की लाह-सा जल रहा हूँ
वो मेरे अंत को नया आरंभ बता रहा है।
मेरा अकेला पन।
जीत का तमगा है मेरे गले में
पर वह उसे मेरा हार बता रहा है।
आज कल खुश रहता हूँ मैं
वो मन का वहम और रोग बता रहा है।
मेरा अकेला पन॥
कभी मेरे जितने पर मेरे साथ
तो कभी दूसरो के साथ नज़र आ रहा है।
पता नहीं आज कल क्यों अपनों से दूर हूँ मै
ये मर्जी है मेरी, या वह करवा रहा है।
मेरा अकेला पन॥
बवाल क्या करें
अब टूट गया दिल बवाल क्या करें?
मैंने ही पसंद किया था सवाल क्या करें?
जो सुन कर चिखो को अनसुना कर रहा।
वो आएगा! ऐसा सोच कर चाल क्या करें?
अब टूट गया दिल बवाल क्या करें?॥
जो पास रहकर मुझे समझ ना सका।
उसे दूर जाने पर हम उसका ख़्याल क्या करें?
और वह मेरे ख्वाबों में हक़ीक़त बन गया था।
जब ख़्वाब ही नहीं रहा तो इंतज़ार क्या करें?
अब टूट गया दिल बवाल क्या करें?॥
सुना है आजकल बडी खुश है वो।
अब खुसी रहे या दुखी इसपे हम सवाल क्या करें?
किसी ने कहा फ़ेसबुक और इंस्टा पर एकाउंट है उसका।
अब एकाउंट हो या अमाउंट।
इस बात का हम जाल क्या करें?
अब टूट गया दिल बवाल क्या करें?॥
गलती क्या थी?
भूख लगी तुमको तो भोजन मांग लेते हो
प्यास लगी तुमको तो पानी मांग लेते हो।
दर्द हुआ तुम्हे तो दवा मांग लेते हो
चोट लगी कहीं तो दूसरों को दिखा देते हो।
तो, बताओ न उस बेजुबान की गलती क्या थी?
जिस पर्यावरण से जीवन सबका,
उस पर्यावरण का अंग थी वो।
तुम तो चैन से जी रहे थे,
क्या तुम्हारी शांति भंग की वो।
तो, बताओ न उस बेजुबान की गलती क्या थी?
जिस मासूम ने अभी दुनिया देखी ना थी,
मां ने जिस चेहरा को निरेखी ना थी।
उस मासूम को भी ना छोड़ा तुमने,
इंसानियत को इस क़दर तोड़ा_मरोड़ा तुमने।
तो, बताओ न उस बेजुबान की गलती क्या थी?
अगर बिछा न सको फूल राहों में,
तो कांटे क्यों बिखेरते हो।
उनके जीवन से जुड़ी है हम सब की,
जीवन की डोरी इस सच से मुंह क्यों फेरते हो।
तो बताओ न उस बेजुबान की गलती क्या थी?
अगर समय रहते तुम परिवर्तन नहीं लाओगे
तो ख़ुद कल के गाल में एक दिन स्मा जाओगे।
और, तब बताओगे उस बेजुबान की गलती ना थी,
उस बेजुबान की गलती ना थी॥।
एक पल का प्यार
जब भी मिले वक़्त कम था
कभी मौसम तो कभी आंखे नम था।
तेरे मुस्काने पर मेरा खिलखिलाना
मेरे सरारतो पर तेरा रुठ जाना कम था।
अगर कुछ ज़्यादा था तो उस एक पल का प्यार।
मेरे आंखे मिलने पर तेरा आंखे चुराना
तेरे ढूँढने पर मेरा छिप जाना काम था।
तुझे देख कर मेरा सब कुछ भूल जाना
मुझसे बातें करने में तेरा सर्मना काम था।
अगर कुछ ज़्यादा था तो उस एक पल का प्यार।
मेरे बातो में तेरा फ़िक्र काम था
तेरी बातो में मेरा ज़िक्र कम था।
बस देख कर तुझे मेरा दिन बन जाना
और सुन के मुझे तेरा दिन ढल जाना काम था।
अगर कुछ ज़्यादा था तो उस एक पल का प्यार।
बाते किए बिना मेरा महीनों बिताना
फिर बाते सुरु करते ही तेरा झगड जाना काम था।
मेरा तेरे बलो को संवारना
तेरा मेरे चेहरे को निहारना काम था।
अगर कुछ ज़्यादा था तो उस एक पल का प्यार।
जिंदगी
कभी उत्साह का पहाड़ बनता हृदय में,
तो अगले ही पल डर का समन्दर दिखा देती है।
कभी खुशियों के छतरी से ढक लेती मुझे,
तो कभी गमों के बारिश में भीगा देती है।
कभी ज़िन्दगी नज़रे मिलती मुझसे,
तो कभी नज़रे चुरा लेती है।
कभी महाराजाओं-सा एहसास देती मुझे,
तो अगले ही पल हाल फकीरों का भी बता देती है।
कभी बनाती रहती खाबो का सागर हर पल,
तो कभी ख्वाहिशों की रेगिस्तान से मिला देती है।
कभी ज़िन्दगी नज़रे मिलती मुझसे,
तो कभी नज़रे चुरा लेती है।
कभी दुनियाँ की खुशियों का कारण बता कर हंसती मुझे,
तो अगले ही पल कारण दुःख का भी सुना देती है।
कभी फरेबियो से दूर अपनो के पास रखती मुझे,
तो कभी अपनो का फ़रेब भी दिखा देती है।
कभी ज़िन्दगी नज़रे मिलती मुझसे,
तो कभी नज़रे चुरा लेती है।
लोगो को लगता है, कोई ठिकाना नहीं मेरी इस ज़िन्दगी का,
पर सच तो ये है हर पल नया आशियाना बना लेती है
कभी ज़िन्दगी नज़रे मिलती मुझसे,
तो कभी नज़रे चुरा लेती है।
सोनू कुमार पाण्डेय
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