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तुम्हारा साथ
तुम्हारा साथ
मैं लिखना तो बहुत कुछ चाहता हूँ,
शब्दों का सागर कम ही लग रहा है मुझे,
मैं अविरल, अविराम-सा बहता एक दरिया,
तुम दरिया का किनारा हो,
दुनियादारी की भीड़ में जब थक जाता हूँ,
तुम ही तो मेरा सहारा हो,
संग तुम्हारे ये जीवन-यात्रा आसान हो गई,
कठिनाइयां सभी दूर हो गई,
मेरी भी एक पहचान हो गई,
कठिन समय में भी तुमने हंसकर साथ निभाया,
काँटों से भरी थी राहें जिनको सहज सुगम बनाया,
ये साहस और विश्वास तुम्हारा ही तो था,
जिसने यह जीवन सुखमय वरदान बनाया,
ये विश्वास नहीं था किसी को,
कभी सफल हो पाऊंगा,
सब यही सोचा करते थे देखकर,
एक दिन विफलता से ठहर जाऊंगा,
ये साथ़ था तुम्हारा सभी कुछ तो पा लिया,
एक नाम मैनें भी अपना बना लिया,
बस यही प्रार्थना है ईश्वर से,
साथ़ यूँ ही ये चलता रहे,
सुःख-दुःख की छांव तले प्रेम यूँ ही फलता रहे…!!
वरूण ढलौत्रा
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