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होमवर्क
होमवर्क
बच्चों के होम वर्क में
नहीं होतीं घर की कोई बातें
गुल्ली-डंडा, छुपम-छुपाई,
और दादी नानी की
कहानी भरी रातें
फसलों की महक
तालाब, मेंढक और मछलियाँ
नीम के पेड़ पर चढ़ता-उतरता
गिलहरियों का झुंड।
तवे पर नाचती गोल रोटी
गाय के गले में पड़ी घंटी की रुनझुन
नरम-नरम घास का एहसास
पत्तों पर दमकती उसकी बूंदें
सुबह की गुनगुनी धूप
और पूनम-अमावस की रातें
हाँ, बच्चों के होमवर्क में
नहीं होतीं घर की कोई बातें।
उसे कुछ नहीं आता
शिक्षक, सहपाठी और बच्चे
सभी कहते हैं
उसे कुछ भी नहीं आता,
नहीं सीखना है उसे कुछ भी नया
इसीलिए उसे मिली है
कक्षा की उदास दीवार की तरफ
मुंह करके खड़े होने की सजा।
सजा पूरी कर
उसके हटने के बाद
दीवार पर उभर आये हैं
इंद्रधनुष के इठलाते रंग,
फूल, पत्ती, भौंरे, नदी, पहाड़
अधखिला चांद और तारे।
क्या सच में
उसे कुछ भी नहीं आता?
सुनो शिक्षको
सुनो शिक्षको
ध्यान से सुनो
बच्चों के पास जाने से पहले
फेफड़ों से निकाल फेकों
ठहरा धुंआ और बासी हवा
और बहा दो किसी नदी में
मन के पूर्वग्रही खपरैल की राख।
उनसे बातें करो
उनके परिवेश की, गांव की
मेले की ओर बहते
कुलांचे भरते पांव की।
उनसे प्यार करो
जैसे माटी करती है दूब से
और हरीतिमा करती धूप से
बिछाकर आत्मीयता, धैर्य
और मधुरता की श्वेत चादर
उगा लो नवल सर्जना के
नन्हे-नन्हे सूरज।
तुम भी चलो उनके साथ-साथ
गिरते-उठते, दौड़ते
हंसते, गाते, गुनगुनाते
उनके अनुभवों के गारे से
जोड़कर अपने अनुभवों की ईंट
करो नया निर्माण।
बच्चों का सीखना है तभी सार्थक
जब काम पूरा हो जाने पर
बच्चों के चेहरों पर खिल उठे
सुबह की मखमली धूप।
टीचर जी
अच्छी बात हमें सिखाते टीचर जी।
मेहनत से खूब पढ़ाते टीचर जी।।
मोती-सा दांत चमकते, आंखें तेज।
पान-पत्ता नहीं चबाते टीचर जी।।
होमवर्क न करके लाते बच्चे जो।
तब डांटते, चपत लगाते टीचर जी।।
कोई बात समझ न आती, हम कहते।
एक नहीं दस बार बताते टीचर जी।।
पढ़ाते-पढ़ते मन जब लगे ऊबने।
कविता, गीत, कथा सुनाते टीचर जी।।
शेर-बकरी, लंगड़ी-दौड़, नेता-खोज।
बहुत सुंदर खेल खिलाते टीचर जी।।
प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक, बांदा (उ.प्र.)
मोबा- ९४५२०८५२३४
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