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कुदरत
कुदरत
है कुदरत का कमाल,
अजब अनोखा आईना।
कोई न समझ पाया,
भगवान भरोसा भाई ना॥
है विशिष्ट ज्ञान विज्ञान,
अजूबा अब भी जारी।
नहीं समझ पाया इंसान
क़ुदरत की कला न्यारी॥
वो कहाँ गए जोध-जवान
राजा और नौकर-चाकर।
करते थे गर्व गुरेज अपार
पैसे औऱ पद को पाकर॥
कितने वहन किए हैं वंश,
अनवरत आगे भी जारी।
झेले दुनिया दुर्लभ दंस,
अंत में अपनी बारी॥
हमनें किया है करतूत,
दमन का दिखा दंश।
यह भुल गया इंसान,
हम है इसी कुदरत के अंश॥
सावन
सावन सुको सांवरा,
सरवर में नहीं सार।
मारण मार्ग मोकळा,
मेह बिना मत मार।
तरुवर तड़पे तावड़े,
सरवर संजोये आस।
बैलड़ियाँ बिलखी पड़ी,
बंद पड़ी बरसात।
नदियाँ बिलखी नीर बिन,
नालों सूं नातो नहीं।
नहीं कोयल री कूक है,
नहीं मोर रो नाच।
कृषक कर्ज़ में डूब गयो,
खाली पड़े हैं खेत।
आंधी बाजे आंतरी,
उड़े बालू रेत।
जीव जिनावर जीवण रा,
बदलिया बादळ वेश,
मकवाना मेह सूं कहे,
आओ मरुधर देश।
टीकमाराम मखवाना
बाड़मेर राजस्थान
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