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सुहाना सावन (Suhana Sawan) देखो आया
सुहाना सावन (Suhana Sawan) देखो आया,
स्वप्न सुहाने दिखा रहा है।
जैसे नववधू के चेहरे से,
कोई घूंघट उठा रहा है॥
हरा भरा धरती की चादर,
जैसे सेज सुहाग बन गई।
नीलगगन पर काले बादल,
साजनके सिर पाग तन गई॥
बरस रहा है प्यार निरंतर,
चुम्मन सावन लगा रहा है।
जैसे नववधु के चेहरे से,
कोई घूंघट उठा रहा है॥
देह धरा की कांप रही है,
सावन घन बेशर्म बने हैं।
नेह के सागर की लहरों पर,
तैर रहे अनगिन सपने हैं॥
मौसमकी मुरली पर सावन,
जीवन नग्मा सुना रहा है।
जैसे नववधु के चेहरे से,
कोई घूंघट उठा रहा है॥
सावन प्यारे ने हर क्यारी,
को सींचा जरखेज कर दिया।
प्यास बुझी प्यासी धरती की,
यूं सारा संताप हर लिया॥
हरी गोद धरती की करके,
सावन उत्सव मना रहा है।
जैसे नववधु के चेहरे से,
कोई घूंघट उठा रहा है॥
“अनंत” रातें बहक रही हैं,
चहक रही दिन में मनकोयल।
झूलों पर हसरतें झूलती,
हवा बनी है देखो चंचल॥
प्यास बुझाता है सावन या,
सोए अरमां जगा रहा है।
जैसे नववधु के चेहरे से,
कोई घूंघट उठा रहा है॥
अख्तर अली शाह “अनंत”
नीमच
सावन की महिमा
मनभावन सावन आया,
बर्षा की मधुर फुहार लिए।
पुष्पित पल्लवित हुए उपवन।
नव सर्जन नई बहार लिए॥
साजन सजनी में प्रेम बढ़ा,
सावन आया मधुपान पिए।
तन मन की उमंगे जाग गयी,
बर्षा ने जब-जब बदन छुए॥
आयी हरियाली तीज सरस
सजनी ने सब शृंगार किये।
आया त्यौहार बन्धन का भी
भाई बहना का प्यार लिए॥
शिव विवाह सती माता के संग,
भक्ति की जय जयकार लिए।
आयी श्रावणी शिवरात्रि,
शिव भोले आशीर्वाद दिए॥
श्रवण मास की महिमा बड़ी,
इसका गुणगान कौन करे।
सावन में अम्बर से बरसे,
जल जीवन का संचार करे॥
नृपेन्द्र शर्मा “सागर”
ठाकुरद्वारा जिला-मुरादाबाद
उत्तरप्रदेश
सुहाना सावन
जब जब भी आता है सावन सुहाना,
बहुत याद है बचपन पुराना…
वो बिना किसी डर के यूं ही बारिश में भीग जाना,
वो घर आकर फिर माँ की डांट खाना,
स्कूल से भीगकर आने के बहाने बनाना,
वो यारों के संग चाय पकोड़े उड़ाना,
वो पेमेंट के वक़्त एक दूसरे को चिढ़ाना,
अब सोचती हूँ तो लगता है जैसे कितनी जल्दी से गुजर गया वह खूबसूरत फसाना,
जब जब भी आता है सावन सुहाना,
बहुत याद आता है बचपन पुराना…
भरे पानी में काग़ज़ की नाव चलाना,
बारिश में अपने साथ-साथ पापा को भिगाना,
वो सावन कि हरियाली तीज मनाना,
वो माँ के साथ-साथ अपने भी शौक से मेहंदी लगाना,
बड़े मन से सारी वह चीजें मंगवाना,
वो मेहंदी, वो चूड़ी, तो कभी मा से ज़िद करके कंगन मंगवाना,
वो सज-धज के तीज के मेले में जाना,
जब जब भी आता है सावन सुहाना
बहुत याद आता है बचपन पुराना…
वो कॉलेज के दिनों में ज़िन्दगी में पहले से प्यार का आना,
वो उसका चाहतों का अपनी एहसास दिलाना,
मेरा नखरे करना मगर उसके मनाने पर झट से मान जाना,
वो उसको दिल की हार बात बताना,
जो वह रूठे कभी तो प्यार से घंटों मनाना,
जब जब भी आता है सावन सुहाना,
बहुत याद आता है गुज़रा ज़माना,
बहुत याद आता है बचपन पुराना…
कई बार बैठकर फुरसत में अक्सर सोचती हूँ मैं,
इस आधुनिकता के युग में बढ़ती उम्र के साथ,
हम भूलने लगे हैं संस्कारों वाली बात,
हम पीछे छोड़ आए हैं कहीं पुराने रीति रिवाज़,
हम ना जाने क्यों ठुकराने लगे हैं अब अपने है अंतर्मन की आवाज़,
वो आवाज़ जो सक्षम है और चाहती भी है,
इस मशीनी दौर में हमें मशीनों से इंसान बनना…
जब जब भी आता है सावन सुहाना,
बहुत याद आता है बचपन पुराना…
बहुत याद आता है गुज़रा ज़माना…
कनुप्रिया रस्तोगी
बरेली ज़िला-बरेली
उत्तर प्रदेश
हरियाली
नव ब्याहता-सी लग रही वसुधा
करके वह हरित-हरित श्रृंगार।
धानी चुनरिया उसकी लहरावे
लेकर मन में अपने प्रिय का प्यार।
बाग, उपवन सब निखर उठे हैं
धरा हो गई है सर्वत्र हरी भरी।
रिमझिम रिमझिम बरखा बरसे
हिम शिखर से बही सुरसरी।
हरा लहरियाँ ओढ धरा ईठलाएँ
कोयल, पपीहे मधुर गीत सुनाएँ।
मंद मंद पवन सरक-सरक आएँ
मन में प्रेम की कैसी अगन लगाएँ।
हेमा पालीवाल उदयपुरी
सुहाना सावन
सावन बादल छा रहे,
देते ये पैगाम।
वर्षा होने वाली है,
स्वागत है श्रीमान॥
काले बादल छा गए,
पवन करे है शोर।
सावन मेह बरस गए,
वन मैं में नाचे मोर॥
सावन के आते सभी,
चिंतित हुए गरीब।
खाने को दाना नहीं,
फूटा घर व नसीब॥
श्याम मेघ अब आ गए,
सावन लगी फुहार।
सौंधी ख़ुशबू को लिए,
बहने लगी बयार॥
शहर से भइया आ रहे,
सावन में इस बार।
बहिना स्वागत के लिए,
सजा रही घर द्वार॥
राजीव नामदेव “राना लिधौरी”
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी
टीकमगढ़ (मप्र)
सावन सुहाना
आ गया सावन सुहाना,
बज उठा शिव का तराना।
गरजै बदरा चमके बिजुरी,
भीजै मनवा रिमझिम बदरी।
गदराया धरती पर यौवन,
गाये कण-कण सावन सुहाना!
आ गया सावन सुहाना
बज गया शिव का तराना।
भीगें पातों पर ठहरी बूंदे,
प्रकृति नाचती नैना मूंदे!
नदी ताल पोखर है बहके,
मन सुगना भी हुआ दीवाना!
आ गया सावन सुहाना,
बज गया शिव का तराना।
हर फुहार देती शीतलता,
जीव जीव में अजब चपलता।
बूंदों से मनुहार करे,
तोड़े संयम सावन सुहाना!
आ गया सावन सुहाना,
बज उठा शिव का तराना!
काली घटायें दमके दामिनी,
रूप दिखाए जैसे कामिनी।
मेघा कजरी पवन गा रही,
कोख धरा में अंकुर सुहाना।
आ गया सावन सुहाना,
बज उठा शिव का तराना।
सावन है कृषक मनभावन,
खेतन चले धान रोपावन।
पौध पौध के बोल सुहाने,
कली कली ने रास रचाया।
आ गया सावन सुहाना,
बज उठाशिव का तराना।
भौरों की तितली से ठिठोली,
पिहू पिहू की मीठी बोली।
नाच रही उन्मत्त मयूरी,
वर्षापरी का रूप लुभावना!
आ गया सावन सुहाना,
बज उठाशिव का तराना।
डॉ. अर्चना प्रकाश
गोमती नगर,
लखनऊ-१०
सावन आया है
श्यामघनों की आशा में,
आषाढ़ बिताया है
रिमझिम-रिमझिम
सावन आया, सावन आया है
लहरा हरियाली की चूनर,
धरती यूँ इतराई
कूक उठी मतवली कोयल,
चहक उठी अमराई
मिट्टीकी सोंधी सुवास ने
जग महकाया है।
रिमझिम-रिमझिम—-।
हूक उठी मन में जब से,
मौसम ने ली अंगडाई
हँस कर बाला ने झूले की,
पींगे और बढ़ाई
मतवाले तरुणों का भी,
तो मन ललचाया है।
रिमझिम-रिमझिम—-।
झूम-झूम होरी का हियरा,
बादल बरसे पानी
गोरी इठला कर ले आई,
पानी और गुड़ीधानी
बूँदों का उत्सव सबने मिल,
आज मनाया है
रिमझिम-रिमझिम—-।
वन्दना दुबे
प्रणय निवेदन
मेरे प्रियतम प्रणय निवेदन कर लो स्वीकार
सावन की देख झड़ी करती प्रेम का इज़हार
मेरे—————————————
बादल घिर आये चहुँ ओर
बूंदे करती छम-छम शोर
धवल धवल धरती मुस्काती
मानो यौवन की मस्ती छायी
पल्ल्वित पुष्पित सुरभित सुगंध अपार
सावन———————————
केले के पत्तों पर
बूँद के मोती उछल रहे
वो लूट रहे सृष्टि का वैभव
हमें अंजुरी समेट रहे
विरहन मेरी आँखों में कलियों पर उमंग उभार
सावन———————————
पुरवैया ज़ब चलती है
इक सिरहन-सी उठती है
सावन की घटाएँ कहती जाये
सतरंगी समाओं की फिजायें आये
बिजुरी के संग रास रचाते मेघ अपार
मेरे———————————
बारिश ने ज़ब मेरा मुखड़ा चूमा
ऐसा लगा जैसे तेरा छूना
तेरे आने की आश लगी है
इंतज़ार की कटती नहीं घड़ी है
मन में छुपा न पायी प्रेम अपार
सावन—————————
कल्पना भदौरिया “स्वप्निल”
अध्यापिका
बेसिक विभाग
जनपद हरदोई
उत्तरप्रदेश
सुहाना सावन
सावन की रमझोल से, मन भावन हरियाली है।
चहुँ ओर खग कलरव, क्रिड़ा करते निराली है। ।
मुन्ने लगे घरौंदे बनाने, माटी की सौंधी महक…
अमराइयों में बैठ कूकती, मतवाली कोयल काली है। ।
हरित पत्तियों के लफ़्जों में, सरसरी मल़्हार गान है।
शीतल पवन के झौंकोें से, झूमता खेतों में धान है। ।
पशु-पक्षी और मानव, मेहनत में हैं मस्त…
मेहनत ही तो डालती, प्यारी प्रकृति की जान है। ।
टपटप का नाद सुनाता, टपकता छत से पानी है।
नहाने को शीतल पानी में, करते बच्चे मनमानी है। ।
टोक रहे उनको दादा जी, पीते खटिया बैठ चिलम…
ना मानते और नहाते, जो आई बरखा दिवानी है। ।
रँग-बिरँगे पुष्प खिलाने, काले मेघ ले कलश चले।
पनिहारी भी रूप देख कर, बिजुरिया पर क्यों ना जले?
करती गर्ज़ना चमकीले बदन से, सुहाना सावन इतराता…
मोर नाचता पँख पसारे, मोरनी का प्यार पले। ।
मल़य समीऱ और मेघदल मध्य, खगदल विचरण करते हैं।
दादर-मोर-पपीहे-बुलबुल,
प्यास ताल बुझाते हैं। ।
वसुधा दुल्हन सुन्दर सज़ी, धानी चूनर ओढ़…
मेघ़ बन कर प्यारे दूल्हा, माँग सिंदुर सजाते हैं। ।
वांका राम परमार
निम्बज, जालोर (राज)
सुहाना सावन
छिपता बादल ओट में
रवि यह सावन मास
कृषक मोर पपीहे तरसे
पावस की है आस।
धरती पुलकित हो रही
देख घटा घनघोर
महीना सावन आ गया
रिमझिम रिमझिम दौर।
हरियाली चुनर ओढ़ सजी
किया वसुधा ने शृंगार
मोहक सावन माह में
आई पर्वों की बहार।
धीमी-सी बौछार कभी
कभी है मूसलाधार
सावन की बौछार में
भीग रहे नर नार।
सखियाँ मिलकर झूलती
सावन झूला डार
नयन बाण घायल करे
धनुष बाण बेकार।
फल लद गए पेड़ों पर
झूम रहे वन मोर
पिया मिलन की आस का
मधुर मनोहर शोर।
कोयल कूक रही है प्यारी
सुना रही कानों में गीत
इस सावन हो जाएगी
साजन सजनी में प्रीत।
उछल रही बूंदे मोती सी
बरस रहा प्यारा सावन
विरहन यौवन निखर गया
कब तक आएंगे साजन।
धरती बादल मिल गए
पूरी हो गई आस
सावन फिका लग रहा
प्रीतम बिना वनवास।
निलेश जोशी “विनायका”
बाली, पाली, राजस्थान
सनम और सावन
आओ सनम सावन सुहाना आया है,
दूर दूर न रहो नया जमाना आया हैै।
आओ सनम…
कहना न कल बयार सर से गुजर गई,
जाने कब कच्ची कली कांची संवर गई।
भर लो न आज बाहों में बहाना आया है,
आओ सनम सावन सुहाना आया है॥
इतना न इतराओ इधर इस्तहार तो पढो,
मंजिल मिल जाएगी रफ़्ता रफ्ता तो बढो।
जैसे किसी कहानी में तराना आया है,
आओ सनम सावन सुहाना आया है॥
प्रीत की रीत आज यूं ही न गुजर जाए,
केश बंधे गेंदे से यूं ही न बिखर जाएँ।
आज आओ जैसे कोई दिवाना आया है,
आओ सनम सावन सुहाना आया है।
मिल जाओ दूध जैसे मिल जाए नीर से,
आत्मा परमात्मा से पीर ज्यों फ़क़ीर से।
प्यार का पर्याय पुन: पुराना आया है,
आओ सनम सावन सुहाना आया है॥
शिकवे गिले भूल जाओ नयन तो मिलाओ न,
रख लो सिर गोद में शयन तो कराओ न।
आओ तो करीब आज करके श्रंगार प्रिये,
सात जनम का पल अनजाना आया है॥
आओ सनम सावन सुहाना आया है।
आओ सनम सावन सुहाना आया है॥
दिनेश सेन “शुभ”
जबलपुर मप्र
सावन
लो फिर सावन की घटा है छाई
मन में इक नयी उमंग भर लायी
झूले पड़ गए अंबुआ की डाली
चहु ओर अब हरियाली है छाई
यह रुत मनभावन की है आयी
देखो पपीहे ने है गुहार लगायी
रिमझिम-रिमझिम बूँदों संग
कलियाँ भी अब हैं मुसकुरायीं
तन शीतल मन हो गया निर्मल
देख नील गगन से उमड़े बादल
झुलस रही थी सूनी धरती जो
मिला उसको राहत का सागर
घुमड़-घुमड़ कर छायें हैं बदरा
मिल कजरी गातीं सुन्दर बाला
मयूर भी नाचते है हर्षित हो कर
देख हर कोई हो गया मतवाला
कागा रोज़ बोलता मेरे आँगन
नीर बहते आँखों से झर-झर
होगा मनोहर कौन-सा पल वह
मायके से जब आएगा बुलावा
बचपन बीता था जिस घर में
उस घर की मुझे याद सताए
बन जाऊँ मैं फिर नन्ही गुड़िया
बिसरे दिन अब भूले न भुलाये
अपनी सखियों संग मिलने को
मन की आस है बड़ा तड़पाए
भेजो अब मोहे संदेशा बाबुल
पीहर को मेरा ज़िया ललचाए
पीहर को मेरा ज़िया ललचाए
आभा मुकेश साहनी
सावन
झूम झूम कर नाचेंगे हम इस साल की सावन मे
बारिश में भीग जाऐंगे हम इस साल की सावन मे
झुम झुम कर नाचेंगे हम इस साल की सावन मे
हर गली खेत खलिहान में पानी हीं पानी होगी
भीगा भीगा मौसम और शाम भी मस्तानी होगी
भोले नाथ की पुजा करेंगे सावन सोमवारी जैसे पावन मे
झुम झुम कर नाचेंगे इस साल की सावन मे
पतझड भी सभी हरा भरा और कोयल कूहकुहाती है
भौरा भी गुनगुना कर गीत प्रित की गाती है
राम चन्द जी आऐ है जैसे हम सभी के ऑगन मे
झुमझुम कर नाचेंगे हम इस साल की सावन मे
रोपा लगाते हल चलाते है हम सभी किसान
छत्तीसगढ के वासी धरती मॉ की करते है गुडगान
हर जगह पर चर्चा होती है गॉव गली और प्रागंड मे
झुम झुम कर नाचेंगे हम इस साल की सावन मे
बारिश में भीग जाऐंगे इस साल की सावन मे
झुम झुम कर नाचेंगे हम इस साल की सावन मे
बिहारी साहू सेलोकर
ग्राम धारिया छुईखदान पोष्ट पदमावतीपुर
जिला राजनॉदगॉव छत्तीसगढ
ये हरियाली सावन की
ये सावन भी क्या मन मोहक रंग लाया है,
जहाँ देखों वहाँ सावन-सा छाया है,
ये सावन भी क्या मन मोहक रंग लाया है!
आज ज़मीं पर चारों तरफ़ हरियाली-सी छायी है,
ना जाने कौन—सी खुशहाली आयी है,
ना जाने कौन—सी खुशहाली आयी है!
अब तो सावन भी कहने लगा है,
ये हरियाली कैसी रंग लेकर आयी है,
हर पेड़-पौधों पर छायी है!
आज बंजर ज़मीं भी बोलने लगी है,
ये कैसा दौर आया है!
जहाँ देखो मोरनी भी अपना मनमोहक चरित्र
दिखाने आयी है, ये कैसी खुशहाली आयी है!
ये खुशियाँ उन किसानों की भी आयी है,
जिन्होंने ख़ूब पसीना बहाया है!
ये हरियाली भी क्या रंग लेकर आयी है,
ये हरियाली भी क्या रंग लेकर आयी है।
अनूप कबीर पंथी ‘शुभ’
जबलपुर (एमपी)
सावन की सुहानी यादें
सावन में अब वह बात कहाँ
जब काले बादल घिरते थे
सूखी ज़मीं को सींचने
जब जम के मेघ बरसते थे
बारिश की ये झड़ी देख के
मन यूँ ही गुनगुनाता था
मतवाला कवि कुछ सोच के
कोई शब्द रचना कर जाता था
भजन मंडली ढोल मंजीरा
सब ये राग सुनाते थे
भोले तेरे भक्त भीगते
तुझमें रम-रम जाते थे
बिजली कड़कड़ाती थी
बादल भी यूँ घुर्राता था
दूर सुनहरे वन में बैठा
मोर भी पंख फैलाता था
रिमझिम बारिश की बूंदे
दो दिलों को भी भिगाती थी
के प्रमिका अपने आँचल से
प्रेमी के बाल सुखाती थी
ठंड हवाओं के लहरों से
अरमान जाग-सा जाता था
मुरली की वह तान सुरीली
जब कोई कन्हैया सुनाता था
तस्वीर सुहाने सावन की
जो आँखों में मेरे बसती हैं
सब हरे-हरे से दिखते थे
सब भरे-भरे से दिखते थे
सावन में अब वह बात कहाँ
जब काले बादल घिरते थे
सूखी ज़मीं को सींचने
जब जम के मेघ बरसते थे
विकास कुमार चौरसिया
जबलपुर म.प्र.
सावन की बरसात
इन सुनहरे रंगीले दिनों मे,
सावन की बरसात है!
खुशी से मनाओ यहाँ तो,
त्योहारो की शुरुआत है!
नजारा और महक बेहद सुंदर,
मनमोहक लगता है!
हमको बहुत भाता यह पल-पल मे,
सावन रूप बदलता है!
कहीं महीनों के इंतज़ार में
खेतों में दौड़ते हैं
सावन के लिए भगवान से हाथ
जोड़ते हैं
सावन आ गया खुशियों की बौछार है
अभी अभी
कब आएगी संगीत-सी हवा यह सोचता
कभी कभी
कोयल मोर पपैया दादूर सब गरजने
लगे हैं
इसीलिए तो मेह राजा बहुत बरसने
लगे है
चेतन कुमार
सुहाना सावन
सावन आया झूम, के करे पपीहा शोर।
कोयल वन में कूकती, नाचे उपवन मोर।
नाचे उपवन मोर, हुए हर्षित नर-नारी।
गायें मधुरिम गीत, प्रफुल्लित क्यारी क्यारी।
देख प्रकृति सौन्दर्य, हिलोरे लेता ‘शिव’ मन।
दादुर, झींगुर, मोर, गा रहे आया सावन॥०१
मनभावन सावन लगा, नाचें उपवन मोर।
चातक मेघ निहारता, दादुर करते शोर॥
दादुर करते शोर, छटा छाई सुखदाई।
हरियाली चहुँ ओर, उमड़ वर्षा ऋतु आई।
कहता ‘शिव’ दिव्यांग, करे नर्तन अंतर्मन।
पड़ने लगी फुहार, लगा सावन मनभावन॥०२
शिवेन्द्र मिश्र ‘शिव’
सावन लाया मेरे चाहत की बदरिया
बड़ी मुद्दतो के बाद बारिश आई हैं,
झरना नदियाँ संग मुझे भीगा गई हैं।
इस सावन के मधुर प्यार भरे गीतों में,
हर क्षण मुझे तेरी पल-पल याद आई हैं।
चाहत की बदरिया मेरी,
मुझे इस सावन में झूमा गई हैं।
छम छम करती बारिशें,
पल पल बढ़ती चाहतें,
भांग चढ़ा मुझे भी
शिव का प्याला पिला मुझे भी,
इस कावड। युग संग,
झुलो पर गीत सुहाने अपने बरसा रही हैं॥।
हरियाली होती प्रकृति की
हरियाली होती मेरे प्यार की
तीज सुनहरी आई हैं,
छम छम करती बारिशें
चाहत की बदरिया लाई हैं॥
सावन के पावन माह में
हर कोई करता व्रत हैं
भोला जहाँ पूज्य हैं
भक्त वहाँ धन्य हैं॥
सावन में झूमे संग हम,
नदियों की प्यास बुझाईं हैं।
धोरा जहाँ सूखी हुईं,
सींचा उसे पानी-पानी हैं॥
हैं झूमते किसान यहाँ,
ढोल मृदंग बजाईं हैं।
हैं माह शिव तेरा,
अमृत का रसपान कराईं हैं॥
पवने यहाँ शोर करें,
नाचें मोर संग प्राणि हैं।
धरा यहाँ मचल उठी,
सावन की रूत आई हैं।
सावन की रूत आई हैं॥
रुठे बिछड़े दिलो को मिलाने,
सावन झूम के आया है।
विष कलश पी कैलाशपती,
चाहत की बदरिया लाई है।
चाहत की बदरिया लाईं हैं॥।
अंजली सांकृत्या
जयपुर
सावन की घटा
देखो सावन की घटा फिर छाई है
बागों में बहार ले आई है
चारो ओर हरियाली छाई है
भींगा जिसमें तन मन मेरा
कोयल ने भी पुकार लगाई है
कहाँ गया साजन तेरा
जो ऐसें में भी उदासी छाई है
सखियाँ झूले झूला मेरी
अखियाँ ढूँढे तुझको मेरी
रंग बिरंगे फूल खिले है
झूम रही है डाली डाली
हवा चली कैसी मतवाली
पपीहे ने शोर मचाया है
सावन तेरी अदा निराली
आसमान में गहरी लाली
आजा ओ हरजाई
सावन ने आग लगाई
रास्ता देखूं तेरा मैं
हरी चुनरिया ला देना
ओढ़ के गीत मैं भी गाऊँ
सखियों संग तीज मनाऊ
हरी चूड़ियाँ मुझको भाए
रूठे साजन को यह मनाए
छोड़ो अब मान भी जाओ
बारिश की फुआरो में मेरे संग तुम भी आओ
शिव शंकर का महीना यह
गौरा पार्वती के गीत गाओ
आया सावन झूम के
बनके मोरनी मैं भी नाचूँ
मन में मस्ती छाई है
लगता है सब कितना सुंदर
यह घटा बड़ी निराली है
धरती सारी बन गई दुल्हन
ऐसा प्यारा मेरा सावन॥
नेहा जैन
ललितपुर
सावन सुहाना
लगता है बादल फ़िर
एक अंजान आया
उसी के संग झूमता
गाता सावन आया।
आने की आहट
तुम्हारी हवा संग आई
अहसास तुम्हारा
बौछारों संग हुआ।
मिल के तुमसे ये उदास
मन भी सतरंगी हुआ
दिल भी खिल गया है
जीवन भी रंगी हुआ।
कब से समझा रही थी
सूखे से इस मन को
वो आया और
भिगो गया तन को।
मै सोच में अनवरत
डूबी रही
वो होले से छू गया
दिल को॥
आए तो हो यहाँ तुम
राह से भटककर
रुक जाना कुछ दिन यहीं
दिल के मेहमान बनकर।
आंखों में रहना तुम
नयनों की लाज बनकर
बह न जाना आंखों से तुम
यू पवन संग भाप बनकर।
आने से तुम्हारे हृदय में उजास हुआ है
सुप्त पड़ी आशाओं में नवजीवन का संचार हुआ है।
देख के तुमको आंखें
भी ये हस पड़ी है
दिल के शुष्क कोने में भी
एक कली खिली है।
लगता है बादल एक
अंजान-सा दीवाना हुआ है
हृदय भी संग उसके
सावन-सा सुहाना हुआ है॥
इंद्रा
जोधपुर, राजस्थान
मुझे मौत बुलाने आई थी
आज रात स्वपन में मुझको मौत बुलाने आई थी।
आदर और सत्कार सहित मुझे ले जाने आई थी॥
आकर कहन लगी मुझको,
करो तैयारी चलने की।
अटल समय मृत्यु का होता,
घड़ी नहीं ये टलने की॥
कुछ पल बाकि बचे तुम्हारे तुमे जताने आई थी।
आज रात स्वपन में मुझको मौत बुलाने आई थी॥
हाथ जोड़कर हुआ खड़ा,
मैं मृत्यु मईया माफ़ करो।
यहाँ बहुत अन्याय हुआ है,
तुम तो अब इंसाफ करो॥
क्या तुम भी हे! मृत्यु मुझको और सताने आई थी।
आज रात स्वपन में मुझको मौत बुलाने आई थी॥
विनती करन लगा मैं उनसे,
थोडा समय दो और मुझे।
परोपकार करना बाकि है,
देखना शेष है दौर मुझे॥
मैने सोचा टल गई मृत्यु बस मुझै डराने आई थी।
आज रात स्वपन में मुझको मौत बुलाने आई थी॥
ऐसा सोचना ग़लत था मेरा,
मृत्यु अटल दिखाई दी।
नेत्र लाल क्रोधित उसके,
कड़क आवाज़ सुनाई दी॥
हो गई आग बबुला मुझपर सच बतलाने आई थी।
आज रात स्वपन में मुझको मौत बुलाने आई थी॥
कहने लगी क्या मुझको भी तुनै,
जनता समझ रखा रे।
हो मृत्यु नहीं किसी की शत्रु,
किसी की नहीं सखा रे॥
टलता नहीं आदेश मेरा कभी तुझै समझाने आई थी।
आज रात स्वपन में मुझको मौत बुलाने आई थी॥
चल दे भी देउं तुझे एक मौका,
क्या करेगा दे जवाब मुझे।
कौनसा तीर मार दिया देदे,
चोंतीस वर्ष का हिसाब मुझे॥
वा आयु चोंतीस साल मेरी का हिसाब चुकाने आई थी।
आज रात स्वपन में मुझको मौत बुलाने आई थी॥
स्वार्थ की चढ़ा भेंट दिया तुनै,
अमोल जीवन महान तेरा।
अपने आप गवा दिया तुमने,
शुभ अवसर इंसान तेरा॥
“विश्वबंधु” याद विश्व रखे ऐसा बनाने आई थी।
आज रात स्वपन में मुझको मौत बुलाने आई थी॥
राजेश पुनिया ‘विश्वबंधु’
हिसार हरियाणा
सुहाना सावन
सावन बड़ा सुहाना होता है
हर मौसम में प्यारा मौसम
सुहाना सावन ही होता है
ये बड़ा ही मनभावन होता है
घिरती हैं जब काली घटाएँ
सुहाना सावन मौसम होता है
कोई भी नवयवना जब जब
जुल्फ अपनी जुल्फ बिखराती है
सावन सुहाना तब लगता है
बच्चे भी खुश जवान भी खुश
खुश होते सबसे बूढ़े बाबा
न जायें कोई तीरथ धाम
ना जायें कभी काशी काबा
अपने घर ही मस्ती करते
क्योंकि सावन लगता सुहाना है
खुश होकर सबको जीना है
सावन में हर तरफ़ मेला लगता है
बच्चों बुजुर्गों का दिल बहलता है
सावन सुहाना अपनापन देता है
सावन में होती कजरी झूला लगता है
सुहाना सावन गर्मी से राहत देता है
सावन का मौसम सुहाना होता है
सुहाना सावन करता रिमझिम बरसात
व्रत त्यौवहार संग लाता खुशियों का सौगात
बोलबम के नारों से हो जाता है गुंजयमान
सब करते स्वागत सावन का जीवन आधार मान
हरहर महादेव भोले शंकर का महीना
प्रकृति के सजने सँवरने का ये महीना
सुहाना सावन चारों तरफ़ हरियाली है लाता
सुहाना सावन है चहुँ ओर प्रेम बरसाता
सुहाने सावन में ही मोरनी गर्भाधान करती
सुहाने सावन में ही फ़सल में बढ़ोतरी होती
सुहाने सावन में ही ताल तलैया नदी जल से भरते
“दीनेश” सुहाने सावन में ही प्रेमी प्रेमिका से मिलते
दिनेश चंद्र प्रसाद “दीनेश”
कलकत्ता
सुहाना सावन
दिन लगता बड़ा सुहाना हैै,
सावन मास का आना है,
देखो चारों ओर हरा ही हरा
सावन मास का क्या कहना
सावन मास शिव को प्यारा
उल्लास का नाम है सावन
नवविवाहिता घर को आती
सावन मास तीज मनाती
सखियों संग झूला झूले
सावन मास में सतु भावे
घन घनघनोर मेघा बरसे
हंसी ठिठोली सखियों संग
आज धीरे-धीरे राज खोले
घूमे मेला चकरी में डोले
चाट समोसा भेल भी खावे
सखियों संग सावन में डोले
सावन मास की मस्ती चढ़ी हैै
आज मन जय भोले बोले॥
चंद्रवीर गर्ग
बाड़मेर (राजस्थान)
सावन
सावन आया मधुरता का योग लाया
प्रिय से मिलने की ललक को जगाया
वर्षा की ठंडी बूंदे ऐसा लगे जैसे कानों में कुंदे
पत्तियों पर बूंदों का गिरना झूलों का पलना
पायल की रुनझुन सावन की झनक चूड़ियों की खनक
कोयल की कुहू-कुहू चातक की पीहू पीहू
गौरी का झूमना प्रीतम से मिलना
चांद की चांदनी में गोरी झूम-झूम गाए
वाह रे सावन झूम-झूम के आए
छत्की की चांदनी में चांदी का पलना
मुरली की धुन में राधा का झूमना
वाह रे सावन तेरा मदमस्त होकर फूलों-सा खिलना
सुषमा शुक्ला
इंदौर
सावन आया
मन हर्षाया
मौसमी वर्षा लाया
सावन आया।
खुशियाँ छाई
आनन्द चहुँ छाया
सावन आया।
घन उमड़े
दामिनी हैं कड़की
सावन आया।
बहुत पानी
बादलों ने बरसाया
सावन आया।
कृषक झूमें
अनाज उपजाया
सावन आया।
मास्टर भूताराम जाखल
गाँव-जाखल, तहसील-सांचोर, जिला-जालोर (राजस्थान)
सुहाना सावन
रिमझिम तराने लेके आया सुहाना सावन,
बर्फ-सा शीतल लाया फुहार सावन का।
उस लम्हें का इंतज़ार करती मेरी आंखें,
जब तुमसे एक नई मुलाकात होगी।
तुम्हे याद होगा, हमारा पहला मिलन,
जब हम दोनों सुहाना सावन में
भीगकर एक दूसरे से लिपट गए थे।
आशाएँ करती हूँ तुम्हारे पास रहने की,
मुझ में तड़प है तुम्हें देखने की।
तेरी महोब्बत में फना हो जाना मेरे लिए, किसी शहादत से
कम नहीं,
तेरे चेहरे का वह नूर किसी आफताब से कम नहीं।
जैसे सुहाना सावन में बदरा कम नहीं॥
आप के हुस्न ने हमें मजबूर कर दिया,
पल भर में हमें ख़ुद से दूर कर दिया।
कुछ इस तरह तुम्हे प्यार करने लगे,
टूट कर आप के बाहों में हम बिखरने लगे।
तुम मुझे बस यूं ही प्यार करते रहो,
तेरे प्यार में डूबे है इस तरह,
कि चाहे भी तो उठ न पाएंगे।
जैसे सुहाना सावन में खुमार आता है॥
है बड़ा दिलनशी प्यार का ए सिलसिला,
मुझे अभी ख़ुद में ही खोने दो।
असीम प्रेम है मेरे दिल में, सिर्फ तुम्हारे लिए,
तुम्हें कैसे व्यक्त करूं मेरा प्यार।
तू सजती, सँवरती, चलती, मचलती,
निकलती आंखों के काजल की तिरछी नजरिया,
तू सावन कि बिजुरिया जैसे चमके।
जैसे सुहाना सावन बद्दो।
होठों पर लाली, कानों की बाली,
गालों पर जुल्फें, गिरती विखरती उलझती घटाएँ,
सावन कि गुजरिया जैसे चमके॥
बहारों कि बरखा ने दिल कि गली में अरमां महोब्बत के कुछ यूं जगाए,
हवाओं के झोंको में बारीश कि बूंदे, ख्वाबों कि मल्लिका कि ख़ुशबू संग लाए।
भीगा बदन और सांसो कि गर्मी, तरन्नुम महोब्बत का दिल में जगाए,
लम्हा दिल कि धड़कन वारिस के
मौसम में गीत महोब्बत के गुनगुनाए।
जैसे सुहाना सावन बरसाए॥
हवाओं की खुशबू, मौसम कि बहार, कस्म कस, कशिश
दिल कि फुहार,
रिमझिम सावन की बदरिया जैसे दमके।
तेरी निगाहों से जाम मुझे पीने दो,
तेरे खयालों में मुझ को जीने दो।
दिल में छुपि है हजारों प्यार
कि बातें, आज मुझे वह कहने दो,
तुझे न देखूं चैन आता नहीं,
तेरे सिवाय कोई भाता नही,
मुझे प्यार की झरना में बहने दो, सुहाना सावन कि बूंदों में प्यार झलकने दो॥
डॉ. सरोजिनि भद्रपुर
पुणे (महाराष्ट्र)
सुहाना सावन
आयी सावन की बरसात।
लायी खुशियाँ लाखों साथ।
हरे भरे लहराए खेत
सूखे सूखे बंजर खेत
देखो क्या कहना…
रिमझिम बारिश की फुहार।
करके सोलहों श्रृंगार
देखो आयी है गुलनार
लेके सावन की बहार॥
पृकृति का गहना…
सावन में कजरी की तान
करती हैं गुलनारें गान
चेहरे पर आई मुस्कान
फसल देख रहा किसान
वाह वाह क्या कहना
भोले बाबा की दुअरिया
कांवर ले पहुँचे कांवरिया
थिरकत जाय रे कमरिया
सज रही काशी नगरिया
बम भोले कहना…
आशुकवि प्रशान्त कुमार”पी.के.”
पाली हरदोई (उत्तर प्रदेश)
सावन की रिमझिम
सावन की रिमझिम
सुहाना लगता मौसम।
बादल बन लम्बी चादर
ढ़कते हैं सारा अम्बर।
काले भूरे और सुनहरे
रंग बिरंगे चितकवरे।
सूरज को लज्जा आती
धरती मन में हरषाती।
हरयाली की चूनर पहने
नदी तालाब बने हैं गहने।
मेंढ़क दादुर गाते गीत
सावन आया मेरे मीत।
शंकर जी बजाते डमरू
सभी चढ़ते गाँजा भंगरू।
प्रेम पर्व पाता विस्तार
बहना आती भाई द्वार।
रक्षाबंधन पर्व मनाती
दुआ सलामत की दे जाती।
भाई करता है मनुहार
बहना को देता उपहार।
सावन आया सावन आया
खुशहाली को संगे लाया।
पावन महीना है सावन
मेहमान नबाजी घर आँगन।
बहुत सुहाना होता सावन
पकवानों में भरता मन।
सावन माह शंकर की पूजा।
मंत्रोच्चार से हर घर गूंजा।
राजेश कुमार कौरव सुमित्र
गाड़रवारा मध्यप्रदेश
सुहाना सावन
सावन की वह पहली फुहार
सब करते उसकी मनुहार
झूमें धरती झूमे अम्बर
खुशियाँ बरसे हर एक घर
पेड़ो पर झूले बंध जाए
बच्चे ख़ुशी में नाचे गाए
झर झर करते बहते झरने
लगे कोलाहल पंछी करने
शिव की भक्ति का यह सावन
मदमस्त की मस्ती का यह सावन
प्रेम भरे प्रेमी का सावन
प्रियशी की कमी का सावन
आँखों की नमी का सावन
भीगी हुई ज़मीं का सावन
मोरों की ख़ुशी का सावन
घर घर नाचे आँगन आँगन
हर किसी की प्यास बुझाता
जब धरा पर सावन आता
जब धरा पर सावन आता
नीतेश जैन
जबलपुर मप्र
सुहाना सावन
झूम के देखो आया सावन,
भीगे तन-मन सुरभित आंगन।
बरखा की मोती-सी लड़ियाँ,
धरा ने ओढ़ी धानी चुनरिया।
दमक रही दामिनी नभ में,
नव अंकुर फूटे उपवन में।
पुलकित पुष्प खिले मधुबन में,
घिरने लगीं घनघोर घटायें
सखी मिल सब कजरी गायें
प्रफुल्लित हए बच्चों के मन
जब काग़ज़ की नाव बनाएँ
कदम के पेड़ पड़ गए झूले।
राधा संग कान्हा तन झूले।
मन का मयूरा लगा झूमने,
कोयलिया भी लगी कूकने।
चातक मोर पपीहा हर्षित,
सुमन सलिल भंवरे गुंजित।
सावन नया संदेशा लाया,
हर बहना का मन हर्षाया।
दूर देश को गए सांवरिया,
पी की सुध में हुई बावरिया।
तक तक नयन थके हैं मेरे
कब आओगे तुम सांवरिया।
सतरंगी बयार सावन की,
छूकर मुझसे कहने लगी,
जा मिल अपने साजन से।
खोल सारे बन्धन सखी री,
सावन सुहाना संदेशा लाया
हर सजनी का मन मुस्काया।
सावन ले नया संदेशा आया,
हर बहना का मन हर्षाया।
बोल रही अपने प्रियतम से,
भैय्या को कोई संदेशा भिजवाओ।
सजा रही थाल चंदन, वन्दन से।
मधु तिवारी
कोंडागांव
छत्तीसगढ़
सावन फिर आया झूम के
ना जाने कितने सावन आए
हर सावन में सपने सजाए
बीते सावन बिखरे अरमान
नहीं आए दिल के मेहमान
जैसे सावन में बारिश बरसे
टप टप नयनों से अश्रु बरसे
सूखी आँखें ख़त्म हैं आँसू
आज भी नैन दर्शन पिपासु
विरह वेदना बहुत है सताए
साजन कहीं नज़र न आए
नभ में जब होती है गर्जन
तन मन में उठती हैंं सिरहन
काले मेघ उमड़-उमड़ छाये
वियोगिनी का दिल घबराये
अंगप्रत्यंग प्रत्यंचा चढ़ जाएँ
तपती देह में आग लग जाए
सौंधी सौंधी ख़ुशबू है आये
बैरी पिया को जल्दी बुलाये
सखियाँ सावन के झूले झूलें
अतृप्त मन प्रेम पीड़ा झेले
जाएंगें कब सांसारिक झमेले
लगेंगे जब नेह मधुरिम मेले
सावन फिर आया झूम के
अरमान जागें फिर हुजूर के
आ जाओ सुखविंद्र मनमीत
सावन में होगी स्नेहिल जीत
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
मनभावन सावन
बारिसों के छम-छम से,
बूंदों ने हैं बाण चलाये,
सावन की घटा है आई
मन को अति है सुहाई।
बरसों से तपती धरती की,
है आकर प्यास बुझाई,
मनभावन सावन आई,
तन मन की अगन बड़ाई।
बंजर प्यासी धरती को,
नव जीवन का सन्देश दिया,
बीजों से हैं अंकुर फूटे,
कृषकों के हृदय हैं जुटे।
सुर सरिता ताल तलैया,
सब नाचे ता-ता थेय्या,
मेढ़क, मोर, पपीहा बोले,
है मन में सबके मिश्री घोले।
शिव भक्तों का मौसम है आया,
मेरा मनभावन सावन है आया,
लेकर मन में है श्रद्धा अपार,
शंकर को मनाने चले उनके द्वार।
दरिया चली नदिया से मिलने,
नदिया सागर की ओर,
पर्वत पर है छाई,
देखो काली घटा घनघोर।
डॉ. संजु कुमारी
बोधगया
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