
कृष्णा सोबती की जीवनी
कृष्णा सोबती की जीवनी पढ़ें – जिंदगीनामा, मित्रो मरजानी जैसी कृतियों की लेखिका। हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श की सशक्त आवाज़।
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कृष्णा सोबती की जीवनी: हिंदी साहित्य की अग्रणी हस्ती
हिंदी साहित्य का इतिहास अनेक प्रतिभाशाली लेखकों और रचनाकारों से भरा पड़ा है। इनमें से कुछ लेखक ऐसे हुए जिन्होंने न केवल अपनी रचनाओं से साहित्य को नई दिशा दी, बल्कि समाज की सोच और दृष्टिकोण को भी गहराई से प्रभावित किया। कृष्णा सोबती (1925–2019) उन्हीं महान साहित्यकारों में से एक थीं।
वे हिंदी साहित्य में स्त्री की पहचान, स्वतंत्रता और अस्तित्व को मुखर करने वाली लेखिका के रूप में जानी जाती हैं। उनकी रचनाएँ सामाजिक यथार्थ, स्त्री जीवन के संघर्ष, प्रेम, राजनीति और मानवीय मूल्यों की गहरी पड़ताल करती हैं।
कृष्णा सोबती का लेखन उनकी साहसिक भाषा, निर्भीक दृष्टिकोण और यथार्थपरक कथानकों के लिए विशेष रूप से सराहा गया। उन्होंने हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श को नई ऊँचाई दी और अपने लेखन से यह साबित किया कि साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज का दर्पण भी है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी 1925 को पाकिस्तान के गुजरात जिले (अब पाकिस्तान में) के खंडवा नामक स्थान पर हुआ था। उनका परिवार शिक्षित और प्रगतिशील विचारों वाला था। पिता राय बहादुर श्रीराम सोबती और माता शीला रानी ने उन्हें स्वतंत्र सोच और शिक्षा के वातावरण में पाला।
बचपन से ही कृष्णा को पढ़ने-लिखने का शौक था। उन्होंने शुरुआती पढ़ाई शिमला और लाहौर में की। बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
उनके जीवन पर विभाजन (1947) का गहरा असर पड़ा। जब भारत और पाकिस्तान बँटे, तो सोबती का परिवार दिल्ली आ गया। यह अनुभव उनकी संवेदनाओं में इतनी गहराई से बैठ गया कि बाद में उनकी रचनाओं में विभाजन की त्रासदी बार-बार उभरकर सामने आई।
साहित्यिक यात्रा की शुरुआत
कृष्णा सोबती का लेखन सफर 1944 में शुरू हुआ। उनकी पहली कहानी का नाम था “लामा”, जो लाहौर से प्रकाशित पत्रिका शनि में छपी थी। यहीं से उन्हें साहित्यिक दुनिया में पहचान मिलने लगी।
लेकिन उनकी असली पहचान बनी उनके उपन्यास और कहानियों से, जिनमें समाज और स्त्री जीवन का गहन चित्रण मिलता है।
उनका पहला प्रसिद्ध उपन्यास “डार से बिछुड़ी” (1958) है, जो स्त्री जीवन और उसकी जटिलताओं पर केंद्रित था। इस उपन्यास ने उन्हें साहित्य जगत में स्थापित कर दिया। इसके बाद उन्होंने कई कालजयी रचनाएँ लिखीं, जैसे –
- मित्रो मरजानी (1966)
- जिंदगीनामा (1979)
- दिल-ओ-दानिश (1993)
- ऐ लड़की (1991)
- समय सरगम (1996)
- गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान (2017)
प्रमुख रचनाएँ और उनकी विशेषताएँ
1. डार से बिछुड़ी
यह उपन्यास विभाजन की त्रासदी और स्त्री की पीड़ा को बखूबी चित्रित करता है। इसमें एक ऐसी स्त्री की कहानी है जो परिवार, रिश्तों और समाज के बंधनों के बीच अपने अस्तित्व की तलाश करती है।
2. मित्रो मरजानी
यह रचना कृष्णा सोबती को हिंदी साहित्य में एक साहसी और निर्भीक लेखिका के रूप में स्थापित करती है। इस उपन्यास में स्त्री की कामना, उसका प्रेम और उसकी स्वतंत्रता को बिना किसी झिझक के प्रस्तुत किया गया है। मित्रो का चरित्र आज भी हिंदी साहित्य में स्त्री सशक्तिकरण का प्रतीक माना जाता है।
3. जिंदगीनामा
यह उनकी सबसे महत्वपूर्ण और चर्चित कृति है। इसे एपिक नॉवेल कहा जाता है। इस उपन्यास में पंजाब के ग्रामीण जीवन, संस्कृति और विभाजन की त्रासदी का बेहद गहरा चित्रण है। यह उपन्यास उन्हें 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिलाता है।
4. ऐ लड़की
इस उपन्यास में माँ-बेटी के संबंधों की संवेदनशील कहानी है। यह रचना स्त्री विमर्श और पारिवारिक संबंधों की गहराई को सामने लाती है।
5. दिल-ओ-दानिश
यह उपन्यास रिश्तों की जटिलताओं, प्रेम, वासना और सामाजिक बंधनों पर आधारित है। इसमें भाषा का ऐसा प्रयोग है जो पाठक को बाँधे रखता है।
6. गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान
यह रचना आत्मकथात्मक है। इसमें उन्होंने अपने बचपन से लेकर विभाजन और उसके बाद के जीवन का जीवंत चित्रण किया है।
लेखन शैली और दृष्टिकोण
कृष्णा सोबती की भाषा बेहद जीवंत, बोलचाल की और क्षेत्रीय रंग से भरी हुई है। उनकी लेखन शैली में पंजाबी, पहाड़ी और उर्दू का प्रभाव साफ दिखता है।
उनकी विशेषताएँ –
- यथार्थ और कल्पना का संतुलित संयोजन।
- स्त्री जीवन और उसकी इच्छाओं का सशक्त चित्रण।
- सामाजिक यथार्थ और राजनीतिक घटनाओं पर पैनी दृष्टि।
- भाषा में विविधता और साहसिक प्रयोग।
स्त्री विमर्श और समाज पर दृष्टिकोण
कृष्णा सोबती हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श की सबसे सशक्त आवाज़ों में से एक मानी जाती हैं। उन्होंने स्त्री को केवल माँ, पत्नी या बहन की भूमिका में नहीं बाँधा, बल्कि उसे एक स्वतंत्र और संवेदनशील इंसान के रूप में प्रस्तुत किया।
उनकी रचनाओं में स्त्री की कामना, उसकी स्वतंत्रता और उसकी आवाज़ को बेहद स्पष्ट और निर्भीकता से अभिव्यक्त किया गया। यही कारण है कि उन्हें नारीवादी लेखिका भी कहा जाता है।
पुरस्कार और सम्मान
कृष्णा सोबती को साहित्य में उनके योगदान के लिए अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले –
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1980) – जिंदगीनामा के लिए
- पद्म भूषण (2010) – लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया
- ज्ञानपीठ पुरस्कार (2017) – हिंदी साहित्य की सर्वोच्च उपलब्धि
- साहित्य अकादमी फैलोशिप (1996)
- अन्य कई सम्मान और उपाधियाँ
आलोचना और विवाद
कृष्णा सोबती हमेशा अपने विचारों और लेखन में बेबाक रही हैं। उनके कुछ उपन्यास जैसे मित्रो मरजानी को लेकर समाज के परंपरावादी वर्ग ने आपत्ति जताई। लेकिन धीरे-धीरे यह रचना स्त्री स्वतंत्रता का प्रतीक बन गई।
उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर भी स्पष्ट राय रखी, जिससे वे कई बार विवादों में रहीं।
कृष्णा सोबती की विरासत
कृष्णा सोबती का योगदान केवल साहित्य तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने हिंदी भाषा और समाज की सोच को भी नई दिशा दी। उन्होंने यह दिखाया कि स्त्री भी अपनी इच्छाओं और सपनों के साथ जीने का अधिकार रखती है।
उनकी रचनाएँ आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। वे हिंदी साहित्य में आवाज़, आत्मविश्वास और स्वतंत्रता की पहचान हैं।
निष्कर्ष
कृष्णा सोबती का जीवन और साहित्य दोनों ही समाज के लिए प्रेरणा हैं। उन्होंने अपने लेखन से यह साबित किया कि साहित्य में साहस, सच्चाई और संवेदनशीलता सबसे महत्वपूर्ण हैं।
उनकी रचनाएँ आने वाले समय में भी पढ़ी और समझी जाती रहेंगी। वे हिंदी साहित्य की ऐसी विरासत छोड़कर गई हैं, जिसे भुलाया नहीं जा सकता।
✅ FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
कृष्णा सोबती कौन थीं?
👉 कृष्णा सोबती हिंदी की प्रसिद्ध उपन्यासकार थीं। वे जिंदगीनामा, मित्रो मरजानी और ऐ लड़की जैसी कालजयी कृतियों की लेखिका हैं।
कृष्णा सोबती की प्रमुख रचनाएँ कौन-सी हैं?
👉 उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं – डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, जिंदगीनामा, ऐ लड़की, दिल-ओ-दानिश, और गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान।
कृष्णा सोबती को कौन-कौन से पुरस्कार मिले?
👉 उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार (1980), ज्ञानपीठ पुरस्कार (2017), और साहित्य अकादमी फैलोशिप (1996) जैसे बड़े सम्मान मिले।
कृष्णा सोबती को किस विषय पर सबसे अधिक लिखा गया?
👉 उनकी रचनाओं में स्त्री जीवन, स्वतंत्रता, प्रेम, राजनीति, विभाजन और समाज प्रमुख विषय रहे।
कृष्णा सोबती का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास कौन सा है?
👉 जिंदगीनामा को उनकी सबसे प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण कृति माना जाता है।
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