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तुलसी की रामायण बोले
तुलसी की रामायण बोले, रामचरितमानस मुख खोले
मर्यादा पुरुषोत्तम राम है, रघुकुल गौरव का तू हो ले।
राजतिलक या वनवास मिले
मुख पर सदा मुस्कान खिले
आज्ञा पालन करने वचनों का
वनवास गए धरा गगन हिले।
तुलसी की रामायण बोले, रामचरितमानस मुख खोले
मर्यादा पुरुषोत्तम राम है, रघुकुल गौरव का तू हो ले
केवट जिनके चरण पखारे
नौका सरयू पार उतारे
उतराई पर सकुचाए राम
जनक सुता मुंदरी उतारे।
तुलसी की रामायण बोले, रामचरितमानस मुख खोले
मर्यादा पुरुषोत्तम राम है, रघुकुल गौरव का तू हो ले।
मैया शबरी भजन है गावे
सिया राम की बाट जोहावे
खाकर मीठे बेर प्रेम से
प्रभु जी परमधाम पहुँचावे।
तुलसी की रामायण बोले, रामचरितमानस मुख खोले
मर्यादा पुरुषोत्तम राम है, रघुकुल गौरव का तू हो ले।
श्री राम अयोध्या आएंगे
आ रही है यही पुकार, सारे जग ने भरी हुंकार
श्री राम अयोध्या आएंगे, श्री राम अयोध्या आएंगे।
सज गई नगरी राम की आज, शेष रहा ना अब कोई काज
झूम रहे हैं सब नर नारी, झूम रही आज सृष्टि सारी।
पुष्पित होकर सुरभित होते, नव पल्लव भी हर्षित होते
करते हैं सब उन्हें प्रणाम, आएंगे अब जय श्री राम।
श्री राम अयोध्या आएंगे, संग सीता लक्ष्मण लाएंगे
हनुमान की पूरी आस, जीवन सकल तुम्हारे दास।
हम पथ में फूल सजाएंगे, मंगल गीतों को गाएंगे
नव वस्त्र पहन हम नाचेंगे, घर-घर में दीप जलाएंगे।
दीपावली फिर होगी आज, ढोल नगाड़े बजते साज
खूब मिठाई खाएंगे, मिलकर ख़ुशी मनाएंगे।
राम राज की बजी शहनाई, फिर आई है तरुणाई
ध्वज भगवे लहराएंगे, श्री राम अयोध्या आएंगे।
श्री राम
पुरुषोत्तम श्री राम के आगे
जनम जनम के सब दुख भागे
राम ही सुमिरन राम सुमंगल
राम से कटते सारे अमंगल।
इस सृष्टि में राम बिराजे
हम सबके हैं पालन हारे
कभी सबरी के बेर है खाते
अपने तीर से शत्रु को मारे।
राम सिया के प्राण पियारे
सीता संग लगे मन प्यारे
एक सुकोमल जनक दुलारी
दूसरे दशरथ नंदन प्यारे।
सहज स्वभाव भाव अति धीरा
श्याम शरीर जटा जुट वीरा
गौतम नारी जटायु तारे
सरयू पार गए तरणी सहारे।
राम ही सृष्टि राम ही व्यष्टि
तुमसे रचित है सारी समष्टि
राम राम जिस नर ने पुकारा
पल में उसको पार उतारा।
चरण वंदना करता सागर
राजीव नयन कृपा करुणाकर
दशमुख सम्मुख शत्रु आपारा
कौशल्या सुत किया उद्धारा।
नव वर्ष
नव वर्ष
वर्ष नया कैलेंडर बदला
अरमान वही पुराने हैं
नव वर्ष की नई राहों पर
आशाओं के दीप जलाने हैं।
कुछ थे जो पीछे छूट गए
कुछ अपने भी तो रूठ गए
जीवन की सुंदर नैया में
कुछ अनजाने भी बैठ गए।
वर्ष बीता नये सबक मिले
नव उल्लास नव सुमन खिले
माला का मोती और एक टूटा
ढूँढो कितना पर अब ना मिले।
उम्र गुजरती धीरे-धीरे
नव वर्ष तो आकर जाएंगे
जीवन रस जो रीस रहा है
इसको क्या हम ला पाएंगे।
वर्ष नया हो सोच नई हो
घर-घर में अब जोश नया हो
राम राज्य का आंगन उजला
अवधपुरी का शोर नया हो।
निलेश जोशी “विनायका”
बाली, पाली, राजस्थान।
९६९४८५०४५०
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