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दहशत में बेटी
दहशत में बेटी
सरे राह एक लडकी को, चाकू से गोदा जाता है!
खेल तमाशे की तरहा, अन्याय ये देखा जाता है!
इतने पर भी सब्र नहीं, जालिम के खूनी पंजो को!
पत्थर को तीन बार उठाकर, सर पर पटका जाता है!
अन्याय को खुली आँखों से, जी भर देखा जाता है!
लेकिन बचाने बिटिया को, कोई आगे नहीं आ पाता है!
कोई नहीं हिम्मत कर पाता, उस पर भी एक वार करे!
जालिम भी इस जनता की, ताकत का साकार करे!
कोई भी प्रशासन को, एक काल तक ना कर पाया!
वायरल विडियो की धुन मे, फ़ोन मिला नहीं पाया!
डूब के मरजाने के जैसा, काम किया नामर्दो ने!
इनसे ज़्यादा मानवता, हमने देखी नामर्दो में!
सरेआम दो चार दरिंदे, जब फांसी पर चढ जाएगें!
सहमी सहमी बिटिया के,
चेहरे भी फिर मुस्काएंगे!
फूलन देवी का बेटी को, तुमको पाठ पढाना है!
अपनी बेटी को अबला से, सबला हमें बनाना है!
साक्षी को न्याय दिलाने, घर से तुम बाहर आओ!
बेटी बचाओ के नारे की, ताकत ज़ालिम को दिखलाओ!
भीम राव बाबा ने कहा था, जुल्म करे जो पापी है!
जुल्म के आगे जो झूक जाए, वह होता महापापी है!
“सागर” बेटी को गुंडों से, लडना तुम्हें सीखाना है!
बेटी के हाथों से तुमको, ज़ालिम को मरवाना है!
आईना अस्मत का
ये तो सच है महिलाओं का, अब भी शोषण जारी है!
लेकिन इस शोषण की उसने, ख़ुद ही की तैयारी है!
आगे बढने की होड़ में, जो था सब कुछ दे डाला!
जो ना कहना था कभी उसको, वह सब भी था कह डाला!
लूट पिटकर कुछ हाथ ना आया, तो फिर बाहर आयी है!
सच्चाई आगे लाने को, छेडी बड़ी लड़ाई है!
अपने बूते आगे जाने की, थोड़ी तैयारी थी!
इसलिए शैतानों आगे, अबला बन वह हारी थी!
यही चक्र है कामयाबी का, क़ीमत देनी पड़ती है!
देश के हित में लडने को भी, अस्मत देनी पड़ती है!
सुनता नहीं कोई पुकारें, सत्ता के गलियारे में!
अक्सर कस्ती डूबते देखी, हमनें ख़ूब किनारों में!
आगे बढने की कीमत, बेटी से मांगी जाती है!
अस्मत देकर वह कीमत, ज़ालिम को चुकाई जाती है!
क्या ऐसे लोगों को भी, फांसी पै चढाया जाएगा!
बेटी की अस्मत को बोलो, कैसे बचाया जाएगा!
कदम-क़दम पै खड़े भेडिया, सरकारी मेहमान है!
बेटी बचाओ का झांसा देकर, करते ख़ूब अपमान है!
महिला आयोग और संगठन, सारे चुप्पी साधे है!
लगता है इस जुल्म-ओ-सितम के, हिस्से सबने बांटे है!
कब जागेगा देश हमारा, बोलो “सागर” तुम बोलो!
जनता से अब तुम ही कहदो, खुलकर अपना मुंह खोलो!
डॉ. नरेश “सागर”
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