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नारी की कहानी
नारी की कहानी
सुनो सुनाती हूँ मैं ख़ुद की कहानी।
जिसमें न कोई राजा न है रानी।
हुई हूँ जब से पैदा जग में।
तब से ही सहे जा रही हूँ।
और उपेक्षा देख रही हूँ॥
मेरा नारी रूप होना
क्या कोई अपराध है।
या उन माँ बाप के लिए
कोई बड़ा श्राफ् है?
सोचकर मुझे ख़ुद पर
बहुत हंसी आ रही है।
जिस कोक से पुरुष को
मैंने ही जना है।
उसी कोक का आज कल
शिकार हो रहा है॥
जुल्म कितना भी बेटा करे
पर सदा दुआ ही दे रही है।
और एक माँ होने का
फर्ज दिलसे निभा रही हूँ।
लाख बुराईयाँ होते हुए भी
भाई के प्रति अच्छा सोचती है।
पर ख़ुद के घावों को
सबसे छुपा कर रोती है।
पर अपनी जुबा से वो
कभी उफ तक नहीं करती॥
रोज बिना वज़ह के पिटती हूँ।
लोगों की गालियाँ सुनती हूँ।
और लोगों के द्वारा लूटती हूँ।
और अपनी पीढ़ा भूलकर।
सबको ख़ुशी देती हूँ।
पर ख़ुद के लिए कुछ भी
नहीं मांगती हूँ॥
न जाने कितनो ने अब तक
मुझे मेरी मजबूर से लूटा है।
दो बूंद दूध बच्चे के लिए
मुझे कितना सहना पड़ता है।
जबकि कल उसी के हाथों
नारी को ज़ुल्म सहना पड़ेगा।
बदलती नहीं नारी की तकदीर
और न उसकी सहन शक्ति।
बस बदलता है उसका कर्तव्य
और उसे निभाने दायित्व॥
यही एक सत्य है उस नारी का
जिसने जन्मा है सब को॥
कहाँ से चले और कहाँ…
कहाँ से चले थे और कहाँ आ गए,
जाना था कहाँ, और कहाँ हम पहुँच गए।
मंजिले मिली बहुत, पर हम ठहरे नहीं,
क्योकि मुझको खुद, पता ही नहीं था।
की मेरी आखिर, मंज़िल कहाँ है॥
किसको इसका दोष दे हम, सभी तो अपने हैं,
फिर क्यों सभी, अपनो से ही लड़ते है।
सारी मर्यादा को, भूल जाते है ये लोग,
फिर अपने ही महापुरुषों को, मंच से गाली दे जाते है।
और देश में बनीबनाई व्यवस्था को बिगड़ते है॥
देशवासियों को सपने देखना, बहुत अच्छी बात है,
देश की जनता को, लॉलीपॉप देना बुरी बात है।
फिर भी ये लोग, क्या कुछ नहीं बोल जाते है,
और अपने वादों से, एक दम मुकर जाते है।
फिर कहते है की, ये सब तो मैंने नहीं कहाँ था॥
माना की आधुनिक, क्रांति आई है देश में,
पर सारे संस्कारो की, बलि को चढ़ाकर।
छोटे बड़ो का अब तो, लिहाज ही कहाँ है,
तभी तो हमारे देश का, आज ये हाल है।
यहाँ तक पहुँचाने के लिए, धन्यवाद किसका अदा करूं?
भारत देश महान
मिलोगें तुम अगर देशके लोगों से
तो उनकी भावनाओं को समझोगे।
और देशके प्रति उनके भावों को
तुम निश्चित ही समझ पाओगें।
फिर देशप्रेम की ज्योत जलाओगें
और भारत को महान देश बनाओगें।
और इस कार्य में हम सभी अपनी
भूमिकाओं को निष्ठा से निभायेंगे॥
करना है देश के लिए कुछ तो
सबसे पहले खुदको जगाओं।
और अपना राष्ट्रप्रेम तुम दिखाओं
और देशवासीयों में राष्ट्रप्रेम जगाओ।
तभी भारत को विश्व में स्थापित
हमसब मिलकर कर पाएंगे।
और इसे महान देश पूरे विश्व से
हम लोग कहलवायेंगे॥
हमारा भारतदेश भावना प्रधान
कृषि प्रधान कर्म प्रधान हैं और।
न जाने कितने देवी देवताओं की
भारत जन्मभूमि और कर्मभूमि हैं।
तभी तो यहाँ के कण-कण में
बसते है भक्त और भगवान।
जो स्वयं बना देते है भारत को
अपने आप में ही बहुत महान।
तभी तो पूरा विश्व अब कहता है की
भारत देश महान भारत देश महान॥
जय हिंद जय भारत
मित्र दिवस
चेहरा भूल जाओगे तो,
शिकायत नहीं करेंगे।
नाम भूल जाओगे तो,
गिला नहीं करेंगे।
और मेरे दोस्त,
दोस्ती कि क़सम है तुझे।
जो दोस्ती भूल जाओगे,
तो कभी माफ़ नहीं करेंगे।
ख़ुशी से दिल,
आबाद करना मेरे दोस्त।
और ग़म को दिल से
आज़ाद करना।
हमारी बस इतनी,
गुजारिश है मेरे दोस्त।
कि दिल से एक बार,
याद हमें ज़रूर ही करना।
जिन्दगी सुन्दर है,
पर मुझे जीना नहीँ आता।
हर चींज मैँ नशा है,
पर मुझे पीना नहीँ आता।
सब जी सकते है,
मेरे बिना दोस्त।
पर मुझे ही किसी के,
बिना जीना नहीँ आता।
आज भीगी है मेरी पलके,
तेरी याद में।
आकाश भी सिमट गया है,
अपने आप में।
ओस की बूंदे,
ऐसे बिखरी है पत्तो पर।
मनो चाँद भी रोया है,
मेरे दोस्त कि याद में।
हो नहीं सकता मुझे,
आपकी याद न आये।
भूल के भी वो,
एहसास न आये।
आप भूले तो आप पे,
आच न आये मेरे दोस्त।
में भुला तो खुदा करे मुझे,
अगली सांस ही न आये।
छोटी-सी बात पर कोई,
शिकवा न करना।
कोई भूल हो जाए,
तो माफ़ करना।
नाराज़ जब होना,
हम दोस्ती तोड़ देंगे।
क्योकि ऐसा तब होगा,
जब हम दुनिया छोड़ देंगे।
क्या कहे और समझे
वो क़दम से कदम
मिलाकर साथ चलते रहे।
और जीने की नई नई
वजह ढूँढ़ते रहे।
माना की ज़िन्दगी एक
रंगमंच की तरह है।
जिस में सभी के
किरदार अलग-अलग है॥
ये ज़िन्दगी बड़ी अजीब है
खुशी हो या ग़म हो।
पर हर हाल में रोती
तो हमारी आँखे ही है।
लोगों से मिलना और
बिछड़ना जब भी होता है।
उस समय भी ये
अजब कहानी कहती है॥
चाहकर भी हम उन्हें
भूल नहीं पाते है।
जो ज़िन्दगी के सफ़र में
हमें कभी मिले थे।
आज भले ही हमसे
वो दूर हो या पास।
पर मेरी ज़िन्दगी का
वो भी एक पाट है॥
मिल आज आपका पैग़ाम
मुझे ख़त के जरिये।
पर दे न सका
तुरंत उसका जवाब।
क्योंकि आपने ख़त में
कुछ अलग ही लिखा है।
जिसके लिए मेरे पास अभी
शब्द नहीं है लिखने को॥
सुबह से लेकर रात तक
आपके उस ख़त को।
कितनी बार मैं पढ़ चुका हूँ
पर दिल मानता नहीं है।
की अब तुम मेरी नहीं हो
फिर क्यों दिल तुम पर अटका है।
और संभलकर उस खतको
सीने लगाये रखे हो॥
वो सलामत रहे
आना जाना जीवन में लगा रहता है।
हर रंग का आनंद जीवन लेता है।
कौन कब कहाँ अपना मिल जाए।
और वर्षो के पुराने किस्से याद करा दे॥
हम तो आपके दिल में कब से हैं।
आपने कभी दिलको टटोला ही नहीं।
और दिल की हर बातें जान के।
जनाब हम आप पर लिखते हैं॥
हम यूं ही शब्दों की कविता को
पन्नों पर उतारकर नहीं लिखते।
हम अपने उस अज़ीज़ को
दिलकी गहराइयों से समझते है।
इसलिए बेपनाहा मोहब्बत करते है।
और सलामती की दुआएँ मांगते है॥
योग दिवस
रोज सबेरे तुम सब जागो
नित्य क्रियाओं से निवृत हो।
फिर योग गुरु को याद करो
और योग साधना तुम करो।
स्वस्थ और निरोगी रहोगे तुम
और एकदम सुंदर दिखाओगें।
मानव शरीर का अंग व पुर्जा
एक दम से तुम्हारा चुस्त रहेगा॥
बाग या घरका आंगन में
तुम नित्य करो योगसन।
महापुरुषो ने बनाये थे
अपनी त्याग तपस्या योगसन।
जो भी योग को जीवन में अपनाता
पूरी ज़िन्दगी अपने को स्वस्थ पाता।
इसलिए योग से मिट जाते
मानव शरीर से पुराने आदि रोग॥
बैठकर इसकी साधना में तुम
अपने आपको रोगों से बचाओ।
दवा डाक्टर आदि के चक्कर से
नित्य योग करके अपने को बचा लो।
भागम भाग भरे इस ज़िन्दगी में
अपने आपको चुस्त रखने के लिए।
शाम सबेर कम से कम आधा घंटे
रोज योगा करने का नियम ले लो।
और योग दिवस को सार्थक बन दो॥
रामायण के दो पात्र
रामायण में दो ऐसे पात्र थे।
एक विभीषण और एक कैकेयी।
दोनों की अलग-अलग कहानी थी।
विभीषण रावण के राज में रहता था॥
फिर भी नहीं बिगड़ा वो।
पर कैकेयी राम के
राज में रहती थी।
फिर भी वह नहीं सुधरी॥
तात्पर्य…
सुधरना एवं बिगडना।
केवल मनुष्य की सोच और।
स्वभाव पर निर्भर होता है।
माहौल पर नहीं॥
रावण सीता को समझा
समझा कर हार गया था।
पर सीता ने रावण की तरफ
एक बार देखा तक नहीं…!
तब मंदोदरी ने उपाय बताया
कि तुम राम बन के सीता के।
पास जाओ वह तुम्हें ज़रूर देखेगी॥
रावण ने कहा-
मैं ऐसा कई बार कर चुका हूँ।
मंदोदरी-
तब क्या सीता ने
आपकी ओर देखा…?
रावण-
मैं ख़ुद सीता को
नहीं देख सका।
क्योंकि मैं जब-जब राम बनता हूँ।
मुझे परायी नारी अपनी
माता और पुत्री-सी दिखती है॥
अपने अंदर राम को ढूँढे,
और उनके चरित्र पर चलिए।
आप से भूलकर भी
कभी भूल नहीं होगी॥
संत कबीर कहे
वाणी और व्यवहार का
दिया कबीर ने ज्ञान।
जगजग को संदेश दिया
बोलो मीठे वचन तुम।
जिस से टल जाते है
बड़े बड़े रणभूमि के युध्द।
कहत कबीर सारे जग से
सत्य अहिंसा पर तुम चलो॥
गंगा नदी के तट पर
बैठकर कहते संत कबीर।
सब जन तुम मिलकर रहो
राम कृष्ण की जन्मभूमि पर।
आल्लाह ईश्वर् और भगवान
सब जन को तुम एक जानो।
और अपने अंतर मन को
तुम देशवासियों सब जानो॥
कहत कबीर सुनो भाई साधु
बात मैं कहूँ सब खरीखरी।
न हिंदू न मुस्लिम न सिख ईसाई
सबसे पहले है हमसब भाई भाई।
होते जग में यदि आज संतकबीर
तो रो-रो कर वह गाते।
कोई किसी का नहीं है भाई
इस मायाचारी जग में॥
पिता दिवस
अंदर ही अंदर घुटता है,
पर ख्यासे पूरा करता है।
दिखता ऊपर से कठोर।
पर अंदर नरम दिल होता है।
ऐसा एक पिता हो सकता है॥
कितना वह संघर्ष है करता
पर उफ किसी से नहीं करता।
लड़ता है ख़ुद जंग हमेशा।
पर शामिल किसी को नहीं करता।
जीत पर खुश सबको करता है।
पर हार किसी से शेयर न करता।
ऐसा ही इंसान हमारा पिता होता है॥
खुद रहे दुखी पर,
घरवालों को खुश रखता है।
छोटी बड़ी हर ख्यासे,
घरवालों की पूरी करता है।
फिर भी वह बीबी बच्चो की,
सदैव बाते सुनता है।
कभी रुठ जाते माँ बाप,
कभी रुठ जाती है पत्नी।
दोनों के बीच में बिना,
वजह वह पिसता है।
इतना सहन शील,
पिता ही हो सकते है॥
तरस रही हूँ
मोम की तरह पूरी रात
दिल रोशनी से पिघलता रहा।
पर वह इस हसीन रात को
नहीं आये मेरे दिल में।
मैं जलती रही और
नीचे फिरसे जमती रही।
फिरसे उनके लिए जलने और
उनके दिलमें ज़माने के लिए॥
हर रात का अब यही आलम है
वो निगाहें और वह दरवाज़ा है।
देखती रहते है निगाहें दरवाजे को
शायद वह आज की रात आ जाए।
इसलिए सज सबरकर बैठी हूँ
चाँद के दीदार करने के लिए।
और कब उनके स्पर्श से अपने
आपको इस रात में महका सकू॥
इस सुंदर यौवन शरीर का क्या करू
जो उन्हें आकर्षित नहीं कर सका।
लाख मुझे लोग रूप की रानी और
स्वर की कोकिला कहे पर।
ये सब अब मेरे किस काम का है
जो उन्हें अपनी तरफ़ लगा न सका।
इसलिए हर शाम से रात तक और
फिर पूरी रात जलती और जमती हूँ॥
ये मोहब्बत है या वियोग या
और कुछ हम आप इसे कहेंगे॥
बाल निषेध दिवस
पूर्व में किये थे अच्छे कर्म
तभी तो पाया मनुष्य जन्म।
क्या मनुष्य जन्म मिलना ही
इस दुनियाँ में काफ़ी है?
सोचो समझो और करो विचार
फिर निभाओं अपना दायित्व यार।
क्या हम दे पा रहे है
अपने बच्चों को अच्छे संस्कार॥
पेटकी भूख मासूम बच्चों से
क्या कुछ नहीं करवाती है।
जब खिलौनो से खेलने के दिन थे
तब उनसे खिलौने बिकवाती है।
मैदान में खेलने कूदने के दिनों में
उनसे मैदान साफ़ करवाती है।
स्वर्थी इंसान अपने सुख के लिए
मासूमों के बचपन को छीन लेती है॥
होना था शिक्षा के मंदिर में उन्हें
तब मंदिर के बाहर फूलमाला बेच रहा।
औरों की दुआओं के लिए खुदका
भविष्य ईश्वर के समाने मिटा रहा।
होनी थी जब किताबे हाथ में तब
भूख मिटाने के लिए किताबे बेच रहा।
और देश के निर्माताओं को सच का
दर्पण बिना शिक्षित होकर दिखा रहा॥
शर्म आती नहीं देशकी सरकार को
बालनिषेध कानून बनाना काफ़ी हैं।
बच्चों को शिक्षित करने के लिए
भरपेट खाना के साथ शिक्षा दिलाये।
और बाल मजदूरी से उन्हें बचायें
और उनका बचपन उन्हें लौटायें।
और यह कर्तव्य को हम आप
मिलकर इंसानियत से निभाये॥
छोड़ा नही
न मैं चल ही सका,
न मैं रो ही सका।
जिंदगी को मानो,
व्यार्थ ही गमा दिया।
तभी तो तन्हा जीता हूँ।
और आज भी मैं,
प्यार लिए तरसता हूँ।
पर प्यार करने वाला,
कोई साथ नहीं आया।
इसलिए तन्हा जिंदगी
आज तक जी रहा हूँ॥
बहुत ही जला हूँ,
इस जामने में।
कई बार मार हूँ,
इस ज़माने में।
किसी को भी,
तरस नहीं आया।
और मैं बर्बादियों का,
जश्न मानता रहा।
डूब गया हूँ अब,
मैं उस सागर में।
जिसकी गहराई को
कोई नाप न सका॥
माना कि मैं जिद्दी हूँ,
बातों से मुकरता नहीं।
जमाने की चकाचौंध ने,
बहुत डाला असर।
पर मेरे इरादों को,
वो बदल सका नहीं।
इसलिए माँ भारती को,
कभी भी छोड़ा नहीं।
भले ही कोई मुझे,
छोड़कर चला जाये।
परन्तु मैं हिन्दी साहित्य को,
कभी छोड़ सकता नहीं॥
प्यारी बेटियाँ
बेटी को जन्मदिन की
दिल से शुभ कामनाएँ
और देता हूँ शुभ आशीष।
प्रगति के पथ पर चलकर
करो नाम अपना रोशन।
सबकी प्यारी सबकी दुलारी
तभी हृदय में सबके बसती।
और ख़्याल सभी का बेटी
जो तुम दिलसे रखती हो॥
घर आने पर दौड़कर
पास आ जाती हो।
सीने से लिपटकर प्यारी बेटी।
तुम दिलको खुश कर देती हो।
और अपनी प्यारी बातों से
दिल मेरा जीत लेती हो॥
थक जाने पर,
स्नेह प्यार से।
माथे को सहलाती हो,
और अपने स्नेह प्यार से
तुम थकन मिटा देती हो॥
कभी न कोई ज़िद की
किसी बात को लेकर।
कल दिला देंगे,
कहने पर मान जाती हो।
और छोड़कर जिद्द अपनी,
फिर सबके संग खेलने लगती हो॥
रोज़ समय पर माँ को
दवा की याद दिलाती हो।
और अपने हाथो से
अपनी मम्मी को खिलाती हो।
उसका दुख दर्द हर लेती हो।
और मम्मी की प्यारी बेटी
तुम बन जाती हो॥
घरको मनसे और दिलसे,
फूलो-सा सजाती रहती हो।
उसे सुंदर बनाकर तुम
घर को सभाँल लेती हो॥
दुख होने पर भी तुम
खुशी ख़ुशी सहती रहती हो।
और खुशीयाँ बांटकर सदा
घर वालो को खुशकर देती हो॥
दूर होकर भी तुम
सदा पास रहती हो।
कर्तव्य अपना दिल से
बेटी तुम निभाती हो।
याद जब भी आये तुम्हारी
तो हृदय में एकदम आ जाती हो॥
मीलों दूर होकर भी बेटी
पास होने का एहसास दिलाती हो।
इसलिए तो नाना नानी और
दादी दादा को बहुत भाती हो।
मामा मामी मौसा मौसी और
चाचा चाची बुआ फूफा को
प्यारी तुम लगती हो॥
मम्मी पापा की अनमोल “हीरा”
जैसी तुम बेटी हो।
इसलिए हमारे दिलमें बसी
तुम रहती हो।
इसलिए बेटी को सरस्वती,
दुर्गा और लक्ष्मी हम कहते है।
क्योंकि तुम सभी का
दिल जीत लेती हो।
ज़िन्दगी क्या है
फूल बन कर
मुस्कराना ज़िन्दगी है।
मुस्कारा के गम
भूलाना ज़िन्दगी है।
मिलकर लोग खुश
होते है तो क्या हुआ l
बिना मिले दोस्ती
निभाना भी ज़िन्दगी है l.
जिंदगी ज़िंदा दिलों
की आस होती है।
मुर्दा दिल क्या खाक
जीते है जिंदगी।
मिलना बिछुड़ जाना
तो लगा रहता है।
जीते जी मिलते
रहना ही ज़िन्दगी है॥
जिंदगी को जब तक
जिये शान से जीये।
अपनी बातों पर
अटल रहकर जिये।
बोलकर मुकर जाने
वाले बहुत मिलते है।
क्योंकि जमाना ही आज
कल ऐसे लोगों का है॥
मेहनत से ख़ुद की
पहचान बना कर।
जीने वाले कम
ही मिलते है।
प्यार से ज़िन्दगी जीने
वाले भी कम मिलते है।
वर्तमान को जीने वाले
ही ज़िंदा दिल होते है॥
प्यार से जो जिंदगी
को जीते है।
गम होते हुए भी
खुशी से जीते है।
ऐसे ही लोगों की
जीने की कला को।
हम लोग जिंदा
दिली कहते है॥
स्वर संगम
क्यों तुम वेबजाह आ कर
दिलकी वीणा बजा देती हो।
और फिर कही खो जाती हो
क्या मिलता है ये करके।
न सुकून से ख़ुद रहते हो
और न हमें रहने देते हो।
मुद्दत हो गई तुम्हें भूले
फिर क्यों बार-बार आते हो॥
जिंदगी को साथ चाहिए था
तब तो साथ तुम आये नहीं।
अब क्यों बुझे दीपक और
सुने संगीत को बजा रहे हो।
जिसमें न कोई रोशनी और
न ही कोई सरगम बची है।
अब तो सब कुछ बेसुरा
मेरा संगीत हो चुका है॥
कभी समुद्र की ऊँची लहरों पर
प्यार मोहब्बत के गीत गाते थे।
और अपनी मेहबूबा के स्वरों को
दिलकी लहरों से टकराया करते थे।
उस किनारे से तुम आते थे
इस किनारे से हम आते थे।
बीच में ही तेरे गीत और
मेरे साजो का संगीत बाजते थे।
और एक अनोखी मोहब्बत का
दृश्य बहते पानी में दर्शाते थे।
श्रीराम श्रीकृष्ण मिले
चलते चलते मुझे
श्रीराम मिल गये।
चलते चलते मुझे
श्रीकृष्ण मिल गये।
बातों ही बातों में
वो पूछने लगे।
क्या करते हो तुम?
मैने कहाँ की मैं
एक कवि हूँ जी।
सुनकर दोनों जन
जोर से हंस पड़े।
मैने पूछा उनसे
क्या हो गया जी।
कहने वह लगे
डरते है कवियों से।
मैने कहाँ जी
क्यों डरते हो?
कवि भी तो
एक इंसान है।
फिर इंसान से
भला क्यों डरते हो।
वो कहने लगे
कवि वह होता है।
जहाँ पहुँचे न रवि
वहाँ कवि पहुँच जाता है।
फिर हर बात का, विश्लेषण करके
लोगों को सुनता है।
इसलिए हम भी
डरते है उससे।
मैने कहाँ क्या
कवि झूठ लिखता है॥
वो बोले क्या ज़रा सुनोगे तुम सब:-
मैं श्रीराम हूँ
जिसको तुम सबजन
कहते हो मर्यादा पुरुषोत्तम।
पर क्या मेरे नाम को
सार्थक तुम लोग कर रहे?
कुछ तो बोलो
पृथ्वी के वसन्दे।
कोई उत्तर हमें
नहीं मिला उनसे।
इसलिए मैं कहता हूँ सदा
मत करो बदनाम
मेरे नाम को तुम।
छोड़ दो मुझे
मेरे ही हाल पर।
हिंसा के बीज मत
वोओं मेरे नाम पर।
अपनी स्वार्थ के लिए
कुछ भी किये जा रहे।
हे कवि वर मुझे
तुम बचा लीजिए।
और जन-जन तक
मेरा सही संदेश
तुम पहुँचा दीजिये।
में समझ गया
श्रीराम श्रीकृष्ण का दर्द।
और लिख दिया मैनें
मानो तो में भगवान
जानो तो भगवान
आस्था ही बची है
मन में लोगों के
पर दिलमें नहीं है
अब मर्यादापुरुषोत्तम राम॥
सोते सोते ही छोड़ गये
हमें बीच में ही भगवान।
और हो गई सुबह
ये सब देखते ही देखते।
दे गये कुछ प्रश्न जिनके उत्तर हम आपको देना हैं॥
संजय जैन, मुम्बई
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