सूरज को आना ही होगा
सूरज को आना ही होगा
विचलित मत हो, ना हो मायूस,
व्याधि बड़ी है, संकट की घड़ी है,
तकलीफ भी बहुत होती होंगी,
हजारों घुटन होगी मन में,
अथाह पीड़ा भी होगी, इससे ही तो पाना है पार,
चल उठ हिम्मत कर, अबकी तु कर ले वह सब कुछ,
जो सोचती थी कर लूंगी अगली बार।
विचलित मत हो, ना हो मायूस,
मेध गरज रहे होंगे, बिजली चमक रही होगी, तू सोचती होगी,
कहीं तेरा आशियाना हो न जाए ज़ार-ज़ार।
कुछ समझ नहीं आता होगा,
कुछ नज़र नहीं आता होगा,
इसी से तो पाना है पार।
चल उठ हिम्मत कर, अबकी तू कर लेना वह सब कुछ,
जो सोचती थी कर लूंगी अगली बार।
विचलित मत हो, ना हो मायूस,
अपनों को क़ैद कर लूं इन आंखों में,
ख्वाइशें होंगी हजार, कतरा-कतरा करके आंसू बहते होंगे,
धूमिल करते होंगे हर छवि को बार-बार, अधरों पर कंपन होते होंगे,
छाती में दर्द उठता होगा, इस पीड़ा से ही तो पाना है पार।
चल उठ हिम्मत कर, अबकी तू कर लेना वह सब कुछ
जो सोचती थी कर लूंगी अगली बार।
विचलित मत हो ना हो मायूस,
अंधेरा घना होगा,
चारों तरफ़ अँधेरा ही अँधेरा होगा,
तू आंखें फाड़-फाड़ कर, रोशनी की करती होगी तलाश,
स्याह काली चादर देख तू होती होगी निराश,
इसी से ही तो पाना है पार।
हो रात चाहे कितनी बड़ी,
सूरज को आना ही होगा हर बार,
चल उठ हिम्मत कर, अबकी तू कर लेना वह सब कुछ,
जो सोचती थी कर लूंगी अगली बार।
पुष्पा बंसल
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