Table of Contents
प्रीत वाला रंग
प्रीत वाला रंग: डाॅ मनोरमा शर्मा
मधुर यादों में सबकी वह
बसता है प्रीत वाला रंग
जब कोई घर-घर आकर खेले रंग गुलाल भर उमंग।
अनूठा है यह त्यौहार
कपड़े पहने सब झक सफेद मिल खेलें रंग-रंगीली होली ऊंच-नीच होता न कोई भेद।
चुन-चुन कर लाए मुलायम गुलाल लाल
मारे भर-भर पिचकारी भीगी चुनरिया
पीत वसना गोरी चमके गीले वसन गाल लाल
प्रीत वाला रंग कर गया अंग लाल गुलाल।
सजी महफिल गीत-संगीत की शाम सुहावे
जब प्रीत भरा मनवा फगुवा गुनगुनावे
होरी, धमार, फागुन, फाग के गीत
मन मोर हुआ मतवाला जब मिले मन के मीत।
होरी, धमार, ठुमरी की सुन तान और ताल।
देंवें अरसिक भी ताली, चाहे जाने न सुर और ताल
चाहे जितना भी मचे धमाल
ऐसा अजब सुरूर होली का न होता किसी को मलाल।
क्या बात बनी है होली में गुझिया ठंडाई के संग
जब रंग गया “प्रीत वाला रंग”
अंग-संग भीग गया तन मन, जब होली अनबोली है
तब क्यों न कहे कोई “बुरा न मानो होली है”।
रिमझिम बारिश
रिमझिम रिमझिम बरसे बादल,
फिर बरसात हुई
बारिश की बूंदें धरा को ही नहीं
भिगोती हैं मन की मिट्टी को भी
इसी मौसम में उग आते हैं शब्द-शब्द
और रची जाती हैं सबसे हरी कविताएँ
गाए जाते हैं सबसे मधुर खूबसूरत गीत
बजते हैं जलतरंग, बारिश की टप-टप बूंदों से,
बादलों की फिर धरती से बात हुई
रिमझिम रिमझिम बरसे बादल,
फिर बरसात हुई।
तोड़ परिधि के बाँध बिखरती हंसी,
बिजली खिलती अधरों पर
क्षितिज ने बांह कसी
इंद्रधनुषी रंग उभरे
बरखा की बूंदों से
मन की जाने क्या बात हुई!
रिमझिम रिमझिम बरसे बादल,
फिर बरसात हुई
भूली हुई यादों-सी उमड़ी हरियाली
पेड़ों ने डालियों की गलबहियाँ डाली
पक्षी फिर घर लौटे
अमराई से न जाने
क्या बात हुई
रिमझिम रिमझिम बरसे बादल,
फिर बरसात हुई।
मिट्टी के छन्दों में गीत नए उभरे,
पहाड़ी झरनों के दूर हुए नखरे,
मुस्कान फिर जीती, उदासी की मात हुई
रिमझिम रिमझिम बरसे बादल,
फिर बरसात हुई
डाॅ. मनोरमा शर्मा
शिमला
हिमाचल प्रदेश
यह भी पढ़ें-
4 thoughts on “प्रीत वाला रंग”