
पहचान
“पहचान”
परवाह ना थी,
लापरवाह हो गए,
चलो एक बार फिर से,
शुरुआत करते हैं,
खुद की परवाह कर,
खुद से हम प्यार करते हैं,
ज़रा ख़ुद से हम मुलाकात करते हैं,
आओ ज़रा ख़ुद से हम बात करते हैं,
थोड़ा ठहर जाओ,
खुद के लम्हों की हम,
बरसात करते हैं।
थोड़ा तारो संग,
थोड़ा चाँद सितारों संग,
मुलाक़ात करते हैं।
जरा नदियों की,
दस्तक को सुनो,
अपने ख्वाबो को बुनो।
पेड़ पर सूखे पत्तो की,
गड़गड़ाहट को सुनो।
टहनियों पर लगी,
लताओ को बुनने दो।
कलियो पर लगे,
फूलो पर भवरें मंडराने दो।
बगिया में खिले,
फूलों को महकने दो।
मिट्टी की सोन्धी-सोन्धी खुशबू,
में खो जाने दो,
आ ख़ुद से प्यार हो जाने दो। ।
कुछ धरा पर गिरी,
पानी की बूंदो को सजने दो।
बैठे किनारे पर तन्हा,
हवा की सरसराहट को,
बाहों में अपने समेटकर,
इस जगमगाती रात में,
अपने जज्बातो की,
बौछार हो जाने दो।
चलो एक बार फिर से,
खुद से हम प्यार करते हैं।
अपनी पहचान का,
दीदार करते हैं,
अपने हुनर को तराश कर,
आत्मविश्वास को बलवान करते हैं।
मिट्टी की ख़ुशबू का,
एहसास करते हैं,
आ ख़ुद से हम,
प्यार करते हैं।
चलो एक बार फिर से,
खुद से हम शुरुआत करते हैं,
अपनी पहचान का इकरार
करते हैं,
इस ग़हरे समंदर मे
खुद की पहचान करते हैं,
आ हम ख़ुद से इज़हार करते हैं,
आ हम ख़ुद से प्यार करते हैं। ।
अंजली सांकृत्या
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