भारत की राष्ट्रपति ने अपनी उपस्थिति से साहित्य आज तक समारोह को गौरवान्वित किया और आज तक साहित्य जागृति सम्मान प्रदान किए
भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज (23 नवंबर, 2024) नई दिल्ली में साहित्य आज तक समारोह को सुशोभित किया और आज तक साहित्य जागृति सम्मान प्रदान किए।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने ‘आज तक साहित्य जागृति सम्मान’ के विजेताओं को बधाई दी। उन्होंने विशेष रूप से गुलज़ार साहब को ‘आज तक साहित्य जागृति लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवार्ड’ मिलने पर बधाई दी। उन्होंने साहित्य और कला जगत के प्रति उनकी समर्पण की सराहना की।
राष्ट्रपति ने यह जानकर प्रसन्नता व्यक्त की कि आज के पुरस्कार विजेताओं के पुरस्कृत कार्यों में भारत की विविधता, अतीत से वर्तमान तक, परिलक्षित होती है और यह कई पीढ़ियों के लेखकों को एक साथ प्रस्तुत करती है। उन्होंने कहा कि हमारे देश के क्षेत्रीय साहित्यिक कार्यों में देशव्यापी चेतना सदैव विद्यमान रही है। यह चेतना हमारी पूरी यात्रा में, रामायण और महाभारत के समय से लेकर हमारे स्वतंत्रता संग्राम तक, और आज के साहित्य में भी दिखाई देती है।
राष्ट्रपति ने इस समारोह के आयोजन के लिए इंडिया टुडे ग्रुप की सराहना की। उन्होंने ग्रुप से क्षेत्रीय साहित्य की पहुँच आम जनता तक बढ़ाने के लिए काम करने की अपील की। उन्होंने अन्य वंचित वर्गों के साहित्य – जिसे उपेक्षित साहित्य कहा जाता है – को प्रोत्साहित करने का भी अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि इस ग्रुप को साहित्य के छिपे हुए रत्नों को सामने लाना चाहिए। साहित्यिक पत्रिकाएँ बड़ी मुश्किल से साहित्यिक सेवा का काम कर सकती हैं। लेकिन यह ग्रुप प्रौद्योगिकी के माध्यम से इस काम को बहुत बड़े पैमाने पर कर सकता है। उन्होंने सभी से बाल साहित्य को प्रोत्साहित करने का भी आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मौलिक लेखन और अनुवाद के माध्यम से बाल साहित्य को समृद्ध करने से देश और समाज को समृद्ध करने में मदद मिलेगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि यह देखा गया है कि जिन लेखकों का जुड़ाव जनता के सुख-दुःख से जुड़ा रहता है, उनका काम पाठकों को पसंद आता है। समाज उन लेखकों को अस्वीकार करता है जो समाज के अनुभवों को कच्चे माल के रूप में देखते हैं। ऐसे लेखकों का काम एक छोटे से साहित्यिक प्रतिष्ठान तक ही सीमित रह जाता है। जहाँ बौद्धिक अहंकार और पूर्वाग्रह है, वहाँ साहित्य नहीं है। जनता के दुखों और पीड़ाओं को साझा करना साहित्य की पहली शर्त है। दूसरे शब्दों में, साहित्य को मानवता के प्रवाह से जुड़ना होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि साहित्य मानवता को सशक्त बनाता है और समाज को बेहतर बनाता है। साहित्य बदलते परिवेश के अनुसार मानवता के शाश्वत मूल्यों को ढालता है। साहित्य समाज को नया जीवन देता है। कई संतों और कवियों ने महात्मा गांधी के विचारों को प्रभावित किया। साहित्य के इस प्रभाव का सम्मान किया जाना चाहिए।
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