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अपना स्वयं सुधारक बन
गलतियों का संहारक बन
अपना स्वयं सुधारक बन।
क्यूं उम्मीद रखें किसी से
लोगों से रहें सभी बच के,
इतना तो हम, हैं ही ज्ञानी
अच्छी बुरी हर बात जानी,
आत्म-बोध होता ही होगा
स्वयं मन ने भी रोका होगा,
अपनी ज़िन्दगी वाहक बन
गलतियों का संहारक बन।
गलती मानना होता बड़प्पन
वरना करोगे व्यर्थ का रुदन,
फल भी तुम ही तो भुगतोगे
अपने को किस पर छोड़ोगे,
गलतियाँ होना है लाजिमी
किसमें नहीं होती है कमी,
मान लेना होती समझदारी
यही तो होती है जिम्मेदारी,
खुद का ख़ुद ही धारक बन
गलतियों का संहारक बन।
मन पछी
मन पछी जब पिंजर से उड़, गाए
लाख करो जतन पर लौट न आए
विचारों के विशाल अंधेरे-नभ में
देखो ये चंचल मन उड़ता ही जाए
कोई कहे यह है लक्ष्मी-सा चंचल
कोई कहता अश्व दौड़ता अविरल
कोई कहता यह आंधी-सा बेकाबू
मन को कुछ जब, समझ न आए
देखो ये चंचल मन उड़ता ही जाए
काम क्रोध मोह लोभ से है पलता
कुंठित हो कर, हताशा में जलता
सोच-समझ की रहती ना परवाह
कैद में मन को जकड़ती इच्छाए
देखो ये चंचल मन उड़ता ही जाए
मन को वश में हम करना सीखें
जैसा व्यक्तित्व वैसे ही सभी दिखें
संतोष रखेंगें, तो रहेंगें परम सुखी
व्यर्थ में इधर-उधर समय न गवांए
देखो ये चंचल मन उड़ता ही जाए
मन के आगे जब हमारी न चलती
खत्म होती है बुद्धि तन की शक्ति
प्रयास करोगे तभी सफलता होगी
शेख-चिल्ली से क्यूं स्वप्न यह आए
देखो ये चंचल मन उड़ता ही जाए।
संजय गुप्ता देवेश
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