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तो दीवाली हो जाये
तो दीवाली हो जाये
मूढ मनों में जगे रौशनी
जडता जड से मिट जाये
तो दीवाली हो जाये।
नीर निहारे नित-नित प्यासे
नयना तृप्त जो हो जायें
तो, दीवाली हो जाये।
जीवन संध्या काट रहे जो
उन्हें सवेरा मिल जाये
तो दीवाली हो जाये।
दीन दुखी पल-पल रोते जो
अंतर्मन से मुुस्कायें
तो, दीवाली हो जाये।
काली काली रातें जिनकी
अंधकार तम मिट जाये
तो, दीवाली हो जाये।
पंगु बैठा पर्वत नीचे
शीर्ष तलक तक चढ जाये
तो, दीवाली हो जाये।
नहीं रौशनी जिनके नयनन
सच में सबकुछ दिख जाये
तो, दीवाली हो जाये।
जो राह भरी हो कांटों से
वो राह फूल से खिल जाये
तो, दीवाली हो जाये
अश्रु बहें निज के खोने से
निज निज, निज-निज को पायें
तो, दीवाली हो जाये
दीप जलें फुलझडी जलें
संग मन में दीपक जल जायें
तो, दीवाली हो जाये।
तो, दीवाली हो जाये,
तो, दीवाली हो जाये।
दिनेश सेन “शुभ”
जबलपुर मप्र
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