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चुनाव की मंडी : भ्रमजाल में ख़ुद भी फंसिए और दूसरों को भी फंसाईये…
चुनाव की मंडी: आइए, आइए साहेबान! एक बार हमारी तरफ़ भी नज़र फरमाऐं। सब कुछ आपके लिए ही तो सजा रखा है। भारी डिस्काउंट, गिफ्ट आइटम। सब कुछ तो है। एक बार हमारी तरफ़ आकर तो देखें। वादा रहा। निराश नहीं करेंगे। क्या कहा, गारंटी! जी, फुल गारंटी। कोई टेंशन नहीं। शिकायत मिले तो सौ फीसदी रिटर्न। अरे भाई! उधर मत जाओ। धोखेबाज हैं। गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं। मौके के यार हैं। अभी दिख रहे हैं। काम निकलते ही अपना मजमा समेट ऐसे निकल जायेंगे, जैसे कभी यहाँ थे ही नहीं। इनका एक ठिकाना हो तो आपको बताएँ। जितने आप और हम कपड़े नहीं बदलते, उससे ज़्यादा तो ये ठिकाने बदल लेते हैं। क्या कहा? ये ज़ुबान के सच्चे हैं। भाई साहब, आप कौन से युग में जी रहे हैं। ये त्रेता के सत्यवादी हरिश्चन्द्र थोड़े ही हैं, जो ज़ुबान के पक्के हो। ये तो कलियुग के मिथ्यावादी हरिश्चंद्र हैं। कहेंगे कुछ और करेंगे कुछ। भूल गए पिछली बार आपसे इन्होंने क्या कहा था। बड़ी जल्दी भूल गए आप तो। ये वही है जो दही के नाम पर आपको कपास थमा गए थे। आप भी सोच रहे होंगे कि गाड़ी कौनसी पटरी पर चढ़ गई है। सब्र रखें। सब बताते हैं। आपको नहीं बताएंगे तो किसे बताएंगे। ये इलेक्शन स्पेशल ट्रेन है। हर क्षण इसका नया ड्राइवर और नया स्टेशन है। हाँ यात्री पुराने ज़्यादा और नए कम हैं।
चुनावी बाज़ार की शुरुआत हो चुकी है। वोट जुटाने वाले प्रमुख ‘होलसेल व्यापारी’ बाज़ार में गाजे बाजे के साथ अपना मजमा लगा चुके हैं। सीजन को देखते हुए कारिंदों की फ़ौज वक़्त के साथ दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। बाज़ार की मांग अनुसार रोज़ कुरतों और फटकों के रंग बदले जा रहे हैं। सीजन का फायदा उठाने वाले वोट के होलसेल व्यापारियों ने जगह-जगह अपने बंदे छोड़ दिए हैं। जो जैसे तैसे वोटरनुमा उपभोक्ताओं को लुभा अपनी ओर खींचने के जोड़ तोड़ के प्रयास में हैं।
बिना लाग लपेट कहने का सीधा भाव यह है कि फिलहाल राजनेताओं का सीजन चल रहा है? आए दिन किसी ना किसी को अपना फटका पहनाकर अधिक से अधिक संख्या में भावी ‘माननीय’ रूपी फ्रेंचाइजर बनाए जा रहे हैं। ‘आगामी समय में आपको ही आशीर्वाद मिलेगा’ यह जुमला लगातार उन्हें सादर भेंट स्वरूप मिल रहा है। एक ही क्षेत्र रूपी बाज़ार की फ्रेंचाइजी लेने वाले बीसों छोटे व्यापारी वोट रूपी सिक्योरिटी भरने को लालायित खड़े हैं। इसी का फायदा यह कहकर उठाया जा रहा है, वोट एकत्रीकरण में जिस व्यापारी की मार्केटिंग स्ट्रेजी स्ट्रॉन्ग रही, आशीर्वाद उसे ही मिलेगा। इसलिए बिना कुछ विचारे मैदान में लगे रहो। कोई हतोत्साहित होकर मैदान छोड़ दूसरे पाले में न चला जाए, इसका भी डायरेक्टर टीम विशेष ध्यान रख रही है। बीच-बीच में ग्लुकोन-डी या मिक्स फ्रूट जूस के रूप में यह कहना उनमें और जोश भर रहा है कि आप ही सबसे आगे चल रहे हो। हाईकमान के पास आपकी पॉजिटिव रिपोर्ट है। बस जोश में होश रखिए, इस बार आपका ही राजयोग का योग है।
‘माननीय’ बनवाने का सौ फीसदी आश्वासन
होलसेल व्यापारियों के ‘जुबानी माल’ को भोले भाले मतदाताओं तक हर हाल में पहुँचाया जाना इनका प्रथम लक्ष्य है। सत्ता की फ्रेंचाइजी लेने वाले ‘भावी माननीय’ भी कमतर नहीं हैं। वे भी गांव-गांव और गली-मोहल्लों में अपने-अपने रिटेलर खड़े कर रहे हैं?। ये सभी रिटेलर एक ही कंपनी के ‘जुबानी माल’ का प्रचार कम और अपने होलसेल व्यापारी का अधिक गुणगान ज़्यादा कर रहे हैं। समय के अनुरूप चलने के लिए यदि फिजिकली आमने-सामने प्रचार रूपी भ्रमजाल नहीं फेल पा रहा तो सोशल मीडिया का सहारा लेने में भी ये कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे। कई बार तो रिटेलर अपनी ही कंपनी के दूसरे होलसेल व्यापारी की पुरानी कंपनी में रहते हुए किए गए वायदों और खाई गई कसमों का पुराना चिट्ठा खोलने में भी कंजूसी नहीं बरत रहे। एक दूसरे को नीचा दिखाने और अपने ‘आका’ के सामने ‘ बाहुबली का दिखावा इनके खेल को और ज़्यादा निखार रहा है।
प्रचार तंत्र में कोई नहीं पीछे
ऐसा नहीं है कि चुनावी बाज़ार में उत्पादों की कमी है। बाज़ार विभिन्न रंगों के लेबल लगे उत्पादों से भरा पड़ा है। सीजन में सभी प्रोडक्ट निकालने हैं। नफा नुक़सान आंकलन करने का अभी किसी के पास समय नहीं है। अभी तो साम दाम दण्ड भेद की नीति से सभी प्रोडक्ट को बाज़ार में उतारना ज़रूरी है। पैकिंग में कोई कमी नहीं छोड़ी जा रही। दिवारें पुतवानी शुरू कर दी गई है। जगह-जगह लगे फ्लेक्स प्रोडक्ट लगातर आंखों के सामने है। कंपनी पुरानी है तो फ्रेंचाइजी लेने वालों की लंबी कतारें है। यहाँ कंपनी के ही नियम कायदे हैं। ऐसी स्थिति में फ्रेंचाइजर कोई ना नुकर कर प्रोडक्ट को बाज़ार में बेचने को तैयार खड़े हैं। हाँ नए व्यापारियों के समक्ष सबसे बड़ी चिंता फ्रेंचाइजी वितरण की है। इसके लिए सबसे पहले उन्हें फ्रेंचाइजी लेने वालो की एकबार सारी शर्ते माननी पड़ रही है। मौके के अनुसार गधों को भी बाप समान दर्जा देना पड़ रहा है।
किसे मिलेगा रसगुल्ला, सब बाद की बात
चुनावी बाज़ार में अपने प्रोडक्ट को बेचने में कौन आगे रहेगा, कौन पीछे रहेगा? इसके बारे में अभी किसी को कुछ पता नहीं। कौनसा प्रोडक्ट कामयाब रहेगा या फुस्स रहेगा। गारंटी मिलेगी या नहीं। इसका किसी के पास जवाब नहीं। फिलहाल होलसेल व्यापारी, फ्रेंचाईजर, रिटेलर सब प्रोडक्ट के गुणगान में लगे हैं। भ्रमजाल कामयाब हो यही सबका लक्ष्य है। कंपनी होलसेल व्यापारी का सीजन के बाद क्या रवैया होगा। प्रोडक्ट बिक गया तो फ्रेंचाइजी लेने वालों को क्या लाभ मिलेगा। क्या उन्हें आशीर्वाद मिलेगा या फिर अगले सीजन की बाट जोहनी पड़ेगी। या उन्हें फिर दूसरी कंपनी से कॉट्रेक्ट करने को मजबूर होना पड़ेगा। , ये सब तो आने वाले आगामी छोटे सीजन के समय ही पता चलेगा। लेकिन फिलहाल लोगों की ज़रूरतों के हिसाब से माल बेचने वाली कंपनियों का बाज़ार भले ही उठान पर ना हो, राजनीतिक पाटियों का बाज़ार सातवें आसामन पर है।
मार्केटिंग के लिए फील्ड में उतरे एजेंट : चोला समाजसेवा का, नज़र बत्ती पर
वैसे तो आप मार्केट में किसी प्रोडेक्ट बेचने वाली कंपनी की ड्रिस्ट्रीब्यूटरशिप लेते हो तो आपको तय मुनाफा ही मिल पाएगा। लेकिन फिलहाल जिन कंपनियों का सीजन चल रहा है अगर इनकी स्थाई ड्रिस्ट्रीब्यूटरशिप एक बार मिल जाए तो बस अपने और अपने परिवार के सदस्यों के सुखपूर्ण जीवन तय है। इन कंपनियों से जुड़ने के लिए समाजसेवा का चोगा सर्वाधिक उपयोगी है। इससे इंट्री सीधी हो रही है। सभी की नज़र ‘मछली की आंख” की तरह’ लाल बत्ती’ पर है। एक बार मिल जाए तो बात बन जाए। फिर उन्हें पांच साल तक न तो रिटेलर चाहिए और न ही उपभोक्ता…?
सुशील कुमार ‘नवीन’ , हिसार
९६७१७ २६२३७
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार है। दो बार अकादमी सम्मान से भी सम्मानित हैं।
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