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बेटियों के नाम पर
बेटियों के नाम पर
राजनीति दाव पर
हमदर्दी दिखा कर
वोट बैंक चाहिए।
सत्ता व विपक्ष सभी
चाहते हो जाँच अभी
कल होता नहीं कभी
अभिशाप मानिए।
समाज बिगड़ा आज
लूट रहा बेटी लाज
छिपाते बहुत राज
बेटियाँ बचाइए।
चाचा मामा मौसा बाप
सबके छपते पाप
सावधान रहें आप
मानव हो जाइए।
सरहद पर
जान हथेली पर रखकर ही,
वीर सरहद पर जाते हैं।
तोड़कर सब रिश्ते नाते,
राष्ट्रधर्म सभी निभाते हैं।
सैनिक होते नहीं किसी के,
मित्र सम्बंधी रिश्तेदार।
देश सेवा हित समर्पित,
देशभक्ति भरी हृदय अपार।
मातृभूमि से अमर प्रेम का,
दिल से बंधन करते हैं।
जान हथेली पर रखकर ही,
वीर सरहद पर जाते हैं।
देश की सीमा रहे सुरक्षित,
यही लक्ष्य और यहीं चिंतन।
हर मुसिबत हँसकर सहते,
दिल में बसता सदा वतन।
दुश्मनों से जब टकराते तो,
काल रूप से दिखते हैं।
जान हथेली पर रखकर ही,
वीर सरहद पर जाते हैं।
भागीरथी संकल्प संजोकर,
सीमा पर पहरा देते हैं।
कब निकली संध्या व रजनी
झपकी आँख न लेते हैं।
गंगा रूपी देश धरा हित,
शिव तांड़व में रमते हैं।
जान हथेली पर रखकर ही,
वीर सरहद पर जाते हैं।
गर्वित होती भारत माता,
देख हौंसले वीर जवानों के।
बलिदानों को लिख लिखकर,
मान बढ़ें कलमकारों के।
वीरों की अमर कहानी पढ़कर,
देश प्रेमी नमन करते हैं।
जान हथेली पर रखकर ही,
वीर सरहद पर जाते हैं।
भारतीय भाला
स्वर्ण रेख को पार कराया
सत्तासी सीमा लांधा था।
महाराणा प्रताप का वंशज
नीरज ने फैंका भाला था।
भारत माता का सच्चा सपूत
पानीपत का तीखा पानी था।
टोक्यो ओलिंपिक समर में
इतिहास नया रच डाला था।
भारत पर हँसने वालों को
पल पल ख़ूब रूलाया था।
मुरझाये थे खिलते चेहरे
अब दूर भारतीय भाला था।
ध्वज तिरंगा लिए हाथ में
विजयी भाव मतबाला था।
घंटियाॅ गूँज गई मंदिर में
शंखनाद अब निराला था।
स्वर्ण पदक की आभा से
चमका हिंदुस्तानी भाला था।
भारत माता का जयकारा
धरती से अम्बर गूँजा था।
स्वागत और बधाई देने
हिंदुस्तान उसे दुलार रहा है।
स्वर्ण पदक का गौरव पाकर
भारत को सम्मान दिया है।
तेरह वर्षों से वंचित भारत
स्वाभिमान से बोल रहा है।
नीरज ने उम्मीद जगा दी
सोया भाला जाग रहा है।
व्यास पूर्णिमा
व्यास पूर्णिमा क्यों जग नामा
जन्मे इस दिन व्यास भगवाना
अति महत्त्व यह कथा सुनाऊॅ
द्वापर युग की बात बताऊॅ
पराशर मुनि हुए बड़े ज्ञानी
उनके पुत्र व्यास विज्ञानी
चारों वेद और लिखे पुराना
वेद व्यास नाम सब जाना
सत्यवती थी इनकी माता
यह संयोग रचा विधाता
जन्मे तभी तप हेतु जाते
शर्त मात पुकार पर आते
बदरीवन में कीन्ह तपस्या
बादरायण नाम जग पाया
हस्तनापुर के शान्तनु राजा
गंगा त्याग से हीन सुकाजा
सत्यवती शान्तनु बन भार्या
कुरुवंश की हुई माता आर्या
देवव्रत जब प्रतिज्ञा साधी
भीष्म नाम बना था व्याधी
कुरुवंश की टूटी जब आसा
दृष्टि भोग तब किया व्यासा
धृतराष्ट पांडव दोनों भाई
इनकी कृपा जन्मे थे भाई
महाभारत की सुंदर रचना
व्यास कही गणेश का लिखना
पंचम वेद जगत सम्माना
धर्म कर्म राजनीति बखाना
दिव्य दृष्टि के धारक व्यासा
हिन्दू धर्म लिखा इतिहासा।
भावपुष्पांजलि
योद्धा थे निर्भीक तुम
भारत माँ के लाल।
आजाद रहे सदा ही
लक्ष्य स्वतंत्रता पाल।
भाबरा गाॅव में जन्मे
जिला आलीराजपुर में।
स्वतंत्रता के वीर सैनानी
जन्म स्थान मध्य प्रदेश में।
पंडित कुल में जन्मे थे
क्षत्रिय जैसा किया काम।
नोंकदार फर्राती मूॅछें
पिस्तौल हाथ में थाम।
लाजपत राय की हत्या
बदला लिया महान।
कांकोरी कांड सफलता
असेम्बली बम मिला मान।
अलफ्रेड़ पार्क में अंग्रेजो ने
घेरा लिया आजाद को।
चन्द्रशेखर ने ललकारा
आजाद जीता स्वाभिमान को।
अंग्रेज सिपाही थे हजारों
आजाद सामना करता है।
शूरवीरता से लड़ते लड़ते
निज गोली मार के मरता है।
आजाद था आजाद रहा
आजाद बलिदानी नाम।
आजादी के लिए लड़ा
देशभक्ति का दे पैगाम।
छू न पाया कोई दुश्मन
सत्य किया निज नाम।
अंग्रेजो के जानी दुश्मन
लख लख तुझे सलाम।
सच कहूँ?
(हास्य व्यंग्य कविता)
हारते देखा है मैंने
पढ़े लिखे शिक्षितो को।
अनपढ़ कहलाने वाले
बार-बार जीते हैं।
वजह साफ़ है भाई
पढ़े लिखे कुछ लोग।
लोभ लालच में पड़कर
स्वार्थ का पालते रोग।
कमाई के चक्कर में पड़
अनपढ़ से झूठ बोल।
ऊपर नीचे क्रम तोड़ कर
काम का कर लेते मोल
शिक्षित से कह नहीं पाते
समझा बुझा देते हैं।
बता नियम कायदे सच्चे
लिखित सबूत देते हैं।
परोपकार की भाषा मुॅह पर
विद्वान बन देते है सीख।
अनपढ़ से संकेत में माॅगें
काम के बदले जायज भीख।
भ्रष्टाचार के बलपर पहले
उनके काम बनाते है।
शिक्षित होशियारी में हैरान
बार बार हार जाते है।
यही रिवाज़ बन गया
हर विभाग में आज कल।
कथित शिक्षित ही चख रहे
भ्रष्टाचार का मीठा फल।
सच कहूँ वे ही तथाकथित
छोड़ देते जब ऊॅचे पद।
तब समाज में आकर रहते
हो जाता तब नीचा कद।
शिक्षित हार गया शिक्षित से
अनपढ़ लाभ उठाते है।
भ्रष्टाचार के दंगल में
शिक्षित ही सदा हारते है॥
रक्षाबंधन
रक्षाबंधन पर्व बधाई।
मंगलमय हो बहनों भाई॥
भैया करते आज प्रतिक्षा।
बहन प्रेम से मिले सुरक्षा॥
रक्षाबंधन का त्योहारा।
प्रेम भावना जग विस्तारा॥
भैया बहना पावन रिश्ता।
जीवन भर दोनों में निभता॥
युगों युगों से रीति बनाई।
आती बहना बिना बुलाई॥
बहन प्रेम की राखी लाती।
बाॅध कलाई खीर खिलाती॥
भाई के मन प्यार झलकता।
उपहारो से स्वागत करता॥
मात पिता होते खुश भारी।
देख आपसी भाव निहारी॥
स्वागत
ईस्वी सन का स्वागत वंदन।
बाईस नाम वर्ष अभिनंदन॥
नववर्ष यह नहीं भारत का।
निभा मर्यादा रहे जगत का।
मन की बात मनहि सब राखें।
बिना विचार व्यर्थ क्यों भाखें॥
एक अकेले हम दुनिया में।
क्यों उलझे अपनी कुटिया में॥
कुछ तो हमको मित्र चाहिए।
स्वागत धर्म रिवाज़ पालिए॥
बाद हमारे नये वर्ष पर।
करें जश्न उत्साह हर्ष कर॥
मेलजोल है आज ज़रूरी।
दिनांक ज्ञान बना मजबूरी॥
अपने घर क्यों ताल ठोकते।
जश्न तरीक़ा देख टोकते॥
राजेश कौरव सुमित्र
नरसिंहपुर, मध्यप्रदेश
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