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बैरन सर्दी
बैरन सर्दी
कांप रही है धरती सारी
सिकुड़ रहे सब अपने घर में
आग बेचारी ठंडी पड़ गई
कोहरा मौज करें जग भर में।
मौसम बैरी बन कर आया
शीत बढ़ गई जल थल नभ में
थर थर करती काया सबकी
दिनकर देख रहा सब नभ में।
रेलम पेल जहाँ लगती थी
सजती चौराहों पर हाटें
यौवन सर्दी का मचल गया
सूनी सड़कों पर सन्नाटे।
नव युगलों की मौज हुई
पर दुख विरहिणी सहती है
झुग्गी में बैठी सिसक रही
रातों की नींद ठिठुरती है।
शीत समीर की आहट पर
मन में भय भर जाता है
कल के सूरज की चाहत में
मुरझा चेहरा खिल जाता है।
चलो इश्क़ करें
चलो इश्क़ करें
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें।
अरमान कितने रहे अधूरे
और कितने हुए हैं पूरे
कितने बरस गुजर चले
एक आशियाँ सजाने में।
एक आशियाँ के सजने में
कई कई नीड गुजर चले।
चलो इश्क़ करें
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें।
जिन रसीले होठों के
दीवाने हुआ करते थे
रसपान के लिए यूं ही
बहाने हुआ करते थे।
वक्त के दरिये में बह कर
हम तुम, तुम हम, दूर हो चले।
चलो इश्क़ करें
कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें।
कटता रहा सफ़र यूं ही
कमियाँ सिर्फ़ गिनाने में
कभी तुम रूठे, कभी हम रूठे
रैना गई मनाने में।
सूरज अस्ताचल ओर चला
हम भी क्षितिज की ओर चलें।
चलो इश्क़ करें
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें।
बसंत ऋतु आई
धुंध भरी नम रवि की किरणें
सर्दी ठिठुरन आई तप हरने
गए भूल सब सैर सपाटा
पसरा धरती पर सन्नाटा।
खत्म हुई भय की सब बातें
लगी सुहावन सुंदर सुख रातें
सूर्य देव ने अब ललकारा
मन मुदित खिला जग सारा।
चमक उठे मोती सम तारे
विलीन हुए बादल भी सारे
छाई कण-कण में हरियाली
जैसे नववधू मुख की लाली।
खेतों में सरसों लहराई
पीली पीली सबके मन भाई
रंग बिरंगे सुमन खिले हैं
भंवरे बागों में ख़ूब मिले हैं।
झूम उठे लता पुष्प तरु वन में
बहका यौवन जन तन मन में
कोयल की कुहू-कुहू से आहत
विरहिणी की बढ़ती नित चाहत।
पवन बसंती जग जीवन चहका
भीनी ख़ुशबू घर आंगन महका
भर गई ऋतुओं में नई जवानी
ऋतुओं की रानी बसंत ऋतु सुहानी।
कब तलक
जिस तरह तुम रूह में समाए जाते हो
सपनों में छेड़ कर मुझे चले जाते हो
आओगे एक रोज़ तुम ज़रूर लेकिन
मुझको जगा कर रात भर चले जाते हो।
हमारी पलके तेरी यादों में भीग जाती है
अश्क धारा नींदों को बहा जाती है
तमन्नाओं के समंदर में डूबा हूँ लेकिन
कश्तियाँ मांझी को पतवार थमा जाती है।
इस क़दर तुम हमें कब तलक रुलाओगे
गुजरोगे तुम जहाँ परछाइयाँ ही पाओगे
चले थे दिल से तुम्हारे संग लेकिन
हमें अपनी शरण में कब बुलाओगे।
निलेश जोशी “विनायका”
बाली, पाली, राजस्थान।
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