Table of Contents
हिंदी दिवस और कवि व्यथा
स्वीकार किया, देश की औपचारिक प्रिय भाषा है हिन्दी।
१४ सितंबर सन् ‘४९ संविधान में, चमक उठी बन बिन्दी।।
गांधीजी का संकल्प दुहरा नेहरूजी ‘हिंदी दिवस’ मनाए।
चरखा रख, फिरंगियों की थोपी, गिटिर-पिटिर अपनाए।।
गुरुकुल से विलग, धर्म ग्रंथ व साहित्य छिन्न- भिन्न हुए।
प्रभुत्ववादी मानसाधारी, वैश्विक ३री भाषा, प्रसन्न हुए।।
आशान्विता- विश्वगुरु बन भारत शिध्र, अगला कदम होगा।
हिंदी शब्दकोश विश्वभाषा अंग्रेजी से उत्तम, अंगिकृत होगा।।
चातूर्यपूर्ण भरे गल्पों से, हिंदी प्रश्नों से सब अनजान रहें।
हिंदी प्रेमियों को व्यथा से अनजान रख, पोस्टपार्टम सहें।।
हिंदी संघर्ष हिंदूत्व भांति सनातनी, यह सत्य निर्विवाद है।
हट कर बात, अपनी लिपि की बदौलत ही हिंदी आज है।।
‘मिट्टी मिट-मिट कर भी नहीं मिटी’, कहते कवि सुमन।
कालखंडों में हिंदी ने आक्रमण झेल, उपेक्षित रे चमन।।
लिपि का लोप थी धृष्टता, उपेक्षा सह, कलम से दूर रही।
दंश मिले पर अंश रूप में ही सही, हिंदी अश्रुपूरित रही।।
झंझावात झेला, हजार साल पूर्व, भारतवर्ष की भाषाएं।
नागरी लिपि आहत, मुगल सन् ११० से फारसी चलाएं।।
फारसी का तात्कालिक विश्व में स्थान, आज अंग्रेजी ऐसी।
मुगलों के दौर में, फारसी राज्य शासन की भाषा बन पैसी।।
चार सतक हिंदी उपेक्षित, १८वीं शताब्दी में, फिरंगी आए।
फारसी अदालतों में हावी, शासक अंग्रेजी प्रचलन चलाएं।।
अस्सी साल बाद सोचा, फारसी ‘आमफहम’ भाषा नहीं है।
फ़तवा तालीम, न्यायालय में, स्थानीय भाषा में ही सही है।।
बंगाली, गुजराती उड़िया आदि भाषाएं अदालतों में छाईं।
पर उर्दू को ही हिंदुस्तानी जुबान माने, लाचार बहुत साईं।।
भ्रम में हिंदी कोने में सिसक रही, अपना कोई जोर नहीं।
पाठन योग्य पुस्तकें नहीं, साहित्यकार मंडल दिखा नहीं।।
हटात् हिंदी हेतु, ‘सितारे हिंद’ राजा शिव प्रसाद जी उभरे।
चुनौती स्वीकार, पठनीय चालीस पुस्तकें की छाई खबरें।।
पुस्तकें लिखीं, न्यायिक भाषा- शिक्षा हिंदी में संग्राम की धारा।
प्रेरणा से लक्ष्मण सिंह, दीनदयाल तिवारी, सीताराम हुंकारा।।
श्रीधर पाठक, भारतेंदु हरिश्चंद्र एवम् श्यामसुंदर दास आए।
राजाराम पाल सिंह, कालाकांकर एवं बालकृष्ण भट्ट छाए।।
प्रताप नारायण मिश्र, चौधरी बद्रीनारायण प्रेमधन सजग।
देवी प्रसाद दूबे और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी अग्रज।।
साहित्यकार-पत्रकार के हिंदी हितार्थ संघर्ष जगजाहिर।
६३ वर्ष मशाल की लपटें, १९ सौ से हिंदी वाद आखिर।।
अदालतों के कार्य की भाषा, संघर्ष का प्रथम चरण पूरा।
हिंदी संघर्ष चरण, हिंदी राष्ट्रभाषा बनाने का स्वप्न अधुरा।।
कमान ‘द्विवेदी युग’ के साहित्यकारों ने संभाल, हिंदी अपनाई।
स्वाधीनता दौर में, इंदौर हिंदी भाषा अधिवेशन बिगुल बजाई।।
हिंदी साहित्य सम्मेलन १९१८ इंदौर अधिवेशन, गूंजा शंखनाद।
हिंदी को राष्ट्रभाषा की वकालत, गैर हिंदी भाषी गांधी का नाद।
लेकिन संपर्क भाषा से आगे बढ़ नहीं पाई, लगे ४९ साल।
१५ अगस्त ‘४७ को स्वतंत्र राष्ट्र में राष्ट्रभाषा स्वप्न सवाल।
पंद्रह अगस्त सन् सैंतालीस को, हिंदुस्तान स्वतंत्र हुआ।
हिंदी को राष्ट्रभाषा बना, धरातल पर लाना कठिन हुआ।
दो वर्षों का संघर्ष फलित, १४ सितंबर ‘४९, राजभाषा उभरी।
प्रश्न है, राजभाषा आखिर राष्ट्रभाषा अबतक क्यों नहीं सुधरी।
सतसत्तर साल गए, निराश हिंदिभाषी प्रतीक्षारत हैं।
तख्त पलट परन्तु संधर्ष के, चिन्ह दृष्टिगोचर नहीं हैं।
चेष्टारत हिंदी प्रेमियों से, पहले पहला प्रश्न पूछें, खुद से।
स्वयं हिंदी हिमायती पर, विद्यालयों में पठन अंग्रेजी से।
आजाद भारत में हिंदी राष्ट्रभाषा हो, सदन में खुसुर-पुसुर नहीं।
नेतृत्व किसी भी दल या नेता, कोई सरकार, ठोस कदम नहीं।
हिंदी को अन्य भाषाओं से, जोड़ने की कारगर योजनाएं कहां।
आस-पास स्वप्न में भी, साकारात्मक विचार कभी आए वहां।
ऐसे प्रश्नों के उत्तर जब, अंतर्मन में ‘नहीं’ में सुनाई देंगे।
जिम्मेदारों से हमारे- आपके उत्तर को अपरिहार्य कहेंगे।
याद रहे, अंततः हिंदी जन भाषा थी, है और रहेगी।
इसे मिटाने या बढ़ाने के निर्णय हुए पर बची रहेगी।
सरलता और पूर्वजों की सम्मिलित चेष्टा से उजागर है।
जब हिंदी पट्टी से हिंदी का मूल प्रश्न लुप्त, शर्मसार है।
ऐसे में उत्तर मात्र एक, हिंदी के प्रति ‘जागरुकता’ लानी होगी।
इतिहास साक्षी, बगैर विशिष्ट वर्गिय जागृति, हिंदी नहीं बचेगी।
कोताही मतलब, हिंदी विरोधी हो न हो पर हितैषी नहीं।
हिंदी हित में जो दिखता, मात्र ढोंगी है, शुभचिंतक नहीं।
ढोंग इस दौर का कटु सत्य, अभारतीयता ही तो है।
सरकारी ढोंगों को जोड़ें तो यह ‘ढोंग वर्ग’ बनता है।
अब आप पर यह, ढोंग बढ़ाएं या सहृदय हिंदी दिवस मनाएं।
हिंदुस्तान बनाना हो तो, सचमुच नत हो, हिंदी को अपनाएं।।
सन् १९७५ इंदिरा प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन करवाईं।
मॉरीशस, यू.के., त्रिनिदाद एवं टोबैगो सरकारें आयोजन करवाईं।।
मनमोहन सिंह ने १० जनवरी २००६ में दिवस घोषणा करवाए।
भारतीय मंत्रालय विदेशों में, प्रथमत: ‘विश्व हिंदी दिवस’ मनाए।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया नगर निगम
पश्चिम चंपारण जिला मुख्यालय
बिहार
यह भी पढ़ें:-