
मदद
मदद: दीपक मध्यम वर्गीय परिवार से था उसने BE तक पढ़ाई की थी, उसकी शादी सुजाता से हुई थी। सुजाता बहुत ही सुलझी हुई महिला थी। उनके दो बच्चे थे। दीपक एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था। पर वह अक्सर देर से ऑफिस पहुँचता था, क्योंकि रास्ते में दूसरों की मदद करने लगता था, जैसे कोई दिव्यांग दिख गया तो उसे रास्ता पार करवाता। भिखारियों को दुकान से बिस्कुट खरीद कर देता, मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए रुक जाता, इसलिए अक्सर उसे देर हो जाती थी। बास उसे केबिन में बुलाकर डांट देते थे। दीपक कहता सर आइंदा ध्यान रखूंगा।
दीपक अपने कार्य के प्रति बहुत ही ईमानदार और बहुत ही मेहनती था। वह देर तक रुक कर अपना पूरा काम करता था। एक दिन बास बहुत गुस्से में थे। दीपक के पहुँचते ही उस पर बरस पड़े, उन्होंने कहा कि अगर समय पर ऑफिस नहीं आ सकते तो आने की कोई ज़रूरत नहीं है, नौकरी छोड़ दो। अगर अब तुम्हें देर हुई तो इस्तिफा साथ लेकर आना। दूसरे दिन दीपक ने सोचा मैं आज आधा घंटा पहले ही ऑफिस में पहुँच जाऊंगा। जल्दी-जल्दी तैयार होकर अपना टिफिन लेकर घर से निकल गया कुछ ही दूर जाकर देखता है कि सामने बहुत भीड़ लगी है। पास जाकर पता चला कि बाइक और कार का एक्सीडेंट हो गया है और एक नौजवान सड़क पर पड़ा हुआ है और उसे सिर से खून बह रहा है, सब देख रहे थे लेकिन कोई कुछ नहीं कर रहा था। दीपक ने अपना स्कूटर एक किनारे पर रखा और एक व्यक्ति की मदद से उसे अस्पताल पहुँचाया, उस नौजवान की हालत देखकर डॉक्टर लोग उसे ऑपरेशन थिएटर ले गए वहाँ इसका इलाज़ शुरू हुआ। अधिक खून बह जाने के कारण तुरंत खून चाहिए था। दीपक ने अपना ब्लड ग्रुप टेस्ट करवाया, तो उसका खून उस नौजवान के खून से मैच हो गया। दीपक ने अपना खून दिया, और करीब ३ घंटे तक अस्पताल में रहा। डाक्टरों ने कहा कि आप इसे १० मिनट की देर से लाते तो इसका बचना मुश्किल था।
दीपक को जब पता चला कि अब वह खतरे से बाहर है तो वह आफिस जाने के लिए निकला, लेकिन जाने से पहले वह त्याग पत्र लिख लिया, क्योंकि उसे मालूम था कि आज तो उसकी नौकरी चली जाएगी, पर उसके मन में यह संतोष था कि भले नौकरी जाती है तो जाए दूसरी नौकरी लग जाएगी परंतु मैंने किसी की जान बचाई है, अगर जान एक बार चली गई, तो वापस नहीं आएगी, दीपक जैसे ही ऑफिस में पहुँचा, तो वहाँ की स्थिति कुछ और थी सभी कर्मचारी खड़े होकर उसका स्वागत कर रहे हैं, और तालियाँ बजा रहे हैं, उसकी समझ में कुछ नहीं आया कि ये सब क्या हो रहा है। दीपक को सबने बिठाया, उसे-उसे धन्यवाद दिया तथा उसे चाय पिलाई, तब पता चला कि दीपक तुमने आज जिस नौजवान की जान बचाई है, वह कोई और नहीं बॉस का बेटा राजीव है। तुमने बहुत ही नेक काम किया है।
दीपक को उस दिन सुकून से नींद आई, दूसरे दिन जब ऑफिस पहुँचा तो बहुत से सामना बास से हुआ। दीपक ने राजीव के बारे में पूछा, सर राजीव की तबीयत कैसी है? इतना कहना था कि बास ने राजीव को गले से लगा लिया और कहा मैं तुम्हारा अहसान कभी नहीं भूलूंगा, तुमने मेरे बेटे की जान बचाई है। बॉस ने दीपक का प्रमोशन कर दिया उसे मैनेजर का पद दे दिया और १५ अगस्त के दिन उसका सम्मान भी हुआ।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है यह हमें मदद के लिए हमेशा निस्वार्थ रूप से तैयार रहना चाहिए और जितना हो सके सबकी मदद करनी चाहिए।
श्रीमती शोभा रानी तिवारी
६१९ अक्षत अपार्टमेंट खातीवाला टैंक इंदौर
मध्य प्रदेश
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