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हमारे प्रधान ऐसे हैं
“हमारे प्रधान ऐसे हैं”
हमारे प्रधान पाँच साल में,
एक बार दर्शन को आते।
घूम घाम कर गाड़ी से,
फिर घर वापस हो जाते।
नित चोंच लड़ाते चमचों से,
दिन भर बात बनाते हैं।
असफल वकील, हमारे
प्रधान कहलाते हैं।
वकालत में नहीं सफलता,
तब जीत प्रधानी आए।
झूठे वादे जुमले रंगो से
घर घर आग लगाए।
राशन खा हकदारों का,
अपनी दुकान चलाते हैं।
झूठों के सरदार बने,
हमारे प्रधान कहलाते हैं।
बालू उत्खलन का मार्ग अपनाते
धन से माला माल हो जाते है

नाली, सड़क, सब खा गए,
नहीं कोई भी काम हुए।
जातिपाँति में बाँटा हमकों,
जो दंगे ख़ूब कराते हैं।
सत्ता के भूखे नायक,
हमारे प्रधान कहलाते हैं।
मतभेद फैलाकर ब्राह्मण में,
नाना भाँति नचाए।
अलग-थलग किया उन्हें,
गिरगिट रूप दिखाए।
मरे हुए की लाशों पर भी,
सियासत खुब करवाते हैं।
वाह वाही के भूखे,
हमारे प्रधान कहलाते हैं।
जनसंख्या को कम करने,
जो नश बंदी राह बताए।
देश बेचकर खाने वाले,
भूख-भूख चिल्लाए।
मीठे बोल बोलने वाले,
छुपकर छुरी चलाते हैं।
आस्तीन के साँप,
हमारे प्रधान कहलाते हैं।
फर्जि मुकदमों के साहील
कब तक स्तंभ हिलाओगे
कभी तो झूठी स्तंभों से
पर्दाफाश हो जाओगे
सत्य सत्य है सत्य को
सत्य से कैसे हराओगे
कितनी तरक्क़ी यह सब
कर के प्रधान हमारे
कहलाते है
सोशल मीडिया पर हरे चने
असल में हैं कालीख शान
ऐसे बने आज हमारे
क्षेत्र के ग्राम प्रधान
आस्तीन के सांप
आस्तीन के सांप चमच्चे
घूरते देखे हैं कुछ चेहरे
प्रधानो के दरबार में।
अनजान होता है प्रधान
चम्मचों के व्यवहार से।
चुपचाप रहते हैं लोग
प्रधान के राज तक।
वही चम्मचे प्रधान के
कारण होते हैं हार के।
कौन समझाए प्रधान को
चम्मचों की आंखों के सित्तम।
अक्सर घायल करते हैं
अहंकारी मतलवी तीर उनके।
कोई जुर्रत कर भी दे कहने की
प्रधान को यकीं नहीं होता।
मंत्री संतरी तो
प्रधानो की आँख के तारे होते हैं।
ईर्ष्या द्वेष से सन्ने चमच्चे
कभी सच सामने आने ही नहीं देते।
सच को झूठ
झूठ को सच करने में
माहिर होते हैं।
प्रधान तो भ्रम में ही
प्रधानी कर रहा होता है।
भ्रम टूटता है प्रधान का
प्रधानी जानें के बाद।
वही मंत्री संतरी चम्मचे
जब दूसरे के प्रधान में
नागिन नृत्य कर रहे होते हैं।
खुदा बचाए इन चमच्चों से
वास्तव में यही होते हैं आस्तीन के सांप।
जितना भी दूध पिलाओ
आखिर दंश कर ही जाते हैं।
छुपाए रखते हैं ज़हर
जब तक मतलव होता है।
दंश करते ही
किसी और के गले पड़ जाते हैं।
तोड़ कर घेरा निकल आना चाहिए
प्रधानो को
बाहर समय रहते।
तभी मंत्री संतरी चम्मचे
अपनी औक़ात में रहते हैं।
भावी प्रधान
भावी प्रधान हमारे वे कहलाते
चोर लुटेरों के संग में रहकर,
घड़ियाली आंसू वह बहाते है॥
बड़ी बड़ी बातें विकाश की सुनाते
वादो से भरमायें यारों अपना बन के।
वो नफ़रत की आग बरसाते है॥
दावेदार भावी प्रधान वह कहलाते
भावनाओं में बहकर जनता
भावी प्रधान को सत्ता पर बैठाते
चोर लुटेरों के संग में रहकर,
वो घड़ियाली आंसू बहाते है
भावी प्रधान् बड़े बेईमान है यारों,
अपनी मस्ती में खो जाते
जनता अबला बन जाती
जब, वो कुर्सी पर बैठ जाते
दावेदार भावी प्रधान वह कहलाते
राजा बन कर भावीं प्रधान हमारे
जहाँ, जनता को लुट के खाते है।
चोर लुटेरों के संग में रहकर,
वो घड़ियाली आंसू बहाते है।
प्रधान के घर नेता बनते,
जिनके परिवारवाद से नाते है।
दावेदार भावी प्रधान वह कहलाते
लोकतंत्र की तब धज्जियाँ उड़ती,
लोग तब पछताते है।
दिन दहाड़े जहाँ बेटा बेटी मरती
तब सर्व समाज मौन हो जाते।
चोर लुटेरों के संग में रहकर,
वह घड़ियाली आंसू बहाते है
दावेदार भावी प्रधान वह कहलाते
कतली रूप बनाकर के वे
जनता को छल जाते है
टाइ बुट टी शर्ट पहनकर
अपनों में गोलबंदी बना देते
भाई भाई को मरवाते
बड़े विकाश की बात बतलाते
दावेदार भावी प्रधान वह कहलाते।
पूर्व प्रधान
पूर्व प्रधानो ने क्या खूब
रंगों में रंग रेलिया मनाई थी
रंगो में रंग बिखेर कर लोकतन्त्र्
मे अपनी ओकात दिखाई थी
भाषण के डंडे से खट्ट मीठे
वादो से पूर्व प्रधानो ने क्या
खूब वाह-वाही लुटाई थी
पूर्व प्रधानो ने क्या खूब
रंगों में रंग रेलिया मनाई थी
दे आदर्श गाँव के नारो से
वादो के व्यक्तब्य की फुल
झड़ीया लगाई थी
मरियल-सी जनता को खट्टे
मीठे वादो के खीर पूरी
खिलाये थी
पूर्व प्रधानो ने क्या खूब
रंगों में रंग रेलिया मनाई थी
बस क़त्ल किसी का कर दोगे
भाई उसको बरी करा दुगा
चोर डाकुओ के संग रह कर
हर घर-घर में आग लगा दुगा
पूर्व प्रधानो ने क्या खूब
रंगों में रंग रेलिया मनाई थी
जो बिल्कुल फक्कड़ होगे भाई
उनको राशन उधार तुलवा दूगा
जो लोग भगेड़ी होगे तो उनके
लिए गाँव में दुकान खुलवा दूंगा
राशन कोटा नालि सड़क सुरछा
के नामो पर घर-घर आग लगाइ थी
पूर्व-प्रधानो ने क्या खुब
रंगो में रंग-रेलिया मनाई थी।
जो तडीपार है आज वही
गांव चला रहे है,
आज देखो कैसे चोर-लुटेरे
देश चला रहे है।
वाह री हमारी भारतीय संस्कृति
क्या खेल दिखा रही है,
झूठ बोल-बोल कर अपना
घिनौना रूप दिखा रही है।
सच का चोला पहन कर
झूठ की सूरत दिखाते है,
वाह रे प्रधान अब बहुत हो चुका
अब हम तुम्हे बताते है।
यह इंकलाब अपना
जोश अब दिखाएगा।
जल्द ही नया सूरज हमको
नई रोशनी अब दिखाएगा।
कलम
कलम के डर से गाँव में अखाड़ा
शहर में सिघाड़ा षड्यंत्र रचाया करते हैं,
सत्ता के मद में चूर,
न्याय को दबाया करते हैं।
नहीं चाहते हैं कि सच्चाई की आवाज़ उठे,
हर संभव प्रयास कर कद दबाया करते हैं
कलम के डर से,
शक्ति क्या है क्या जाने क़लम की
जो सच्चाई की बूतों से दुम दबाया करते हैं
सच की आवाजें निखर ना जाए
आग लगाया करते हैं
कलम के डर से,
सत्ता के मद में चूर लोग,
कोशिश से विनय की शक्ति को हराया करते हैं
सत्य लिखने वाले को धमकी आज जाया करते हैं
ना उठे आवाज़ कहीं क़लम के दाम लगाया करते हैं
कलम के डर से,
जीत किसकी हार किसकी ना जाने
बोलने वाले मुंह का खाया करते हैं
कलम उठाने वाले आज
षडयंत्रों के सय से भय खाया करते हैं
कलम के डर से,
ऐसे वैसे कैसे-कैसे
प्रेस प्रिंट की शक्ति को डराया करते हैं
कलम की आवाज़ बारूद ना बन जाए
धमकी पर धमकी आजमाया करते हैं
कलम के डर से,
तिवारी एकेला राम
९९७११०७०७४
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