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कृष्ण-द्रोपदी संवाद
कृष्ण-द्रोपदी संवाद: सुदेश मोदगिल
महाभारत के युद्ध में सारे कौरव स्वर्ग सिधारे थे
जीत गये थे पाण्डव फिर भी लगते हारे-हारे थे
अठारह दिन के युद्ध ने द्रोपदी को किया अस्सी साल का
क़िस्सा आज सुनाती हूँ आपको उसके हाल का
सारा शहर विरान पड़ा था, पुरूष ना कोई दिखे वहाँ
विधवा ही बस देती दिखाई, नज़रें जाती जहाँ जहाँ
अनाथ बच्चे घूम रहे थे, हस्तिनापुर की गलियों में
कैसे राजा राज करेगा और डूबेगा रंगरलियों में
महल में बैठी हुई द्रोपदी लगती थी बेजान सी
शून्य निहारती सोच रही वह क्या उसकी पहचान थी
पाँचों पुत्र गँवा कर अपने दिखती थी वह बड़ी निढाल
अंधकार छाया था मन में, सहन ना होता उसका हाल
कृष्ण को आते देखा जब तो लिपट के कृष्ण से रोने लगी
आँसुओं की नदिया में अपने जखमों को वह धोने लगी
प्यार से कृष्ण ने पलंग पर उसको अपने पास बिठाया
नियति बड़ी क्रूर है, यह पाँचाली को समझाया
लेना था प्रतिशोध तुम्हें, सफल हुई हो उसमें तुम
क्या क्या खोया इसकी ख़ातिर बैठके अब सोचेंगे हम
दुशासन दुर्योधन ही नहीं, सारे कौरव मारे गये
अब तो तुम खुश हो जाओ दुश्मन सब संहारे गये
दुखी द्रोपदी बोली कृष्ण से और ना मुझे रुलाओ तुम
सखा नमक ना छिड़को घाव पर, घावों को सहलाओ तुम
द्रोपदी तुमको वास्तविकता का ज्ञान कराने आया हूँ
अपने कर्मों के परिणाम का रूप दिखाने आया हूँ
कृष्ण क्या मैं ही पूर्ण रूप से युद्ध की उत्तरदायी हूँ
पाँचों पुत्र खो दिये मैने क्यों इस जग में आई हूँ
दूरदर्शिता होती तुममें तो यह कष्ट ना तुम पाती
सोच समझ कर शब्द बोलती, अहंकारी ना कहलाती
स्वयंवर में कर्ण को अपमानित ना तुमने किया होता
उस प्रतियोगिता में तब कर्ण ने भाग अवश्य लिया होता
पाँच पाण्डवों की पत्नी बनने का मानती ना आदेश
शायद यह सब कभी ना होता, अलग ही फिर होता परिवेश
अपने महल में दुर्योदन को तुम ना अपमानित करती
पुत्र अंधे का अंधा ना कहती, यह दण्ड नहीं भरती
चीर हरण ना होता तुम्हारा, होती परिस्थितियाँ कुछ और
शब्द हमारे कर्म हैं बनते, अगर शब्द कह दिये कठोर
बोलने से पहले शब्दों को तोलना बड़ा ज़रूरी है
दुष्परिणामों को फिर भोगना भी अपनी मजबूरी है
मानव ही इक प्राणी है जिसके शब्दों में भरा ज़हर
वरना हर प्राणी तों अपने दाँतों से करता यह क़हर
इसीलिए कहते हैं जो भी बोलो सोच के ही बोलो
वरना चुप रहना है अच्छा, सोच समझ कर मुँह खोलो
युद्ध से पहले कृष्ण-कर्ण संवाद
सूर्य पुत्र हो कर भी जो सूद पुत्र कहलाया था
उस के मन की हालत शायद कोई समझ ना पाया था
कर्ण पुत्र किस माँ का है यह कृष्ण और कुंती जानते थे
कर्ण है बेहद शक्तिशाली दोनों ही यह मानते थे
इन्द्र ने कर्ण से कुंडल माँगे कर्ण ने कुंडल दान दिये
दानवीर वह कहलाये नतमस्तक हैं हम उनके लिए
कर्ण गुरु परशुराम से थे अस्त्र शस्त्र की विद्या पाये
कोई नहीं था जो पराक्रमी कर्ण के तीरों से बच जाये
गुरू परशुराम शिष्य को करना पराजित था कठिन ही काम
कर्ण के बल को सोच के तो कृष्ण भी दिखे बे आराम
तभी कृष्ण ने कर्ण को माँ कुंती का ज्ञान कराया था
सूद पुत्र तुम नहीं हो, तुम कोंतेय हो यह बतलाया था
बहुत दुखी था कर्ण कि वह क्यों मृत्युलोक में आया है
अंश मात्र भी माँ की ममता का वह तो ना पाया है
कृष्ण ने कहा कर्ण से तुम इस युद्ध को टाल सकते हो
इतनी बिगड़ी परिस्थितियाँ तुम ही सम्भाल सकते हो
कृष्ण आप कहते हैं कि दुर्योधन को मैं समझाऊँ
आप ही कह दे दोस्ती का क़र्ज़ा मैं कैसे चुकाऊँ
दुर्योधन ने अंगदेश का राजा मुझे बनाया था
अपनी मित्रता का क़र्ज़ा उसने मुझपे चढ़ाया था
केवल दुर्योधन ने ही इस जग में मुझको मान दिया
कोई नहीं है जिसने मुझको रति भर सम्मान दिया
दुर्योधन को है यह भरोसा मैं अर्जुन को मारूँगा
अर्जुन को संहार के ही मैं क़र्ज़ा उसका उतारूँगा
कैसे मैं बतलाऊँ उसको मैं पांडव हूँ सबसे बड़ा
तेरे साथ मैं नहीं लड़ूँगा मैं पांडवों के संग खड़ा
मैं अर्जुन को मारूँगा या अर्जुन देगा मुझको मार
पांडव पाँच तो सदा रहेंगे एक का ही होगा संहार
पांडव पुत्र है सच के पथ पर, मित्रता मुझे निभानी है
मित्र ऋण से मुक्त है होना मैने दिल में ठानी है
रुक्मणी कृष्ण संवाद
(भक्त सुदामा पर)
रुक्मणी अपने कक्ष में आराम थी फ़रमा रही
करुण ध्वनि प्रभु मुरली की कानों तक थी आ रही
दर्द था मुरली के स्वर में रुक्मणी हैरान थी
चल पड़ी प्रभु कक्ष में वह तो बड़ी परेशान थी
बैठ प्रभु के चरणों में उसने उन्हें विनती करी
हे प्रभु तुम विश्व पालक आँखें अब खोलो हरि
क्या कही कोई भक्त आपका बड़ा परेशान है
मुरली के इस करुण स्वर से हुआ मुझको भान है
प्रभु ने आँखें खोली और देखो प्रिय कहने लगे
मेरे प्यारे भक्त देखो भूख भी सहने लगे
दो दिनों से भूखे ही यह भक्त मेरा सो रहा
फिर भी मुख से उसके नाम जाप मेरा हो रहा
देखकर यह दृश्य रुक्मणी बड़ी हैरान है
इतने प्यारे भक्त की शायद यही पहचान है
हाथ जोड़ कर प्रभु से रुक्मणी कहने लगी
आंखें रुक्मणी की देख दुर्दशा बहने लगी
हे प्रभु इस भक्त को अब शरण में ले लीजिए
मेरी विनती है प्रभु कुछ कीजिए कुछ कीजिए
तब प्रभु बोले प्रिय मैं भी बड़ा मजबूर हूँ
वरना अपने भक्तों से रहता कहाँ मैं दूर हूँ
रुक्मणी कहने लगी प्रभु ऐसी क्या मजबूरी है
किसलिए इस भक्त से हुई आपकी यूँ दूरी है
देवी मेरा भक्त सुदामा बचपन का है मित्र मेरा
शिक्षा पाने को था आश्रम में ही हम सबका डेरा
हम सब गुरु संदीपनी आश्रम में इकट्ठे रहते थे
अपने दिल की सब बातें इक दूजे से कहते थे
प्रभु के सामने भक्त सभी दामन अपना फैलाते है
हर ख़ुशी झोली में अपनी प्रभु से ही वह पाते हैं
मगर बड़ा संकोच होता हैं माँगने में इक मित्र को
ठेस लगती है रुकमणी स्वाभिमानी के चरित्र को
कैसे अपने मित्र को देवी ठेस मैं पहुँचाऊँगा
कैसे उसकी मदद के लिए बिना बुलाए जाऊँगा
बस यही मजबूरी है जो मैं यहाँ परेशान हूँ
देखकर स्वाभिमान उसका मैं बड़ा हैरान हूँ
पिछले जन्मों के कर्मों का फल भी सबको पाना है
प्रारब्ध कर्मों के हिसाब को चुकता भी करवाना है
लेकिन देवी रुक्मणी अब मुझे जल्द वह मिलने आयेगा
तब ही यह हृदय मेरा सुख की अनुभूति पायेगा
“सुदी नूर” रुक्मणी ने कर दिया कृष्ण के चरणों में प्रणाम
कृष्ण रुक्मणी दोनों कक्ष में पहुँचे करने को आराम
मन ही मन
राधा कृष्ण ख़ामोश संवाद
कान्हा आज यह तुमने मुझको, किस उलझन में डाला है
अपने विचलित मन को मैनें, बड़ी मुश्किल से सम्भाला है
जबसे द्वारिकाधीश बने हो, बदले-बदले लगते हो
मेरे दिल में रहते हो, बड़े प्रेम से मुझको ठगते हो
कान्हा तुमने गोवर्धन को, इक उँगली पर उठाया था
सारे गोकुलवासियों को तब, कान्हा तुमने बचाया था
अब उस उँगली पर तुमने, कर लिया सुदर्शन को धारण
ज़ो बन जाता है ओ कान्हा, किसी की मृत्यु का कारण
दर्शन की प्यासी हैं आँखें, इनकी प्यास बुझा दे तू
एक बार तो आकर फिर से, मुरली मधुर सुना दे तू
तरस गया है मन मेरा, कब रास रचाने आओगे
कब वियोग यह ख़त्म करोगे, माखन खाने आओगे
गऊएँ भी कान्हा तेरी, बिन तेरे रहें परेशान सदा
गोप ग्वाल सभी बिन तेरे, दिखते हैं हैरान सदा
कान्हा तुमको मैने तो, अपनी आँखों में सजाया है
आंसुओं में कही बह ना जाओ, आँसु नहीं बहाया है
किसको दिल की व्यथा सुनाऊँ, यह मुझे समझ नहीं आता
तेरे बिना इस बांवरे मन को, कोई सुख भी नहीं भाता
कान्हा कहने लगे राधा से, मैं तो तुम्हारा दास हूँ
दूर नहीं तुमसे रहता मै, सदा तुम्हारे पास हूँ
मेरी हर इक साँस में राधा, बसा हुआ है तेरा नाम
तुमसे दूर अगर हो जाऊँ, कैसे पाऊँगा आराम
पाप मिटाने की ख़ातिर मैं, इस धरती पर आया हूँ
भक्तों पर अनुग्रह करने को, मैं यह रूप बनाया हूँ
मन तो रहता पास तुम्हारे, तन द्वारिका में राज करे
मैं रहता हृदय में तुम्हारे, तन यहाँ सारे काज करे
तुम हो स्वामिनी मेरी, हृदय में मैं तुम्हारे रहता हूँ
मन ही मन करूँ बात मैं तुमसे, बस इतना तुम्हें कहता हूँ
प्रेम पवित्र है निस्वार्थी है, जग को यह समझाना है
प्रेम ही है आधार जगत का, यह आभास कराना है
कृष्ण नाम राधा को प्यारा, कृष्ण को राधा प्यारी है
राधा अल्हादनी शक्ति कृष्ण की, सारे जग से न्यारी है
राधा अष्टमी के दिन प्रभु ने, यह संवाद लिखाया हैं
“सुदीनूर” मेरी क़लम पर प्रभु ने, अपना नूर बरसाया है
शत शत मेरा प्रणाम प्रभु, आज आप कर ले स्वीकार
मेरी नाशवान काया का, आपने करना है उद्धार
रावण उद्धार
शिव की कृपा सदा थी जिस पर रावण था शिव भक्त महान
देवता कोई ना मार सके मुझे ब्रह्मा से पाया वरदान
बलशाली होकर धरती पर वह उत्पात मचाने लगा
राक्षस संस्कृति को पूरी धरती पर वह फैलाने लगा
ऋषि मुनि और मानव भी सब भयभीत अब होने लगे
प्रभु हमारी मदद करो सब अपना धैर्य खोने लगे
ब्रह्मा जी ने कहा कि नारद तुम धरती पर जाओ
धरा पर एक लुटेरा है उसे ज्ञान का पाठ पढ़ाओ
जंगल में आने जाने वाले राहगीरों को वह लूटे
उससे बचना मुश्किल था शायद ही कोई उससे छूटे
नारद मिले लुटेरे से और उससे पूछी एक ही बात
जिनके लिए लूटते हो क्या अंत में वह तेरा देंगे साथ
अंत समय में देख लुटेरे होगा तेरे कर्मों का हिसाब
नर्क स्वर्ग तुझे मिलेगा जैसी भी होगी कर्मों की किताब
जाकर उसने अपनी पत्नी बच्चों से यह पूछ लिया
लेकिन बच्चों ने पत्नी ने साफ़-साफ़ कह मना किया
हर कोई अपने परिवार को पालने का करता है काम
अपने कर्मों का तो ख़ुद ही भोगना होता है अंजाम
उसी समय लुटेरे को हो गया अपने अज्ञान का बोध
नारद जी के सामने झुक गया पी गया अपना सारा क्रोध
बना तपस्वी बाल्मीकिरामायण तब लिख डाली
ब्रह्मा जी ने त्रेता युग की कथा उससे लिखवाली
शिव ने कहा तब विष्णु जी से मानव रूप लीजिए धार
धरती पर लीला करिए और रावण का करिए उद्धार
शिव ने कहा यह भक्त मेरा हो गया बड़ा अभिमानी
उसकी जीवन लीला ख़त्म है करनी प्रभु ने ठानी
हनुमान के रूप में अपना अंश अवतार बनाया
राम काज करने उसे अंजली माँ के घर भिजवाया
तब प्रभु विष्णु राम रूप में इस धरती पर आये
रावण वध के लिए ही प्रभु ने मानव रूप बनाये
इसके बाद की रामायण तो सारी दुनिया जानती है
प्रभु राम की त्रेता युग की लीला दुनिया मानती है
ब्रह्मा के वरदान के कारण देवता नहीं सकते थे मार
इसीलिए तो लेना पड़ा था विष्णु को मानव अवतार
लक्ष्मी जी ने साथ उनके ले लिया था सीता का अवतार
सीता राम ने धरती पर आकर कर दिया सबका उद्धार
फ़रियाद
दुनिया को फिर ख़ुशनुमा-सी ज़िंदगानी दे खुदा
सबकी धड़कनों में पहले-सी रवानी दे खुदा
लोग बंद है घरों में ठप्प कामकाज है
नज़रें जाती हैं जहाँ मायूसियों का राज है
है गुज़ारिश फिर से ज़िंदगी पुरानी दे खुदा
सबकी धड़कनों में पहले-सी रवानी दे खुदा
मौत का बर्पा हुआ है सारी दुनिया में क़हर
ढेर लाशों के लगे है देख लो कोई शहर
चेहरों पर है ख़ौफ़ फिर से शादमानी दे खुदा
सबकी धड़कनों में पहले-सी रवानी दे खुदा
सोचा ना था हमने वक़्त ऐसा भी कभी आयेगा
अपना मन बच्चों से ही मिलने को तरस जायेगा
आँखों में फिर से मुसरर्तों का पानी दे खुदा
सबकी धड़कनों में पहले-सी रवानी दे खुदा
शत्रु यह अदृश्य है इसकी ना कुछ पहचान है
विश्व सारा सोच-सोच कर बड़ा परेशान है
ऐसी शत्रु की हमें कुछ तो निशानी दे खुदा
सबकी धड़कनों में पहले-सी रवानी दे खुदा
तेरी मेहरबानियाँ से ही जहाँ आबाद है
मेरे मालिक तुझसे मेरी बस यही फ़रियाद है
“नूर” दुनिया को तू फिर से रुत सुहानी दे खुदा
सबकी धड़कनों में पहले-सी रवानी दे खुदा
नारी का सम्मान करो
(रामायण, महाभारत की दो घटना)
महाभारत और रामायण दोनों ही ग्रंथ महान है
यह दोनों ही ग्रंथ हमारे भारत की पहचान हैं
इक घटना रामायण की आपको आज सुनाऊँगी
इसके बाद इक महाभारत की घटना भी बतलाऊँगी
रावण जब विमान में सीता हरण कर के लेजा रहा था
सीता माता का रुदन सारा गगन कँपा रहा था
चीख़ें सुन कर सीता माता की जटायु आ गया
पक्षी था वह फिर भी रावण से वह जा टकरा गया
जानता था यह बात जटायु जीत नहीं वह पायेगा
लेकिन सीता माँ को बचाने फिर भी वह तो जायेगा
दोनों पंख जटायु के तब रावण ने थे काट दिए
मरणासन धरती पर लेकिन मन में एक प्रण थे लिए
प्रभु राम को रावण कपटी का क़िस्सा बतलाऊँगा
प्रभु आने की प्रतीक्षा यमराज को भी करवाऊँगा
तब तक प्राण ना त्यागूँगा जबतक राम ना आयेंगे
रावण दुष्ट ले गया सीता जान वह कैसे पायेंगे
प्रभु राम पहुँचे तो जटायु ने सब कुछ उन्हें बतलाया
प्रभु की गोद में सर था उसका अंत समय वह मुसकाया
मौत से नहीं वह घबराया नारी की लाज बचाने में
कथा जटायु की कल्पों तक कही जायेगी ज़माने में
अब मैं आपको महाभारत की घटना इक बतलाऊँगी
भीष्म पितामह की मृत्युशैया का क़िस्सा समझाऊँगी
भीष्म पितामह कृष्ण भक्त लेटे बाणों की शैय्या पे
ऐसा दृश्य क्यों दिखा हमें चलों पूछें कृष्ण कन्हैया से
गीता में कहते हैं कृष्ण कर्मों का फल सब पाते हैं
जो दुष्कर्म हुआ हमसे हम उसका दाम चुकाते हैं
कर्म वह क्या था जिसने दी भीष्म को बाणों की शैय्या
फिर भी पार लगाई परभु कृष्ण ने
भीष्म की नैया
द्रोपदी चीर हरण पर सारे कौरव खो बैठे थे होश
महायोद्धा भीष्म भी वहाँ थे कैसे बैठे रहे ख़ामोश
भीम ने खाई शपत वह जंघा दुर्योधन की तोड़ेगा
कौरवों से बदला लेगा वह किसी को भी ना छोड़ेगा
रो रो कर जब द्रोपदी ने कहा मेरी लाज बचाओ
दया की भीख वह माँग रही थी कोई सामने आओ
भीष्म पितामह सभा में बैठे हुये थे सर को झुकाये
मृत्यु शैय्या पर लेटे हुए वह दृश्य याद उन्हें आये
क्यों ना किया विद्रोह भीष्म ने द्रोपदी के अपमान पे
कैसे गिला करेंगे वह अब अपने कृपानिधान पे
शूल शैय्या पर भक्त भीष्म और प्रभु के मुख पर थी मुस्कान
भीष्म पितामह को भी था अपने सब कर्मों का भान
योद्धा हो कर भी द्रोपदी की लाज बचाने ना आये
शूल शैय्या पर थे भीष्म प्रभु कृष्ण तभी तो मुस्काये
सीता माता के लिए भक्त जटायु ने थे प्राण गँवाये
अपनी गोदी में सर रख कर प्रभु उसको अपने धाम पहुँचाये
नारी के सम्मान के लिए जो भी आगे आता हैं
प्रभु की नज़रों में वह मानव सच्चा भक्त कहलाता है
प्रभु प्रेम पाना है ग़र तो नारी का सम्मान करो
प्रभु भक्त बन जाओ दामन अपना तुम ख़ुशियों से भरो
प्रभु कृपा से ही शक्ति मेरे भावों में आई है
प्रभु कृपा से “सुदीनूर” मेरी क़लम यह सब लिख पाई है
ड्रेगन होश में आजा
शान्ति प्रिय है देश हमारा, भारत सबका साथी है
मेरे भारत की मिट्टी से प्यार की खुशबु आती है
वक़्त कभी आया मुश्किल तो विश्व का हमने साथ दिया
कोई प्यार से सामने आया दोस्ती का उसे हाथ दिया
लेकिन किसी ने ग़र हमें छेड़ा उसे ना हम कभी छोड़ते है
देश के वीर सिपाही गर्दन उस दुश्मन की मरोड़ते है
अपनी इक-इक इंच भूमि की रक्षा करना जानते है
तेवर ग़र कोई दिखलाये दुश्मन हम उसको मानते है
ड्रेगन तूने क्या सोचा है तू भारत को हरायेगा
भारत माँ का हर बेटा तुझे नाकों चने चबवायेगा
तूने बीस को मारा था और हमने मारे तेरे पचास
सुन ओ मूर्ख चीन अभी भी रखता है तू जीत की आस
होश में आजा अब भी वरना बाद में तू पछतायेगा
देश मेरे का सैनिक तेरे दस-दस मार गिरायेगा
पूरे विश्व में तुमने ही यह महामारी फैलाई है
दुनिया भर में लाशों की बारिश तुमने करवाई है
सारा विश्व है साथ हमारे तू तो अकेला नाचेगा
मुँह की जब खायेगा अपने आप मैदान से भागेगा
धोखेबाज़ है ड्रेगन तू यह सारी दुनिया जानती है
तेरे इरादे भरे फ़रेब से यह भी दुनिया मानती है
दो दमदार दोस्त है मिलकर करेंगे तेरा काम तमाम
मिट जायेगा ड्रेगन फिर इस दुनिया से तेरा नामोनिशान
अदृश्य शत्रु करोना
देखो इक अदृश्य शत्रु कर रहा संहार है
घर में रहना है सभी को वक़्त की यह पुकार है
भूल कर भी दोस्तों तुम अपने घर से ना निकलना
खुद को तुम मज़बूत रखना निश्चय से तुम ना फिसलना
सारा विश्व रो रहा है ढेर लाशों के लगे है
मौत का तांडव है चारों ओर, चेहरे सब ठगे है
दोस्तों बाहर ना जाना ग़लत क़दम ना उठाना
जान बेदद क़ीमती है जान अपनी ना गँवाना
घर में रह कर भी हमेशा हाथ बरम्बार धोना
ध्यान रखना बुज़ुर्गों का, बाद में फिर तुम ना रोना
भाग्यवान है देश अपना मोदी जी नायक हमारे
मोदी जी के फ़ैसलों ने भाग्य भारत के सँवारे
मंदिरों से निकल बाहर, देव डाकटर बन के आये
अस्पतालों में हज़ारों लोग देवों ने बचाये
घर में रह कर “नूर” प्रभु की वंदना हम सब करेंगे
हैं प्रभु जब साथ अपने क्यों करोना से डरेंगे
सुदेश मोदगिल “नूर”
पंचकूला
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