
अमर्त्य-सत्यम
एक समय की बात है किसी नगर में दो ब्राह्मण पुरुष रहते थे एक का नाम सत्यम था तथा दूसरे का नाम अमर्त्य था। सत्यम ब्राह्मण बड़ी ही निष्ठा के साथ अपने प्रभु की उपासना किया करता था वह भी बिना किसी स्वार्थ के। परंतु अमर्त्य ब्राह्मण जब भी पूजा करता किसी ने किसी स्वार्थ की कामना से करता था। सत्यम ब्राह्मण प्रतिदिन ईश्वर को धन्यवाद कहता कि आपने मुझे सब कुछ दिया हैं।
अमर्त्य ब्राह्मण ईश्वर से जो भी मांगता बदले में कुछ बोल देता था। ईश्वर भी दोनों ब्राह्मणों की सुनता जिसने नहीं मांगा उसे बिन मांगे ही ज़्यादा दे देता और जिसने जो मांगा उसे बस वही देता।
सत्यम ब्राह्मण हमेशा संतुष्ट और खुश रहता था क्योंकि उसे पता था प्रभु हमेशा अच्छा ही करेंगे परंतु अमर्त्य ब्राह्मण की ज्यों-ज्यों लालसा पूरी होती जाती त्यों-त्यों लालसा और बढ़ती जाती। इसी लालसा के चलते अमर्त्य ब्राह्मण बहुत कुछ मिलने के बाद भी खुश नहीं होता और उसका जीवन इतना खुशहाल नहीं रहता जितना कि सत्यम ब्राह्मण का।
सीख१- ईश्वर से कुछ भी मांगने की बजाय उसे धन्यवाद करिए ताकि ईश्वर को भी ना लगे कि हमेशा स्वार्थ की भावना से ही मुझे याद करता हैं
सीख२- ईश्वर को प्रेम करें, ईश्वर का आदर करें, अपमान नहीं। ईश्वर को मनौती का ज़रिया न समझे ईश्वर ने बिना मांगे ही बहुत कुछ दिया हैं उनका सच्चे दिल से धन्यवाद करें।
लक्ष्मी विजेन्द्र जैन, कोटा, राजस्थान
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