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रिमझिम-रिमझिम बारिश
रिमझिम-रिमझिम बारिश है आयी,
ठण्डी-ठण्डी फुहारें है लायी।
घिर-घिर काली घटा छायी,
संग बूंदों की गगरी लायी॥
खिल उठी हरियाली देखो,
मिट्टी से सौंधी महक आयी है।
मेढ़क टर-टर-टर बोल रहे,
मयूर ने भी केक लगायी है॥
गरज रहे बादल घनघोर,
बिजली भी चमक दिखाती है।
झर-झर पत्तो पर गिरता पानी,
मानो प्रकृति वर्षा गीत सुनाती है॥
भर गये सब नाले नदियाँ,
चारों तरफ़ पानी की चादर छायी है।
इठलाती काग़ज़ की किश्ती ने,
बचपन की फिर याद दिलायी है॥
जब ऋतु सावन की सुहानी आये
नन्हीं-नन्हीं बूंदें बरखा की,
तन-मन को भिगो जायें,
ठण्डी-ठण्डी बयार पूर्वा की,
सावन मल्हार सुनायें,
जब ऋतु सावन की सुहानी आये।
धानी रंग हो गई प्रकृति,
नीड-नीड हर्षाये,
कोयल गाये मेघ मल्हार,
मीठी हूक उठ उठाये,
जब ऋतु सावन की सुहानी आये।
सोलह किये शृंगार सखी ने,
मेंहन्दी, महावर भी लगाये,
पिया संग झूलूँ झूला,
गौरी मन में हर्षाये,
जब ऋतु सावन की सुहानी आये।
शाखों को छुएँ जब बूँदें,
पुष्प-बेले भी लहरायें,
फैले रंग सतरंगी तितली के,
भवरे मीठी मनुहार लगायें,
जब ऋतु सावन की सुहानी आये॥
रचना शर्मा (स०अ०)
कंपोजिट वि० नारंगपुर
परीक्षितगढ़, मेरठ (उ० प्र०)
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