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पंजाब पंजाबियत की लोहड़ी
पंजाब पंजाबियत की लोहड़ी
अक्षय अक़्क्षुण संस्कृति का अभिमान
भारत की माटी की खुशबू ख़ास
पंजाबियत पंजाब॥
भारत हो चाहे विश्व का कोई कोना
पंजाबी पगड़ी
भारतीयता का ऊंचा मस्तक गौरव मान॥
गुरुओं की कुर्वानी
शाहबजादों का बलिदान
माँ भारती के चरणों में शीश
चढ़ा कर बढ़ाया
मां भारती का मान॥
ऐसा अपना पंजाब
गुरुओ की वाणी देव स्वर भाव
मक्के की रोटी सरसो द साग॥
सूर्य बढ़ता मकर राशि को
गाता झूमता पंजाब
लोहड़ी पावन पर्व महान
गिद्दा भगड़ा जलते आग अलाव॥
बजते ढोल नगाड़े कुड़िया काके उल्लास
मक्के दाने तिल गुड़ की लोहड़ी
खुशियो का संसार॥
लोहड़ी आयी लोहड़ी आयी स्वागत करती
मानवता खुशियो का आगमन मधुमास
नई आशाएँ उम्मीदों का
विश्वास गेहूँ की झूमती बाली
पीले सरसों के फूल जीवन के
बहुरंगी खुशिया लोहड़ी रंग अनंत॥
युग बदल जायेगा
सपने खूबसूरत सच
तमस जीवन पथ का
छँट जायेगा चहुँ ओर
सूरज का दिन
चाँद की चाँदनी का
बसेरा हो जाएगा॥
निराशा में आशा उमंग
कल्पना नहीं परछाई सा
संग तुम अगर मील गए
जीवन से उद्देश्यों का विश्वास मील जाएगा॥
कठिन चुनौतियों से भी टकरा जाएंगे
तुम अगर मिल गए पथ विजय वरण करते जाएंगे॥
आग आँगर शुलों से भरे पथ में
वर्तमान के प्रकाश पल प्रहर में
आस्था का नया आयाम बता देंगे
शुलों को फूलों में बदलते जाएंगे॥
इच्छा परीक्षा की सीमाए
कर देंगे ध्वस्त तुम अगर मील गए
हर शत्रु को कर देंगे पस्त घृणा
द्वेष दंभ की दीवार गिरा देंगे
परस्पर प्रेम की दुनियाँ बनाएंगे॥
नए प्रभा प्रभात का नव गीत
गाएंगे विखरे हुये युग को प्रेम
संस्कृति संस्कार की काया माया से मिलाएंगे॥
काल समय तेरे मेरे मिलन
बिरह बेदना उत्साह का
नव राग रंग तरंग का प्रसंग
युग समाज को बतलाता जाएगा॥
तुम अगर मिल गए युग उत्सव की
परिभाषा परिणाम का पुराष्कार मिल जाएगा॥
जीवन और मौसम
मौसम आते जाते है
मौसम के दिन महीने चार
जीवन के भी दिन चार॥
जीवन मौसम में अंतर
इतना मौसम का चाल
चरित्र चेहरा नहीं मौसम नियत काल॥
पल प्रहर दिन रात
बदलता मौसम का
मिज़ाज़ जीवन का एक
चेहरा चाल चरित्र संस्कार॥
गर जीवन भी हो जाये
मौसम जैसा युग सृष्टि
मिट जाएग छा जाएगा आंधेरो का साम्राज्य॥
कभी कठिन दौर हाहाकार मचाते
प्राणी प्राण मुश्किल में
कभी राहआसान मौसम आते जाते है॥
मौसम का प्राकृति
परिधान मानव प्रबृत्ति प्रधान मौसम प्रकृति प्रधान॥
वर्षा कभी सावन की
रिम झिम फुहार कभी जलप्लावन
डूबता आशाओं का संसार॥
सर्द रात की चाँद चॉदनी प्रेम
प्रीत का राग, ठिठुरते कभी प्राणी
प्राण का करते त्याग॥
मौसम बसंत बाहर
खुशियाँ उमंग का घर समाज परिवार व्यवहार॥
उत्सव उल्लास का मधुमास
नूतन कोमल किसलय नव
काल कलेवर का प्रकृति करती सृंगार॥
शिशिर हेमंत ज्वाला तेज
तूफान अंगार कभी हंसाते कभी
रुलाते जीवन वायु प्राण
मौसम आते जाते है संसय विश्वास॥
जय श्री हनुमान
भक्ति शक्ति के भगवान
जय श्री हनुमान जय श्री हनुमान॥
सेवा भक्ति के निश्छल ग्यारहवें
रुद्र आवतार जय श्री हनुमान
जय श्री हनुमान॥
राम भक्ति के कृपा निधान
सीता माता का वरदान
शील सहज करुणा निधान
जय श्री हनुमान जय श्री हनुमान॥
बक्ष चिर राम दीखयो भक्ति भाव
अनुराग बाल ब्रह्मचारी बैराग
राम काज साधना साध्य
जय श्री हनुमान जय श्री हनुमान॥
सेवक धर्म में बंधे ब्रह्म पास
मूर्छित लक्ष्मण का बचाया प्राण
कर धर लाए संजीवनी हिमालय
लंकिनी को मोक्ष दिलायो कपि
कुल अभिमानजय श्री हनुमान श्री जय हनुमान॥
अहिरावण का विध्वंश किया
यज्ञ राम लखन के बचाया प्राण
जय श्री हनुमान जय श्री हनुमान॥
लंका जारी सिया सुधि लाए
माँ सीता सिंदूर से लाल देह लालील
बैद्य सुखेन लंका से लाए
सुरसा माया को दीन्हो मात
जय श्री हनुमान जय श्री हनुमान॥
पवन पुत्र अंजनी माता
चिरंजीवी तुम जग विख्याता
सागर लांघी ग़यों पल में
रवि समायो गाल महिमा
कोई पार न पावे भक्तों का
करते कल्याण जय श्री हनुमान
जय श्री हनुमान॥
जो तुमको निस दिन ध्यावे
व्यधि क्लेश कष्ट न पावे
धन धान्य शुख संपति पावे
कृपा करुणा निधान जय श्री
हनुमान जय श्री हनुमान॥
आत्म बोध
जिंदगी रूठ गई जाने
कहाँ खो गई एक दायरे में सिमट गई
खोजता हूँ घनघोर आंधेरो में रास्ता
जिंदगी की चाहतों का वास्ता॥
जिंदगी के सब दरवाजे बंद
बंद दरवाजो दस्तक दे रहा हूँ
खत्म ना हो जाये अरमान आरजू
की ज़िंदगी सिर्फ़ रह जाए जीने का नाम॥
हिम्मत जोश ताकत से
जिंदगी को चाहो की राहों
के बंद दरवाजे पर दस्तक दे रहा हूँ॥
बंद दरवाजे की दस्तक
का शोर बहुत आवाज़ नही
सारी कोशिशें करता थक
हार जाता उदास निराश॥
दिल से आती आवाज
क्यो होता परेशान होगा
कोई इंसान तेरे लिये फरिश्ते सामान॥
तेरी ज़िन्दगी के मुकाम
मंजिल का हमसफ़र
दोस्त ज़िन्दगी की राहों के
बंद दरवाजों पर तेरी दस्तक
को करेगा कामयाब॥
सुन ज़िन्दगी के मुसाफिर
खुद के दिल के बंद दरवाजों
दस्तक दे तेरे ही दिल से गुजरती
तेरे ज़िन्दगी की कस्ती॥
दिल के बंद दरवाजों पर
दी दस्तक खुल गए सच्चाई
ईमान इंसान के द्वार ख़ुद के
दिल में ही खुदा का हो गया दीदार॥
जिंदगी की राहों का खत्म
हो गया अंधकार चाँदनी सी
धवल नव कोमल कली सी
जन्नत की परी सामने मंजिल-सी खड़ी॥
बंद दरवाजों पर मेरी दस्तक की
आवाज गायब मीठी-सी आवाज
लबो पर मधुर मुस्कान ज़िन्दगी की
मंजिल राह की शान॥
खत्म हो गयी मायूसी
निराशा आशा विश्वाश की
जागी खूबसूरत जज्बे की चिंगारी ज्वाला॥
खुल गए ज़िन्दगी के सभी
रास्ते टूटे सारे अवरोध बेफिक्र
चल पड़ा ज़िन्दगी की राहों में
अकेला कारंवा बनता गया
जिंदगी अरमंनो की तमाम मंजिले
जमी आसमान मुठ्ठी में बंद॥
जिंदगी आम सुबह शाम
सुबह प्रभा प्रभाकर की प्रभा
रक्त की लाली लालिमा
संचार, सम्बाद॥
शाम आम गुजरे लम्हों
यादों के नाम हासिल और गँवा
देने के मध्य विराम॥
रात अवसान
दुनियाँ में सिर्फ़ एक नाम आया
चला गया रेंगती ज़िन्दगी का
पैगाम॥
दो वक़्त की रोटी औए महफूज़ साँसों धड़कन का इंसान
जीता चला गया ज़िन्दगी की सच्चाई मान॥
ख़ुशी, गम, आंसू मुस्कान पतछड़ बहारो की परंपरा में जीता गया आदमी आम॥
आम ख़ास में फ़र्क़ इतना मात्र
आम ज़िन्दगी ख़ुद की ख्वाहिस
चाहत में दुनियाँ को कर देती कुर्बान॥
ख़ास ज़िन्दगी जहाँ के नाम जहाँ में अंदाज़े बया जुदा खुदा ख़ुद में
देखता स्व अहम् को छोड़ता ज़माने की रौशनी का रौशन
किरदार इंसान॥
पैदा होता आम सुबह प्रभाकर
प्रभा की ही तरह दुनिया में नए
देवीप्यमान दिनकर का अन्जाम
अभिमान॥
आम ज़िन्दगी सुबह सूरज संग आती प्रचंड शौर्य जवाँ जज्बात
की ना बातना कोई गर्मी ना आवाज़; आगाज़, अंजाम
कोई बात ख़ास सिर्फ़ चलती सांसो का नाम॥
जिंदगी के अरमाँ जज़्बात लम्हा-लम्हा चलती दुनीयाँ को लम्हों के लिए रोक देने की शख़्स शख्सियत का पैगाम॥ ज़िन्दगी आम से ख़ास का मुसाफिर इल्म इरादों का फौलाद
मकसद मंज़िल का बेलौस फरमान॥
ख़ास मायनो की ज़िन्दगी अजिमो शान लम्हों की कदमो का नाज़
आम गुमनाम खोजती
दुनियाँ तारीख के पन्नों में मिलता
नहीं नाम॥
मायूस जहाँ अपनी नस्लो की नसीहत से निकाल देता पन्ना
गुमनाम गुजरे वक़्त का इंसान॥
जिंदगी उगता सूरज ढलती शाम
दुनियाँ में आम इंसान॥
जिसने सूरज की लाली की तरह
रगों की लहू को दे दिया ज़माने के नाम॥
शौर्य सूर्य की गर्मी की चिंगारी ज्वाला मिशाल मशाल ढलती शाम में जहाँ के अंधेरो का चाँद॥
सिर्फ सांसो धड़कन का जिस्म नहीं जिंदगी
अपने अंदाज़ की तूफ़ानउखाड़ फेकती ज़माने की दुःस्वरियो का जंजाल॥
एक नए सुबह का साज नाज
दुनियाँ की तारीख का ईमान
जिंदगी ख़ास नाम।
जेठ की दोपहरी का एक दिया
जेठ की भरी दोपहरी में
एक दिया-दिया जलाने की
कोशिश में लम्हा-लम्हा जिये
जिये जा रहा हूँ॥
शूलों से भरा पथ शोलों से
भरा पथ पीठ लगे धोखे फरेब
के खंजरों के ज़ख़्म दर्द सहलाते
खंजरों को निकालने का प्रयास
किये जा रहा हूँ॥
जेठ की भरी दोपहरी में
एक दिया जलाने को लम्हा
लम्हा जिये जा रहा हूँ॥
दर्द जाने है कितने
जख्म जाने है कितने
फिर भी युग पथ पर
फूल की चादर बिछाए जा रहा हूँ॥
जेठ की भरी दोपहरी में
एक दिया जलाने को लम्हा
लम्हा जिये जा रहा हूँ॥
कभी सपनो में भी नहीं सोचा जो
वही जिये जा रहा हूँ॥
जेठ की भरी दोपहरी में
एक दिया जलाने को लम्हा
लम्हा जिये जा रहा हूँ॥
खुद से करता हूँ सवाल
कौन हूँ मैं?
आत्मा से निकलती आवाज़
मात्र तू छाया है व्यक्ति
व्यक्तित्व तू पराया है
सोच मत ख़ुद से पूछ मत
कर सवाल मत तू भूत नही
वर्तमान में किसी हक़ीक़त में
छिपी रहस्य सत्य की साया है॥
जेठ की भरी दोपहरी में
एक दिया जलाने को लम्हा
लम्हा जिये जा रहा हूँ॥
कोशिश तू करता जा लम्हो
लम्हो को ज़िंदा जज्बे से जीता जा
भरी जेठ की दोपहरी में दिया जलाने
कि कोशिश करता जा॥
गर जल गया एक दिया
जल उठेंगे अरमानो के लाखों
उजालों के दिए चल पड़ेंगे
तुम्हारे साथ-साथ लम्हो लम्हो
में एक-एक दिया लेकर युग समाज॥
जेठ की भरी दोपहरी में
एक दिया जलाने को लम्हा
लम्हा जिये जा रहा हूँ॥
जेठ की भरी दोपहरी-२
जेठ की भरी दोपहरी में
एक दिया जलाने की कोशिश में लम्हा
लम्हा जिये जा रहा हूँ॥
भूल जाऊँगा पीठ पर लगे धोखे
फरेब मक्कारी के खंजरों के
जख्म दर्द का एहसास॥
तेज पुंज प्रकाश मन्द-मन्द शीतल
पवन के झोंको के बीच खूबसूरत
नज़र आएगा लम्हा लम्हा॥
चट्टाने पिघल राहों को सजाएँगी
शूल और शोले अस्त्र शस्त्र
बन अग्नि पथ से विजय पथ ले जाएंगे॥
चमत्कार नहीं कहलायेगा
कर्मो से ही चट्टान फौलाद पिघल
जमाने को बतलायेगा॥
लम्हा लम्हा तेरा है तेरे ही वर्तमान
में सिमटा लिपटा है तेरे ही इंतज़ार
में चलने को आतुर काल का करिश्मा कहलाएगा॥
पिया ज़माने की रुसवाईयों
का ज़हर फिर भी जेठ की भरी दोपहरी जला दिया एक चिराग दिया॥
जिससे भव्य दिव्य है युग वर्तमान
कहता है वक़्त इंसान था इंसानी
चेहरे में आत्मा भगवान था॥
बतलाता है काल सुन ऐ इंसान
मशीहा एक आम इंसान था
जमाने में छुपा ज़माने इंसानियत
का अभिमान था॥
जेठ की भरी दोपहरी-३
अपने हस्ती की मस्ती का मतवाला
अपनी धुन ध्येय का धैर्य धीर गाता
चला गया जेठ की भरी दोपहरी में
एक दिया जलाता चला गया॥
जेठ की भरी दोपहरी में एक
दिया जलाने की कोशिश में
लम्हा लम्हा जीता चला गया
जमाने को ज़माने की खुशियों
से रोशन करता चला गया॥
ना कोई उसका ख़ुद कोई अरमान था
एक दिया जला के ज़माने को जगाके
जमाने के पथ अंधकार को मिटाके
जमाने का पथ जगमगा के॥
लम्हो को ज़िया जीता चला गया
कहता चला गया जब भी आना
लम्हा लम्हा मेरी तरह जीना मेरे
अंदाज़ों आवाज़ों खयालो हकीकत
में जीना मरना॥
जेठ की दोपहरी में एक दिया
जलाने जलाने की कामयाब कोशिश
करता जा ज़िन्दगी के अरमानों अंदाज़
की मिशाल मशाल प्रज्वलित करता जा॥
तूफानों से लड़ना है तो
तुफानो से लड़ना है तो
जीना सीखो जीना है मारना सीखो॥
जवा जोश के
गुरुर से डरना सीखो
हस्ती की हद नहीं हद खुद
तय करना सीखो॥
अरमानो का आसमाँ, आँसमा से आगे अरमानों को हासिल करना सीखो॥
जूनून मकसद का मकसद
की राहों में ग़र आ जाए कोईं
मुश्किल तोड़ हर मुश्किल राहों
की हासिल मकसद करना सीखो॥
दुश्मन की शातिर चालो में
फसना नहीं निकालना सीखो॥
अंगार तुम नौजवान तुम जवां हौसलों की उड़ान मेंउड़ाना सीखो॥
ताकत की गर्मी के बेजा ना
जाए नफ़रत से नफ़रत में जीना
सीखो॥
बदल सकते हो दुनियाँ
दुनिना बदलेगी कैसे दुनियाँ
बदलना सीखो॥
मिटा दो हस्ती को अगर तू मर्तवा चाहे ख़ाक से गुलो गुलज़ार बुनियाद
तुम दुनियाँ के दर्द आंसुओं ग़म ज़हर को पीना सीखो॥
हर इंसान में आते तुम एक बार
हर जान में जागते एक बार
आने जागने का फ़र्क़ फासला
समझो॥
मिटा दो या मिट जाओ
दुनियाँ की तारीख पन्नों
का अल्फाज बनाना सीखो॥
यूँ ही नहीं लिखी जाती लम्हों
की लकीरे लम्हों की लकीरो
की इबारत की इबादत करना
सीखो॥
मोहब्बत ज़िन्दगी का फलसफा
इश्क आशिकी दीवानापन तरन्नुम
तराना जायज ज़िन्दगी से इश्क़ का कलमा गीता कर्म ज्ञान का
पड़ना सीखो॥
वक्त बदलता रहता है लम्हा
लम्हा चलता रहता लम्हा-लम्हा चलते वक़्त में अपनावक्त बदलना सीखो॥
वक्त गुजरता जाएगा वक़्त की
तकदीर् बदलना सीखो
चिंगारी तुम ज्वाला काल कराल
विकट विकराल तुम वक़्त के फौलाद नौजवान तुम॥
तुम हिम्मत की धार तुम तूफां
की बौछार तुम वक़्त के हथियार
तुम नौजवान तुम बेजा ना जाए जवानी की रवानी रहो होशियार तुम॥
ढल गयी ग़र जवानी न कहलाओ
कचरा कबाड़ तुम कुछ नए जोश
जश्न में गुजरो दुनियाँ रहो महेशा नौजवान तुम॥
तेरे साँसों की गर्मी की ज्वाला से
तेरे मंज़िल राहो के पथ अग्नि
को बदल डाले जँवा मस्ती में
कुछ तो ऐसा कर डालो॥
मिटटी के माधव मिटटी में ना
मिल जाओ नया इतिहास रचो
बाज़ीगर जादूगर बाज़ अरबाज़ तुम॥
जमी पर जन्नत की सूरत का
नया ज़माना नौजवान तुम॥
हसरत का पैमाना हकीकत
का मैखाना नए कलेवर का
नक्शा नशा शाराब तुम॥
सवाक नहीं कोई ऐसा खोज
सको न जबाव तुम नहीं कोई समस्या पाओनहीं निदान तुम॥
जज्बा ज़माने का वक़्त का कौल
तुम, तेरे ही कदमो की दुनियाँ बेमिशाल तुम॥
जवानी की रावांनी के समंदर
न बन पाये तेरी गागराई जहाँ
का सुकुन तेरे रहने ना रहने को दुनियाँ कैसे समझ पाये॥
अवसर को उबलब्धि में
बदलना सीखो नौजवान
तुम गिरना और संभालना
सीखो॥
नौजवान तुम इरादों के
चट्टान राई से पहाड़ मौका
को मतलब पर मोड़ना सीखो॥
खुद के रहने
के वर्तमान रच डालो ऐसा इतिहास दुनियाँ की तारीखों
के पन्नों को दुनियाँ की राहों के रौशन चिराग नौजवान तुम॥
जुबां तोल
जुबां तोल, मोल, बेमोल, अनमोल, बहारों के फूलों कि बारिश अल्फ़ाज़।
तनहा इंसान का सफसोस हुजूम के कारवां कि ज़िन्दगी का साथ अल्फाज़॥
वापस नहीं आते कभी जुबां से निकले अल्फ़ाज़ दोस्त, दृश्मन कि बुनियाद अल्फ़ाज़।
जंगो का मैदान मोहब्बत पैगाम ज़मीं आकाश कि गूंज आज, कल अलफ़ाज़॥
दिल के जज़्बात, हालत, हालात का मिज़ाज अल्फ़ाज़।
दिल में उतर जाते खंज़र की तरह मासूम दिल कि अश्क, आशिकी, सुरते हाल अल्फ़ाज़॥
जिंदगी रौशन, सल्तनत बीरान तारीखों के गवाह अल्फ़ाज़।
बेशकीमती दुआ, बद्दुआ, फरियाद, मुस्कान अलफ़ाज़॥
अल्फ़ाज़ों में गीता, कुरान इबादत जज्बे का ईमान।
खुदा भगवान के जुबाँ से निकले इंसानियत इंसान के अल्फ़ाज़॥
अल्फाज़ो के गुलदशतों से सजती महफ़िलों के सबाब बहार के अल्फ़ाज़।
रौशन समाँ कि रौशन रौशनी कि खुशबु का बेहतरीन अंदाज़ अल्फ़ाज़॥
कसीदों कि काश्तकारी रिश्तों में दस्तकारी अल्फ़ाज़।
दिल में नश्तर कि तरह चुभते कभी, कभी दिल कि खुशियों का वाह-वाह अल्फ़ाज़॥
नज़रों के इशारों, जुबाँ ख़ामोश का अंदाज़ अल्फाज़।
हद, हस्ती आबरू, बेआबरू कसूर, बेकसुरवार गुनाह, बेगुनाह के अल्फ़ाज़॥
बदज़ुबां का अल्फ़ाज़ जहाँ परेशान।
खूबसूरत अल्फाज नेक, नियत कि जुबां ज़माने के अमन कि नाज़ का अल्फ़ाज़॥
तारीफ़, गिला, शिकवा कि बाज़ीगरी का कमाल अल्फ़ाज़।
बेंजा उलझनों को दावत, जायज बदल देते हालात के अल्फ़ाज़॥
गीत ग़ज़ल फूलों कि बारिश, शहद कानों में मिश्री घोलता अल्फ़ाज़।
अल्फाजों से बनता बिगड़ता रिश्ता ख़ामोश जुबाँ, निगाहों का जज्बे के जज़्बात अल्फाज़॥
इंसान बेआबरू हो गया है
इंसान बेआबरू हो गया है अपने ही घर में बेगाना हो गया।
बेताब है इंशा बेआबरू से रूबरू होने के लिये।
अपने फाटे पुराने लिबास जिसमें छिपी थी उसकी आबरू।
अपने बेआबरू को उसी आबरू के पैवंद से है ढकने चला।
तमाम हसरतों को लेकर अपने ही वतन में गया था दूसरे गावँ
बेआबरू कि रोटी और छाँव कि जिल्लत और ज़िन्दगी का गाँव॥
कोई गवाँर, पुरबिया,
भईया, बिहारी कहता कोई देश के पिछड़े पन का कहता दाग॥
बेबाक यह इंसान अपने ही मुल्क महान् का मज़दूर इंसान॥
फिर भी ग़म खाये सर झुकाये अपनी बेआबरू को फटे पुराने दामन में समेटे लपेटे॥
चुप चाप कहीं इमारते बनाता कही कल कारखाने चलाता।
कहीं फुटपाथ पर फल सब्जियाँ बेचता या गली मोहल्ले में फेरी लगता॥
आधे पेट खाता कही फुटपाथ पर सो जाता।
फुटपाथ पर भी कभी कोई सर फिरा नीद में मौत कि नीद सुला जाता॥
शराब के नशे में गाडी चढ़ा देता मरने के बाद बच्चों और बेवा को तमाशा बना देता।
छत तो नसीब ही नहीं मन मस्तिष्क मेरा साफ़ सुथरा बस्ती मेरी मलिन॥
जहाँ गटर का पानी ही जिंदगानी ख़ौफ़नाक अंधेरों के साये।
तमाम बीमारियों के बीच जीते मरते घुटते घिसते इंसान।
जानवर जैसे इन्शान सिर्फ़ जीने के लिये मरबूर मज़दूर कहलाते॥
जलालत कि ज़िन्दगी बेआबरू के दामन से तिलस्म का शहर बसाया।
खूबसूरत बनाया जो आज हर नौजवान के ख़्वाब इश्क़ का जूनून जान बनाया॥
देश के दिल को दिल से दिल्ली बनाया सूरत को खुबसूरत सजाया बनाया।
मगर दिल ने बेदर्दी से मेरे ही दिल से मुझे बाहर का रास्ता दिखाया।
तिलस्म के जवाँ जज्बे कि जान ने हमे ठुकराया।
हमारी सूरत ने ही हमे बादसूरत बनाया।
जाये तो जाये कहाँ दिल है नहीं जान है नहीं अपनी सूरत भी बदसूरत॥
आगये है अपने गावँ ठंठी हवाओ और बरगद, पीपल की छांव।
आबरू और रोटी का ठौर आम के बौर महुआ कि सुगंध।
सभी अपने सुख दुःख आपस में बाटते।
रोटी आधी-आधी भी खाते सुकून पाते।
अब लौट आये है अपने गाँव यही है मेंरे जीने मारने का ठाव्
यहाँ आबरू का आब, रोटी है नाज,।
फक्र की बेफिक्र-बेफिक्र ज़िन्दगी का प्यारा-सा गावँ॥
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
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