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आंखों से समंदर बरस गया
आंखों से समंदर बरस गया
लहू से ये जो सब लबालब कर गया।
ना जाने कैसे मैं ख़ुद ही ख़ुद में मर गया॥
कल तलक़ मिरे लफ़्ज़ों के तराने थे।
आज एक शख़्स उनसे किनारा कर गया॥
चंद झोंको ने रुख़ क्या किया मिरे हुजरे तरफ।
अंधेरों को लगता है ईमान ऐ चराग़ डर गया॥
बचपने में हमनें युहीं बचपन बीता दिया।
बचपन बीता नहीं बुढ़ापा नज़र कर गया॥
ये मिरी कश्ति को साजिशो से डुबाने वालो।
लहरों से पुछो की तुम्हारा किनारा किधर गया॥
मिरी ग़जलों में मुफ़लिस मुफ़लिसी में ही रहा।
नाजाने कैसे चायवाला साहिबे मसनद बन गया॥
प्यासों की ख़ातिर उनसे एक बूंद ना दिया गया।
ये सोचकर ही ‘आग’ आंखों से समंदर बरस गया॥
सुना है कमाल लिखते हो
कलम से खयाल लिखते हो।
सुना है कमाल लिखते हो॥
फिसलती सांसो की तरह।
छुपाकर मलाल लिखते हो॥
राजनीति का खून है फैला।
आप तो गुलाल लिखते हो॥
कल तक किस्से कहानिया थी।
आज दिल के हाल लिखते हो॥
जलते मुल्क पर रहम देखो।
तुम कछुआ चाल लिखते हो॥
लूट गई आबरू वतन की बहुत।
अभी और सौ साल लिखते हो॥
कफन में लिपटा पड़ा लोकतंत्र ‘आग’ ।
सफेदपोशो तुम निहाल लिखते हो॥
यक़ीनन एक रोज़ हम मर जाएंगे
यक़ीनन एक रोज़ हम मर जाएंगे,
यानी कि फिर मुकम्मल घर जाएँगे।
ये जो हर रोज़ नफरतों को पाले है,
है सच कल वह बेतहाशा बिखर जाएँगे।
ये खेतो के बटवारे में रिश्ते बिगाड़ने वाले,
रिश्ते बिगड़ते ही गाँव छोड़ शहर जाएँगे।
हर रोज़ मुफ़लिसी को कोसने वालो,
मुफ़लिसी ना रही तो फिर किधर जाएँगे।
बैठा करो क़दमो में अपने कुम्हार के “आग” ,
दुआओ में असर इतना कि हम सवर जाएँगे।
एक तेरी बातों से
एक तेरी बातों से सब कुछ बिखर गया
ठोकरें खाकर एक शख़्स यू निखर गया
आंधी ही तो थी जिसमें एक शजर गया
पर ना जाने कितने परिंदों का घर गया
उसने कहाँ चले जाओ ज़िन्दगी से हमारे
जमाना ढूँढता है वह शख़्स किधर गया
बेवफ़ा तू निकली इसकी वज़ह क्या थी
तेरा शहर बेवफ़ा था मैं जिधर-जिधर गया
टूटे दिल के टुकड़ों को छोड़ कर चला था मै
होश आया तो देखा मेरा दिल किधर गया
तेरी यादों के सितम तेरे बाद भी जीने नहीं देते
भरी महफिल में मुस्कुराया कि आंसू निकल गया
अब तो ज़िंदा रहने की दुआ सभी करते हैं “आग”
एक तेरी बद्दुआ असर कर गई मैं मर गया
कौन है
मेरी इन हालातों का कसूरवार कौन है
लोग मुझसे पूछते है मेरा यार कौन है
तन्हाई में अक्सर हम तन्हा रहकर जिये
क्या कहे तन्हाई का गुनहगार कौन है
मेरा होकर जो मेरा न हो सका इक पल
दर्द पूछता है दर्द का जिमेवार कौन है
मुझे प्यार के बदले प्यार मिल नहीं सकता
आंखों से आँशु कहते है बता तेरा प्यार कौन है
मेरे दिल की बीमारी से ज़्यादा बीमार हु मैं
क़त्ल कहे या ख़ुदख़ुशी ये हथियार कौन है
तेरी वफ़ा अब तो वफादार नहीं लगती
इस तरह टूटने को अब तैयार कौन है
मेरे हर ज़ख्म पर इक ज़ख्म और भी है
मेरी तरह जख्मो का तलबगार कौन है
मेरी तखलीफो में कौन-कौन नहीं है शामिल
ये बेगुनाह शख़्स यहाँ व्यापार में कौन है
करते जो दावा हमसे बेइंतहा मुहोब्बत का
उनके जैसा दर्द देने वाला बेशुमार कौन है
कुछ नज़र नहीं आता जिनको आजकल
ये बताओ हमारे अलावा दीवार कौन है
कभी थे जो हमारे लफ्जो के तलबगार
आज पूछते है आग ये बीमार कौन है
भरत कुमार आगलेचा
जिला पाली राजस्थान
मरुधर (मारवाड़)
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