Table of Contents
अनजान व्यक्ति का अनजान पते पर खत
अनजान व्यक्ति का अनजान पते पर खत
चावल रंगी-सी सुशील और सुन्दर, कद में लंबी, दुबली पतली परमजीत कौर, जिसको प्यार से घर वाले जस्सी के नाम से बुलात थे, मृदु स्वभाव की चंचल और नटखट लड़की थी। घर में माता-पिता, एक छोटा भाई और बुढी दादी थी। दादा जी पिछले ही साल बुआ की शादी के कुछ दिन बाद भगवान को प्यारे हो गए थे। वह घर के सभी सदस्यों के साथ नीचे भूमि तल पर मकान में रहते थे।
घर की ऊपर वाली मंज़िल पर एक किराए पर छोटा-सा परिवार रहता था, जिसमें एक सोलह वर्ष की लड़की अपने माता-पिता के साथ रहती थी जो कि कुछ दिन पहले ही वह यह घर छोड़कर किसी दूसरे घर में सिफ्ट हो गए थे। एक दिन जस्सी घर पर दादी के साथ अकेली थी, बाकी के सदस्य शादी सामारोह में गए हुए थे। उस रोज़ दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवाजा खुलते ही एक खाकी वर्दी डाले डाकिए ने एक पत्र सीमा चहल के नाम का उसके हाथ में पकड़ाया। सीमा वही लड़की थी जो उनके घर पर किराए पर रहती थी।
अन्तर्देशीय पत्र पर लिखने वाले का कोई नाम व पता अंकित नहीं था। उत्सुकतावश जस्सी ने पत्र खोला और ऊपर जाकर चौबारे में बैठकर पढ़ने बैठ गई। जिज्ञासावश वह उस पत्र को तन्तम्यता के साथ पढ़ती जा रही थी। वो एक सीमा के नाम उसके प्रेमी का जवाब न देने पर नाराजगी भरा प्रेम पत्र था। वो काफ़ी परेशान था और प्रेम भावों से पूर्णतया वशीभूत था। पत्र के अंत में उसने अपना नाम व मोबाइल नंबर लिखा था।
जस्सी जो कि स्वभाव से चंचल और नटखट थी, ने उस लड़के को यह बताने के लिए कॉल किया कि सीमा घर परिवार सहित घर छोड़कर जा चुकी है और जहाँ गई है, वहाँ का उसके पास अता पता नहीं है। धीरे-धीरे जस्सी और वह लड़का जिसका नाम नरेन्द्र था, निरन्तरता में बाते करने लगे और एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हुए प्यार में गिरफ्तार हो गए और एक दूसरे को बेइंतहा चाहने लगे।
लड़के ने अपने घरवालों को विस्वास में लेकर जस्सी का रिश्ते के लिए जस्सी के घर भेज दिया और जस्सी ने भी अपनी श्रेष्ठ मैत्री दादी माँ के माध्यम से अपने घरवालों को नरेन्द्र के साथ शादी के बंधन में बंधने के लिए राजी कर लिया था। दोनों की दोनों तरफों की रजामंदी के साथ ख़ुशी खुशी और ठाठ बाठ के साथ शादी हो गई थी। इस प्रकार एक अनजान पते से मिले अनजान व्यक्ति के ख़त ने दोनों को सदा-सदा के लिए एक कर दिया था।
मेरी सामने वाली खुली खिड़की
बारहवीं की परीक्षा उतीर्ण करने के पश्चात आगे की इंजीनियरिंग की पढाई हेतु गाँव से लगभग ३५० किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के पुणे शहर के बाहरी निर्जन क्षेत्र में बने इंजीनियरिंग महाविद्यालय में दाखिला लिया था। महाविद्यालय आवासीय नहीं था, इसलिए रहने हेतु शहर में एक प्रतिष्ठित पी.जी. में एक कमरा किराये पर ले लिया। शुरुआती दिनों में कमरे मन नहीं लगता था, क्योंकि मन अभी तक घर और गाँव की स्मृतियों तक ही सीमित था।
मेरे कमरे की खिड़की से सट कर एक कुर्सी और मेज के साथ मैंने पढने की व्यवस्था की थी। गर्मियों में अकसर हवा और प्रकाश के उद्देश्य हेतु मैं बंद खिडक़ी को खोल लिया करता था। मेरी खिडक़ी के सामने वाले घर की खिडक़ी भी मेरी खिडक़ी की ओर खुलती थी। कुछ दिन तो वह खिड़की बंद रही। एक दिन अचानक वह खिडक़ी आवाज़ के साथ खुली। आवाज़ से खिड़की खुलते ही मेरा ध्यान भंग होकर उस ओर आकृष्ट हुआ।
खुली खिड़की मेंं मेरी ओर झांकते सुंदर मासुम से आकर्षित करने वाले अर्द्ध घुंघराले गेसुओं से ढके गोरे गोल मटोल चेहरा देखकर मैं दंग रह गया। श्वेत हिम-सा अपने स्थान पर जम-सा गया। उम्र कोई १६-१८ की होगी। खिडक़ी में से आते सूर्य की प्रकाश के ताप से अपने गीले बालों को सुखाने का प्रयत्न कर रही थी। झटकते गेसुओं में से गिरती शबनम-सी पानी की बूँदें अच्छी लग रही थी। उसने मेनका अप्सरा-सी भांति मुझ विश्वामित्र का पढाई में ध्यान पूर्णता भंग कर दिया था।
मैं पढाई को भूलकर टकटकी लगाए सुंदरी की सुंदरता को अपनी मयकशी नजरों से निहार रहा था। उसका ध्यान मेरी ओर जैसे ही हुआ, मैंने अपनी आँखे नीचे कर ली थी। लेकिन मैंने उसकी मद्धिम-सी मंद मद मुस्कान को देख लिया था। मेरे अंदर की धड़कन तेज हो गई थी और तनबदन अंग-प्रत्यंग सिरहन। खिड़की बंद कर वह जा चुकी थी। परन्तु मेरी नज़र अब भी उसकी खिडक़ी की तरफ़ था।
यह सिलसिला प्रत्येक रविवार और छुट्टी वाले दिन निरन्तरता में जारी रहता। हम दोनों एक दूसरे की ओर आकर्षित हो रहे थे और मन में पैदा हो रहा था एक अलग-सा एहसास और रोमांच…।। कुछ दिनों से बंद पड़ी उसकी खिडक़ी ने मेरी बैचेनी, चिंता और शंका को बढ़ा दिया था।
पड़ताल करने पर पाया कि वह परिवार सहित किराए के घर को छोड़कर जा चुकी थी और मेरा मन व्यथित विचलित-सा उदासीन…… दिल की बात बयाँ नहीं कर पाने पर ख़ुद पर क्रोधित… उसके बिना बताए चले जाने पर गुस्सा…और उसको सदा-सदा के लिए खो दिए जाने का पछतावा। इन विचारों और एहसासों से ओत प्रोत आज भी मेरे पहले प्यार की खुली खिड़की, जो सदा के लिए बंद हो गई थी।आज भी मेरे दिल मन मैं तरोताजा और जीवित है…।
अधूरा प्रेम-प्रस्ताव
बात उन दिनों की है जब मदन आगरा महाविद्यालय में बतौर प्रवक्ता हिन्दी विषय का अध्यापन कार्य करता था। उस दौरान वह शौकिया कविता, कहानी, गजल इत्यादि लिखा करता था और समय-समय पर उनके द्वारा लिखित रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं पत्र पत्रिकाओं में निरंतरता पर प्रकाशित होती रहती थी। कई साँझा काव्य संग्रह में भी उनकी रचनाओं को शामिल किया गया था। लेकिन अब वह इस कार्य से भी ऊब गया था। लेकिन वह सोशल मीडिआ फ़ेसबुक पर कुछ न् कुछ लिख कर छोड़ दिया करता था। यह सब उनकी दैनिक क्रिया का अभिन्न अंग बन गया था।
अचानक एक दिन उनके पास किसी अंजान साँझा काव्य संग्रह संयोजिका द्वारा उनकी किसी किताब में कुछ शुल्क के साथ प्रतिभागी बनने का आमंत्रण दिया, लेकिन उन्होंने इस संदेश की और कोई ध्यान ही नहीं दिया और बात आई गई हो गई। एक दिन मोबाइल पर अज्ञात नम्बर की घंटी बजी। उसने कॉल उठाया और सामने एक मिश्री भरी मधुर आवाज़ को सुनकर मंत्रमुग्ध हो गया और यकायक बिना इरादान् उसकी मधुरिम ध्वनि की ओर आकर्षित हो रहा था और ये मधुर आवाज़ उस कंठ से निकली थी, जिसका उसको किताब में प्रतिभाग लेने हेतु प्रस्ताव आया था। उसने अपना नाम मोहिनी बताया था। …और सहर्ष उसने उसकी ध्वनि से प्रभावित होकर उसके निवेदन को स्वीकार कर लिया था।
न् जाने मदन क्यूँ उसकी ओर आकर्षित होने लगा और अपने ख्यालों, ख्वाबों में उसे सोचने लगा और अपनी परिकल्पना में उसे विश्वामित्र की तपस्या भंग करने वाली मेनका से भी सुंदर सुंदरी की कल्पना करने लगा।
और एक दिन जब उसका फ़ोन आया तो उसने उसके छायाचित्र को देखने की जिद्द की। बार-बार के प्रतिवेदन के बाद जब उसने अपना छायाचित्र भेजा तो वह उस सौन्दर्य की मूर्ति को देखकर स्तब्ध रह गया और उसे देखता ही रहा। उसे लगा जैसे स्वर्ग से कोई अप्सरा स्वर्ग से धरती पर विचरण करने हेतु उत्तरी हो। उसकी बोलती पूर्णता बंद हो गई और वह उसकी सुंदरता में वशीभूत होकर नेस्तनाबूद हो गया।
शादीशुदा होने के बावजूद भी इश्क़ के खुमार में बीमार होकर उसके दिल के प्रेम अस्पताल में दाखिल होने की जिद्द करने लगा। उसके इस बेवकूफी भरे प्रस्ताव को सुनकर मोहिनी खिलखिलाकर ज़ोर जोर से हँसते हुए कहने लगी कि अरे महोदय वह तो पहले से ही किसी और के सपनो की रानी है, मतलब की पहले से ही शादीशुदा है और वह हर जन्म में अपने पति को ही पति और प्रेमी में देखना चाहती है। लेकिन मदन की जादुई भरी प्रेम की बातों ने सपेरे की भांति कील कर रख दिया था।
बेशक मदन के प्रस्ताव को मोहिनी की ओर से कोई स्वकृति नहीं मिली, परन्तु मोहिनी उसके व्यवहार और आदर सत्कार से बहुत प्रभावित हुई, लेकिन मदन समझदार, विद्वान होने के बावजूद भी न् चाहते हुए इश्क़ की गली में कहीं खो गया था, लेकिन फिर भी उसने अपने ढंग से अपनी और से प्रेम प्रस्ताव तो दे ही दिया था, बेशक वह वो चाहे हर पल हर दम हर जन्म अधूरा ही रहे, लेकिन उसने अपने मन की भावनाओं से अपनी प्रेमिका को परिचित करवा दिया था, और वह मुंगेरी लाल सरीखे हसीन सपने दिन रात खुली व बंद आँखों से देख-देख कर अपना शेष जीवन जी रहा था।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
यह भी पढ़ें-
बहुत लाज़वाब कहानियों का लेखन h