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अधूरा सपना
कहानी : अधूरा सपना
कहानीकार : निरंजन
जो व्यक्ति आकाश में उड़ते हुए परिंदों को देखता है तो निश्चित ही सोचता है कि काश में भी उड़ता। परंतु वह उसे एक कल्पना मात्र मान लेता है। इसी प्रकार जब कोई व्यक्ति रात में कोई स्वपन देखता है और वह स्वपन अधूरा रह जाता है तो वह बहुत दुखी होता है क्योंकि व्यक्ति को आत्मसुख की तभी प्राप्ति होती है जब वह स्वपन अंत तक जाए।
यह कहानी शायद यही बयाँ करेगी जब व्यक्ति जीवन में कुछ करने के लिए स्वपन देखता है और वह अधूरा रह जाता है वह बहुत ही दुखी होता है। वह स्वयं को अभागा मान लेता है इसी तरह शायद सुशीला ने भी सोचा होगा।
सुशीला रामधन की सबसे छोटी बेटी थी रामधन के ५ संतान थी जिसमें तीन लड़की और दो लड़के रघु और सोहन थे। रामधन मजदूरी करता था और अपना जीवन यापन करता था। रामधन ने अपनी दो बेटियों की शादी पहले ही कर दी थी। जब वह मुश्किल से १३ से १४ साल की थी यह बाल विवाह था परंतु उसकी मजबूरी इस बात को कब जान रही थी।
रामधन की सबसे छोटी संतान सुशीला ही थी सुशीला नाम के अनुरूप ही थी वह सुंदर सुशील और गुणवान बच्ची थी। वह पढ़ने में भी तेज थी। वह अपनी कक्षा में हमेशा प्रथम स्थान आती थी। रामधन के पास केवल मजदूरी ही एक चारा था। वह सुबह मजदूरी जाता और शाम को घर लौटता था जो भी उसे मिलता है उससे अपना जीवन यापन करता था।
रामधन ने सामाजिक रीति रिवाज़ निभाने के लिए और अपने सर से भार कम करने के लिए रघु और सोहन की शादी छोटी-सी उम्र में कर दी थी। उन दोनों पर परिवार का भार बढ़ गया और वह दोनों ही पढ़ नहीं पाए और अपनी-अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गए दोनों भाई जल्दी ही अलग हो गए। रामधन, उसकी पत्नी और सुशीला तीनों एक साथ रहते थे।
रामधन भी बूढ़ा हो चला था अब उससे इतना काम नहीं होता था। उसे सुशीला की फ़िक्र सताने लगी है उसकी पढ़ाई को देख कर खुश था परंतु क्या करें? वह अपनी मजबूरी के सामने मजबूर था। उसने बड़ी मुश्किल से सुशीला को दसवीं कक्षा तक पढ़ाया था। सुशीला ने अपने विद्यालय में सबसे ज़्यादा नंबर लेकर गाँव में परचम लहराया था। अब सुशीला भी १५ वर्ष की हो चली थी रामधन को दिनों दिन सुशीला की चिंता सता रही थी कि अब सुशीला की शादी करनी है।
सुशीला के स्वपन बहुत ऊंचे थे। वह अपने जीवन में कुछ बनना चाहती थी। उसके दिल में हमेशा यही तमन्ना रहती थी कि वह पढ़ लिखकर टीचर बने। परंतु उसको उसकी मजबूरियाँ परास्त कर रही थी। रामधन ने सुशीला के लिए अपनी ही रिश्तेदारी में एक लड़का ढूँढ लिया। लड़का आठवीं तक पढ़ा लिखा था। वह किसी छोटी कंपनी में काम करता था और उसके पिता के हिस्से में थोड़ी-सी ज़मीन भी आती थी। वह भी चार भाई बहन थे।
अब सुशीला मारुति रहने लगी थी वह सोचते थे कि जो उसने सपना देखा था वह शायद पूरा नहीं होगा परंतु फिर भी उसके अंदर एक ऊर्जा पैदा होती थी और उसे स्वपन पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करती रहती थी। समय बीतता गया और रामधनी सुशीला की शादी की तारीख निश्चित कर दी। रामधन भी शायद अपने फैसले से खुश नहीं था परंतु करे तो क्या करें? तय समय पर सुशीला की शादी हो गयी और रामधन के सर से भी भार उतर गया परंतु शायद उसने सुशीला के स्वपन को तोड़ा था। सुशीला ससुराल में रहने लगी सास-ससुर की ख़ूब सेवा करती थी। परंतु सुशीला मायूस रहती थी क्योंकि जो उसने सपना देखा था उसे पूरा करना चाहती थी।
एक दिन उसने सारी बात अपने पति को बताई। उसके पति ने इस पर नाराजगी जताई और घर पर ही काम करने को कहा। जब यह बात सुशीला ने उसके मुंह से सुनी तो पहाड़ से टूट गया और रात भर आंखों में आंसू लिए जागती रही। वह मन ही मन पछताती रही और पिता की मजबूरियों को दोष देती रही जो उसने अपने पिता के घर पर मेहनत करके पढ़ाई की थी। वह आज धूमिल हो गई जो उसने अपने जीवन में टीचर बनने का सपना देखा था। वह आज कांच के टुकड़े की तरह टूट गया। उसकी खुली हुई आंखों के सामने ही उसका सपना अधूरा टूट गया वह अब स्वयं से भी मायूस-सी रहने लगी थी।
निरंजन
गांव पाटन अहीर
तहसील कोटकासिम
जिला अलवर (राजस्थान)
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