बेटी चालीसा
बेटी चालीसा ~ कन्हैया साहू ‘अमित’
दोहा:-
बेटी बाबुल की बदा, बेटी हिय बनजात।
बिटिया अति बलिहारिणी, कभी नहीं बिसरात॥
चौपाई:-
बेटी मुझको अति मनभावन। मन को भाती सुता सुहावन॥
घर आँगन उपवन-सा महके। बेटी चिड़िया-सी जब चहके॥-१
लगे परी-सी राजकुमारी। चंचल चपला, अति अनुचारी॥
बेटी शीतल जल की धारा। जनकनंदिनी भाग्य सितारा॥-२
नेक राह पर चलने वाली। प्रेम पुष्प-सा पलने वाली।
सबके मन को भाती है। खुशियों की यह थाती है॥-३
संकट से कब यह घबराती! विकट समस्या हल सुलझाती॥
बेटी सबसे आगे रहती। कौन सका कह इसकी महती॥-४
त्याग, तपस्या, मनभर ममता। सहनशीलता, साहस, समता॥
मृदुभाषी मिश्री-सी बोली। भावनीय उर भीतर भोली। -५
बिटिया आँगन की है तुलसी। हिय हितकारी, हर्षित हुलसी॥
सति, सावित्री, सुषमा, सीता। बेटी गायत्री, गौ, गीता॥-६
हैं ये तितली के पंखों सी। करतल ध्वनि, घंटा शंखों सी॥
कोमल फूलों-सी मुस्काती। गहन उदासी दूर भगाती॥-७
बिटिया बिन यह जगत अधूरी। खुशियाँ घर की इनसे पूरी॥
बनती सबकी सबल सहारा। अंतर्मन आशा उजियारा॥-८
अपने हाथों सदन सजाती। नाता-रिश्ता सहज निभाती॥
मन से जोड़े मन का बंधन। सीधी-सादी सुता सुगंधन॥-९
बेटी सच में मोती, हीरा। हृदय भावमय राधा, मीरा॥
तनया सबका माने कहना। सबसे यही कीमती गहना॥-१०
पिता सहेली, सविनय, सुषमा। अनुरंजित है सुता अनुपमा॥
जन जीवन से रहती जुड़कर। देखे न कभी पीछे मुड़कर॥-११
भाव वक्ष में समतल भरती। इच्छा सबकी पूरित करती॥
सुबोधिनी, सत, सुभग, सुनीता। पुत्री परपद, परम पुनीता॥-१२
दयादायिनी होती दुहिता। सुलक्षणा, अति सौम्या, सुहिता॥
स्नेह संपदा की अभिलाषी। मनोरमा, मुकलित मृदुभाषी॥-१३
बिटिया ममता की है झपकी। सुंदर सुखमय दुखहर थपकी॥
पहले-पहले कभी न लड़ती। छेड़ा फिर तो थप्पड़ जड़ती॥-१४
कोंपल-सा तनया तन नरमी। अंतर्मन पावक-सी गरमी॥
जग में पावन सुता किशोरी। खुशियों की यह भरी तिजोरी॥-१५
बेटी, बहना, बहुला, बाला। मानस मन की माणिक माला॥
किसलय-सी यह नूतन कलिका। सहनशील अति जैसे इलिका॥-१६
मातु पिता की सदा सहाई। रहती तत्पर काज भलाई॥
सेवाभावी अति सुखकरनी। करुणामयी सुता दुखहरनी॥-१७
बिटिया से ही आशा अतिशय। रहता कभी नहीं है संशय॥
अनुकरणी यह होती अनुपम। वंशागत अनुयायी उत्तम॥-१८
घर भर की यह राजदुलारी। चलती-फिरती यह फुलवारी॥
जब-जब बेटी मुस्काती है। धरती पर रौनक छाती है॥-१९
बेटी बाबुल की परछाई। अनुगामी करती अगुवाई॥
परंपरा की शुभ संवाहक। स्वस्थ समझ की सत संग्राहक॥-२०
समझ नहीं बिटिया को बोझिल। लगती अमरैया की कोकिल॥
सबको अपना हिस्सा बाँटे। सहर्ष जनहित कंटक छाँटे॥-२१
सुता शुभाकांक्षी, शुभकामी। शोभावती, शिष्ट शुभगामी॥
कुलतारण परिजन कल्याणी। वेणु मधुर सम इनकी वाणी॥-२२
बहे आपगा-सी आनंदी। तनुजा नहीं किसी की बंदी॥
आगे बढ़कर करती अगवानी। मानवता हित अति वरदानी॥-२३
सुहासिनी सुंदर संरचना। सबसे बढ़िया बिटिया, बहना॥
पिता चहेती, चपला चंचल। अडिग कर्म पथ रहती अविचल॥-२४
जीवन जीती सदा सुगमता। भर-भर रखती मन में ममता॥
प्रेम सुधा धन पीहर परिमल। बहती धारा परहित निश्छल॥-२५
बिटिया घर भर करती गुंजन। लगता आलय मनहर मधुवन॥
होती सुता हमारी लज्जा। इनसे ही है जग की सज्जा॥-२६
पथिक प्रगति की पुत्री प्रतिपल। क़दम साहसी रखती अविरल॥
मंगलकरनी यह मनमोहक। बनती कभी न पथ अवरोधक॥-२७
पुत्री पवित्र पूजा-पाठी। दान धर्म की लालित लाठी॥
परम हितैषी परिजन प्यारी। करती काज नियम अनुसारी॥-२८
समझो कभी न कोमल काया। होती हैं सुता महामाया॥
पार स्वयं ही करती अड़चन। मन से कभी नहीं रख अनबन॥-२९
बिटिया समझो मानस गंगा। डाले फिर क्यों जगत अडंगा॥
होती इनकी शान निराली। बेटी दूर करे बदहाली॥-३०
शक्ति स्वरूपा, सक्षम सबला, कहना नहीं इन्हें अब अबला॥
विद्या, वैभव विधिवत वर्धन। करती तनुजा मिथ्या मर्दन॥-३१
कुहके कोयल-सी घर कानन। मंगलकारी बिटिया आनन॥
हैं शुभकारी, सगुन सुशीला। प्रेम पुलक उर, नहीं प्रमीला॥-३२
बेटी मुलाधार सुख सुविधा। दुहिता नहिँ कोई भी दुविधा॥
छोड़ो पिछड़ी सोच संकुचित।
है अनिवार्य आत्मजा समुचित॥-३३
बिटिया छूती हर ऊँचाई। भरकर चंचलता चतुराई॥
सतत सकुच सह सुविचारी। अतिशय आदर की अधिकारी॥-३४
होती बिटिया मैहर बुलबुल। रहती पीहर चपला चुलबुल॥
बनती सबकी सुता चहेती। होती घर परिवार सचेती॥-३५
जब-जब देखो बिटिया मुखड़ा। हट जाता है झट से दुखड़ा॥
तनुजा तन-मन से संतोषी। करुणा दया प्रेममय कोषी॥-३६
सबसे आगे सुता बढ़ाओ। बिटिया को भी ख़ूब पढ़ाओ॥
दो-दो कुल की मान बढ़ाये। परिपाटी का पाठ पढ़ाये॥-३७
बेटी से ही चले घराना। बेटी मन का मधुर तराना॥
हो आत्मीय अखिल अभिवादन। ‘अमित’ आत्मजा सुख आच्छादन॥-३८
बेटी-बेटा एक समाना। भेदभाव को तुरत मिटाना॥
बहुत ज़रूरी इनकी शिक्षा। संस्कारपूर्ण नैतिक दीक्षा॥-३९
जितना ज़्यादा स्नेह मिलेगा। उतना ही सौभाग्य खिलेगा॥
शारद कृपा क़लम को थामा। लिखा ‘अमित’ यह बेटीनामा॥-४०
दोहा:-
बिटिया, बहना, माँ, बहू, इनसे ही संसार।
नारी आँचल के तले, खुशियों का भंडार॥
अमित बालिका पावनी, होती गंग समान।
अपनाएँ इनको सदा, समझ ईश वरदान॥
सर्जक- कन्हैया साहू ‘अमित’
शिक्षक-भाटापारा छत्तीसगढ़
चलभाष-९२००२५२०५५
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