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शिक्षक (Teacher) मैं कहलाता हूँ
शिक्षक (Teacher): मैं कहलाता हूँ …अध्यापक मैं कहलाता हूँ …
शिक्षक मैं कहलाता हूँ अध्यापक मैं कहलाता हूँ
कक्षा में विषय विशेष ही केवल पढ़ाता हूँ
शिक्षक मैं…
खूब मेहनत कर मैने एक विषय पास किया
निज हेल्थ का भी कुछ हद तक सत्यानाश किया
कोशिश जारी वार सकूँ असली दौलत रूपी ज्ञान-पुंज
भटके युवाओं को भी रास्ता मैं दिखलाता हूँ
शिक्षक मैं…
पढ़ने से पहले हमें भी पढ़ना पड़ता हैं
जानकारी हांसिल करने ख़ातिर बहुत बांचना पड़ता हैं
कहीं अधूरी जानकारी मैं किसी को न दे बैठूँ
और जानने की बलवती इच्छा ज़ारी रख पाता हूँ
शिक्षक मैं…
नई तकनीक का उपयोंग भी अभी ज़ारी हैं
कम वक़्त में प्राप्त करनी नई जानकरी हैं
विषय विशेष अपनी सही पकड़ रख सकूँ
नेट से तुम्हारे ख़ातिर जानकारी निकाल लाता हूँ
शिक्षक मैं…
युवाओं से भी सीधा सम्पर्क अभी ज़ारी हैं
उन्हें सही रास्ता दिखाना भी ज़िम्मेवारी हमारी हैं
रास्ता न भटक जायें अनजाने में कोई नया साथी
सही जानकारी देने की हर कोशिश कर जाता हूँ
शिक्षक मैं…
ठंड और घमंड
कितने गहरे दोस्त यह ठंड और घमंड
सब कुछ लूट लेते लगाते ही कुछ दंड
ग़र मौसम में हो मसरूफ़ थोड़ी-सी भी ठंड
फ़िर काहे का गरूर या घमंड
खोस लो कंबल या ओढ़ लो रज़ाई
फ़िर क्या अपनी या हो पराई
बस भावनाएँ नेक परवान हों
लाख़ बुरे पर नेक इन्सान हों
अपना पराया तो आनी जानी
दिल साफ़ फिर क्या आना कानी
मंज़िल का लक्ष्य भी बहुत ज़रूरी
फ़िर तैयारी भी क्यों रहे आधी अधूरी
इरादे नेक तो मंज़िल भी मिलेगी
लाख़ संगदिल तबीयत भी खिलेगी
नेता जी को चाहिए बहुमत थैली प्रचंड
सौ ख़ून माफ़ फिर क्या ठंड और घमंड
ठंड और घमंड…
ठंड और घमंड…
बारम्बार
कोई हैरान
अन्य परेशान
बना हैवान
छोड़े निशान
बीता वक़्त
छूटा कमबख़्त
बेबस हालात
दिन और रात
बने विद्वान्
बिना घमासान
खुल्ले खेल
बस रेलमपेल
एक अंधा
गोरख धंधा
कैसे सुधरें
बिना बिख़रे
लगता मुश्किल
सभी संगदिल
सारे एक
कैसे अनेक
अनेकों वर्ष
कैसा हर्ष
सिलसिला जारी
बहुत भारी
अविरल धार
बारम्बार…
बारम्बार …
नया साल रहे खुशहाल
क्या नया पुराना साल
कभी ख़ुशी कभी बेहाल
बहुत अच्छे रहे साथी
निकल तो गया हाथी
बस रह गई उसकी पूँछ
पुरानी यादें न पूछ
शाम तक वह भी
ज़ो अब तक सही
फिर एक नया सवेरा
क्या तेरा य़ा मेरा
सभी तो बिल्कुल अपने
नित नये नवेले सपने
गैर भी रहे सुखी
कोई न बसे दुखी
सभी रहें सदा प्रसन्नचित
न फिर कोई प्रायश्चित
न बने कोई लुटेरा
हर वर्ग बने कमेरा
फिर एक नया सवेरा
क्या तेरा य़ा मेरा
पुरानी यादें न पूछ
हाथी और उसकी पूँछ
न कोई अनसुलझे सवाल
नया साल रहे खुशहाल
न्या साल रहे खुशहाल…
दिल नाज़ुक एक खिलौना
कभी भी दिल पर मत लेना
दिल है नाज़ुक एक खिलौना
हालातनुसार इंसान भी अब बट रहा
उम्र चाहे बढ़ रही पर जीवन घट रहा
बारी बारी सब की बारी
फिर भी एक दूसरे पर भारी
संख्या को बस गिनती मानते
धमकी को भी अब विनती मानते
जीवन बड़ा अनमोल ख़जाना
माना सब को एक रोज़ जाना
हम ने भी अपनों को खोया
अपना दिल भी ज़ार-ज़ार रोया
जिस पैर में बस जुत्ती काटे
वो ही तो जाने दर्द के कांटे
जिस पैर न कोई चोट व्याई
वो क्या जाने पीर पराई
पर सुनहरे कर्म रहेंगें याद
फिर कैसी झूठी फरियाद
सब का करते चलो भला
चाहे कोई दफनाये य़ा दे जला
कोई बात दिल पर मत लेना
दिल नाज़ुक एक खिलौना…
बस इतना-सा अपना जुगाड़
किसी के लिये बहुत प्यारा
कहीं पर आना मत दोबारा
किसी के लिये बहुत हसींन
तो कहीं केवल सपेरी बीन
परिवार के लिये अनमोल धूरी
बाकियों खातिर तो उचित दूरी
ज़रूरतमन्द के बहुत काम का
दुनियाँ खातिर बिन दाम का
दोस्त मितर तो बहुत प्यारे
हसींन सपने भी देखता न्यारे
बस वक़्त के हालात का मारा
माता-पिता की आँख का तारा
हसींन जगत के लिए बड़ी भूल
मतलबियों खातिर बड़ा नामाकूल
कहीं अल्लाह पुकारे या फिर गाड
बस इतना-सा अपना जुगाड…
बस इतना-सा अपना जुगाड…
कैसे अज़ब हुए हालात
कैसे अज़ब हुए हालात
बिन कारण चलते घूसे लात
इस अज़ब हालात कारण
मौत गले लग रही अकारण
हर तरफ़ हुआ कैसा माहौल
ज़िन्दगी भी लगने लगी मखौल
अपने ही घर में हुए अंजान
हर चेहरे से गाय़ब मुस्कान
हलका बुखार और खांसी
अच्छे भले जीवन को लगी फांसी
कुछ भी समझ नहीं आता
जीभ को भी कुछ नहीं भाता
शरीर की ऐसी गहरी थकान
सामाजिक पटल पर भी घमासान
यह खा लो तो सब जल्दी ठीक
सभी सेहत के ठेकेदार होते प्रतीत
कोई भी जान जोखिम में ड़ाल
कोई नकली दवाई बेच मालामाल
हर तरफ़ कितना बुरा हुआ हाल
धरा पर चितायें नदियों में कंकाल
जिस पैर काटे वही जाने
बाकी दर्द कौन पहचाने
गांव को कसबा बना ड़ाला
हर कोई रुस्वा कर ड़ाला
कसबे बना दिये शहर
हर तरफ़ अज़ब-सा कहर
शहर भी हो लिये महानगर
हर तरफ़ पाल लिये नाग मगर
मुशकिल हुई हरआसान ड़गर
हर तरफ़ ढ़ह रहा कहर
लेकिन चुंकि किंतु परंतु
रोज़गार तक हुये उड़न छु
हवा तक भारी हो गई
दुश्मनों संग य़ारी हो गई
बाज़ार में हर माल थोड़ा
हर चीज़ बंद का पड़ा कोड़ा
हर शक्स बस हुया परेशान
कैसे जीयें अब सीना तान
अज़ब एक समस्या हो गई
ज़िन्दगी भी तपस्या हो गई
कब सुधरेंगें यह हालात
कैसे लौटेगी सतरंगी बारात
बिन कारण चलते घूसे लात
कैसे अज़ब हुए हालात…
कैसे अज़ब हुए हालात…
नींद भी अज़ब
वाह नींद भी कितनी अज़ब
ज़िन्दगी भी तो बड़ी ग़ज़ब
नींद चैन की आ जाये
सब कुछ ही भुला जाये
गर किसी कारण न आये
बड़ा ही परेशां कर जाये
सब पुरानी और जली कटी
चाही अनचाही घिसी पिटी
सब ही तो याद करा जाये
उदास चेहरे भी मुस्कुरा जाये
खुशदिल की तो फरियाद अज़ब
वाह नींद भी…
ज़िन्दगी भी…
थोड़ी भी जब आ जाये
पूरा शरीर ही खुल जाये
न आये तो बेचेनी समाये
ख़ुशी होते भी हाय हाय
अच्छी नींद तंदुरुस्त शरीर
वरना बन जाती शतीर
अगर कोई भी परेशानी
पल में याद करा दे नानी
अच्छी सेहत का राज गहरा
पल में आये न दवा का पहरा
हर अच्छी सोच का सबब
वाह नींद भी…
ज़िन्दगी भी…
मन में हल्की भी चिंता और घाव
जीवन में थोड़ा भी उतार चढ़ाव
पल में तोला क्षण में माशा
बन जाती बस एक तामाशा
दिल में न रखो कोई भी वैर
परमातामा रखेगा सबकी खैर
गहरा नाता हो सब के संग
हर पल बीते खुशियों के अंग-अंग
हर चेहरे पर हो एक मुस्कान
ख़ुशहाल जीवन का यही नुस्खान
हर पल गुज़रेगा मस्त ग़ज़ब
वाह नींद भी …
ज़िन्दगी भी …
ज़िन्दगी अपनी
ज़िन्दगी अपनी अज़ब इत्तफाक
लगता हर कोई ख़तरनाक
हर मौसम क्यों बेवफ़ा
भला करो वही खफा
हर जीवन में अंगड़ाई
भावनायों में बस तरूनाई
जीवन में उनका आना
मधुमास बन छा जाना
मौज मस्ती और बहार
पहले नोकझोंक फिर मनाना
मस्ती करते बहुत रिझाना
मनाने ख़ातिर कसमें हज़ार
क्या यही सच्चा प्यार
चाट पकोड़ी फिर दही-भल्ले
ख्वाबों में एक दम झल्ले
सपनों की बारिश का होना
मिलना बिछुड़ना फिर खो जाना
खो कर पाना लगता अच्छा
जैसे ज़िन्दा कोई छोटा बच्चा
बस खेल खिलौने और फ्राक
ज़िन्दगी अपनी अज़ब इत्तफाक
पूछा हाल
दिल से पूछा हाल…
बोला… आगे से बेहतर
मन से पूछा हाल।
बोला… बहुत अच्छे
ज़ुबान से पूछा हाल।
बोली … बहुत खूब
आँख से पूछा हाल।
बोली… बहुत बढ़िया
पेट से पूछा हाल।
बोला… जिस हाल में रखो
जीभ से पूछा हाल……
बोली… जिस हाल में छोड़ो
आदमी से पूछा हाल……
बोला पूछ कर बताऊंगा
किसान और विश्वसनीय फ़रमान
किसान अन्न का भगवान
दवाब बनाते आये हुकमरान
अफसरशाही के सदा फ़रमान
प्रदर्शनकारी होते आये परेशान
तरकश खाली संभाले कमान
जीते चाहे यहाँ हुकमरान
विजयी तो रहेगा किसान
अन्न तो सदा भगवान
भरता पेट मिले पकवान
बेमानी हो गया इंसान
छोड़नी पड़ेगी झूठी शान
करना होगा सामर्थ्य अनुसंधान
निकालना होगा स्थाई समाधान
असमंजस में हर जान
खेत छोड़ बैठा किसान
बच्चे मातृशक्ति बुज़ुर्ग जवान
धरना जारी मौसम बईमान
मिले हक़ जीते ईमान
कानून वापिस पूरे अरमान
पूरी लागत मिले सम्मान
किसान और विश्वसनीय फ़रमान
किसान और विश्वसनीय फ़रमान
सब का बुरा हाल
सब का ही बुरा हाल
क्या अमीर य़ा कंगाल
पहले तो बस इतना ही कमाल हुया रहा
धोती फटते ही बस रुमाल हुया रहा
पर अब तो नित रोज़ नये धमाल हो रहे
पैसे सहारे ही सब एक दम निहाल हो रहे
सब कुछ बिन पैन्दे के लोटा-सा हो गया
रिश्तों में भी बहुत कुछ छोटा-सा हो गया
पहले कुछ लाज शर्म तो रही बाकी
अब तो आने से पहले वह भी ही रही जाती
क्या इज्ज़त की धोती य़ा शर्म का रुमाल
सब कुछ ही हो रहा भ्रम माया का जाल
काग़ज़ के टुकड़ों पर भारी प्लास्टिक के नोट
ड़ीज़ीटल दुनियाँ में पनपे इलास्टिक-सा खोट
क्या इज्ज़त की रोटी य़ा शर्म का सवाल
उछाल दी टोपी कर दिया बवाल
खोल दी धोती छीन लिया रुमाल
क्या धोती य़ा फिर रुमाल
सब का बुरा हाल
सब का बुरा हाल…
जान से प्यारा कारगिल
छेड़ न हमारा दिल जान से प्यारा कारगिल
माँ क़सम ज़िन्दगी तेरी इतिहास कर जायेंगें
देखा जो हमारी ओर ले कर रहेंगें तेरा लाहौर
नक्शे में ढूंढ़ोंगें पाक ऐसा नेक काम कर ज़ायेंगें
छेड़ न हमारा…
खाड़ी से लेकर गुजरात कन्याकुमारी से लेह लद्दाख
एक हैं हमारा मस्तक और दूसरी हमारी आँख
फिर चाहे कैसा मन्दा चौपट करेंगें तेरा धन्धा
तेरे हर इरादे को नाकाम करते ज़ायेंगे
छेड़ न हमारा…
दो बार पहले भिड़ चुके हो तुम टैंकों की गोली से
दया खा कर ड़ाल दिये लाहौर कराची झोली में
अबकी बार छेड़ा राग देंगें तुझको सीधा दाग
किसी भी बहाने से फिर नहीं बच पाओगे
छेड़ न हमारा …
कैसे हैं हमारे जवान देख लिया स्ट्राइक दौरान
भूल जाओगें सारे पैंतरे न रहेगी कोई अज़ान
अबकी बार ग़र हिमाक़त थोडी दिखायेंगें और ताक़त
तोते तो क्या पूरे घोंसले ही उड़ ज़ायेंगे
छेड़ न हमारा…
प्रेम भाव रख संग जीवन में भर देंगें उमंग
जीवन भर रहेगी मौज़ न करेगा कोई तंग
ज़रा-सी तेरी होशियारी भूल जायेगी सारी य़ारी
ना पाक सोच होते ही तेरी गोद भर ज़ायेंगे
छेड़ न हमारा…जान से प्यारा कारगिल…
ज़िन्दगी अब तक
ज़िन्दगी अब तक क्या वाक्य ही रंगीन रही
ज़िन्दगी अब तक बलवती इच्छाओं के अधीन रही
ज़िन्दगी कभी बड़ी ख़ुशनुमा और कभी गमगींन रही
ज़िन्दगी लगभग ख़्वाब और कमतर ही हसींन रही
ज़िन्दगी अब तक …
ज़िन्दगी उड़ता आसमां और न बराबर ज़मीन रही
ज़िन्दगी मीठी कम व अधिकतर तेज़ नमकीन रही
ज़िन्दगी हक़ीक़त कम और ज़्यादा ही य़कीन रही
ज़िन्दगी बासी लगते हुये भी ताज़ा तारीन रही
ज़िन्दगी अब तक…
ज़िन्दगी में हौंसले बुलंद फिर भी संगीन रही
ज़िन्दगी जैसी भी रही पर बिल्कुल नाज़नीन रही
ज़िन्दगी ज़िम्मेवारियों से भरी सदा ब्रह्मलीन रही
ज़िन्दगी दूसरों से तो सदा ही बेहतरींन रही
ज़िन्दगी अब तक…
ज़िन्दगी रही बस बांसुरीनुमा पर सपेरी बीन रही
ज़िन्दगी मीठी बजती पर सदा ही सुरविहीन रही
ज़िन्दगी बहुतायत गुणवान रहते भी संस्कार महीन रही
ज़िन्दगी तथ्यों पर आधारित पर लगती तर्कहीन रही
ज़िन्दगी अब तक…
ज़िन्दगी मित्र तो बहुत मगर सदा दोस्तहीन रही
ज़िन्दगी संस्कार रहते भी हालात अधीन रही
ज़िन्दगी आंखे रहते भी बाज़ नज़र क्षीण रही
ज़िन्दगी जैसी भी रही ख़ुशमिज़ाज रंगीन रही
ज़िन्दगी अब तक …
नया साल रहे खुशहाल
क्या नया पुराना साल
कभी ख़ुशी कभी बेहाल
बहुत अच्छे रहे साथी
निकल तो गया हाथी
बस रह गई उसकी पूँछ
पुरानी यादें न पूछ
शाम तक वह भी
ज़ो अब तक सही
फिर एक नया सवेरा
क्या तेरा य़ा मेरा
सभी तो बिल्कुल अपने
नित नये नवेले सपने
गैर भी रहे सुखी
कोई न बसे दुखी
सभी रहें सदा प्रसन्नचित
न फिर कोई प्रायश्चित
न बने कोई लुटेरा
हर वर्ग बने कमेरा
फिर एक नया सवेरा
क्या तेरा य़ा मेरा
पुरानी यादें न पूछ
हाथी और उसकी पूँछ
न कोई अनसुलझे सवाल
नया साल रहे खुशहाल
नया साल रहे खुशहाल…
पता नहीं क्यों
पता नहीं क्यों कौन किस की तरह
पता नहीं क्यों ज़िन्दगी ज़हर की तरह
पता नहीं क्यों शब्द बहर की तरह
पता नहीं क्यों हालात कहर की तरह
पता नहीं क्यों समय लहर की तरह
पता नहीं क्यों भावनायें नहर की तरह
पता नहीं क्यों समाज पहर की तरह
पता नहीं क्यों ज़िम्मेवारी गहर की तरह
पता नहीं क्यों सोच सहर की तरह
पता नहीं क्यों कौन किसकी तरह
पता नहीं क्यों कौन किस की तरह
बस इंसानियत आगे हार गये
हम यह और तुम वह
पता नहीं बस क्या क्या
हम यहाँ वहाँ सब जीते
वो तो बस रहे पानी पीते
उनकी वहाँ क्या औकात
कहाँ उभरे आओं करें बात
हमारी बदौलत बेहतर हालात
अब तक दबे रहे ज़ज्बात
सबकी ज़ुबान रही ख़ामोश
किसी को नहीं था होश
वो वहाँ चाहे कारण कोई
हम ही सब कुछ बाक़ी झकोई
सब कुछ ही तो अपना
न माप दंड न कोई नपना
पहले कितना खून ख़राबा
अब तो बस बाबा का ढ़ाबा
सब कुछ ही सुधार देंगें
बिन मांगें ही उधार देंगें
सिस्टम ही रहा बहुत ढ़ीला
काय़दे से बस नीयत पतिला
कुछ किया अभी और करेंगे
लोग भूखे बिल्कुल नहीं मरेंगे
अन्नदाता अब बहुत ख़ुशहाल होगा
सब का चेहरा एकदम लाल होगा
कानूनों से बड़ा फ़र्क पड़ेगा
हर कोई अपने पैरों पर खड़ेगा
सब मिल जुल कर एक रहेंगे
न कोई दंगे य़ा ज़ुल्म सहेंगें
हर ओर होगा अमन चैन
कोरे वायदे एक दम बैन
सच में ही अब राम राज
हर कमज़ोर की सुरक्षित लाज
खेत खलिहान ही अब स्वर्णिम हार हुये
सब दुश्मन देखो अब तड़ी पार हुये
न्यूनतम खरचे चाहे पहुँच पार गये
हर मौके पर सुनहरा चौका मार गये
वो लोकतंत्र के मंदिर में हार गये
बस इंसानियत आगे हार गये
बस इंसानियत आगे हार गये
हम यूँ ही बन्दर बांट करायेंगे
पहले तो रहा कोरोंना का कहर
अब सता रहा किसान का डर
इनके एक से एक शौक पुराने
चाहे गहरे मतभेद पर पूरे याराने
बस तुम चाहे तड़ी पार उधर
हम बेशक समुन्दर पार इधर
चाहे पूछो कितने सवाल ज़नाब
हमनें न देना कोई सीधा ज़वाब
बिन कारण फिर उलझायेंगें
सदा की भांति उल्लू बनायेंगें
तुम्हें चाहिए एक ईंट
हमारा तो पूरा भट्टा
हमारी मौज मस्ती पूरी
तुम्हारा चाहे बैठे भट्ठा
आख़िर कोई बीच का रास्ता
तुम्हारी रोटी पर हमारा पास्ता
मेहनतकश तो मेहनत कर खाएंगे
हम तो बस थाली उठा कर लाएंगे
वो चाहे तरसेंगे बिजली-पानी को
हम यूँही बन्दर बांट करायेंगे
हम यूँही बन्दर बांट करायेंगे
कुछ का कुछ हो गया
कुछ का कुछ हो गया
सब जगह गुच्च पुच्च हो गया
अंग्रेजी के शब्दोंनुसार
दिल के भाव मतलब प्यार
गर करना हो इज़हार
तो सीधा आई लव यू
अथार्त ईलू… ईलू
पर समय का फेर
एक दम हो गये ढ़ेर
हम कहते कुछ रहे
वो समझते कुछ रहे
हम तो हिम्मत कर
भेजते रहे लिख-२ कर
प्यार …प्यार …प्यार
वो हैं कि इतमिनान से
पढ़ते रहे प्याज…प्याज…प्याज
जैसे मूल धन पर ब्याज
अज़ब समय आ गया
आँखों आगे अन्धेरा छा गया
अब तो आई लव यू
अथार्त ईलू-२ के मायने बदल गये
प्यार की परिभाषा के आईने बदल गये
सही मायने में कुछ का कुछ हो गया
अब तो ईलू-२भी शीलू-२ हो गया
आई लव यू बदल सीधा
शनिश्चर आई लड़ यू हो गया
प्यार का खेल भी मोबाइल हो गया
एक के चलते दूसरा स्टाइल हो गया
कुछ देर नोक झोंक फिर झगड़ा
जहाँ सुविधा अधिक वहाँ तगड़ा
मोबाइल रेंज़ भी नैट पैक पर निर्भर
फिर प्यार कहाँ आत्म निर्भर
हर ज़गह गुच्च पुच्च हो गया
कुछ का कुछ हो गया
कुछ का कुछ हो गया…
गर तुम्हीं…तो फ़िर कौन…
गर तुम्हीं करवाओगे बंद तो फिर कौन खुलवायेगा
गर तुम्हीं उन्हें रुलाओंगे तो फिर कौन हंसायेगा
गर तुम्हीं उन्हें मारोगे तो फिर कौन ज़िलायेगा
गर तुम्हीं उन्हें लूटोगे तो फिर कौन बचायेगा
गर तुम्हीं उन्हें जलाओगे तो फिर कौन बुझायेगा
गर तुम्हीं उन्हें उखाड़ोगे तों फिर कौन लगायेगा
गर तुम्हीं उन्हें रखोगे भूखे तो फिर कौन खिलायेगा
गर तुम्हीं उन्हें भगाओये तो फिर कौन आयेगा
गर तुम्हीं उन्हें बहकाओगे तो फिर कौन समझायेगा
गर तुम्हीं उन्हें उलझायोगे तो फिर कौन सुलझायेगा
गर तुम्हीं उन्हें उजड़वायोगे तो फिर कौन बसायेगा
गर तुम्हीं उन्हें बिगड़वायोगे तो फिर कौन सुधरवायेगा
गर तुम्हीं उन्हें बरगलाओगे तो फिर कौन समझायेगा
गर तुम्हीं उन्हें रूठवाओगे तो फिर कौन मनायेगा
गर तुम्हीं उन्हें चुराओगे तो फ़िर कौन दिलवायेगा
गर तुम्हीं उन्हें छुपाओगे तो फ़िर कौन ढूंढ़वायेगा
गर तुम्हीं उन्हें खुदवागे तो फ़िर कौन भरवायेगा
गर तुम्हीं उन्हें अपनाोगे तो फ़िर कौन हथिय़ायेगा
गर तुम्हीं…तो फ़िर कौन…
गर तुम्हीं तो फ़िर कौन…
कोई मज़बूरी बहुत ज़रूरी
मास्क पहनना बहुत ज़रूरी
और साथ में हो उचित दूरी
बचाव में ही सबका बचाव
वो भी किसी बिना दबाव
माना ज़ब तक नहीं दवाई
तब तक नहीं कोई ढ़िलाई
इसमें नहीं कोई भी टोटा
यह कफ़न से बहुत ही छोटा
ज़िन्दा रहें तो बारम्बार मिलेंगें
वरना तो फिर बस हरिद्वार मिलेंगें
मानव जीवन हैं बड़ा अनमोल
मत गवाएँ इसे यूं ही बेमोल
परिवार समाज सभी अपने
इनके बिन फिर कैसे सपने
हर कोई लगता है परेशान
अंतरमन से लगाओं लगाम
विज्ञानिक भी खोज रहे समाधान
सेहत ठीक तो सभी धनवान
कोई भी जानकारी आधी अधूरी
नहीं पहचानती कोई मज़बूरी
समय पहचानों छोड़े मगरूरी
मास्क पहनना बहुत ज़रूरी
कोई मज़बूरी बहुत ज़रूरी
कोई मज़बूरी बहुत ज़रूरी…
दीवाली कैसी
जहाँ खोयें हालात वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ रोयें ज़ज्बात वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ वायदे खाली वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ नौजवान ठाली वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ दूर परिवार वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ मगरूर दीदार वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ गुज़रे बन्दे वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ उजड़े धंधे वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ रूठे अपने वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ टूटे सपने वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ जेब खाली वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ गायब थाली वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ लोग बेघर वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ मन में डर वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ बुज़ुर्ग नज़र-अन्दाज़ वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ बेख़बर जांबाज वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ बीमार दिमाग़ वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ ला-ईलाज़ राग वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ सोता विद्वान वहाँ दीवाली कैसी
जहाँ रोता किसान वहाँ दीवाली कैसी
वहाँ दीवाली कैसी…
वहाँ दीवाली कैसी…
एक सूरज और एक चाँद
एक सूरज और एक चाँद
एक खुल्ला आसमां और एक जैसे कांध
एक खिलता चेहरा एक लिये कुछ उदासी
एक पूर्ण आत्मनिर्भर एक बिल्कुल अप्रवासी
एक आता तो उजाला एक लिये थोड़ी उदासी
एक सीधा देखे तो अपराध एक का दीदार जैसे साध
एक पूनम तो एक जैसे अमावस
एक लिये पूर्ण अंगार एक लिये थ्यावस
एक-सी चाहते चमक एक-सी चाहते दमक
एक सुबह उगता और सांध्यकाल में अस्त
एक दिन में फ़कीर और एक शाम को मस्त
एक संध्या होते ही निकलता अलसुबह अदृष्य
एक सभी ग्रहों का शिखर एक विहंगम दृष्य
एक दिन में प्रधान और सांझ होते ही कौन
एक दिन में गौण और एक-एक शाम को भी मौन
एक-सा बनना चाहते एक-सा रहना चाहते
एक तेज़-सी लालिमा लिये एक शांत चित कालिमा लिये
एक ज़ज्बा शिखर पाने-सा एक बात लिये बड़ी गहरी
एक पिता-सा दबंग और एक मां-सा सजग प्रहरी
एक निरंतर रोशनी तो एक-एक सदा अपवाद
एक सूरज और एक चाँद…
एक सूरज और एक चांद …
वीरेन्द्र कौशल
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