
तुम जीवन हो
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निर्मल नदियाँ बहती रहेंगी तो जग-जीवन बचा रहेगा
नदियाँ भूतल पर प्रवाहित जलस्रोत मात्र नहीं हैं अपितु सभ्यता की जननी हैं, सांस्कृतिक परम्परा का पुण्य प्रवाह हैं। सतत प्रवहमान नदियाँ जीवन का उत्स है, ऊर्जा हैं, अनुरक्ति-अनुराग हैं तो सुख, समृद्धि एवं खुशियों का मधुरिम राग भी। नदियाँ स्वयं में सृष्टि हैं, व्यष्टि से समष्टि की याज्ञिक-यात्रा का प्रस्थान बिंदु हैं, मुक्ति का पुनीत निर्मल पथ हैं। नदियाँ पोषण-भोजन प्रदायिनी हैं और प्राणों का संचार करने वाली वाहिनी भी। नदियाँ संयम हैं, संवेदना हैं, उत्साह-उल्लास का आह्वान भी। नदियाँ विराम-ठहराव का कलरव हैं तो चरैवेति-चरैवेति का निनाद भी। नदियाँ जीवन का आरम्भ हैं तो अंत भी। नदियाँ शस्य-श्यामला भूमि का आधार है तो गिरि-कानन, पठार-मैदान की प्रीति हैं, मृदुल मनुहार हैं। नदियाँ मानव सभ्यता एवं संस्कृति की चिर सहेली हैं तो विकास-विध्वंस की अबूझ पहेली भी।
नदियाँ वसुधा का श्रंगार हैं, आभूषण हैं और लोक का अनिंद्य सौंदर्य भी। नदियाँ सुरभित जीवन की शीतलता-तरलता हैं तो कटुता, विषमता का विपर्यय मधुरता, समता, सरलता भी। नदियाँ मर्यादा की पताका हैं तो शुभता का मंगल नाद भी। वास्तव में सदानीरा सरिताएँ जीवन की निरंतरता, सतत प्रवाहमयता, वात्सल्यपूर्ण ममता, धीरता समता-समरसता की प्रतीक हैं, पहचान हैं। नदियाँ पृथ्वी के पृष्ठ पर जीवन के तेज-ओज, आह्लाद-हर्ष का हस्ताक्षर हैं। नदियाँ श्रद्धा-आस्था का निर्मल निर्झर हैं और शांति, साहचर्य, सह-अस्तित्व, सहयोग-समन्वय का अन्यतम उपसंहार भी। किंतु वसुंधरा की जीवन रेखाएँ सरिताएँ संकट में हैं, अस्तित्व हेतु जूझ रही हैं। नदियों का जीवन-रस जल सूख रहा है, नदियाँ मर रही हैं। तभी तो नदियों को बचाने, संवारने और संरक्षण के लिए जागरूकता हेतु प्रत्येक वर्ष संयुक्त राष्ट्रसंघ की पहल पर सितम्बर के चौथे रविवार को विश्व नदी दिवस का आयोजन किया जाता है।
जागतिक सौंदर्य एवं समृद्धि के लिए नदियों का सतत प्रवाहित बने रहना आवश्यक है, किंतु नदियों में औद्योगिक कचरे, घरेलू उपयोग के गंदे जल एवं सीवेज अपशिष्ट का बिना शोधन प्रवाहित करना तथा अवैध खनन, नदी क्षेत्र में अवैध कब्जे-अतिक्रमण से नदी प्रवाह मार्ग संकुचित होने से नदियों की सांसें थम रही हैं। कहना अतिशयोक्ति नहीं कि नदियाँ प्रदूषित हो गई हैं और कुछ तो गंदा नाला बन नामशेष ही हैं। नदियों की यह स्थिति एवं समस्या केवल भारत की नहीं अपितु वैश्विक है। इसलिए वर्ष २००५ में संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा घोषित ‘जीवन के लिए जल दशक’ कार्यक्रम अंतर्गत जल संसाधन विकास द्वारा आयोजित दुनिया के नदी प्रेमी एवं जल संरक्षण कार्यकर्ताओं के पहले वैश्विक सम्मेलन में नदियों को बचाने के लिए कनाडा के पर्यावरणविद् और एक हज़ार नदियों की यात्रा करने वाले नदी प्रेमी मार्क एंजेलो के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्रसंघ ने प्रत्येक वर्ष सितम्बर महीने के चौथे रविवार को ‘विश्व नदी दिवस’ आयोजित करने हेतु २९ जून, २००५ को घोषणा किया। तब से अनवरत शताधिक देशों में सरकारी एवं गैर-सरकारी स्तर पर छोटे-बड़े आयोजन कर आम जन को नदियों एवं जल मार्गों के महत्त्व, उनकी सुरक्षा, प्रबंधन एवं संरक्षण करने तथा नदियों के अस्तित्व लिए उत्पन्न खतरों से सचेत-सावधान करने तथा नदी जल-जीवों को बचाने हेतु विश्व नदी दिवस का आयोजन किया जा रहा है।
इसके अंतर्गत वाद-विवाद प्रतियोगिता, भाषण-लेख एवं कविता-कहानी लेखन, नदियों के तटों पर शैक्षिक भ्रमण एवं पर्यटन, सामुदायिक नदी उत्सवों के आयोजन, नदियों की सफ़ाई करने, नदी केंद्रित पेंटिंग-कार्टून बनाने एवं प्रश्नोत्तरी में सहभागिता करने तथा जन-जन में जल के दैनंदिन समुचित उपयोग-उपभोग की जानकारी देने जैसे कार्यक्रम करके जागरूकता का प्रसार किया जा रहा है जो प्रत्येक वर्ष एक विशेष विषय बिंदु पर आधारित होते हैं। नदी किनारे वृहद पौधारोपण कर तटबंधों को मज़बूत किया जा रहा है और नदियों में विसर्जन से पूर्व सीवेज एवं औद्योगिक अपशिष्ट के उचित शोधन हेतु आवश्यक प्रबंध किये जा रहे हैं किंतु अभी भी बहुत कार्य किया जाना शेष है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक अध्ययन में कहा है कि देशभर में ९०० से अधिक नगरों-कस्बों का ७० प्रतिशत गंदा पानी बिना शोधन नदियों में बहा दिया जाता है। सच में, नदियाँ नगरों का मल-मूत्र एवं औद्योगिक अपशिष्ट बहाने का माध्यम बन गयी हैं। नदियों के तल में कचरा और गाद जमता जा रहा है, नदी के प्रवाह मार्ग में मिलने वाले प्राकृतिक स्रोत कचरे के कारण बंद हो गये हैं। नदियों के उद्गम स्थल हिमनद, ग्लेसियर ग्लोबल वार्मिंग से पिघल कर सिकड़ते जा रहे हैं। बरसाती नदियाँ तो गर्मी के पहले ही दम तोड़ देती हैं जबकि दो दशक पहले तक इनमें वर्ष पर्यंत जीवन निर्वाह हेतु पर्याप्त पानी रहा करता था। अनियोजित नगर विकास और नदी बाँध निर्माण से भी जलधाराएँ टूट-सूख गईं हैं।

पिछले वर्ष अपने जनपद में ही एक गाँव गया था तो नदी चर्चा के दौरान ग्रामीणों ने बताया कि गाँव से होकर बहने वाली कड़ैली नदी बाँध बन जाने से सूख गयी है। पहले वर्षभर ज़रूरत भर पानी रहा करता था। उस क्षेत्र में ऐसी अन्य बरसाती नदियों का भी यही हाल है। वाराणसी के नामकरण का आधार वरुणा और असी नदियाँ गंदा नल बन कूड़े-कचरे से बजबजा रही हैं तो दिल्ली में यमुना का जल आचमन छोड़िए स्पर्श योग्य भी नहीं बचा। विश्व की सबसे शुद्ध, औषधीय, मीठे जल की नदी गंगा अपना प्रभाव खो रही है। ऋग्वेद में वर्णित सरस्वती भूतल से लुप्त हो धरा गर्भ में प्रवाहित है। दुनियाँ में लगभग डेढ़ लाख नदियाँ हैं। बांग्ला देश को नदियों की भूमि कहा जाता है। नील नदी विश्व की सबसे लम्बी तो कांगो नदी सबसे गहरी नदी है। भारत नदियों से समृद्ध है, निश्चित आंकड़ा तो नहीं है पर लगभग एक हज़ार छोटी-बड़ी नदियाँ हैं जिनमें २०० प्रमुख हैं। कृष्णा और महानदी में हीरे मिलते हैं तो झारखंड की स्वर्णरेखा नदी जल में सोने के कण पाये जाते हैं और वहाँ के तटवासी समुदाय की आजीविका का साधन सोने के कणों को मिट्टी से छानना-बीनना है। मेघालय की उमंगोट नदी दुनिया की सबसे स्वच्छ निर्मल जल नदी है, तल के कंकड़-पत्थर तक दिखते हैं। कोसी बिहार का शोक कहीं जाती है तो गंगा-यमुना का मैदान फसलों के लिए वरदान है।
नदियों के तटों पर प्राचीन काल से ज्ञान साधना हेतु ऋषि-मुनियों ने आश्रम बनाये। कुंभ मेलों-उत्सवों के आयोजन होते रहे। महर्षि वाल्मीकि के मुख से नदी मध्य जलधार में ही विश्व की पहली पद्य रचना मुखरित हुई। नदी निकट ही मानव सभ्यताएँ विकसित हुईं। निर्विवाद रूप से सृष्टि संचालन के लिए नदियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण और अपरिहार्य है। बिना नदियों के हमारा जीवन शुष्क और नीरस हो जाएगा। कामना है, प्रकृति का अनुपम उपहार भूतल पर सतत प्रवाहित नदियों का कलरव हममें शांति-सम्पन्नता भाव भरता रहेगा।
प्रमोद दीक्षित मलय
लेखक शैक्षिक संवाद मंच उ।प्र। के संस्थापक हैं। बांदा, उ.प्र.
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