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तंग दामन हो गए
तंग दामन हो गए मेरी मुहब्बत के इस क़दर देखो!
मेरी वफ़ा खोजती है इसको इधर-उधर देखो!
गमों के हर जजीरे पर हमारा नाम लिक्खा था!
मेरी चाहतों के गुमनाम हो गयें हैं खण्डहर देखो!
बेइख्तियार उठ गये मेरे क़दम ऐसी राह पर!
मंजिल की तलाश में मैं था दर-बदर देखो!
कहने को तो बहुत कुछ था मेरे दिल के दरम्याँ मे!
मै सब जब्त किए था अपने ही अन्दर देखो!
मै जब-जब देखता हूँ आइना मेरा अक्स नहीं दिखता!
उसको भी लग गयी ज़माने की नज़र देखो!
मुझे मेरे अपनों ने इतना मगरुर कर दिया!
वर्ना मेरे भी क़दम होते बुलन्दी पर देखो!
बुरा वक्त है
बुरा वक़्त है जो भी वह एक दिन टल जायेगा।
मुकद्दर भी अपना बदल जायेगा॥
थक कर न बैठ जाना ” राही तुम राह मे।
मंजिल का रास्ता तुमको मिल जायेगा॥
इम्तिहाँ लेती है ये ज़िन्दगी भी कभी।
जो बुरा है वह फिर से सम्भल जायेगा॥
किस्मत को दोष देना मुनासिब नही।
नसीब में ग़र होगा तो मिल जायेगा॥
हर किसी को मिलता है जीवन में एक मौका।
गर चूके ज़रा भी तो फिसल जायेगा॥
जो मिला है उसी में सब्र करना सीखो।
ज्यादा के चक्कर में थोड़ा भी निकल जायेगा॥
गर तुम
गर तुम बेवफाई की हद से गुजर जाओगे!
तो जाहिर है हमारी नज़र से उतर जाओगे!
हमसे न बेहतर होगा कोई तुम्हें चाहने वाला!
हमने जो छोड़ा तो फिर किधर जाओगे!
जमाने की निगाहों से ग़र बच कर भी रह पाये तुम!
तो वक़्त की मार से हरगिज़ न बच कर जाओगे!
इश्क़ जायज है लेकिन रंज है मुहब्बत का हमे!
अगर अब भी न सुधरे तो मर जाओगेे!
हमारी राह में हरदम बिछाये काँटे तुमने!
देखना तुम भी इक दिन दर-बदर जाओगे!
ज़िन्दगी से सीखा है हमने कई मर्तबा ये सबक!
होशियारी करोगे तो रेत की मानिन्द बिखर जाओगे!
कुछ गज़लें
खुद को रख दिया मैने शतरंज के बिसात में।
जिन्दगी को ढोता रहा हर एक हालात में॥
खामोशी समेट कर मैने लब चुपचाप सीं लिये।
हर तश्नाकाम चुप था बस इसी एहतियात में॥
दाँव पेंच ख़ूब रहे दरम्याँ रहे फासले।
जवाब खोजता रहा मैं ख़ुद के सवालात में॥
आदमी ही आदमी का दुश्मन हुआ जाता है।
वो हर वक़्त रहता है पीठ पर वार करने की घात में॥
जिन्दगी ने लिए हर क़दम पर इम्तिहाँ।
हम लौट कर वहीं आ गये चले थे जहाँ से शुरुआत में॥
दीवारें-सी उठ गयीं अपनों के बीच मे।
देखो माँ बाप भी बँट गये बात ही बात में॥
कुछ शर्तों पर रिश्ते निभाना सीख लिया।
जिन्दगी को हँस कर आज़माना सीख लिया॥
जमाने के सारे तरीके सीख लिये।
मुश्किलों में हमने मुस्कराना सीख लिया॥
चाहतों के सारे सबक पढ़ लिये।
दर्द-ए-गम हमने उठाना सीख लिया॥
याद करके फ़क़त खाकसारी मिली।
भूल जाने का हर इक बहाना सीख लिया॥
रास्ते के पत्थरों ने सिखाया बहुत कुछ।
ठोकरों से ख़ुद को बचाना सीख लिया॥
फासले दिलों के मिटाने की खातिर।
हर किसी को गले से लगाना सीख लिया॥
दाँव ऐसा लगाया ज़िन्दगी पर हमने।
जीत कर भी हमने हार जाना सीख लिया॥
अजब इत्तेफाक से आज उनसे मुलाकात हुई।
लब ख़ामोश रहे बस आँखों से ही बात हुई॥
याद आ गयी बरबस हर एक याद उनकी।
भूल जाने की कोशिश की फिर से शुरुआत हुई॥
फासले थे कितने ज़्यादा दिलों के दरम्याँ सब।
शुरु होने से पहले ख़त्म हर बात हुई॥
बन्दिशें कितनी थी हमपर ज़माने भर की दोस्तों।
मेरे खिलाफत में देखिए सारी कायनात हुई॥
ख़त्म हो गया था इश्क़ अंजाम के पहले मेरा।
कुछ इस तरह से हम पर ज़िन्दगी की करामात हुई॥
चलो छोड़िये आप अपनी बताईये।
हमारी न कोई सुबह न हमारी कोई रात हुई॥
जिन्दगी का सब हिसाब लिखा।
दर्द-ए-गम बेहिसाब लिखा॥
पेट की आग लिखी।
मुफलिसी को जनाब लिखा॥
नसीबों का खेल लिखा।
अधूरा-सा ख़्वाब लिखा॥
सियासत का रंग लिखा।
हर बात का जवाब लिखा॥
सूरतें बदली हुई लिखी।
चेहरे पर चढ़ा नकाब लिखा॥
वक्त का सब फेर लिखा।
जीस्त का हर बाब लिखा॥
समझौता तो कर लिया हमने अपने हालात से।
अपनी ख़ुशी अपने ग़म अपने जज़्बात से॥
ऐ ज़िन्दगी तू ही बता दे अब तो कोई राह मुझे।
कैसे बच सकूँ मैं अब तेरे तिलिस्मात से॥
फासले बढ़ते गये रिश्ते हुए सब अजनबी।
जवाब पूछता रहा मैं अपने सवालात से॥
ऊजालों की कोशिशें नाकाम हो गयी सभी।
दिन का सूरज ढल गया अब सामना है रात से॥
बात कुछ भी न थी मगर बात बड़ी हो गयी।
चलो इक बार फिर हम बात करें बात से॥
न जाने कब से बरस रहीं थी तेरे याद में मेरी आँखें।
एक होड़-सी लगा रखी थी इन आँखों ने बरसात से॥
अगरचे न ख़्वाहिश थी राह-ए-मुहब्बत की हमे।
हम लौट के वहीं आ गये चले थे जहाँ शुरुआत से॥
राम हमारी संस्कृति हैं
राम हमारी संस्कृति हैं और राम हमारी भाषा हैं।
राम हमारा गौरव हैं और राम ही अभिलाषा हैं॥
राम-नाम हर दिल में बसा हर जुबाँ पर उनकी गाथा है।
राम हमारी साँसों में मर्यादा की वह परिभाषा हैं॥
राम जीत कर आयें हैं फिर ख़त्म करके वनवास सभी।
राम हमारी उम्मीदें हैं और राम हमारी आशा हैं॥
राम हमारा प्रेम हैं और राम ही हमारी परिपाटी।
राम हमारी आस्था हैं और राम ही प्रेम पिपासा हैं॥
राम हमारी ऊर्जा हैं और राम ही तन-मन में व्यापित।
राम-नाम है अटल सत्य और राम सूर्य की आभा-सा हैं॥
राम ध्येय हैं रोम-रोम में राम बसे हैं साँसों मे।
राम हमारे जीवन में अलौकिक एक दिया-सा हैं॥
जवाब खोजता हूँ
जिन्दगी के सवालों के जवाब खोजता हूँ।
मुकद्दर ने जो दिया उसका हिसाब खोजता हूँ॥
आदमी के जिस्म में अब जिन्दा नहीं है आदमी।
चेहरों पर चढ़ा हुआ नकाब खोजता हूँ॥
नफरतें शिकवे गिले खुदगर्जियाँ न जाने क्या।
सुकून का सबक हो जहाँ वह किताब खोजता हूँ॥
अँधेरों की कोशिशें बदस्तूर जारी रहीं।
उजालों का सबब बेहिसाब खोजता हूँ॥
जो भी मिला हमे कुछ वह कम ही रहा।
एक अदद रोशनी मैं जनाब खोजता हूँ॥
नसीबां ने क्या-क्या खेल हमको दिखाये।
जीस्त का हर एक बाब खोजता हूँ॥
बाब-अध्याय
पेट की चिन्गारी
पेट की चिन्गारी जीना दुश्वार करती है।
आग ये तौबा वार पर वार करती है॥
मुफलिसी इंसान से क्या-क्या करा लेती है।
भूख की तलब कुछ भी यार करती है॥
चन्द सिक्कों में बिक जाता है ईमान इस जहाँ मे।
बेईमानी अपनी क़ीमत ख़ुद ही तैयार करती है॥
खामोशियाँ बहुत कुछ कह जाती हैं चुपचाप ही।
आदमी की ज़ुबान ही बंटाधार करती है॥
जिन्दगी के तौर-तरीके समझ से परे हैं सब।
वक्त की चोट फ़ैसला आर-पार करती है॥
आईना बयाँ कर देता है हक़ीक़त वजूद का।
रास्ते की ठोकर कुछ हद तक सुधार करती है॥
इक नया ख्वाब
इक नया ख़्वाब आँखों में सजाया जाये।
चलो इक बार फिर से ज़िन्दगी को आजमाया जाये॥
भूल कर शिकवे गिलें प्यार की बरसात करें।
दरम्याँ दिलों से नफ़रत को मिटाया जाये॥
कब तलक जुगनुओं की मानिन्द टिमटिमायेंगे।
चलो आज इक नया सूरज उगाया जाये॥
मुफलिसी किसी का मज़ाक बने न कभी।
पेट की चिन्गारी को थोड़ा दबाया जाये॥
मजहब की आग में न किसी का कभी घर जले।
सियासत के रहनुमाओं को इक सबक पढ़ाया जाये॥
हमारी हर ख़ुशी की खातिर कुर्बान कर दी अपनी खुशियाँ।
उन्ही माँ-बाप की इज़्ज़त करना सिखाया जाये॥
सच को सच अक्सर लिखा है
सच को सच अक्सर लिखा है।
झूठ कभी न डरकर लिखा है॥
जब भी लिखा बस लिखी हकीकत।
गर पत्थर है तो पत्थर लिखा है॥
मसनद नसीनों के चर्चे लिखे हैं।
गरीबों की हालत बदतर लिखा है।
दुनिया की सारी फरेबी लिखी है।
जमाने के बारे में खुलकर लिखा है॥
अँधेरा जहाँ से हटाने की कोशिश।
हमने उजाले की खातिर लिखा है॥
मुफलिसों के हक़ को खा जाने वाली।
गंदी सियासत को जमकर लिखा है॥
अजब से मंजर
ज़िन्दगी ने अजब से मंज़र दे दिए।
काँटों भरे न जाने कितने सफ़र दे दिए॥
खता जो न की उसकी सजा मिल गई।
इल्जाम सारे के सारे हमारे सिर दे दिए॥
जमाने की दुश्वारियों में हम जाते बिखर।
शुक्रिया रब ने हमे चारागर दे दिए॥
मायूसियाँ सदा हम पर हावी रहीं।
रंज-ओ-गम हमे इस क़दर दे दिए॥
ज़िन्दगी की उलझनो से फुर्सत कहाँ थी।
दुनिया की सारी फिकर दे दिए॥
खामोश लबों ने पूछा जो सवाल।
मुनासिब-सा उसका उत्तर दे दिए॥
जिन्दगी का फैसला
जिन्दगी का हर फ़ैसला मुझे मंजूर हो गया।
सिर झुका कर मान लिया और ख़ुद से दूर हो गया॥
अपनी ही उलझनो में उलझे रहे तमाम उम्र।
जमाने की उठती अंगुलियों से चकनाचूर हो गया॥
वक्त की ठोकर लगी तो हर बात समझ आ गई।
वक्त के आगे आदमी कितना मजबूर हो गया॥
रिश्ते सभी अजनबी हो गये हैं आजकल।
अपनापन भी देखिए कितना मगरुर हो गया॥
मतलबी इस जहाँ में पैसा ही है सबकुछ हुआ।
चन्द सिक्कों की खनक में हर कोई मखमूर हो गया॥
चेहरे पर चेहरा चढ़ा इंसान बहुरुपिया हुआ।
आईना भी ये देखकर चकनाचूर हो गया॥
मखमूर-मतवाला
अनूप दीक्षित ‘राही’
उन्नाव उ0प्र0
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