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आत्महत्या एक अभिशाप (suicide a curse)
“जीवन के दुखों का आत्महत्या (suicide) हल नहीं है”
‘आत्महत्या’ जिसका अर्थ है “अपना जीवन स्वयं समाप्त करने की क्रिया”। “जीवन” प्रुथ्वी पर सब से अनमोल चीज मानी गई है। प्रत्येक मनुष्य के जन्म और म्रुत्यु का समय निश्चित है, लेकिन जब इसी समय के खिलाप जा कर कोई शरीर छोडने की सोचता है, तो वह आत्महत्या (suicide) की ओर प्रेरित होता है। आत्महत्या अक्सर निराशा के चलते की जाती है। तनाव के कारक जैसे वित्तीय कठिनाईयाँ, या पारस्पारिक सम्बंधो में परेशानियों का भी अक्सर एक भूमिका होती है।
आत्महत्या (suicide) एक ऐसा डरावन शब्द है, जो आंखों के सामने मौत का मंज़र खडा कर देता है। मनचाही मौत से जुडते है लेकिन सच यह है कि यह एक अनचाही और अनपेक्षित मौत की दर्दनाक स्थिति है। एक हसते, खेलते जीवन का त्रासद अंत। क्या ज़रूरी है मौत के बाद सारी समस्याएँ सुलझ जाएगी। आत्महत्या (suicide) अक्सर एक अस्थाई समस्या का स्थाई सावधान होता है।
“सती” जो अब कानूनन निषिद्द है, हिन्दू दाह संस्कार” है, जो पति की चिता पर विधवा द्वारा ख़ुद को बलिदान करने से सम्बंधित है। यह अपनी इच्छा या परिवार, व समाज के दबाव में किया जाता था। यह प्रथा भी एक तरह से आत्महत्या का ज़ुल्म लगता था। आत्महत्या (suicide) करने के लिये उपयोग की जानेवाली सब से आम विधि, देशों के अनुसार भिन्न, भिन्न होती है। आंशिक रूप से उपलब्धता से सम्बंधित होती है। आम विधियों में लटकना, कीटनाशक ज़हर पीना, बंदूक शामिल है। पुरुषों से महिळाओं में इसकी धर अधिक है। युवाओं में प्रयास अधिक आम है।
आत्महत्या के कारण
आत्महत्या (suicide) का कारण भी बहुत रहते है। दुनिया को देखने का नज़रिया ही बदल जाता है उस का। जब इन्सान मरने की ठान लेता है, उस के दिमाग़ में एक पेरेलल युनिवर्स जन्म ले लेता है। एक और दुनिया! जहाँ सिर्फ़ मौत से जुडी चीजों के विजुअल्स चलते रहते है, उसी से जुडे खयाल जहन पर हावी रहते है और कु्छ भी काम करते रहे, दिमाग़ के ब्याकड्राप में एक ही सीन चलता रहता है, मौत का उसे अंजाम देनेवाले संभवित पलों का। मौत की राह का राही बनने के ख्वाइशमंद शख़्स के दिमाग़ में चलती रहती है।
एक कारण तनाव भी
वर्तमान में तनाव हावी होने के कारण और इस का हल नहीं मिलने से आत्महत्या की ओर आकर्षित होता है। निजी रिजी रिश्ते में किसी प्रकार कि समस्याएँ। जीव्न में कोई लक्ष्य न होने पर किसी तरह के आर्थिक घाटा होने पर। मानसिक विकार आम तौर पर आत्महत्या (suicide) समय उपस्थित रहते है। बढे अवसाद और दविध्रुति विकार के बाद मादक पदार्थ का उपयोग आत्महत्या का दूसरा सब से आम जोखिमकारक है।
जुएँ की लतका सम्बंध सामान्य लोगों की अपेक्षा बढे जाए, आत्महत्या के विचार तथा प्रयासों के साथ है। कई बार मनोवैज्ञानिक अवस्थाएँ आत्महत्या के खतरों को बढ़ाती है। जिन में निराशा जीवन में आनंद की कमी, तथा व्याग्रता शामिल होते है।
गरीबी बढाती है आत्महत्या के खतरे को
ग़रीबी भी आत्महत्या के खतरे को बढ़ाती है। स्वामी विवेकानंद जी की उवाचः “जो अत्यंत संवेदनाशील स्वभाव के कल्पना प्रधान होते है, उनकी भावना अत्यंत तीव्र होती है। इस तरह के लोग एक पल में ही ऊंची उडान भरते है, तो दूसरे ही पल एकदम ज़मीन पर होते है। ऐसे लोगों के भाग्य में सुख नहीं होता है। ऐसे लोग ही आत्महत्या कर लेते है।” जिन लोगों के मन में आत्महत्या (suicide) के विचार आते है, उन्हें और कोई उपाय नहीं सूझता।
उस समय मौत ही उन की दुनिया के दायरे में घूमती दिखाई देति है और उन के इस विचार इतने प्रभल होते है कि उन्हें कम कर के नहीं आंका जाना चाहिए-वे वास्तविक, मज़बूत होते है। ऐसे अधिकतर लोग जिस समय आत्महत्या करने की सोचते है, उस के समय बाद उसे एहसास होता है कि मर्रजाना भी इतना ही निरर्थक है, जितनी कभी-कभी ज़िन्दगी लगती है।
मीडिया भी है जिम्मेदार
मिडिया, जिस में इंटरनेट भी शामिल है एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह आत्महत्या (suicide) का चित्रण ऐसे कव्हरेज की अधिक मात्रा प्रमुखता और दोहराव के द्वारा करती है, जिस में आत्महत्या का महिमा या रोमानी चित्रण किया जाता हौ। जब किसी माध्यम से आत्महत्या करने का विस्त्रुत वर्णन की व्याख्या की जाती है। इससे आत्महत्या के इसी विधि की व्रुद्धि सब जगह फैलाती है, युवाओं में यह जोखिम अधिक होता है, क्योंकि वे म्रुत्यु को रोमानी समझते है। तर्क संगत आत्महत्या तार्किक रूप से अपने प्राण त्यागने को प्रेरीत करता है। सामूहिक आत्महत्या अक्सर सामाजिक दबाव में की जाती है जब कि सदस्य अपने नेता को स्वायत्ता दे देते है।
कैसे करे आत्महत्या के विचार का अंत?
यदि मन में आत्महत्या (suicide) का खयाल आ रहा है, तो किसी अपने और भरोसेमंद व्यक्ति के साथ अपने मन की बातें खुले दिल से बोलदेना चाहिए। किसी मनोवैज्ञानिक की मदद लेना चाहिए। ऐसा करने से दिल का भोज हल्का हो जाता है। ज़िन्दगी में कितने भी उतार-चडाव क्योंन आए, आत्महत्या करने का खयाल कभी भी मन में मत आने दीजियेगा।
किसी दूसरे को कैसे दूर रखे आत्महत्या के विचारों से
किसान सिर्फ़ मुद्धा है, ज़िंदा भी है तो मुर्दा है। ऐसे ही सोच-सोच के न जाने कितने किसान लोग आत्महत्या (suicide) कर लेते है। टूट जाए प्रभल आशा, घेर ले चाहे निराशा ऐसे में हार जाना क्या सही है? सामना कर के धैर्य से धर कर श्वास जब तक चल रहा है। जो भी हो, हर समस्या का हल डूंड कर जीना है। हर आत्महत्या के पीछे एक हत्यारा होता है, बस हर बार वह दिखाई दे, ऐ ज़रूरत नहीं है।
आत्महत्या कायर करते है, कह के मुक्ति की ओट में जीना नहीं चाहते। यदि कोई आप से अपनी सम्स्या साझा कर रहा है, तो उनकि बातों को ध्यान पुर्वक सुने और उन्हें एहसास करवाएँ कि आप उन्हें हर समस्या से बाहर निकाल सकते है। आत्महत्या (suicide) के बारे में सोच रहा व्यक्ति लंबे समय से परेशान रहता है। इसलिए अपने करीबीयों पर ध्यान देना चाहिए, कहीं वह किसी बत को लेकर, अपनी ज़िन्दगी खतम करने की सोच रहे है। उदाहरंण के लिए, जब मैं कॉलेज में पढ्ती थी, मेरी एक बहुत प्यारि सहेली थी।
वह किसी से ज़्यादा बातें नहीं करती थी। पता नहीं कैसे उन्हे और चार सहेलियाँ मिलगई। मुझे बाद में पता चला कि, वो अच्छे नहीं थे। मेरि सहेली उनसे मिलजुल्कर रोज़ उन के साथ शराब पीना सीखी। उसे इतना पीने की आदत् पड्गई कि बिना पिए वह लडखडाती थी। घर में भी कोई इतना ध्यान नहीं पडा क्योंकि वह घर जाते ही अपने कमरे में दरवाज़ा बंद कर के सोती थी।
कुछ दिन के बाद उसकी शादी एक अच्छी घर में तय होती है। फिर वह अपनी शराब पीने की वजय से तनाव में आकर आत्महत्या (suicide) कर लेती है। अगर घर में माँ बाप, भाई बहन जो भी हो, थोडा-सा भी ध्यान देते तो मेरी सहेली को ए नौबत नहीं आती थी।
आत्महत्या कर के क्या सुख पावोगे तुम?
आत्महत्या से पहले ज़रूरि है, स्वयं की आत्म की हत्या। जब तुम्हारी रूह ही तडपेगी अपनों के अश्रु देखकर। अगर तनाव से जीत गए तो, हो असली भगवान। क्षणिक मानसिक तनाव में ऐसा कर के वह अपना बोझ और बढ़ा लेता है।
कैसे सोचता है मरने की?
मुसीबतें सब के पास होति है। अपने आप को पहेचान कर ही नहीं दास्तान लिखनी होती है। अरे, ज़िन्दगी जीने का हुनार छोडा उन लोगों से भी सीख ले, जिन के पास देखने को आंखे तक न्हीं होती है। कोफी डे का मालिक सिद्दार्थ जी भी क्या सोचकर आत्महत्या (suicide) कर लिया? अभी-अभी की ताज़ा ख़बर सब के दुलारे अभिनेता सुशांत सिंग रजपुत का भी देखिए वे दोनों सेलिब्रेटिस थे, उन के पास सब कुछ था वह दिप्रेशन आकर आत्महत्या करलिया। इसका मतलब ज़िन्दगी जीने के लिए सिर्फ़ धन, दौलत, शोहरत के साथ-साथ मन की शांती भी चाहिए। आजकल तो आत्महत्या एक फैशन बन गया है। ज़िन्दगी का कोई माईने ही नहीं रखता।
मददगार संस्थाएं
ऐसे मनोरोगियों की मनोचिकित्सा में मदद करने वाली संस्थाएँ है। जैसे-
रोशनी
हैदराबाद स्थित सुईसाइड प्रिव्हेनशन सेंटर है। वहा कन्सल्टन्सी कर सकते है।
कूज
ए संस्था से हेल्पलाइन लोगों को आत्महत्या के विचार से जुडे संकेतों के बारे में जागरूक कर रहे है।
स्नेह इंडिया फौंडेशन
यह संस्था हप्ते के चौबीस घंटे लोगों की मदद भी करते है। किसी भी प्रकार के पीडित लोगों तक फौरन मदद पहुँचाती है।
वंद्रेवाला फौंडेसन
यहाँ आप को काफ़ी प्रोफेशनल और परिपक्व व्हालेंटीयर मिलेंगे, जो लोगों कि कई तरह से मदद करते है।
“हालातों से हारे वक़्त के मारे, तुम भले ही दुनिया को लगी बेचारे। ग़र ज़िन्दगी की डोर को न छोडना” आत्महत्या” के सहारे”
डॉ. सरोजिनि भद्रापूर
पुणे, महाराष्ट्र
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