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विश्व खाद्य दिवस : भूख के विरुद्ध वैश्विक एकजुटता एवं संकल्प का दिन
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर १६ अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस का आयोजन किया जाता है। १५० से अधिक देशों में सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों, स्कूल, कालेज एवं विश्वविद्यालयों द्वारा विश्व खाद्य दिवस के वार्षिक केंद्रीय विषय आधारित विविध कार्यक्रम आयोजित कर भूख के विरुद्ध वैश्विक एकजुटता, जागरूकता और सभी के लिए पर्याप्त भोजन सुनिश्चित करने के उपाय और कार्य योजना पर विचार-विमर्श कर कार्यवाही की जाती है। ध्यातव्य है कि १६ अक्टूबर, १९४५ को रोम, इटली में विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन की स्थापना हुई थी। भारत इस संगठन का संस्थापक सदस्य है और हमेशा से दुनिया भर के सभी मनुष्यों के लिए पर्याप्त एवं पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराने का पक्षधर रहा है। नवम्बर १९७९ में विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन के २०वें सम्मेलन में हंगरी के पूर्व कृषि एवं खाद्य मंत्री डॉ. पॉल रोमानी द्वारा विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन के स्थापना दिवस की स्मृति में १६ अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस के रूप में मनाने के सुझाव पर सदस्य देशों की आम सहमति एवं स्वीकृति से विश्व खाद्य दिवस का आयोजन आरम्भ हुआ। इन वार्षिक आयोजनों एवं कार्यक्रम निर्धारण हेतु वर्ष १९८१ से एक थीम का चयन किया जाता है ताकि भूख से निपटने हेतु समुचित कार्ययोजना बनाकर लक्ष्य प्राप्त किया जा सके।
वर्ष २०२५ की थीम है-खाद्य सुरक्षा: विज्ञान क्रियाशील है जो खाद्य जनित बीमारियों की रोकथाम के लिए विज्ञान की महती भूमिका पर प्रकाश डालती है। इन आयोजनों में विश्व खाद्य कार्यक्रम, विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष जैसे वैश्विक संगठनों की भी सक्रिय भागीदारी रहती है। उल्लेखनीय है कि भूख से निपटने हेतु सम्यक् नीति निर्मित करने तथा युद्ध एवं संघर्ष के दौरान शांति की स्थापना के प्रयास कर भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने तथा भूख को युद्ध के समय एक हथियार के रूप में विपक्षी के खिलाफ प्रयोग करने के विरुद्ध पहल कर मानवता का पथ प्रशस्त करने के लिए विश्व खाद्य कार्यक्रम को वर्ष २०२० का शांति नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। विश्व खाद्य दिवस की स्मृति में १९८१ से विश्व के कई देशों भारत, इटली, पोलैंड, युनाईटेड किंगडम, फिलीपींस, पाकिस्तान एवं अफ़ग़ानिस्तान आदि ने विभिन्न मूल्य वर्ग के स्मारक एवं बाज़ार में प्रचलित सिक्के जारी किए हैं। विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन की ७५वीं वर्षगांठ पर १६ अक्टूबर, २०२० को भारत ने ७५ रुपए मूल्य का विशेष सिक्का जारी किया था जिसमें ५० प्रतिशत चांदी, ४० प्रतिशत तांबा और ५-५ प्रतिशत जस्ता एवं निकल का मिश्रण था
यदि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य पर दृष्टिपात करें तो सभी महाद्वीपों में कहीं न कहीं देशों के मध्य युद्ध की स्थितियाँ बनी हुई हैं। कतिपय देश गृहयुद्ध से ग्रस्त हैं तो कहीं क्षेत्रीय तनाव, हिंसा एवं अराजकता का माहौल बना हुआ है। युद्ध, संघर्ष, हिंसा एवं अशांति के इस दौर में अनेक देशों में भूख से मौतें हो रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग के चलते कृषि क्षेत्र प्रभावित होने से अन्न, दलहन एवं तिलहन के साथ फल एवं सब्जियों के उत्पादन और गुणवत्ता पर असर स्वाभाविक है, जिसका व्यापक प्रभाव दुनिया की बढ़ती आबादी के लिए समुचित आहार उपलब्ध कराने पर पड़ा है। विश्व भूख सांख्यिकी के गत वर्षों के आंकड़ों पर नज़र डालें तो लगभग दो अरब लोगों को पर्याप्त एवं पोषणयुक्त भोजन नसीब नहीं हो रहा। ५ वर्ष से कम उम्र के ४० प्रतिशत बच्चे असमय मौत का शिकार हो रहे हैं। २०२४ के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत १२७ देशों की सूची में १०५वें क्रम पर है जो चिंता का विषय है। दुनिया का लगभग एक तिहाई से अधिक क्षेत्र भूख से व्याकुल है। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के विकासशील एवं अविकसित देशों में भूख पसरी हुई है। हैती, माली, सूडान, सोमालिया, बुरुंडी, कांगो, चाड़, मेडागास्कर, नाईजीरिया, लाइबेरिया, यमन जैसे देश भुखमरी से जूझ रहे हैं।
अगर कृषि उत्पादन की बात करें तो अनुमानतः तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद इतना उत्पादन होता है कि सम्पूर्ण विश्व की आबादी को भरपेट भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है किंतु अनाज एवं फल-सब्जियों का लगभग ३५ प्रतिशत से अधिक हिस्सा उचित रखरखाव के अभाव में नष्ट हो जाता है। भंडारण एवं वितरण की कमी के चलते मंडियों में अनाज खुले में पड़ा रहता है और बारिश एवं कीड़ों से खराब हो जाता है। फल एवं सब्जियाँ समय से गंतव्य तक न पहुँच पाने से रास्ते में ही सड़-सूख जाती हैं। यदि यही अनाज और फल-सब्जियाँ बचा लिया जाये तो भूख से होने वाली लाखों मौतों को रोका या कम किया जा सकता है। आवश्यकता है उचित भंडारण एवं वितरण नीति की ताकि बारिश, कीड़ों एवं पक्षियों से होने वाले नुक़सान को रोका जा सके। भूख से पीड़ित लोगों के लिए वैश्विक जागरूकता एवं कार्ययोजना निर्माण, स्वस्थ आहार सुनिश्चित करने और भूख एवं कुपोषण से ग्रस्त लोगों के लिए पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के अपने पावन उद्देश्य में विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन सफल हो, विश्व खाद्य दिवस के अवसर पर यही संकल्प लेकर हम सभी को जुटना होगा। यदि हम अपने पड़ोस-परिवेश में ही किसी भूखे व्यक्ति को पर्याप्त भोजन एवं जल उपलब्ध करा देते हैं तो भूख से मुक्ति के इस वैश्विक अनुष्ठान में यही हमारी आहुति होगी।
प्रमोद दीक्षित मलय
लेखक शैक्षिक संवाद मंच उ।प्र। के संस्थापक हैं। बांदा, उ. प्र.
मोबा- ९४५२०८५२३४
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