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मकर संक्रांति
मकर संक्रांति: एस के कपूर
सूर्य का उत्तरायण में और
होता मकर राशि में प्रवेश।
खिचड़ी, मक्का, तिल, गुड़ और
मूंगफली का इसमें समावेश॥
पतंगबाजी के पेचों का बहुत
महत्त्व मकर संक्रांति में।
बसंतआगमन ऋतु परिवर्तन का
समाहित इस में गणवेश॥
विभिन्न स्थानों प्रदेशों में पर्व के
भिन्न भिन्न हैं नाम।
लोहड़ी बिहू पोंगल उत्तरायण
नामकरण हैं तमाम॥
खिचड़ी सहभोज व दान का है
विशेष महत्त्व इस दिन।
शुभकार्यऔर महूर्त फलित सिद्ध
होते हैं अब सुजान॥
हमारा व्यवहार और संकल्प शक्ति
अल्फ़ाज़ महक जायें तो लगाव
बहक जायें तो घाव देते हैं।
मौका और दस्तूर देख कर ही
शब्द भाव देते हैं॥
शब्द ही मरहम और हैं तीर
तलवार जैसे भी।
यही शब्द मित्र और शत्रु बनाने
का चुनाव देते हैं॥
बड़े लक्ष्य और अच्छे विचार
आदमी की शक्ति बढ़ाते हैं।
सही दृषिकोंण जीवन में उचित
रास्ता बतलाते हैं॥
राह और सोच अच्छी हो तो
जीवन जाता है बन।
हम कोशिश करें तो आसमाँ
से तारे तोड़ लाते हैं॥
वक़्त कब क्या रंग दिखाये कोई
जानता नहीं है।
लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति वाला हार
मानता नहीं है॥
समस्याएँ हमें कमजोर नहींआती
हैं मज़बूत बनाने को।
ठान लिया जिसने जीवन में वो
हारता नहीं है॥
जीवन के सफ़र
काँटों में खिलते गुलाब से
हमें सीखना होगा।
चुनौतियों में भी दृढ़ हम
को दीखना होगा॥
संकल्प शक्ति ही काफ़ी है
जीवन संवारने को।
पाने को सुख दुःख में भी
दर्द को लीलना होगा॥
ओस की बूंद-सा होता है
जीवन का सफर।
कभी फूल या धूल में होता है
जीवन का सफर॥
बिखरने के लिए नहीं मिला
ये एक मात्र अवसर।
संवारने संवरने के लिए होता है
जीवन का सफर॥
व्यक्ति की सच्चाईऔर अच्छाई
कभी नहीं व्यर्थ जाती है।
कर्म की पूजा ही जीवन में
सच्चा अर्थ पाती है॥
अच्छे के साथ अच्छा और बुरे
के बुरा होकर है रहता।
यदि आ जाये दुर्भावना तो यह
जीवन मेंअनर्थ ही लाती है॥
जो गिर कर उठता बार बार
गिर गिर कर फिर भी तुम संभलना सीखो।
डूब कर भी तुम दुबारा उबरना सीखो॥
विनाश नहीं सर्जन ही तो
होता है जीवन।
मिट भी जाये ग़र तो फिर
से लिखना सीखो॥
बिखर कर दुबारा निखरना ही तो जीत है।
सदा आगे की सोचो जो
बीत गया अतीत है॥
हमारी सोच आत्म विश्वास
मीत हैं सबसे बड़े।
जो निकलता भय से आगे
बनता अभिजीत है॥
मुश्किल तो भी कुछ अच्छा
अच्छा गुनगुनाओ तुम।
तकलीफ में भी ज़रा सा मुस्कराओ तुम॥
जीवन इक गीत की तरह सोचो कैसे गाना है।
हर परिस्थिति को खूबसूरती से निभाओ तुम॥
व्यक्तित्व की अलग इक अपनी वाणी होती है।
वक़्त खिलाफ में ही तेरी याद कहानी होती है॥
धारा के विपरीत पता चलता आंतरिक शक्ति का।
तब तेरी निर्णय क्षमता फिर पहचान निशानी होती है॥
हिन्दी नव् वर्ष नव संवत्सर
फसल चक्र ऋतु परिवर्तन का
संकेत है हिन्दी नव वर्ष।
नव रात्री के जयकारों से होता
व्याप्त सब में भक्ति हर्ष॥
सूर्य चंद्रमा दिशा परिवर्तन और
जुड़ी कृषकों की ख़ुशहाली।
विक्रमादित्य भगवान झूले लाल
से भी जुड़ा ऐतिहासिक स्पर्श॥
हिन्दी नव वर्ष नव संवत्सर तो
नये मौसम का आगाज है।
देवी माँ और आर्यसमाज कृपा व
मिला संस्कारों का साज़ है॥
क्या जनवरी अंग्रेज़ी वर्ष में है
कोई भी ऐसा परिवर्तन।
नव संवत्सर तो ५७ वर्षों की
लिए अधिक आवाज़ है॥
जनवरी नव वर्ष के साथ मनाये
अवश्य हिन्दी नव वर्ष भी।
बधाई दें सबको नव संवत्सर
की अवश्य और सहर्ष भी॥
अपने पुरातन मूल्यों का हो
अधिक से अधिक प्रसार।
कभी भूल नहीं पाये कोई इस
का महत्त्व और दर्श भी॥
अब तक जवान होली है
१…
प्रेम का निशान हमारी, पावन होली है।
भाई. चारे की बोलती जवान होली है॥
रंगों की शीतल फुहार है यह होली।
हर दिल में घुलता, गुलाल होली है॥
२
प्यार का बढ़ता कारवां होली है।
गिरा दे जो नफ़रत की, दीवार होली है॥
होली तो है दिलों से, दिलों का मिलाप।
कैसे मिटें दूरियाँ जवाब, इसका होली है॥
३
गुज़िया, भंग, तरंग नाम, इसका होली है।
रंगा रंग रंगों का ज़मीं, आसमाँ होली है॥
होली है हर फूल पत्ते, पर खिलता निखार।
बीत गई सदियाँ अब, तक जवान होली है॥
४
मिल मिल कर गले खूब, रंग लगाते हैं लोग।
हर क़दम पर ख़ूब, होली जलाते हैं लोग॥
मानेंगे नफ़रत की, दीवारें जलेंगी दहन में।
तभी लगेगा सच्ची होली, मनाते हैं लोग॥
कलम का सिपाही
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥
मैं राजनीति का मंच हूँ।
मैं लिये व्यंग का तंज हूँ।
मैं विरोधी पर पंच हूँ॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥
मैं भूख का निवाला हूँ।
मैं मंदिर ओ शिवाला हूँ।
मैं देश का रखवाला हूँ॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥।
मैं सबकी सुनता कहता हूँ।
नहीं अपने में ही रहता हूँ।
शीतल जल-सा बहता हूँ॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥॥
मैं शिकारी भी हूँ।
मैं ख़ुद शिकार भी हूँ।
पर रहता खबरदार भी हूँ॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥॥
मैं रखता हर ख़बर हूँ।
मैं करता खबरदार भी हूँ।
मानो तो मैं अख़बार ही हूँ॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥॥
मुझ से तेज़ धीमा नहीं है।
मेरे-सा कोई नगीना नहीं है।
मेरी तो कोई सीमा नहीं है॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥॥
मैं बच्चों का उत्पात हूँ।
मैं बड़ों का वादविवाद हूँ।
मैं बुजर्गों का आशीर्वाद हूँ॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥॥
मैं ऊपर ऊंचा नभ-सा हूँ।
मैं कठोर जैसे थल-सा हूँ।
मैं कलकल बहता जल-सा हूँ॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥।
में जीवन का मर्म हूँ।
मैं सख्त और नर्म हूँ।
मैं धर्म और कर्म हूँ॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥।
मैं गरीब की हाय हूँ।
नहीं मैं असहाय हूँ।
मैं सर्वपंथ सुखाय हूँ॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥।
मैं समाज का दर्पण हूँ।
मैं ईश चरणों में अर्पण हूँ।
मैं सूचनाओं को समर्पण हूँ॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥।
मैं मन का स्पंदन हूँ।
मैं राष्ट्र का वंदन हूँ।
मैं सच का अभिनंदन हूँ॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥।
मैं शब्द भी हूँ।
मैं निःशब्द भी हूँ।
मैं सदैव उपलब्ध भी हूँ॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥॥
भूत, भविष्य, वर्तमान बात बतलाता हूँ।
लोगो को सचेत कर के भी जागता हूँ।
कलम के आईने से हक़ीक़त दिखलाता हूँ।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥॥
मेरी दुर्गम-सी डगर है।
मुझमे भी अगर मगर है।
मेरी वाणी अजर अमर है॥
मैं एक कलम का सिपाही हूँ॥।
अपने किरदार को जियें
आओ करें दुनिया में कुछ
काम हम ऐसा।
दुनिया चाहे बनना फिर
हम ही जैसा॥
किरदार को जियें ज़िन्दगी में
ऐसी शिद्दत से।
जाने से पहले बनाये अपना
नाम कुछ हम वैसा॥
विश्वास झलके हमारे हर
किरदार में।
कुछ कर गुजरने का यकीन
हो चाल ढाल में॥
जान लो हमारे शरीर का हर
अंग बोलता है।
इनकी मौन भाषा बोले हमारे
हर सरोकार में॥
अरमान रखो कि आसमां से
बात करनी है।
हो कैसी भी चुनौती हमें
लड़ाई लड़नी है॥
हो इरादा मज़बूत तकलीफ
तो महसूस नहीं होती।
अपने हर किरदार में बस ये
बात धरनी है॥
मिट्टी का बदन और साँसें
मिट्टी का बदन और साँसे
बस उधार की हैं।
जाने घमंड किस चीज़ का
बात विचार की है॥
आदमी बस इक किरायेदार
मेहमान कुछ दिन का।
नहीं उसकी हैसियत यहाँ पर
जमींदार की है॥
जिन्दगी हमें हर मोड़ पर
रोज़ आज़माती है।
कुछ नई रोज़ हमें बतलाती
और सिखलाती है॥
सुनते नहीं हम बातअंतरात्मा
की अपने स्वार्थ में।
ईश्वरीय शक्तियाँ भी हमें यह
बात जतलाती हैं॥
उम्मीद की ऊर्जा से अंधेरें में
भी रोशनी कर सकते हैं।
भीतर के उजाले से हम मन
मस्तिष्क भर सकते हैं॥
जो कुछ करते हम दूसरों के
लिये दुनिया में।
बस उसी सरोकार के सहारे हर
जंग हम लड़ सकते हैं॥
एक अवगुण
क्रोध जलते कोयले सा
जो तूने पकड़ रखा है।
इस घृणा की अग्नि ने
तुझे जकड़ रखा है॥
यह आग तुझ को भी
जला कर ख़ाक करेगी।
इसी अहम भाव ने तेरे
भाग्य को रगड़ रखा है॥
क्रोध आता नहीं अकेले
लेकर आता है चार।
क्रोध के साथी तो ईर्ष्या
और आ जाता अहंकार॥
दूसरे का नहीं अपना
होता अधिक नुकसान।
नम्रता हो जाती विलुप्त
और लाता है अंधकार॥
सोच विचार दृष्टि पर
छा जाती मैली चादर।
मानसिकता मनुष्य की
भूल जाती भाव आदर॥
कलुष भावना का लग
जाता ग्रहण आदमी को।
आदत हर किसी का
करती जाती है अनादर॥
क्रोध का त्याग ही उन्नति
का मार्ग प्रशस्त करता है।
आदमी होता लोकप्रिय
तेजी से आगे बढ़ता है॥
सौ गुण व्यक्ति के होने
होने लगते हैं उजागर।
जो एकअवगुण क्रोध का
बस मनुष्य तजता है॥
बचाव ही इलाज़ है
जान लीजिये कि अभी भी
कॅरोना के प्रति जंग जारी है।
अभी ख़ूब सावधानी रखिये
कि समय चल रहा भारी है॥
अभी तो केवल बचाव ही
है बस एक मात्र इलाज।
सामाजिक दूरी पालन करिये
जब तक दूर न हो दुश्वारी है॥
कोशिश जारी है बनाने को
दवा टीका वैक्सीन इसकी।
प्राण घातक बीमारी है जाने
कब जान ले-ले किसकी॥
निकले केवल आप अभी
मास्क लगा कर ही बाहर।
बस वह ही लापरवाही बरते
कि शामत आई हो जिसकी॥
चुनौती है बहुत बड़ी कि आई
है शताब्दी में केवल इक बार।
परेशानी तो है बहुत मुसीबत
कि जा सकती हर इक द्वार॥
सीखा रहा कॅरोना बहुत कुछ
कोशिश करें जानने शिक्षा की।
बस बच कर रहें इस कॅरोना से
जो बना देती है इक लाचार॥
भविष्य का निर्माण
शिक्षक हमें पढ़ाता और
शिक्षक ही संवारता है।
शिक्षक ही तो उचित
ज्ञान हम पर वारता है॥
हमें देता है वह एक
सही दिशा और सम्मति।
जीवन नव निर्माण लिये
शिक्षक ही सुधारता है॥
माता पिताऔर गुरु हमारे
जीवन के निर्माता हैं।
जान लीजिये यही तीनों
ही हमारे भाग्यविधाता हैं॥
माँ तो होती है बच्चों की
प्रथम शिक्षकऔर पालक।
शिक्षक ही हमारा पथ
प्रदर्शक और ज्ञान दाता है॥
शिक्षक ही हमें विषयों का
सही ज्ञान बताता है।
वही नैतिकता मानवता
का पाठ भी पढ़ाता है॥
गुरु ऋण से अवमुक्त हो
नहीं सकते हैं जीवन भर।
शिक्षक ही हमारे भविष्य
का निर्माण कराता है॥
गुरु जनों का आदर तुम
जीवन भर भरते रहना।
उनके आशीष वचनों से
जीवनअपना गढ़ते रहना॥
उनके आशीर्वाद का हर
कण तुम्हारा सफलता मंत्र
अपने गुरुजनों का आभार
जीवन भर करते रहना॥
आदमी खिलौना मिट्टी का
आदमी खिलौना मिट्टी का
पर फना होने से डरता है।
कर्म की चिन्ता नहीं अमर
होने की कामना करता है॥
मौत पर काबू नहीं और
बस नहीं है ज़िन्दगी पर।
मिली इक छोटी-सी जिंदगी
जाने कितना पाप भरता है॥
क्या होते जीवन के अर्थ ये
तो कभी सोचता नहीं है।
किसी ग़लत बात को भी
सामने से रोकता नहीं है॥
अपनी स्वार्थ की नाव पर ही
उसपर सदैव रहता है सवार।
अपने कर्मों का फल स्वेच्छा
से कभी भी भोगता नहीं है॥
नफरत ईर्ष्या से ही सदा
सरोकार बनाये रखता है।
सहयोग परोपकार की बात
बस जबानी ही भरता है॥
जीवन को जीवन की भांति
कभी नहीं है वह जीता।
कुछ थोड़ा पाने को जीवन भर
बहुत कुछ खोया करता है॥
यादों की सौगात
सफर में मुश्किलें चाहे
हज़ार क्यों न हों।
रास्तों में तकलीफों की
भरमार क्यों न हो॥
धारा के विपरीत ही तो
है चलना परीक्षा।
फिर चाहे कठनाईयों की
ही बौछार क्यों न हो॥
एक दिन तेरा भी जीवन
अतीत हो जायेगा।
होंगें कर्म अच्छे तो यादों
का गीत हो जायेगा॥
रहेगा घात प्रतिघात ही
जीवन में सदा।
बस मिलकर ज़मीं में मिट्टी
सा प्रतीत हो जायेगा॥
बनोगेअच्छे तो एक अनमोल
सौगात हो जायोगे।
बाद जीवन के भी तुम यादों
की बारात हो जायोगे॥
रहेगा जब जीवन में नफरतों
का कुछ घाल मेल।
जान लो तुम फिर एक भूली
बिसरी बात हो जायोगे॥
अब मैं कहलाता नहीं इंसान हूँ
एक रोज़ एक राक्षस और भूत
के सामने एक आदमी आ गया।
दोंनों का चेहरा आदमी को देख
एक दम सकपका गया॥
आदमी बोला हटो सामने से,
जानते नहीं मैं कौन हूँ।
मैं मानव भी हूँ।
मैं दानव भी हूँ॥
तुम दोंनों को मुझ से डरना चाहिये।
अपनी रक्षा का उपाय करना चाहिये॥
मैं नारी की भांति तुम दोनों को भी
मसल सकता हूँ।
तुझ से पहले मैं अपने स्वार्थ के
मौके लपक सकता हूँ॥
तुम क्या हो भूत प्रेत पिशाच चुड़ैल क्या हो तुम।
पर मुझ से तेरा कोई मुकाबला नहीं है।
अब तेरा मेरा कोई साबका नहीं है॥
तुझ से मनुष्य जाति अब डरती नहीं है।
बचने को तुझसे कोई जादू टोना करती नहीं है॥
अब आदमी-आदमी से बचने को तंत्र मंत्र करता है।
किसी के किये का पाप आदमी दूसरा भरता है॥
अब मेरे काटे का कोई ईलाज नहीं है।
मेरे जैसा तेरे पास कोई रियाज़ नहीं है॥
जिस पेड़ पर तू रहता है वह मैं काट देता हूँ।
भाई को भाई से बाँट देता हूँ॥
मत रोक मेरा रास्ता मुझे जाने दे।
अपनी खैर को ज़रा मनाने दे॥
मैं सांप नाथ से भी अधिक खतरनाक हूँ।
मैं नागनाथ-सा भी एक विश्वास घात हूँ॥
मैं हैवान हूँ॥
मैं शैतान हूँ॥
मैं अब कहलाता नहीं इंसान हूँ॥
दूसरी पारी की शुरुआत
अभी भी छूने को ऊपर
ऊंचा-सा आसमान है।
एक वरिष्ठ नागरिक का
अनुभव तो महान है॥
सेवा निर्वती तो अंत नहीं
है इस जीवन का।
इसके बाद भी कर्म श्रम
पहचान सम्मान है॥
हर इक वरिष्ठ नागरिक
ज्ञान की खान होता है।
अपने में अनुभव समेटे
एक वरदान होता है॥
समाज का होता है वह
एक पथ प्रदर्शक।
वह समझ बूझ का सम्पूर्ण
एक पुराण होता है॥
दायित्व है उसके कंधों पर
नई पीढ़ी को सिखाने का।
अपने संस्कार संस्कृति की
हर बात बताने का॥
समाज परिवार का मुखिया
रास्ता भी दिखाना है।
भार भी सर पर कुप्रथाओं
से समाज को बचाने का॥
वरिष्ठ नागरिक बनकर छिपी
प्रतिभा को आप जगाइये।
अपनी सुप्त अभिरुचियों को
फिर से आप महकाइये॥
यह तो आप की दूसरी पारी
की नई शुरुआत है।
कुछ नया-सा करके लोगों के
सामने आप लाईये॥
कैसा हो जीवन हमारा
इक उम्र बीत जाती है
कोई रिश्ता बनाने में।
जिंदगी होती है खर्च
एक सम्बंध कमाने में॥
अनमोल धरोहर होती है
रिश्तों की जमा पूंजी।
मत लुटा देना ये धन
यूँ ही अनजाने में॥
हमारे जीवन में एक
ईमान होना चाहिये।
सवेंदनायों का हममें नहीं
शमशान होना चाहिये॥
कोई रखता परिंदों के लिये
बंदूक तो कोई पानी।
जान लो जीवन में पाने को
इक मुकाम होना चाहिये॥
ज़रूरत नहीं खुदा बनने की
मेहरबान होना चाहिये।
भावनाओं से पूर्णआदमी को
दयावान होना चाहिये॥
मत छू सको आसमाँ ऊंचा
तो कोई बात नहीं।
बस आदमी को एक अच्छा
इन्सान होना चाहिये॥
अपनी वाणी से ही
आदमी की असली पहचान तो
उसकी ज़ुबान से होती है।
होता दूसरों पर कितना वह
मेहरबान से होती है॥
हर दिल में जगह आदमी
की यूँ ही नहीं बनती।
व्यक्ति की पहचान ही उसके
इसी भान से होती है॥
बोलिये यूँ कि दूसरों के दिल
में आप उतर जाईये।
सवेंदनायों का ज्वार बातों में
भर कर ज़रा लाईये॥
लफ्ज़ और लहज़ा जो जाकर
अंतर्मन को छू जाये।
मत बोलिये कभी यूँ कि दिल
से किसी के उतर आईये॥
वाणी से ही मनुष्य का हर
गुण गान होता है।
मान अपमान वाणी से ही व्यक्ति
का सम्मान होता है॥
अमृत ज़हर दोंनों ही हैं हमारी
जिव्हा में समाये।
अपने अंदाज़े बयाँ से ही आदमी
खासों आम होता है॥
सफर जारी रखो
अभी सफ़र में हूँ कि अभी
बहुत दूर जाना है।
जिन्दगी को दिये कई वादों
को निभाना है॥
पूरे करने हैं हर अधूरे से
अरमान दिल के।
ऊपर ऊंचे आसमां को छू
कर भी आना है॥
मशाल बन कर दुनिया के
लिये बेमिसाल बनना है।
रास्ता दिखाना औरों को कि
एक मिसाल गढ़ना है॥
देश की तक़दीर तस्वीर बदलने
में हिस्सेदारी है निभानी।
लकीर से हट कर कुछ काम
नया करना है॥
चीर कर अंधेरों को आशा की
नई किरण जगानी है।
हर भोर हमें कुछ नई सुनहरी
सी धुन सुनानी है॥
कर लिया काफ़ी पर अभी भी
है काम बाक़ी बहुत।
मिलकर एक नई-सी स्वर्णिम
दुनिया बनानी है॥
जिन्दगी
जिन्दगी रोज़ थोड़ी-थोड़ी
व्यतीत हो रही है।
कुछ कुछ ज़िन्दगी रोज़
ही अतीत हो रही है॥
जिन्दगी जीते नहीं आज
हमें जैसी जीनी चाहिये।
कल आएगी मौत सुनकर
बस भयभीत हो रही है॥
कांटों से कर लो दोस्ती गमों
से भी याराना कर लो।
हँसने बोलने को कुछ न
कुछ तुम बहाना कर लो॥
मायूसी मान लो रास्ता है
इक ज़िंदा मौत का।
हर बात लो नहीं दिल पर
मिज़ाज़ शायराना कर लो॥
जिंदगी जीनी चाहिए कुछ
अंदाज़ कुछ नज़रंदाज़ से।
हवा चल रही हो उल्टी फिर
भी खुशनुमा मिज़ाज़ से॥
मिलती नहीं है ख़ुशी बाजार
से किसी मोल भाव में।
बस खुश होकर ही जियो
हालातों के लिहाज से॥
सुख से जीना है तो उलझनों
को तुम सहेली बना लो।
मत हर छोटी बड़ी बात को
तुम पहेली बना लो॥
समझो ज़िन्दगी के हर
बात और जज़्बात को।
नाचेगी इशारों पर तुम्हारे
जिंदगीअपनी चेली बना लो॥
मत हारो ज़िन्दगी से तुम कभी
मत हारो ज़िन्दगी से कि ये
प्रभु का वरदान होती है।
पूरे करने को कुछ सपने
वह अरमान होती है॥
मत छोड़ना मैदान तुम कभी
बीच मझधार में।
हार गये ग़र तुम मन से तो
फिर ये गुमनाम होती है॥
माना ग़म बहुत हैं इस जमाने
में पर तुम बिखरो नहीं।
गिरो उठो संभलो चलो और
फिर भी तुम निखरों यहीं॥
पूरे करने को देखो सपने पर
जुड़े भी रहो हक़ीक़त से।
पर भाग कर तुम इस दौड़
से मत खिसको कहीं॥
हर रंज़ोग़म ज़िन्दगी से कभी ऊपर नहीं है।
हार जायो तुम तो भी जिन्दगी जीना दूभर नहीं है॥
मत रुखसत हो दुनिया से कभी
बेनाम निराश होकर।
जान लो संसार में कभी भी कोई सुपर नहीं है॥
तनाव में भी ख़ुद जान ले लेना
कहलाती बस नादानी है।
सुख दुःख चलते साथ-साथ बस
यही जीवन की रवानी है॥
यही ज़िन्दगी की मांगऔर हमारी
है जिम्मेदारी भी।
गर सितारें हों गर्दिश में तो तुम
खुद लिखो नई कहानी है॥
चल कर धारा के विपरीत भी तुम सच में ख़्वाब बनो।
जिसकी रौनक ख़ुद छा जाये तुम वह शबाब बनो॥
असंभव शब्द में ख़ुद ही छिपा है सम्भव शब्द भी।
ठान लो बस मन में कि तुम एक हीरा नायाब बनो॥
कॅरोना फैल रहा है
कहाँ जा रहे हैं आप कि ये
कॅरोना बाहर ही खड़ा है।
गया नहीं कॅरोना अभी कि
अपनी ज़िद पर अड़ा है॥
अनलॉक ज़रूर हुआ है
पर आर्थिक गति के लिये।
पर आप रहें संभल कर ही
कि ये संकट बहुत बड़ा है॥
हाथ धोते रहें बार-बार जब
भी कुछ करें नया आप।
पता नहीं कि कहाँ पर है
कॅरोना ने छोड़ी कोई छाप॥
सावधानी हटी दुर्घटना घटी
बिलकुल सिद्ध है आज तो।
कि अनजाने में न ओढ़ कर
बैठ जायें कॅरोना का लिहाफ॥
दो ग़ज़ दूरी, नियमित गरारे,
और चेहरे पर लगा रहे मास्क।
सैनिटाइजर पास में और जायें
बाहर जब ज़रूरी हो टास्क॥
बचाव ही सुरक्षा और देखो
जान जहान दोनों एक साथ।
आज की तारीख घर अपना
“बेस्ट डील दैट रियली रॉक्स”॥
न जायें बाहर निकल कि नहीं
कॅरोना से कोई कोना खाली।
मत खेलो जान से तुम कि यह
पड़ेगा खिलौना बहुत भारी॥
यह अदृश्य विषाणु है कुछ
ज़रूरत से ज़्यादा ही संक्रमित।
बस रहें आप ज़रा सतर्कता से
क्यों लाये रोना धोना ये बबाली॥
हे चीन मत लांघना सीमा को
आज चीन पर रहा किसी को विश्वास नहीं है।
अपने अतिरिक्त उसको कोई एहसास नहीं है॥
पूरी दुनिया का यक़ीन मिट
चुका है इसकी चालों से।
काम ज़मीन हड़पने का
शांति की तलाश नहीं है॥
चीन की नीयत ग़लत इरादे बहुत खतरनाक हैं।
उसके एक वाइरस से दुनिया पूरी आज आवाक है॥
वह कर रहा युद्ध की तैयारी
इस संकट काल में भी।
उसके कारण ही आज आधी
सी दुनिया लॉक है॥
चीन अपना व्यापार और बस
उसको विस्तार चाहिये।
पड़ोसियों को करके गुमराह
अपना रोजगार चाहिए॥
लेकिन भारत की ललकार
सुन ले ओ दुष्ट चीन।
सीमा मत लांघना यदि तुझको
अपना घर परिवार चाहिये॥
सुन ले ए चीन भारत से तू टकराना नहीं
हे सुन लो चीन हमसे तुम टकराना नहीं।
भारत ने बस सीखा है कभी घबराना नहीं॥
वक़्त आने पर चीन तुझको औकात बता देंगें।
बस भारत की शौर्य गाथा को कभी भुलाना नहीं॥
हे चीन हम समझ चुके हैं तेरे हर चक्रव्यूह को।
जान चुके तेरे सब सच झूठ और हर कब कौन क्यों को॥
तेरी हर फरेबी जाहिर हो चुकी है पूरे जहान में।
दुनिया का हर देश समझ चुका तेरी हर हाँ ना यूँ को॥
मत शामत बुला चीन कि तेरी जवानी हिला देंगें।
नभ, जल, थल में तेरी रवानी को ही भुला देंगें॥
अपने पड़ोसियों की ज़मीन को हड़पना काम तेरा।
तेरी विस्तार वादी नीति को हम बीती कहानी बना देंगें॥
एस के कपूर “श्री हंस”
बरेली
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