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दिया तले अँधेरा
दिया तले अँधेरा
मिठाई, फटाको, खिलोने
के दुकान में झांकते देखा!
हाथ में रखे चंद सिक्के को गिनते देखा!
पर थी ग़रीबी की मजबूरी
अपने से उसे हारते देखा!
अमीरो की बस्ती की रोशनी को
फटे ऑख आश्चर्य से देखते देखा!
आतिशबाजी की आवाज़ सुन
उसे उछलते और नाचते देखा!
सुनसान सड़कों पर उसे
अधजले फटाको को बिनते देखा
कचरे के ढेर से झूठे मिठाई को खाते देखा!
अमीरों की बस्ती में एक अँधेरा देखा
दीया तले अँधेरा देखा!
उसके ऑखों में दीवाली की चमक देखा!
पर हर ख़ुशी के लिए उसे
अमीरों के घर बिकते देखा!
रात को पुल के नीचे
झोपड़ी में अपने हाथों
की लकीर को देख सिसकते देखा!
चकाचौंध रोशनी में
उसे गुमनाम ज़िन्दगी जीते देखा!
‘दिया तले अँधेरा देखा’
माँ
माँ की ममता ईश्वर का वरदान है,
सच पूछों तो इस जग में
माँ ही भगवान है माँ ही भगवान है!
माँ-सा पवित्र रिश्ता नहीं न ही
कोई शब्द है,
माँ अवनि अंबर की परिमाप है
माँ ही ईश्वर की अवतार है,
माँ का आँचल सुख सम्पदा ममता का छांव है
जो हर दिल का जान है दर्द में माँ बाम है,
हर मुसीबत में माँ एक नई राह है
हर दुख, पीड़ा, कष्ट, घाव में
माँ का स्पर्श मरहम इलाज़ है!
माँ ही गुरु माँ ही इष्ट
माँ ही मंत्र, माँ ही अरदास है,
माँ का प्रेम निश्छल, निस्वार्थ भाव से बहने वाली
पवित्र धार है! माँ आदि, अनादि, अनंत से
ईश्वर का उपहार है!
माँ तुझे बारम्बार नमन है अनंत
अनु का प्रणाम है!
माँ माँ माँ
इस सृष्टि में माँ ही भगवान है
ईश्वर का दिया अनुपम उपहार है माँ ही जग की जगत जननी है,
ममता, समता, क्षमता, प्रेम, वात्सल्य की सुंदर कृति है,
सच पूछों तो ईश्वर का दिया
इस जीव जगत का वरदान है,
माँ भक्ति में है, शक्ति में है
माँ से कोई पवित्र शब्द नहीं है
न ही कोई पवित्र रिश्ता है,
यही जीव जगत का आधार है,
माँ ही अविरल गंगा-सी पवित्र
ममता गुरु ज्ञान है
अवनि, अंबर की परिमाप है!
माँ की आँचल सुख सम्पदा की
छाँव है हर दर्द की बाम है
जो हर दिल की अंनत चाह है
बिना जिस्म से ही लिपटे
हर दुख दर्द, पीडा कष्ट का
जो कर लेती एहसास है,
अंनत अनु का सब माँ को
बारम्बार प्रणाम है!
अनुसुईया झा
बसदई नवोदय
सुरजपूर
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