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गुरु को समर्पित कुछ दोहे
गुरु को समर्पित कुछ दोहे
गुरु वंदना कीजिये, नित उठ शीश झुकाय
गुरु ज्ञान को लीजिये, हृदय बीच समाय
गुरु वाणी मिट्ठी लगे, निर्झर बरसे नेह
अमृत की धारा बहे अंतर में लें गेह
गुरु गुण लिखे जाय ना गुण है अपरंपार
बिन स्वार्थ करते गुरु, साधक पर उपकार
गुरु मिलावे राम से, देख लियो अजमाय
अंतर के पट खोल दे, बैठो ध्यान लगाय
गुरु ज्ञान भंडार है, गुरु गुणों की खान
गुरु ज्ञान ना पावही, कहते चतुर सुजान
गुरु शरण में आइये, मन में श्रद्धा धार
भवसागर भारी बड़ा, गुरु उतारे पार
गुरु सुझावे राह जो, चलिये निर्भय होय
अपना आपा सौंप दें, फिर डर नाही कोय
गुरु सेवा सर्वोपरि, मात-पिता का मान
फिर सेवा परिवार की, पीछे सकल जहान
गुर सरना ऐसे गहो, जैसे दीप पतंग
जान जाय बिसरे नहीं जरे दिये के संग
गुर की सेवा कीजिये, तन मन ध्यान लगाय
गुर सेवा मेवा मिले, नित उठ लागो पाय
सुशीला यादव
गुरुग्राम
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